कहानी – कहानी किसे कहते हैं? कहानी लेखन, परिभाषा, विधा, तत्व, अंग, भेद

Kahani, Kahani Lekhan

कहानी क्या है?

कहानी (Story) गद्य साहित्य की सबसे प्राचीन विधा है। मानव सभ्यताओं के विकास के साथ-साथ कहानी का भी जन्म हुआ, और कहानी सुनाना एवं सुनना मानव का जन्मजात स्वभाव बन गया। इसी कारण से आज भी प्रत्येक समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। भारत में कहानियों की बड़ी लंबी, उत्तम और सम्पन्न परंपरा रही है।

कहानियों का आरंभ प्राचीनकाल में प्रसिद्ध वीर योद्धाओं तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाओं से हुआ था। उस समय कहानियों की कथावस्तु ‘घटना प्रधान‘ हुआ करती थी। प्रायः प्राचीन कहानियों में असत्य पर सत्य की जीत, अन्याय पर न्याय की जीत और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई जाती है।

कहानी की प्राचीन रचनाओं में गुणढ्य की ‘वृहत्कथा‘ को माना जा सकता है। इसमें उदयन, वासवदत्ता, समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं की अधिकता है। वृहत्कथा का प्रभाव दण्डी के दशकुमार चरित, बाणभट्ट की कादम्बरी, सुबन्धु की वासवदत्ता, धनपाल की तिलकमंजरी, सोमदेव के यशस्तिलक पर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ता है। और इसके अतिरिक्त मालतीमाधव, अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय, रत्नावली, मृच्छकटिकम् जैसे काव्यों पर भी वृहत्कथा का प्रभाव स्पष्ट जान पड़ता है।

प्राचीनकाल की कहानीयों पश्‍चात् आधुनिक काल की छोटे आकार वाली कहानी जैसे- पंचतंत्र, हितोपदेश, बेताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी, शुक सप्तति, कथा सरित्सागर, भोजप्रबन्ध जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों अस्तित्व में आयीं।

आधुनिक कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होने लगा। और कहानी पाठकों और कहानी लेखन करने वाले लेखकों की संख्या बढ़नें लगी।

परिभाषा एवं अर्थ

एक अच्छी कहानी के गुण परिभाषा में नहीं बांधे जा सकते। परंतु फिर भी कहानी की परिभाषा समय-समय पर देने का प्रयत्न विद्वानों द्वारा किया जाता रहा है। प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार कहानी की परिभाषा एवं विचार-

कहानी के विषय में प्रेमचंद का कथन है कि, “कहानी वह रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उददेश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा विन्यास उसी एक भाव की पुष्टि करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।”

मुंशी प्रेमचंद के अनुसार कहानी की परिभाषा, “कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।

एडगर ऍलन पो (Edgar Allan Poe) के अनुसार कहानी की परिभाषा, “कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्‍त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।

एडगर ऍलन पो अमरीकन रोमांसवाद के कवि, लेखक, संपादक और आलोचक थे। ये अपनी रहस्यमयी और भयावह कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं। जासूसी कहानियों की शुरुआत इन्होंने ही की और वैज्ञानिक कथाओं की उभरती शैली को भी बढ़ावा दिया।

कहानी के तत्व (अंग)

महाकाव्य और उपन्यास के ही समान अच्छी कहानी के गुण, परिभाषा में नहीं बांधे जा सकते। फिर भी कहानी के कुछ तत्त्व विद्वानों ने निर्धारित किए हैं, जिनमें प्रमुख हैं- कथावस्तु, पात्र और वातावरणनाटक की भांति कहानी में भी संवाद, भाषा शैली और उद्देश्य आदि कहानी के अन्य तत्व या अंग है।

कहानी के 6 तत्व या अंग इस प्रकार हैं: कथावस्तु, पात्र (चरित्र-चित्रण), कथोपकथन (संवाद), वातावरण (देशकाल), भाषा शैली और उद्देश्य।

  1. कथावस्तु
  2. पात्र (चरित्र-चित्रण)
  3. कथोपकथन (संवाद)
  4. वातावरण (देशकाल)
  5. भाषा शैली
  6. उद्देश्य

1. कथावस्तु

कहानी की कथावस्तु में एकता और अन्विति का होना अनिवार्य है। इसमें विषयांतर और प्रासंगिक घटनाओं के लिए भी कोई स्थान नहीं होता। कहानी में कथानक आत्मसंघर्ष की स्थिति से गुजरता हुआ उत्थान (समृद्धि और तीव्र दुविधा) को प्राप्त कर चरम सीमा पर पहुँचता है। प्रायः कहानियाँ यही समाप्त हो जाती हैं। परन्तु कुछ लेखक कहानियों में अवरोध और उपसंहार भी नियोजित करते हैं।

2. पात्र

कहानी के पात्रों को भी उपन्यास के समान सजीव, सहज और स्वाभाविक होना आवश्यक है और इसमें पात्रों के चरित्रोद्घाटन के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों विधियों का आश्रय लिया जा सकता है।

3. कथोपकथन (संवाद)

कहानी के कथोपकथनों में प्राय: संक्षिप्तता, सरलता, औचित्य, सजीवता तथा पात्रानुकूलता का होना अनिवार्य माना गया है। अतः इसके कथोपकथन सरल, सुबोध, स्वभाविक तथा पात्रअनुकूल होने चाहिए। गंभीर दार्शनिक विषयों से इसकी अनुभूति में बाधा होती है। इसलिए कहानी लेखन के समय इनका प्रयोग करने से बचना चाहिए।

4. वातावरण (देशकाल)

कहानी में वातावरण या देशकाल कहानी को रुचिकर बनाने लिए आवश्यक तत्व हैं। इसके संवाद भी देशकाल और परिस्थितियों के अनुरूप तो होने चाहिए, साथ ही उनमें सरलता, संक्षिप्तता और कथानक को गति देने के गुण का होना भी अनिवार्य है।

5. भाषा शैली

कहानी की भाषा सरल तथा पात्रानुकूल हो तथा शैली भावपूर्ण, वर्णनात्मक, डायरी, आत्मकथन आदि किसी भी प्रकार की हो सकती है। कहानी लेखन के समय अत्यधिक क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए।

6. उद्देश्य

सामाज सुधार, लोगों में जागरूकता एवं मनोरंजन करना आदि कहानी के कुछ उद्देश्य हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कहानी सिर्फ मनोरंजन के लिए ही हो। प्रत्येक कहानी का अपना एक अलग ही उद्देश्य होना चाहिए। अतः कहानी लेखन के समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कहानी सिर्फ मनोरंजन का साधन ही ना बन जाए। कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होना चाहिए।

कहानी का वर्गीकरण (भेद)

कहानियों को प्रायः सैद्धान्तिक, ऐतिहासिक, सुधारात्मक, मनोवैज्ञानिक, आंचलिक आदि वर्गों में रखा जाता है।

  1. सैद्धान्तिक कहानियाँ– इसके अंतर्गत सिद्धांतवादी कहानियां आती हैं।
  2. ऐतिहासिक कहानियाँ– इतिहास से संबंधित कहानियों को इसमें रखा जाता है।
  3. सुधारात्मक कहानियाँ– इसमें समाज सुधार से संबंधित कहानियाँ आती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक कहानियाँमनोविज्ञान से संबंधित कहानियों को मनोवैज्ञानिक कहानियाँ कहते हैं।
  5. आंचलिक कहानियाँ– क्षेत्रीय कहानियों को इसमें जगह दी गई है।

कहानी लेखन: कहानी कैसे लिखे?

जिस विषय पर कहानी लेखन करना हो, उस पर पर्याप्त चिन्तन-मनन कर लेना चाहिए और विचारों को व्यवस्थित क्रम देने के लिए उसकी एक संक्षिप्त रूपरेखा भी बना लेनी चाहिए।

  • विषय-वस्तु का प्रतिपादन रूपरेखा के अनुरूप करने से उसमें सुसम्बद्धता एवं कसावट आ जाती है।
  • कहानी लेखक को सरसता का समावेश भी करना चाहिए अन्यथा वह एक तथ्य प्रधान विवरण मात्र रह जाएगा।
  • कहानी की भाषा यथासम्भव सरल सहज एवं प्रवाहपूर्ण रहनी चाहिए।
  • लेखन के समय कठिन, कृत्रिम एवं आलंकारिक भाषा से यथासम्भव बचना चाहिए।
  • दुरूह वाक्य रचना एवं बोझिल भाषा से कहानी का सौन्दर्य एवं सौष्ठव नष्ट हो जाता है।
  • कहानी लेखक को अपने विषय पर केन्द्रित रहना चाहिए तभी उसका प्रभाव उचित रूप में पड़ता है।
  • एकसूत्रता भंग होने से कहानी बोझिल हो जाती है और उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।

हिन्दी साहित्य में कहानी लेखन

यों तो हिन्दी साहित्य में कहानियाँ बहुत समय से मिलती हैं, परन्तु आधुनिक ढंग की कहानी (शार्ट स्टोरी) का प्रारंभ “सरस्वती पत्रिका” में सन् 1900 में प्रकाशित किशोरी लाल गोस्वामी की “इन्दुमती” से स्वीकार किया जाता है। अन्य प्रारम्भिक कहानियों में ‘ग्यारह वर्ष का समय (रामचंद्र शुक्ल) तथा दुलाई वाली (बंग महिला) की पर्याप्त चर्चा हुई है।

हिन्दी कहानी साहित्य को सर्वाधिक समृद्ध किया मुंशी प्रेमचंद ने, इन्होंने पंचपरमेश्वर, शतरंज के खिलाड़ी, कफन आदि 300 से अधिक कहानियाँ लिखी।

अन्य कहानीकारों में प्रमुख हैं– जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, इलाचन्द्र जोशी, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, मन्न भंडारी, फणीश्वरनाथ रेणु, कृष्णा सोबती, शिवानी, उषा प्रियवंदा, ज्ञानरंजन, गोविन्द मिश्र आदि।

प्रथम कहानी

हिन्दी की पहली कहानी “इन्दुमती” को सभी विद्वान स्वीकार करते हैं, जिसका रचनाकाल 1900 ई. है और इसके लेखक “किशोरीलाल गोस्वामी” हैं।

उदाहरण

क्रम कहानी/रचना कहानीकार
1. रानी केतकी की कहानी इंशाअल्ला खाँ
2. राजा भोज का सपना राजा शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’
3. अद्भुत अपूर्व सपना भारतेंदु
4. दुलाईवाली राजा बाला घोष (बंगमहिला)
5. इंदुमती, गुलबहार किशोरीलाल गोस्वामी
6. मन की चंचलता माधवप्रसाद मिश्र
7. प्लेग की चुडैल भगवानदीन
8. ग्यारह वर्ष का समय रामचंद्र शुक्ल
9. इ कानों में कंगना राधिकारमण प्रसाद सिंह
10. सुखमय जीवन, बुद्ध का काँटा, उसने कहा था चंद्रधारी शर्मा गुलेरी

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