निबन्ध क्या है?
निबन्ध शब्द हिन्दी में संस्कृत से ग्रहण किया गया है, परन्तु आज इससे अंग्रेजी ‘ऐसे‘ का बोध होता है, फ्रेंच में इसे ‘एसाई‘ कहते थे, वहीं अँग्रेजी में ‘essay‘ के नाम से जाना गया, इसका अर्थ होता है प्रयोग करना।
अँग्रेजी में “ऐसे” शब्द का प्रयोग सबसे पहले वहाँ के श्रेष्ठ निबन्धकार बेकन ने किया। बेकन तथा अन्य अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने ‘ऐसे’ अथवा निबन्ध में वस्तुनिष्ठता पर बल दिया है, परन्तु निबन्ध के जनक, फ्रेंच विद्वान मौटेन इसमें वैयक्तिकता को भी अनिवार्य मानते हैं- निबन्ध विचारों, उद्धरणों और आख्यात्मक वृत्तों का सम्मिश्रण है।
हिन्दी के भी अधिकांश विद्वानों ने निबन्धों में वैयक्तिकता पर अधिक बल दिया है। श्री ठाकुर प्रसाद सिंह लिखते हैं, “मैंने निबन्ध को दूर तक व्यक्तित्व प्रधान निबन्ध का पर्याय माना है और व्यक्तिविहीन रचना निबन्ध नहीं और कुछ चाहे जो हो।”
निबन्ध के लिए बेकन ने ठोस सारगर्भित विचारों की अवस्थिति को अनिवार्य बनाया। निबन्ध में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए। यह मत प्राय: सभी विद्वानों का है।
हडसन लिखते हैं, “निबन्ध कुछ इने गिने पृष्ठों के लघु विस्तार में होना चाहिए, जिसमें सारगर्भित ठोस विचारों का निर्देश हो और यह विचार अधिक विस्तार में प्रकट न किए गए हों।”
यद्यपि आज निबन्ध को गद्य की विधा ही स्वीकार किया जाता है परन्तु पद्य में भी निबन्ध लिखे जाते रहे हैं। भारतेन्दु काल में लिखे गए अनेक पद्यात्मक निबन्ध तथा पोप का ‘ऐन ऐसे ऑन लिटरेरी क्रिटिसिज्म‘ इसका प्रमाण है।
हिंदी के प्रथम निबंध के रूप में “राजा भोज का सपना” (1839 ई.) है, जिसके लेखक शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद‘ हैं। कुछ विद्वान सदासुखलाल के ‘सुरासुरनिर्णय‘ के आधार पर इन्हें हिंदी का प्रथम निबंधकार मानते हैं।
निबंध की परिभाषा
निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है। निबंध में लेखक का अपना व्यक्तित्व साफ झलकता है। उसका अपना दृष्टिकोण, शैली, भाषाधिकार, विचार शक्ति, तर्क शक्ति आदि का पूरा परिचय निबंध से प्राप्त हो जाता है।
निबंध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।
इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबंध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतंत्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है।
निबंध शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “संस्कृत में भी निबंध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबंध संस्कृत के निबंधों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबंध की विधा का संबंध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबंध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है।”
निबन्ध का विषय
निबन्ध का विषय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या ऐतिहासिक कुछ भी हो सकता है परन्तु जैसा कि डॉ. लक्ष्मी सागर वाष्र्णेय ने कहा है, “निबन्ध से तात्पर्य सच्चे साहित्यिक निबन्धों से है जिसमें लेखक अपने आपको प्रकट करता है, विषय को नहीं; विषय तो केवल बहाना मात्र होता है।”
वास्तव में, निबन्ध साहित्य और इसके आयाम इतने विशाल हैं कि उन्हें परिभाषा के घेरे में नहीं बाँधा जा सकता। निबन्ध को परिभाषा में बाँधना कदाचित काव्य की परिभाषा करने से भी कठिन है।
उसमें कुछ (सम्पूर्ण नहीं) लक्षण निर्धारित कर ही संतोष करना पड़ता है। उसमें लेखक का निजीपन और व्यक्तित्व झलकता है। निबन्ध उन्मुक्त और स्वच्छंद होते हुए भी अपने आप में पूर्ण होता है। उसमें अपनी अन्विति होती है।
निबन्ध के भेद
निबन्धों का वर्गीकरण विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से किया है किन्तु आज विषय की दृष्टि से निबन्धों को पाँच प्रकार के भेद माने जाते है:
- वर्णनात्मक निबंध: किसी भी स्थान, घटना, वस्तु या दृश्य का आंखों देखा अथवा परोक्ष वर्णन इस प्रकार हो कि वह यथार्थ चित्रण लगे। इसमें वर्ण्य विषय की प्रमुखता रहती है। लेखक की भावनाओं का पुट भी दृष्टिगोचर होता है। ऐसे निबंध विषयगत होते हैं। परोक्ष वर्णन (जो प्रत्यक्ष यथार्थ लगे) वाले निबंध विवरणात्मक होते हैं। अतः वर्णनात्मक निबंध लेखन के समय इन तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए।
- भावात्मक निबंध: ऐसे निबंधों में भावों अर्थात् हृदय पक्ष की प्रधानता रहती है। लेखक निर्द्वन्द्व रूप से भावनाओं की उत्ताल तरंगों में डूबता-उतराता बहता जाता है, किन्तु बुद्धि तत्व को भी नहीं छोड़ता है। वह स्वयं रस-विभोर होकर पाठक को भी रससिक्त कर देता है। इस श्रेणी में वियोगी हरि, रायकृष्ण दास के निबंध उल्लेखनीय हैं। अतः भावात्मक निबंध लेखन के समय इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- विचारात्मक निबंध: ऐसे निबंधों में लेखक के अपने विचार, मत और धारणाएं तार्किक ढंग से बुद्धि सम्मत होते हैं। ये निबंध कभी तर्क प्रधान और कभी भावना प्रधान होते हैं। अतः विचारात्मक निबंध लेखन के समय इन विचारों और तर्कों का ध्यान रखना जरूरी है।
- व्यंग्यात्मक निबंध: समाज की विद्रूपता, राजनीतिक छल-प्रपंच, आर्थिक विषमता, धार्मिक पाखण्ड, आदि पर व्यंग्य के कठोर प्रहार करके जनमानस को उद्वेलित करना तथा परोक्ष रूप से सुधार करने के साथ-साथ साहित्यिक मनोरंजन करना भी व्यंग्यात्मक निबंधों का उद्देश्य होता है। अतः व्यंग्यात्मक निबंध लेखन के समय इन तथ्यों को ध्यान में चाहिए।
- आत्मपरक निबंध (ललित निबंध): अटपटे शीर्षक, विषम-सामान्य कल्पनाओं की उड़ान इन निबंधों में होती है जिनमें लेखक का व्यक्तित्व अधिक मुखर, स्पष्ट और प्रभावी होता है। इन्हें ललित निबंध भी कहते हैं। अतः आत्मपरक या ललित निबंध लेखन के समय आत्मीयता को ध्यान में चाहिए।
गुण एवं विशेषताएं
सारी दुनिया की भाषाओं में निबंध को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। आधुनिक युग में ही मध्ययुगीन धार्मिक, सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति का द्वार दिखाई पड़ा है। इस मुक्ति से निबंध का गहरा संबंध है।
एक अच्छे निबंध में विशेषता:
- एक अच्छे निबंध में संक्षिप्तता, एकसूत्रता तथा पूर्णता जैसे गुण विद्यमान होते हैं।
- निबंध लेखक को पुनरुक्ति से बचना चाहिए तथा अपनी बात को तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्त करना चाहिए।
- तर्कों की पुष्टि हेतु आंकड़े, उद्धरण आदि इस प्रकार से प्रस्तुत करने चाहिए जिससे वे विषय के साथ एकरस हो जाएं, पैबन्द जुड़े हुए प्रतीत न हों।
हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है।” इस प्रकार निबंध में निबंधकार की स्वच्छंदता का विशेष महत्त्व है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “निबंध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।”
इसका तात्पर्य यह है कि निबंध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबंधकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबंध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबंध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है।
हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार, “लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबंध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबंध-लेखक पाठकों को अपने पांडित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता।”
इस प्रकार निबंध के दो विशेष गुण होते हैं-
- व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति,
- सहभागिता का आत्मीय या अनौपचारिक स्तर।
निबंध कैसे लिखे? पढ़ें- निबंध लेखन।
प्रमुख निबन्ध और निबंधकार
हिन्दी साहित्य में गद्य का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है और भारतेन्द्र या लेखकों को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई निबन्ध लेखन से। इस काल में प्रमुख लेखकों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र (दाँत, भौं, नारी) बाल कृष्ण भट्ट (कृषकों की दुरावस्था) तथा प्रेमघन का नाम लिया जा सकता है।
द्विवेदी युग के निबन्ध लेखकों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालमुकुन्द गुप्त (शिवशंभु का चिट्ठा), सरदार पूर्णसिंह, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने प्रसिद्धि प्राप्त की है।
छायावाद युग तो निबन्ध के क्षेत्र में शुक्ल युग के नाम से ही जाना जाता है। अन्य निबन्धकारों में जिन लेखकों ने अपनी पहचान बनाई है वे हैं- नंद दुलारे वाजपेयी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, दिनकर, अज्ञेय, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, विद्यानिवास मिश्र तथा कुबेरनाथ राय आदि।
क्रम | निबंध | निबंधकार |
---|---|---|
1. | राजा भोज का सपना | शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ |
2. | म्युनिसिपैलिटी के कारनामे, जनकस्य दण्ड, रसज्ञ रंजन, कवि और कविता, लेखांजलि, आत्मनिवेदन, सुतापराधे | महावीर प्रसाद द्विवेदी |
3. | विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान में मंगल शब्द, मारेसि मोहि कुठाँव, कछुवा धर्म | चंद्रधर शर्मा गुलेरी |
4. | शिवशंभू के चिट्ठे, चिट्ठे और खत | बालमुकुंद गुप्त |
5. | निबंध नवनीत, खुशामद, आप, बात, भौं, प्रताप पीयूष | प्रतापनारायण मिश्र |
6. | पद्म पराग, प्रबंध मंजरी में संकलित निबंध | पद्मसिंह शर्मा |
7. | साहित्य सरोज, भट्ट निबंधावली (आँसू, रुचि, जात पाँत, सीमा रहस्य, आशा, चलन आदि), साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है (नि.) | बालकृष्ण भट्ट |
8. | पाँचवें पैगम्बर | भारतेंदु |
9. | मजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, अमरीका का मस्त जोगी वाल्ट ह्विटमैन, पवित्रता, कन्यादान, आचरण की सभ्यता | सरदार पूर्णसिंह |
10. | फिर निराशा क्यों, ठलुआ क्लब, मन की बातें, मेरी असफलताएँ, कुछ उथले कुछ गहरे | बाबू गुलाबराय |
11. | चिंतामणि (चार भाग) में संकलित निबंध, कविता क्या है, साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद | रामचंद्र शुक्ल |
12. | पंचपात्र (संग्रह) | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
13. | कुछ (संग्रह) | शिवपूजन सहाय |
14. | बुढ़ापा, गाली | ‘उग्र’ |
15. | साहित्य देवता, अमीर देवता, गरीब देवता | माखनलाल चतुर्वेदी |
16. | काव्य कला तथा अन्य निबंध, यथार्थवाद और छायावाद, रंगमंच, मौर्यों का राज्य परिवर्तन | प्रसाद |
17. | साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, श्रृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, संधिनी, चिंतन के क्षण | महादेवी वर्मा |
18. | जड़ की बात, सोच विचार, मंथन, मैं और वे, साहित्य का श्रेय और प्रेय, इतस्तत:, पूर्वोदय | जैनेंद्र |
19. | अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क, नाखून क्यों बढ़ते हैं, कुटज, पुनश्च, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, ठाकुर की बटोर, आम फिर बौरा गए, कुटज (नि.) | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
20. | मिट्टी की ओर, पंत, उजली आग, प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त, रेती के फूल, अर्द्धनारीश्वर | ‘दिनकर’ |
21. | आधुनिक साहित्य, नया साहित्य : नये प्रश्न, हिंदी साहित्य : 20वीं शताब्दी, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद | नंददुलारे वाजपेयी |
22. | यौवन के द्वार पर, आस्था के चरण, चेतना के बिंब, छायावाद की परिभाषा, साधारणीकरण (नि.) | नगेंद्र |
23. | गेहूँ और गुलाब, वंदे वाणी विनायकौ, लाल तारा | रामवृक्ष बेनीपुरी |
24. | त्रिशंकु, आलवाल, हिंदी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य, भवंती, लिखि कागद कोरे, आत्मपरक, सबरंग (ललित निबंध-संग्रह) | अज्ञेय |
25. | धरती गाती है, एक युग : एक प्रतीक, रेखाएँ बोल उठीं | देवेंद्र सत्यार्थी |
26. | चक्कर क्लब, बात-बात में मात, गांधीवाद की शव परीक्षा, न्याय का संघर्ष, देखा सोचा समझा | यशपाल |
27. | जिंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया में घुंघुरू, महके आँगन चहके द्वार | कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर |
28. | मंटो : मेरा दुश्मन | ‘अश्क’ |
29. | खरगोश के सींग | प्रभाकर माचवे |
30. | छितवन की छाँह, अंगद की नियति, तुम चंदन हम पानी, आँगन का पंछी और बंजारा मन, मैंने सिल पहुँचाई, कदम की फूली डाल, परंपरा बंधन नहीं, बसंत आ गया पर कोई बंधन नहीं, मेरा देश वापस लाओ, अग्निरथ | विद्यानिवास मिश्र |
31. | नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी, कला का तीसरा बाण, शमशेर : मेरी दृष्टि में, कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी, सौंदर्य प्रतीति की प्रक्रिया, कलात्मक अनुभव, उर्वशी : मनोविज्ञान, उर्वशी : दर्शन और काव्य, मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन का एक पहलू | मुक्तिबोध |
32. | ठेले पर हिमालय, पश्यंती, कहनी-अनकहनी, रामजी की चींटी : रामजी का शेर | धर्मवीर भारती |
33. | शिखरों के सेतु | शिवप्रसाद सिंह |
34. | निठल्ले की डायरी, भूत के पाँव, सदाचार का तावीज, ठिठुरता गणतंत्र, जैसे उनके दिन फिरे, सुनो भाई साधो, विकलांग श्रद्धा का दौर, पगडंडियों का जमाना | हरिशंकर परसाई |
35. | प्रिया नीलकंठी, रस आखेटक, गंधमादन, विषादयोग | कुबेरनाथ राय |
36. | चिंतन के क्षण | विजयेंद्र स्नातक |
37. | इतिहास और आलोचना, बकलम खुद | नामवर सिंह |
38. | शब्द और स्मृति, कला और जोखिम, ढलान से उतरते हुए | निर्मल वर्मा |
39. | हमारे आराध्य, साहित्य और जीवन | बनारसी दास चतुर्वेदी |
40. | नए प्रतिमान : पुराने निकष | लक्ष्मीकांत वर्मा |
41. | बेहया का जंगल | कृष्ण बिहारी |
42. | लघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर बहस, शमशेर की काव्यानुभूति की बनावट | विजयदेव नारायण साही |
नीचे दी गई लिस्ट में जो निबंध के उदाहरण दिए गए है उनका कठिनाई स्तर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट लेवल का है यानी 10th और 12th के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। आप ऐच्छिक निबंध को पढ़ सकते है-
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- राष्ट्र भाषा हिंदी
- मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास
- मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस
- भारतीय समाज में नारी का स्थान
- दहेज़ प्रथा : एक अभिशाप
- बेरोजगारी की समस्या
- युवा शक्ति में असंतोष : कारण और निवारण
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- नशाखोरी : एक अभिशाप
- विज्ञान की उपलब्धियां
- कंप्यूटर : महत्त्व एवं उपयोगिता
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- प्रदूषण : कारण एवं निवारण
- भारत में अंतरिक्ष अनुसन्धान : इसरो
- राष्ट्रीय एकता
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- शिक्षा का निजीकरण
- परिवार नियोजन – जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपाय
- मंहगाई की समस्या
- साम्प्रदायिक सद्भाव – साम्प्रदायिकता की समस्या
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- परोपकार : परहित सरिस धरम नहिं भाई
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- यदि मैं प्रधानमंत्री होता
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- नारी शिक्षा या महिला सशक्तिकरण
- पर उपदेश कुशल बहुतेरे
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