सामाजिक विज्ञान (Social Science) और सामाजिक अध्ययन (SST) दोनों विषय मानव समाज और उसके विविध पहलुओं का अध्ययन करते हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और उपयोग में कुछ अंतर हैं। इस पोस्ट में आप सामाजिक विज्ञान और सामाजिक अध्ययन के प्रमुख विषयों जैसे इतिहास, भूगोल, राजनीति, अर्थशास्त्र, और समाजशास्त्र की जानकारी प्राप्त करेंगे। सामाजिक अध्ययन (SST in Hindi) के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को सरल भाषा में जानें और अपनी परीक्षा की तैयारी को मजबूत करें।
सामाजिक विज्ञान (Social Science)
सामाजिक विज्ञान एक व्यापक क्षेत्र है जो समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, राजनीति, मनोविज्ञान, और मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसके प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं:
- समाजशास्त्र – समाज और सामाजिक संरचनाओं का अध्ययन।
- राजनीतिशास्त्र – राजनीतिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं का विश्लेषण।
- अर्थशास्त्र – आर्थिक गतिविधियों और उनके प्रभावों का अध्ययन।
- मनोविज्ञान – मानव मन और व्यवहार की गहरी समझ।
सामाजिक अध्ययन (Social Studies – SST)
सामाजिक अध्ययन एक शिक्षा संबंधी विषय है जो स्कूल स्तर पर पढ़ाया जाता है। यह विद्यार्थियों को समाज की मूलभूत समझ प्रदान करता है, जिसमें इतिहास, भूगोल, राजनीति और अर्थशास्त्र का समावेश होता है। SST का मुख्य उद्देश्य छात्रों को समाज के बारे में जागरूक करना और उन्हें समाज में अपनी भूमिका समझाने में मदद करना है।
1. इतिहास (History)
इतिहास (History) मानव समाज की विकास यात्रा, घटनाओं, और उनके कारणों का अध्ययन है। यह समय के साथ हुए सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक परिवर्तनों की जानकारी देता है। इतिहास का उद्देश्य न केवल भूतकाल की घटनाओं का विवरण देना है, बल्कि उनके प्रभावों और उनसे मिली सीखों को समझना भी है।
इतिहास हमें यह समझने में मदद करता है कि वर्तमान स्थिति कैसे बनी और भविष्य के लिए क्या संभावनाएँ हैं। यह हमारे पूर्वजों के अनुभवों, संघर्षों, उपलब्धियों, और विचारधाराओं का रिकॉर्ड है जो मानव सभ्यता के विकास को दर्शाता है।
भारतीय इतिहास का वर्गीकरण
भारतीय इतिहास को आमतौर पर तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है:
- प्राचीन भारत (Ancient India)
यह काल भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से लेकर लगभग 8वीं सदी ईस्वी तक फैला हुआ है। इसमें शामिल हैं:- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization): यह भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता मानी जाती है, जो लगभग 3300–1300 ई.पू. के बीच फली-फूली।
- वैदिक काल (Vedic Period): लगभग 1500–600 ई.पू. के दौरान आर्यों द्वारा रचित वेदों और वैदिक साहित्य का समय।
- महाजनपद काल (Mahajanapada Period): लगभग 600–300 ई.पू. के बीच 16 महाजनपदों की स्थापना और विस्तार।
- मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire): चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के शासनकाल में एक विशाल साम्राज्य का गठन (लगभग 322–185 ई.पू.)।
- गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire): चौथी से छठी सदी के बीच का काल, जिसे भारत का ‘स्वर्णिम युग’ कहा जाता है।
- मध्यकालीन भारत (Medieval India)
यह काल 8वीं सदी से 18वीं सदी तक माना जाता है, जिसमें शामिल हैं:- राजपूत काल (Rajput Period): 8वीं से 12वीं सदी के दौरान राजपूत राज्यों का उदय और उनके बीच संघर्ष।
- दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate): 1206–1526 तक विभिन्न मुस्लिम वंशों का शासन।
- मुगल साम्राज्य (Mughal Empire): 1526–1857 तक भारत में मुगलों का शासन, जिसमें अकबर, शाहजहां, और औरंगजेब जैसे महान शासक शामिल थे।
- दक्षिण भारतीय साम्राज्य (Southern Indian Empires): चोल, चालुक्य, विजयनगर साम्राज्य जैसे दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण राज्य।
- आधुनिक भारत (Modern India)
यह काल 18वीं सदी के मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता (1947) तक का समय है:- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन (British East India Company Rule): 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद अंग्रेजी शासन की शुरुआत।
- ब्रिटिश साम्राज्य (British Raj): 1858 में सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन शासन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Struggle): 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, 20वीं सदी की शुरुआत में महात्मा गांधी का नेतृत्व, और 1947 में भारत की स्वतंत्रता।
भारतीय इतिहास का और विस्तृत वर्गीकरण
भारतीय इतिहास को आगे निम्नलिखित चरणों में भी बाँटा जा सकता है:
- प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period): लेखन कला के विकास से पहले का समय, जिसमें पाषाण युग (Stone Age) के प्रमाण मिलते हैं।
- प्रोटोहिस्टोरिक काल (Protohistoric Period): सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल, जिनके लिखित प्रमाण तो हैं लेकिन उनका पूरा अर्थ स्पष्ट नहीं है।
- औपनिवेशिक काल (Colonial Period): 18वीं सदी के अंत से लेकर 1947 तक, जब भारत ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में रहा।
- स्वतंत्रता के बाद का काल (Post-Independence Period): 1947 से लेकर वर्तमान समय तक का समय, जिसमें भारत गणराज्य के रूप में उभरा।
इस प्रकार, भारतीय इतिहास एक समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास है, जो कई सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों से भरा हुआ है।
2. भूगोल (Geography)
भूगोल (Geography) वह विज्ञान है जो पृथ्वी की संरचना, प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु, वनस्पति, जनसंख्या, और मानव-प्राकृतिक संबंधों का अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि कैसे पृथ्वी की सतह के विभिन्न घटक (जैसे पहाड़, नदियाँ, जलवायु, भूमि उपयोग) और मानव गतिविधियाँ एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं। भूगोल दो मुख्य शाखाओं में विभाजित है:
- भौतिक भूगोल (Physical Geography): इसमें प्राकृतिक विशेषताओं और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जैसे:
- स्थलरूप (Landforms)
- जलवायु (Climate)
- नदियाँ और महासागर (Rivers and Oceans)
- मिट्टी और वनस्पति (Soil and Vegetation)
- मानव भूगोल (Human Geography): इसमें मानव समाज और उसकी गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है, जैसे:
- जनसंख्या (Population)
- बस्तियाँ और नगर नियोजन (Settlements and Urban Planning)
- कृषि और उद्योग (Agriculture and Industry)
- सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियाँ (Cultural and Economic Activities)
भारतीय भूगोल (Indian Geography)
भारतीय भूगोल एक विस्तृत और विविध विषय है, जो भारत की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, वनस्पति, संसाधनों और जनसंख्या की विशेषताओं को शामिल करता है। भारतीय भूगोल को निम्नलिखित मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. भारत की भौगोलिक स्थिति और सीमाएँ
- भौगोलिक स्थिति: भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और अक्षांश 8°4′ उत्तरी से 37°6′ उत्तरी और देशांतर 68°7′ पूर्वी से 97°25′ पूर्वी के बीच फैला हुआ है।
- सीमाएँ: भारत की सीमा सात देशों (पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, अफगानिस्तान) के साथ लगती है। दक्षिण में इसकी तटरेखा हिंद महासागर से घिरी है।
2. भारत की स्थलरूप (Physical Features of India)
- हिमालय (Himalayas): यह पर्वत श्रेणी उत्तर में स्थित है और इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है: हिमाद्री, हिमाचल, और शिवालिक।
- उत्तर भारतीय मैदान (Northern Plains): गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा निर्मित, यह क्षेत्र कृषि के लिए उपजाऊ है।
- प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau): यह प्राचीन चट्टानों का निर्माण है और इसमें विंध्य, सतपुड़ा, अरावली, और दक्कन का पठार शामिल हैं।
- तटीय क्षेत्र (Coastal Plains): भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर स्थित, इनमें कोंकण, मालाबार और कोरोमंडल तट शामिल हैं।
- थार मरुस्थल (Thar Desert): यह राजस्थान में स्थित है और इसे ‘महान भारतीय मरुस्थल’ भी कहा जाता है।
3. भारत की जलवायु (Climate of India)
- मौसम प्रकार: भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की है, जिसमें चार मुख्य ऋतुएं होती हैं: ग्रीष्म, वर्षा, शरद, और शीत।
- मानसून: दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत में वर्षा का मुख्य स्रोत है, जो कृषि को प्रभावित करता है।
- क्षेत्रीय जलवायु विविधता: भारत के विभिन्न हिस्सों में जलवायु की विविधता देखी जाती है, जैसे कश्मीर में ठंडी जलवायु और राजस्थान में गर्म और शुष्क जलवायु।
4. भारत की प्राकृतिक वनस्पति और जीव-जंतु (Natural Vegetation and Wildlife of India)
- वनस्पति प्रकार: भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जैसे:
- उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)
- उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forests)
- शुष्क वन (Dry Forests)
- मंग्रोव वन (Mangrove Forests)
- जीव-जंतु: भारत में बाघ, शेर, हाथी, गैंडा, हिरण जैसी अनेक वन्यजीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं। देश में 100 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं।
5. भारत की नदियाँ (Rivers of India)
- हिमालयी नदियाँ: गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ, जो हिमालय से निकलती हैं।
- प्रायद्वीपीय नदियाँ: गोदावरी, कृष्णा, कावेरी जैसी नदियाँ, जो प्रायद्वीपीय भारत में बहती हैं।
- जल संसाधन और बाँध: भाखड़ा नांगल, हीराकुंड, सरदार सरोवर आदि प्रमुख बाँध हैं, जो सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
6. भारत की जनसंख्या और बस्तियाँ (Population and Settlements of India)
- जनसंख्या: भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इसमें जनसंख्या घनत्व, साक्षरता दर, और लिंगानुपात जैसी विशेषताओं का अध्ययन शामिल है।
- शहरीकरण: महानगरों (जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु) का विकास और ग्रामीण-शहरी जनसंख्या प्रवासन।
7. भारत के प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources of India)
- खनिज संसाधन: कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, सोना, और पेट्रोलियम जैसे खनिज संसाधनों का वितरण।
- ऊर्जा संसाधन: हाइड्रो, सौर, पवन, और परमाणु ऊर्जा के स्रोत।
भारतीय भूगोल में भौगोलिक विविधता, जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों और जनसंख्या की विशेषताओं का व्यापक अध्ययन किया जाता है। यह न केवल हमें भारत की भौगोलिक संरचना और प्राकृतिक विशेषताओं के बारे में बताता है, बल्कि यह भी समझने में मदद करता है कि कैसे ये सभी पहलू देश के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को प्रभावित करते हैं।
3. अर्थव्यवस्था (Economy) और राजनीतिक अर्थव्यवस्था (Political Economy)
अर्थव्यवस्था (Economy) और राजनीतिक अर्थव्यवस्था (Political Economy) दोनों ही आर्थिक सिद्धांतों से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनके अध्ययन का दृष्टिकोण और क्षेत्र अलग-अलग होते हैं। आइए इन दोनों को विस्तार से समझते हैं:
अर्थव्यवस्था (Economy)
अर्थव्यवस्था उस प्रणाली को कहा जाता है जिसके माध्यम से किसी देश, क्षेत्र या समाज में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, वितरण और उपभोग होता है। यह आर्थिक गतिविधियों का व्यापक अध्ययन है, जिसमें शामिल हैं:
- उत्पादन (Production): वस्तुओं और सेवाओं का निर्माण।
- वितरण (Distribution): उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का विभिन्न लोगों तक पहुंचाना।
- उपभोग (Consumption): वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करना या उनका उपयोग करना।
अर्थव्यवस्था के मुख्य प्रकार:
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy): निजी स्वामित्व और बाजार की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
- समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy): संसाधनों का नियंत्रण राज्य के हाथ में होता है।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy): इसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों का समावेश होता है।
राजनीतिक अर्थव्यवस्था (Political Economy)
राजनीतिक अर्थव्यवस्था का अध्ययन अर्थशास्त्र और राजनीति के आपसी संबंधों पर केंद्रित है। इसमें यह समझने की कोशिश की जाती है कि राजनीतिक निर्णय और नीतियां कैसे आर्थिक प्रणालियों, समाज और व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं। इसके प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
- आर्थिक नीतियों का विश्लेषण (Analysis of Economic Policies): इसमें यह देखा जाता है कि सरकार की नीतियां जैसे कराधान, सार्वजनिक खर्च, व्यापार नीति आदि का अर्थव्यवस्था और समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
- सत्ता और संसाधनों का वितरण (Distribution of Power and Resources): इसमें इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि कैसे आर्थिक संसाधनों का वितरण सत्ता और सामाजिक संरचनाओं द्वारा नियंत्रित होता है।
- वैश्विक राजनीतिक अर्थव्यवस्था (Global Political Economy): इसमें वैश्विक स्तर पर देशों के बीच आर्थिक संबंधों और नीतियों का अध्ययन किया जाता है।
मुख्य अंतर:
- अर्थव्यवस्था (Economy) केवल आर्थिक गतिविधियों, उत्पादन, वितरण और उपभोग पर केंद्रित होती है।
- राजनीतिक अर्थव्यवस्था (Political Economy) इस बात का अध्ययन करती है कि कैसे राजनीतिक शक्ति, नीतियां और आर्थिक निर्णय एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
इन दोनों का अध्ययन एक व्यापक समझ प्रदान करता है कि कैसे आर्थिक गतिविधियों और राजनीतिक निर्णय एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और समाज पर उनके क्या प्रभाव होते हैं।
4. राजनीति विज्ञान (Political Science)
राजनीति विज्ञान (Political Science) एक सामाजिक विज्ञान है, जो राजनीति, शासन और सार्वजनिक नीतियों का अध्ययन करता है। इसमें विभिन्न राजनीतिक सिद्धांतों, राजनीतिक विचारधाराओं, संस्थानों, प्रक्रियाओं, व्यवहारों और नीतियों का विश्लेषण किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि समाज में सत्ता, अधिकार, और संसाधनों का वितरण कैसे होता है और राजनीतिक प्रणाली कैसे कार्य करती है।
राजनीति विज्ञान के मुख्य क्षेत्र:
- राजनीतिक सिद्धांत (Political Theory): राजनीतिक विचारधाराओं और सिद्धांतों का अध्ययन, जैसे लोकतंत्र, समाजवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद आदि।
- तुलनात्मक राजनीति (Comparative Politics): विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, सरकारों और नीतियों की तुलना करना।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations): देशों के बीच के संबंध, कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे संयुक्त राष्ट्र) और वैश्विक मुद्दों का अध्ययन।
- लोक प्रशासन (Public Administration): सरकारी संगठनों और नीतियों का प्रशासनिक ढांचा और उनका कार्यान्वयन।
- राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology): राजनीति और समाज के बीच के संबंध, जैसे राजनीतिक संस्कृति, मतदाता व्यवहार, और सामाजिक आंदोलनों का अध्ययन।
भारतीय राजनीति (Indian Politics)
भारतीय राजनीति का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसकी राजनीतिक प्रणाली बहुत जटिल और विविधतापूर्ण है। भारतीय राजनीति का विकास और उसकी संरचना भारतीय संविधान, विभिन्न राजनीतिक दलों, चुनावी प्रक्रिया और शासन व्यवस्था पर आधारित है।
1. भारतीय राजनीतिक प्रणाली की संरचना (Structure of Indian Political System)
- संविधान (Constitution): भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। यह देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना का आधार है। इसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार, राज्य की नीति निर्देशक तत्व, और संघीय ढांचा जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं।
- संघीय ढांचा (Federal Structure): भारत एक संघीय गणराज्य है, जिसमें सत्ता का विभाजन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किया गया है।
- लोकतंत्र (Democracy): भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, जहाँ शासन के सभी महत्वपूर्ण निर्णय जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से किए जाते हैं।
2. भारतीय राजनीति में प्रमुख संस्थान (Major Institutions in Indian Politics)
- संसद (Parliament): यह विधायिका की सर्वोच्च संस्था है, जो दो सदनों – लोकसभा (संसद का निचला सदन) और राज्यसभा (संसद का उच्च सदन) – में विभाजित है।
- राष्ट्रपति (President): भारत का प्रमुख संवैधानिक पद। राष्ट्रपति देश के प्रमुख होते हैं, लेकिन वास्तविक कार्यकारी शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
- प्रधानमंत्री (Prime Minister): कार्यकारी का प्रमुख, जो सरकार का नेतृत्व करता है और मंत्रिपरिषद का मुखिया होता है।
- राज्य सरकारें (State Governments): प्रत्येक राज्य की अपनी सरकार होती है, जिसमें मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद होते हैं।
- न्यायपालिका (Judiciary): सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और अन्य अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं। यह संविधान की व्याख्या करता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
3. भारतीय राजनीति में प्रमुख राजनीतिक दल (Major Political Parties in India)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress): सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party): वर्तमान में प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी, जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा को बढ़ावा देती है।
- अन्य प्रमुख दल: बहुजन समाज पार्टी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP), तृणमूल कांग्रेस (TMC), और क्षेत्रीय दल जैसे डीएमके, एआईएडीएमके, शिवसेना, आदि।
4. भारतीय चुनावी प्रणाली (Indian Electoral System)
- लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections): हर पांच साल में होने वाले आम चुनाव, जिनमें देश के प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सांसद चुना जाता है।
- विधानसभा चुनाव (State Assembly Elections): राज्यों के लिए विधायक चुनने के लिए आयोजित किए जाने वाले चुनाव।
- राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव (Presidential and Rajya Sabha Elections): राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) द्वारा और राज्यसभा सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं द्वारा होता है।
5. भारतीय राजनीति के प्रमुख मुद्दे (Major Issues in Indian Politics)
- धर्म और जाति की राजनीति (Religion and Caste Politics): भारतीय राजनीति में धर्म और जाति का गहरा प्रभाव है, जो वोट बैंक की राजनीति को प्रभावित करता है।
- विकास और गरीबी (Development and Poverty): आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन, और सामाजिक न्याय भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे हैं।
- भ्रष्टाचार (Corruption): भ्रष्टाचार भारतीय राजनीति की एक बड़ी समस्या है, जिसे लेकर समय-समय पर आंदोलन और सुधार की माँग उठती रही है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security): सीमाओं की सुरक्षा, आतंकवाद, और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे भी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होते हैं।
6. भारतीय राजनीति में नागरिक भागीदारी (Citizen Participation in Indian Politics)
- मतदान (Voting): लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी का प्रमुख माध्यम।
- सामाजिक आंदोलन (Social Movements): जनहित से जुड़े मुद्दों पर नागरिकों द्वारा किए गए आंदोलन, जैसे चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, आदि।
- मीडिया और सोशल मीडिया: राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा, जागरूकता और नागरिक भागीदारी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारतीय राजनीति विविधता और जटिलता से भरी हुई है। राजनीति विज्ञान का अध्ययन न केवल राजनीतिक घटनाओं और नीतियों को समझने में मदद करता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे राजनीतिक निर्णय समाज और नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं। भारतीय राजनीतिक प्रणाली की जटिल संरचना और उसमें जनता की भागीदारी को समझना एक बेहतर लोकतंत्र के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
5. कानून (Law)
कानून (Law) नियमों और विनियमों का एक ऐसा समूह है, जो समाज में व्यवस्था बनाए रखने और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करने के लिए स्थापित किए गए हैं। कानून यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति और समूह एक-दूसरे के साथ उचित और न्यायसंगत व्यवहार करें, और समाज में शांति और अनुशासन बनाए रखा जाए।
कानून के प्रमुख उद्देश्य:
- व्यवस्था बनाए रखना: समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखना।
- न्याय और समानता की स्थापना: सभी नागरिकों के साथ न्यायपूर्ण और समान व्यवहार सुनिश्चित करना।
- अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षण: व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उनके कर्तव्यों को सुनिश्चित करना।
- विवादों का समाधान: कानूनी प्रक्रियाओं द्वारा व्यक्तियों और समूहों के बीच के विवादों का समाधान करना।
- सामाजिक परिवर्तन का साधन: समाज में सकारात्मक परिवर्तन और सुधार लाने के लिए कानूनों का निर्माण।
कानून के प्रकार:
- प्राकृतिक कानून (Natural Law): ऐसे सिद्धांत और मूल्य जो मानव समाज में स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं, जैसे जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, आदि।
- सांविधिक कानून (Statutory Law): संसद या विधानमंडल द्वारा पारित कानून, जैसे भारतीय दंड संहिता (IPC)।
- प्रशासनिक कानून (Administrative Law): सरकारी एजेंसियों और उनके कार्यों से संबंधित नियम, जैसे रिट याचिकाएँ।
- अधिकार कानून (Civil Law): व्यक्तियों या संगठनों के बीच के निजी विवादों को हल करने के लिए, जैसे संपत्ति विवाद, अनुबंध विवाद।
- फौजदारी कानून (Criminal Law): समाज में अपराधों और अपराधियों के लिए दंडात्मक नियम, जैसे हत्या, चोरी, धोखाधड़ी।
भारतीय कानून (Indian Law)
भारतीय कानून एक जटिल और विविध प्रणाली है, जो भारत के संविधान द्वारा निर्देशित होती है। इसमें संविधान, सांविधिक कानून, आम कानून, और व्यक्तिगत कानून (Personal Laws) शामिल हैं।
1. भारतीय संविधान (Indian Constitution)
- संविधान: यह भारत का सर्वोच्च कानून है, जो देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को निर्धारित करता है। संविधान में मौलिक अधिकार, राज्य की नीति निर्देशक सिद्धांत, और नागरिकों के मौलिक कर्तव्य शामिल हैं।
- संविधान के प्रमुख भाग:
- प्रस्तावना (Preamble): संविधान का उद्देश्य और सिद्धांत।
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): नागरिकों के लिए प्रदत्त अधिकार, जैसे समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार।
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy): राज्य के लिए सामाजिक-आर्थिक कल्याण के दिशानिर्देश।
- मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties): नागरिकों के लिए संविधान में निर्धारित कर्तव्य।
2. प्रमुख भारतीय कानून (Major Indian Laws)
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, 1860): भारत में आपराधिक कृत्यों और उनके लिए दंड निर्धारित करने वाला प्रमुख कानून।
- दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure, 1973): आपराधिक मामलों में जांच, मुकदमा, और सजा की प्रक्रियाओं का निर्धारण।
- सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure, 1908): नागरिक मामलों में न्यायालय की प्रक्रियाएँ।
- संविदा अधिनियम (Indian Contract Act, 1872): अनुबंधों से संबंधित नियम और उनके उल्लंघन की स्थिति में अधिकार और दायित्व।
- विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act, 1954): विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विवाह के लिए कानून।
- कंपनी अधिनियम (Companies Act, 2013): कंपनियों के पंजीकरण, विनियमन और प्रशासन से संबंधित नियम।
3. भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary)
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court): भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जो संविधान की व्याख्या करता है और सभी प्रकार के न्यायिक मामलों में अंतिम अपील सुनता है।
- उच्च न्यायालय (High Courts): प्रत्येक राज्य में स्थित उच्च न्यायालय, जो राज्य के कानूनों की व्याख्या और मामलों की सुनवाई करता है।
- निचली न्यायपालिका (Lower Judiciary): जिला और सत्र न्यायालय, जो नागरिक और आपराधिक मामलों की सुनवाई करता है।
4. व्यक्तिगत कानून (Personal Laws)
- हिंदू कानून (Hindu Law): हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, और अन्य कानून, जो हिंदुओं के विवाह, उत्तराधिकार, और संपत्ति के मामलों को नियंत्रित करते हैं।
- मुस्लिम कानून (Muslim Law): शरिया कानून और मुस्लिम पर्सनल लॉ, जो मुस्लिम समुदाय के व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
- ईसाई और पारसी कानून (Christian and Parsi Law): ईसाई विवाह अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, जो इन समुदायों के व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करते हैं।
5. विशेष कानून (Special Laws)
- महिला सुरक्षा कानून (Laws for Women’s Protection): जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम, यौन उत्पीड़न से संबंधित कानून।
- बाल श्रम निषेध कानून (Child Labor Prohibition Law): बच्चों को श्रम से बचाने के लिए कानून।
- अल्पसंख्यक अधिकार कानून (Minority Rights Law): धार्मिक, भाषाई और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून।
6. भारतीय विधिक प्रक्रिया (Legal Procedure in India)
- मुकदमे की प्रक्रिया (Trial Process): मुकदमे की प्रारंभिक जाँच, चार्जशीट दाखिल करना, गवाहों की जाँच, और अंतिम निर्णय।
- अधिकार याचिका (Writ Petition): नागरिकों द्वारा उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए याचिका दाखिल करना।
- न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): न्यायालयों का यह अधिकार कि वे किसी भी कानून या सरकारी कार्रवाई की वैधता की समीक्षा कर सकते हैं।
भारतीय कानून प्रणाली एक व्यापक और जटिल संरचना है, जो संविधान द्वारा निर्देशित होती है और जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों, धर्मों, और क्षेत्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार के कानून बनाए गए हैं। कानून का उद्देश्य समाज में न्याय, समानता और शांति सुनिश्चित करना है। भारतीय कानून न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि उन्हें उनके कर्तव्यों की भी याद दिलाता है, ताकि एक संगठित और समृद्ध समाज का निर्माण हो सके।
6. शिक्षा विज्ञान या शिक्षण विज्ञान (Education Science)
शिक्षा विशिष्ट कौशल को पढ़ाने और सीखने को शामिल करती है, और कुछ कम मूर्त लेकिन अधिक गहरा: ज्ञान, सकारात्मक निर्णय और अच्छी तरह से विकसित ज्ञान। शिक्षा अपने मूल पहलुओं में से एक के रूप में पीढ़ी से पीढ़ी तक संस्कृति प्रदान करती है (समाजीकरण देखें)। शिक्षित करने का अर्थ है, लैटिन शिक्षा से ‘बाहर निकालना’, या किसी व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा को साकार करना। यह शिक्षण विज्ञान, शिक्षण और शिक्षण से संबंधित सैद्धांतिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान का एक निकाय है, जो मनोविज्ञान, दर्शन, कंप्यूटर विज्ञान, भाषा विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान जैसे कई विषयों पर आधारित है।
एक व्यक्ति की शिक्षा जन्म से शुरू होती है और जीवन भर जारी रहती है। (कुछ का मानना है कि शिक्षा जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है, जैसा कि कुछ माता-पिता द्वारा संगीत बजाना या गर्भ में बच्चे को पढ़ना इस बच्चे के विकास को प्रभावित करेगा, इसका सबूत है।) कुछ लोगों के लिए, दैनिक जीवन के संघर्ष और विजय बहुत कुछ प्रदान करते हैं। औपचारिक स्कूली शिक्षा की तुलना में निर्देश (इस प्रकार मार्क ट्वेन की सलाह है कि “स्कूल को कभी भी अपनी शिक्षा में हस्तक्षेप न करें”)। परिवार के सदस्यों का गहरा शैक्षिक प्रभाव हो सकता है – अक्सर वे जितना महसूस करते हैं उससे अधिक गहरा – हालांकि परिवार शिक्षण बहुत अनौपचारिक रूप से कार्य कर सकता है।
7. मनोविज्ञान (Psychology)
मनोविज्ञान व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन से संबंधित एक अकादमिक और अनुप्रयुक्त क्षेत्र है। मनोविज्ञान भी मानव गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे ज्ञान के आवेदन को संदर्भित करता है, जिसमें व्यक्तियों के दैनिक जीवन की समस्याएं और मानसिक बीमारी का उपचार शामिल है। मनोविज्ञान शब्द प्राचीन ग्रीक psych मानस (“आत्मा”, “मन”) और लॉजी (“अध्ययन”) से आया है।
मनोविज्ञान मानवविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र से भिन्न होता है, जो मानसिक क्रियाओं और व्यक्तियों के व्यवहार के बारे में व्याख्यात्मक सामान्यीकरण पर कब्जा करने की कोशिश करता है, जबकि अन्य विषयों में सामाजिक समूहों या स्थिति-विशिष्ट मानव व्यवहार के कामकाज के बारे में वर्णनात्मक सामान्यीकरण बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। व्यवहार में, हालांकि, विभिन्न क्षेत्रों के बीच बहुत अधिक क्रॉस-निषेचन होता है। मनोविज्ञान जीव विज्ञान और तंत्रिका विज्ञान से भिन्न है कि यह मुख्य रूप से मानसिक प्रक्रियाओं और व्यवहार की बातचीत के साथ संबंधित है, और एक प्रणाली की समग्र प्रक्रियाओं, और न केवल जैविक या तंत्रिका प्रक्रियाओं से खुद को, हालांकि न्यूरोपैथोलॉजी का उपक्षेत्र अध्ययन का संयोजन करता है वास्तविक न्यूरल प्रक्रियाएं उन मानसिक प्रभावों के अध्ययन के साथ होती हैं, जो उनके अधीन हैं।
बहुत से लोग मनोविज्ञान को नैदानिक मनोविज्ञान से जोड़ते हैं, जो जीवन और मनोचिकित्सा में समस्याओं के मूल्यांकन और उपचार पर केंद्रित है। वास्तविकता में, मनोविज्ञान में सामाजिक मनोविज्ञान, विकासात्मक मनोविज्ञान, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान, शैक्षिक मनोविज्ञान, औद्योगिक-संगठनात्मक मनोविज्ञान, गणितीय मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और व्यवहार के मात्रात्मक विश्लेषण सहित असंख्य विशेषताएं हैं।
मनोविज्ञान एक बहुत व्यापक विज्ञान है जो शायद ही कभी एक पूरे, प्रमुख ब्लॉक के रूप में निपटा जाता है। हालांकि कुछ उप-क्षेत्रों में एक प्राकृतिक विज्ञान आधार और एक सामाजिक विज्ञान अनुप्रयोग शामिल हैं, दूसरों को सामाजिक विज्ञानों के साथ बहुत कम संबंध रखने या सामाजिक विज्ञान के साथ बहुत कुछ करने के रूप में स्पष्ट रूप से प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, जैविक मनोविज्ञान को एक सामाजिक वैज्ञानिक अनुप्रयोग (जैसा कि नैदानिक चिकित्सा है) के साथ एक प्राकृतिक विज्ञान माना जाता है, सामाजिक और व्यावसायिक मनोविज्ञान हैं, आम तौर पर बोलना, विशुद्ध रूप से सामाजिक विज्ञान, जबकि न्यूरोसाइकोलॉजी एक प्राकृतिक विज्ञान है जिसमें पूरी तरह से वैज्ञानिक परंपरा से आवेदन का अभाव है।
ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में, एक छात्र ने मनोविज्ञान के किस सिद्धांत का अध्ययन किया है और / या केंद्रित डिग्री डिग्री के माध्यम से संप्रेषित किया गया है पर जोर: B.Bsy। प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान, B.Sc. एक मजबूत (या संपूर्ण) वैज्ञानिक एकाग्रता को इंगित करता है, जबकि एक बी.ए. अधिकांश सामाजिक विज्ञान क्रेडिट को रेखांकित करता है। हालांकि यह हमेशा जरूरी नहीं होता है, लेकिन ब्रिटेन के कई संस्थानों में B.Psy, B.Sc और B.A की पढ़ाई करने वाले छात्र हैं। ब्रिटिश साइकोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा उल्लिखित समान पाठ्यक्रम का पालन करें और विशेषज्ञता के समान विकल्प उनके लिए खुले हैं चाहे वे एक संतुलन का चयन करें, एक भारी विज्ञान का आधार, या उनकी डिग्री के लिए भारी सामाजिक विज्ञान का आधार। यदि वे बी.ए. पढ़ने के लिए आवेदन करते हैं। उदाहरण के लिए, लेकिन भारी विज्ञान-आधारित मॉड्यूल में विशेष, फिर भी उन्हें आम तौर पर बी.ए.।
8. भाषाविज्ञान (Linguistics)
भाषाविज्ञान मानव भाषा के संज्ञानात्मक और सामाजिक पहलुओं की जांच करता है। क्षेत्र को उन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है जो भाषाई संकेत के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे कि वाक्य रचना (नियमों का अध्ययन जो वाक्यों की संरचना को नियंत्रित करता है), शब्दार्थ (अर्थ का अध्ययन), आकारिकी (शब्दों की संरचना का अध्ययन) , ध्वन्यात्मकता (भाषण ध्वनियों का अध्ययन) और ध्वनिविज्ञान (एक विशेष भाषा के अमूर्त ध्वनि प्रणाली का अध्ययन); हालाँकि, विकासवादी भाषाविज्ञान (भाषा की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन) और मनोविज्ञान (मानव भाषा में मनोवैज्ञानिक कारकों का अध्ययन) जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं।
भाषा विज्ञान में आधुनिक शोध का भारी बहुमत मुख्य रूप से समकालिक परिप्रेक्ष्य (समय में किसी विशेष बिंदु पर भाषा पर ध्यान केंद्रित), और इसका एक बड़ा हिस्सा लेता है – नोम चोमस्की के प्रभाव के कारण आंशिक रूप से – संज्ञानात्मक प्रसंस्करण के सिद्धांतों का निर्माण करना है भाषा। हालाँकि, भाषा निर्वात में या केवल मस्तिष्क में मौजूद नहीं है, और संपर्क भाषा विज्ञान, क्रेओल अध्ययन, प्रवचन विश्लेषण, सामाजिक अंतःक्रियात्मक भाषा विज्ञान, और समाजशास्त्र जैसे दृष्टिकोण इसके सामाजिक संदर्भ में भाषा का पता लगाते हैं।
Sociolinguistics अक्सर पारंपरिक मात्रात्मक विश्लेषण और आंकड़ों की आवृत्ति की जांच करने में सांख्यिकी का उपयोग करते हैं, जबकि कुछ विषयों, जैसे संपर्क भाषाविज्ञान, गुणात्मक विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जबकि भाषा विज्ञान के कुछ क्षेत्रों को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सामाजिक विज्ञानों के भीतर स्पष्ट रूप से गिरते हुए, अन्य क्षेत्र, जैसे ध्वनिक ध्वन्यात्मकता और तंत्रिका विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञानों को आकर्षित करते हैं। भाषाविज्ञान केवल मानविकी पर दूसरा स्थान रखता है, जिसने 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में भाषाई जांच में अधिक भूमिका निभाई। फर्डिनेंड सॉसर को आधुनिक भाषा विज्ञान का जनक माना जाता है।
9. समाजशास्त्र (Sociology)
समाजशास्त्र समाज का व्यवस्थित अध्ययन है, व्यक्तियों का उनके समाजों के साथ संबंध, अंतर के परिणाम और मानव सामाजिक क्रिया के अन्य पहलू हैं। शब्द का अर्थ प्रत्यय “-हिंदी” से है, जिसका अर्थ है “अध्ययन”, जो प्राचीन ग्रीक से लिया गया है, और स्टेम “समाज”, जो लैटिन शब्द समाज से है, जिसका अर्थ है “साथी”, या समाज।
अगस्टे कोम्टे (1798-1857) ने सामाजिक विज्ञान के सिद्धांतों और तकनीकों को 1838 में सामाजिक दुनिया में लागू करने के एक तरीके के रूप में, समाजशास्त्र शब्द को गढ़ा। कॉम्टे ने सामाजिक क्षेत्र की वर्णनात्मक समझ के माध्यम से इतिहास, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने प्रस्तावित किया कि समाजशास्त्रीय सकारात्मकता के माध्यम से सामाजिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है।
द कोर्स इन पॉजिटिव फिलॉसफी और ए जनरल व्यू ऑफ पोजिटिविज्म (1844) में उल्लिखित एक युगांतरकारी दृष्टिकोण। हालांकि कॉम्टे को आमतौर पर “फादर ऑफ सोशियोलॉजी” के रूप में माना जाता है, अनुशासन औपचारिक रूप से एक और फ्रांसीसी विचारक, ओमिल दुर्खीम (1858-1917) द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्होंने व्यावहारिक सामाजिक अनुसंधान की नींव के रूप में सकारात्मकता विकसित की। डॉर्काइम ने 1895 में बॉरदॉ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का पहला यूरोपीय विभाग स्थापित किया, जो सोसाइटी विधि के अपने नियमों को प्रकाशित करता है।
1896 में, उन्होंने L’nnée Sociologique पत्रिका की स्थापना की। दुरखाइम के सेमिनल मोनोग्राफ, सुसाइड (1897), कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट आबादी के बीच आत्महत्या की दर का एक अध्ययन, मनोविज्ञान या दर्शन से अलग समाजशास्त्रीय विश्लेषण।
कार्ल मार्क्स ने कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को खारिज कर दिया, लेकिन फिर भी ऐतिहासिक भौतिकवाद के आधार पर समाज के एक विज्ञान को स्थापित करने का लक्ष्य रखा, समाजशास्त्र की स्थापना के रूप में मरणोपरांत व्यापक अर्थ के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत के आसपास, मैक्स वेबर और जॉर्ज सिमेल सहित जर्मन समाजशास्त्रियों की पहली लहर ने समाजशास्त्रीय एंटीपोसिटिववाद विकसित किया। क्षेत्र को मोटे तौर पर विशेष रूप से सामाजिक विचार के तीन तरीकों के एक समामेलन के रूप में पहचाना जा सकता है: दुर्खीमियान प्रत्यक्षवाद और संरचनात्मक कार्यात्मकता; मार्क्सवादी ऐतिहासिक भौतिकवाद और संघर्ष सिद्धांत; और वेबरियन एंटीपोसिटिविज्म और वर्स्टेनेन विश्लेषण।
अमेरिकी समाजशास्त्र मोटे तौर पर एक अलग प्रक्षेपवक्र पर पैदा हुआ, जिसमें थोड़ा मार्क्सवादी प्रभाव, कठोर प्रायोगिक पद्धति पर जोर और व्यावहारिकता और सामाजिक मनोविज्ञान के साथ घनिष्ठ संबंध था। 1920 के दशक में, शिकागो स्कूल ने प्रतीकात्मक सहभागिता का विकास किया। इस बीच, 1930 के दशक में, फ्रैंकफर्ट स्कूल ने महत्वपूर्ण सिद्धांत के विचार का नेतृत्व किया, जो मार्क्सवादी समाजशास्त्र के एक अंतःविषय रूप से विचारकों को सिगमंड फ्रायड और फ्रेडरिक नीत्शे के रूप में विविध रूप में चित्रित करता है। साहित्यिक आलोचना और सांस्कृतिक अध्ययन की बर्मिंघम स्कूल की स्थापना को प्रभावित करने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत कुछ अपने जीवन पर ले जाएगा।
समाजशास्त्र आधुनिकता की चुनौतियों की एक शैक्षणिक प्रतिक्रिया के रूप में विकसित हुआ, जैसे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, धर्मनिरपेक्षता, और तर्कसंगतकरण को कवर करने की एक कथित प्रक्रिया। यह क्षेत्र आम तौर पर सामाजिक नियमों और प्रक्रियाओं की चिंता करता है जो लोगों को न केवल व्यक्तियों के रूप में बांधते हैं और अलग करते हैं, बल्कि संघों, समूहों, समुदायों और संस्थानों के सदस्यों के रूप में, और संगठन और मानव सामाजिक जीवन के विकास की परीक्षा में शामिल हैं। वैश्विक सामाजिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए सड़क पर अनाम व्यक्तियों के बीच लघु संपर्कों के विश्लेषण से ब्याज का समाजशास्त्रीय क्षेत्र होता है।
समाजशास्त्री पीटर एल बर्जर और थॉमस लकमैन के संदर्भ में, सामाजिक वैज्ञानिक वास्तविकता के सामाजिक निर्माण की समझ चाहते हैं। अधिकांश समाजशास्त्री एक या अधिक उपक्षेत्रों में काम करते हैं। अनुशासन का वर्णन करने का एक उपयोगी तरीका उप-क्षेत्रों का एक समूह है जो समाज के विभिन्न आयामों की जांच करता है। उदाहरण के लिए, सामाजिक स्तरीकरण अध्ययन असमानता और वर्ग संरचना; जनसांख्यिकी अध्ययन जनसंख्या के आकार या प्रकार में परिवर्तन करता है; अपराध विज्ञान आपराधिक व्यवहार और विचलन की जांच करता है; और राजनीतिक समाजशास्त्र समाज और राज्य के बीच पारस्परिक क्रिया का अध्ययन करता है।
अपनी स्थापना के बाद से, समाजशास्त्रीय महामारी विज्ञान, पद्धति और जांच के तख्ते, काफी विस्तारित और परिवर्तित हो गए हैं। समाजशास्त्री विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं, दोनों मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा एकत्र करते हैं, अनुभवजन्य तकनीकों को आकर्षित करते हैं, और महत्वपूर्ण सिद्धांत संलग्न करते हैं। सामान्य आधुनिक विधियों में केस स्टडी, ऐतिहासिक शोध, साक्षात्कार, प्रतिभागी अवलोकन, सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण, सर्वेक्षण अनुसंधान, सांख्यिकीय विश्लेषण और मॉडल निर्माण, अन्य दृष्टिकोणों के साथ शामिल हैं। 1970 के दशक के उत्तरार्ध से, कई समाजशास्त्रियों ने अकादमी से परे उद्देश्यों के लिए अनुशासन को उपयोगी बनाने की कोशिश की है।
सामाजिक अनुसंधान सहायता शिक्षकों, सांसदों, प्रशासकों, डेवलपर्स और सामाजिक समस्याओं को हल करने और सार्वजनिक नीति तैयार करने में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के परिणाम, मूल्यांकन अनुसंधान, पद्धति मूल्यांकन और सार्वजनिक समाजशास्त्र जैसे उप-विषयक क्षेत्रों के माध्यम से होते हैं।
1970 के दशक की शुरुआत में, महिला समाजशास्त्रियों ने समाजशास्त्रीय प्रतिमानों और समाजशास्त्रीय अध्ययन, विश्लेषण और पाठ्यक्रमों में महिलाओं की अदृश्यता पर सवाल उठाना शुरू किया। 1969 में, नारीवादी समाजशास्त्रियों ने अमेरिकन सोशियोलॉजिकल एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन में अनुशासन और रूढ़िवाद को चुनौती दी। इसने सोसाइटीज़ फॉर वुमेन इन सोसाइटी नामक संस्था की स्थापना की, और अंततः, एक नई समाजशास्त्र पत्रिका, जेंडर एंड सोसाइटी। आज, लिंग का समाजशास्त्र अनुशासन में सबसे प्रमुख उप-क्षेत्रों में से एक माना जाता है।
नए समाजशास्त्रीय उप-क्षेत्र दिखाई देते हैं – जैसे कि सामुदायिक अध्ययन, कम्प्यूटेशनल समाजशास्त्र, पर्यावरणीय समाजशास्त्र, नेटवर्क विश्लेषण, अभिनेता-नेटवर्क सिद्धांत, लिंग अध्ययन और एक बढ़ती हुई सूची, जिनमें से कई प्रकृति में क्रॉस-अनुशासनात्मक हैं।
10. नागरिक शास्त्र (Civics)
नागरिक शास्त्र (Civics) एक महत्वपूर्ण विषय है जो नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों, और सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह विषय आमतौर पर स्कूलों में पढ़ाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करना होता है।
11. नरविज्ञान (Anthropology) (मनुष्य जाति का विज्ञान)
मानव विज्ञान समग्र “मानव का विज्ञान” है, जो मानव अस्तित्व की समग्रता का विज्ञान है। अनुशासन सामाजिक विज्ञान, मानविकी और मानव जीव विज्ञान के विभिन्न पहलुओं के एकीकरण से संबंधित है। बीसवीं शताब्दी में, शैक्षणिक विषयों को अक्सर संस्थागत रूप से तीन व्यापक डोमेन में विभाजित किया गया है।
प्राकृतिक विज्ञान प्रजनन और सत्यापन योग्य प्रयोगों के माध्यम से सामान्य कानूनों को प्राप्त करना चाहते हैं। मानविकी आम तौर पर अपने इतिहास, साहित्य, संगीत और कलाओं के माध्यम से स्थानीय परंपराओं का अध्ययन करते हैं, विशेष व्यक्तियों, घटनाओं या युगों को समझने पर जोर देने के साथ। सामाजिक विज्ञान ने आम तौर पर सामाजिक घटनाओं को सामान्य रूप से समझने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को विकसित करने का प्रयास किया है, हालांकि आमतौर पर प्राकृतिक विज्ञानों से अलग तरीकों के साथ।
मानवशास्त्रीय सामाजिक विज्ञान अक्सर भौतिकी या रसायन विज्ञान में प्राप्त सामान्य कानूनों के बजाय बारीक विवरण विकसित करते हैं, या वे मनोविज्ञान के कई क्षेत्रों में व्यक्तिगत मामलों को अधिक सामान्य सिद्धांतों के माध्यम से समझा सकते हैं। नृविज्ञान (इतिहास के कुछ क्षेत्रों की तरह) आसानी से इन श्रेणियों में से एक में फिट नहीं होता है, और नृविज्ञान की विभिन्न शाखाएँ इनमें से एक या अधिक डोमेन पर आकर्षित होती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर, नृविज्ञान को चार उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पुरातत्व, भौतिक या जैविक नृविज्ञान, नृविज्ञान भाषाविज्ञान, और सांस्कृतिक नृविज्ञान। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो अधिकांश स्नातक संस्थानों में पेश किया जाता है। प्राचीन ग्रीक में एंथ्रोपोस (ἄνθρςο in) शब्द का अर्थ है “इंसान” या “व्यक्ति”। एरिक वुल्फ ने समाजशास्त्रीय नृविज्ञान को “मानविकी का सबसे वैज्ञानिक, और विज्ञान का सबसे मानवतावादी” बताया।
मानवविज्ञान का लक्ष्य मनुष्यों और मानव प्रकृति का समग्र खाता प्रदान करना है। इसका मतलब यह है कि, हालांकि मानवविज्ञानी आमतौर पर केवल एक उप-क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं, वे हमेशा किसी भी समस्या के जैविक, भाषाई, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हैं। चूंकि नृविज्ञान पश्चिमी समाजों में एक विज्ञान के रूप में उत्पन्न हुआ था, जो जटिल और औद्योगिक थे, नृविज्ञान के भीतर एक प्रमुख प्रवृत्ति समाजों में लोगों को अधिक सरल सामाजिक संगठन के साथ लोगों के अध्ययन के लिए एक पद्धतिगत ड्राइव रही है, जिन्हें कभी-कभी मानव विज्ञान में “आदिम” कहा जाता है, लेकिन बिना किसी धारणा के “अवर”।
आज, मानवविज्ञानी “कम जटिल” समाजों जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं या निर्वाह या उत्पादन के विशिष्ट तरीकों का उल्लेख करते हैं, जैसे “देहाती” या “वनवासी” या “बागवानी”, गैर-औद्योगिक, गैर-पश्चिमी संस्कृतियों में रहने वाले मनुष्यों का उल्लेख करने के लिए, इस तरह के लोग या लोक (नृवंश) मानवविज्ञान के भीतर बहुत रुचि के शेष हैं।
समग्र परंपराओं के प्रत्यक्ष अवलोकन के साथ-साथ जीवविज्ञान का उपयोग करते हुए समग्रता से लोगों का विस्तार से अध्ययन करने के लिए समग्र मानव विज्ञान की ओर जाता है। 1990 और 2000 के दशक में, एक संस्कृति के गठन के स्पष्टीकरण के लिए कॉल, कैसे एक पर्यवेक्षक जानता है कि जहां उसकी अपनी संस्कृति समाप्त होती है और दूसरा शुरू होता है, और नृविज्ञान लिखने में अन्य महत्वपूर्ण विषयों को सुना जाता है। वैश्विक संस्कृति को विकसित करते हुए सभी मानव संस्कृतियों को एक बड़े हिस्से के रूप में देखना संभव है। ये गतिशील रिश्ते, जो जमीन पर देखे जा सकते हैं, के रूप में कई स्थानीय टिप्पणियों को संकलित करके क्या मनाया जा सकता है, किसी भी तरह के नृविज्ञान में मौलिक बना रहता है, चाहे वह सांस्कृतिक, जैविक, भाषाई या पुरातात्विक हो।
12. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT)
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology, ICT) का अर्थ है सूचना और संचार के माध्यमों के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीकों का समूह। इसमें कंप्यूटर, इंटरनेट, टेलीफोन, मोबाइल डिवाइस, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, और अन्य डिजिटल उपकरण शामिल होते हैं। ICT का उपयोग सूचना के संग्रह, प्रसंस्करण, भंडारण, और प्रसारण के लिए किया जाता है, जिससे संचार और डेटा का आदान-प्रदान सुगम और प्रभावी बनता है।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के प्रमुख घटक-
- सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology): इसमें कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, डेटाबेस, नेटवर्क, और इंटरनेट सेवाएँ शामिल हैं, जो सूचना के संग्रह, भंडारण, और प्रबंधन में सहायक होती हैं।
- संचार प्रौद्योगिकी (Communication Technology): इसमें टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, ईमेल, सोशल मीडिया, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और अन्य संचार माध्यम शामिल हैं, जो सूचना के प्रसारण और संवाद में मदद करते हैं।
- डिजिटल तकनीक (Digital Technology): इसमें डिजिटल उपकरण, मल्टीमीडिया, ऑडियो-वीडियो सामग्री, और अन्य डिजिटल संसाधन शामिल हैं, जिनका उपयोग सूचना के प्रस्तुतीकरण और प्रसंस्करण के लिए किया जाता है।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) ने समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। यह न केवल सूचना और संचार को सुगम बनाता है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, और सरकार के विभिन्न क्षेत्रों में भी नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करता है। भारत में ICT का तेजी से विकास हो रहा है और यह भविष्य में देश की प्रगति और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बनेगा।
सामाजिक अध्ययन के अतिरिक्त अध्ययन क्षेत्र
- आर्कियोलॉजी (Archaeology) वह विज्ञान है जो वास्तुकला, कलाकृतियों, विशेषताओं, बायोफैक्ट्स और परिदृश्य सहित सामग्री अवशेषों और पर्यावरण डेटा की पुनर्प्राप्ति, प्रलेखन, विश्लेषण और व्याख्या के माध्यम से मानव संस्कृतियों का अध्ययन करता है।
- क्षेत्र अध्ययन (Area studies) विशेष भौगोलिक, राष्ट्रीय / संघीय या सांस्कृतिक क्षेत्रों से संबंधित अनुसंधान और छात्रवृत्ति के अंतःविषय क्षेत्र हैं।
- व्यवहार विज्ञान (Behavioural science) एक ऐसा शब्द है जो प्राकृतिक दुनिया में जीवों के बीच की गतिविधियों और बातचीत का पता लगाने वाले सभी विषयों को समाहित करता है।
- कम्प्यूटेशनल सामाजिक विज्ञान (Computational social science) सामाजिक विज्ञान के भीतर कम्प्यूटेशनल दृष्टिकोण शामिल एक छोटा क्षेत्र है।
- जनसांख्यिकी (Demography) सभी मानव आबादी का सांख्यिकीय अध्ययन है।
- विकास सामाजिक विज्ञान (Development studies) की एक बहु-विषयक शाखा का अध्ययन करता है जो विकासशील देशों को चिंता के मुद्दों को संबोधित करता है।
- पर्यावरण अध्ययन (Environmental studies) मानव और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों का व्यापक, अंतःविषय अध्ययन है।
- लिंग अध्ययन (Gender studies) लिंग पहचान, पुरुषत्व, स्त्रीत्व, ट्रांसजेंडर मुद्दों और कामुकता का अध्ययन करने के लिए कई सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञानों को एकीकृत करता है।
- सूचना विज्ञान (Information science) एक अंतःविषय विज्ञान है जो मुख्य रूप से सूचना के संग्रह, वर्गीकरण, हेरफेर, भंडारण, पुनर्प्राप्ति और प्रसार से संबंधित है।
- अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन (International studies) दोनों अंतरराष्ट्रीय संबंधों (अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के भीतर राज्यों के बीच विदेशी मामलों और वैश्विक मुद्दों का अध्ययन) और अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा (व्यापक दृष्टिकोण जो जानबूझकर लोगों को सक्रिय और एक दूसरे से जुड़े दुनिया में भागीदार बनने के लिए तैयार करता है) को कवर करता है।
- कानूनी प्रबंधन (Legal management) एक सामाजिक विज्ञान अनुशासन है जो राज्य और कानूनी तत्वों के अध्ययन में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए बनाया गया है।
- पुस्तकालय विज्ञान (Library science) एक अंतःविषय क्षेत्र है जो पुस्तकालयों के प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों के प्रथाओं, दृष्टिकोण और उपकरणों को लागू करता है; सूचना संसाधनों का संग्रह, संगठन, संरक्षण और प्रसार; और सूचना की राजनीतिक अर्थव्यवस्था।
- प्रबंधन (Management) में सभी व्यावसायिक और मानव संगठनों में एक संगठन के नेतृत्व और प्रशासन के विभिन्न स्तर होते हैं। यह पर्याप्त योजना, क्रियान्वयन और नियंत्रण गतिविधियों के माध्यम से वांछित लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए लोगों को एक साथ लाने का प्रभावी निष्पादन है।
- विपणन (Marketing) मानव की जरूरतों और चाहता है, परिभाषित करता है और इन जरूरतों को पूरा करने और विनिमय प्रक्रियाओं और लंबी अवधि के संबंधों के निर्माण के माध्यम से उत्पादों और सेवाओं, मूल्य निर्धारण, पदोन्नति और वितरण को तैयार करने के लिए उपभोक्ता खरीद व्यवहार की प्रक्रिया को समझने और परिभाषित करने के लिए उनके परिमाण को मापता है।
- लोक प्रशासन (Public administration) राजनीति विज्ञान की मुख्य शाखाओं में से एक है, और इसे मोटे तौर पर सरकारी नीति की शाखाओं के विकास, कार्यान्वयन और अध्ययन के रूप में वर्णित किया जा सकता है। नागरिक समाज और सामाजिक न्याय को बढ़ाकर जनता की भलाई का लक्ष्य क्षेत्र का अंतिम लक्ष्य है। हालांकि सार्वजनिक प्रशासन को ऐतिहासिक रूप से सरकारी प्रबंधन के रूप में संदर्भित किया गया है, यह तेजी से गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को शामिल करता है जो मानवता की बेहतरी के लिए एक समान, प्राथमिक समर्पण के साथ काम करते हैं।
- धार्मिक अध्ययन (Religious studies) और पश्चिमी गूढ़ अध्ययन (Western esoteric studies) व्यापक रूप से धार्मिक मानी जाने वाली घटनाओं पर सामाजिक-वैज्ञानिक अनुसंधान को शामिल और सूचित करते हैं। धार्मिक अध्ययन, पश्चिमी गूढ़ अध्ययन और सामाजिक विज्ञान एक दूसरे के साथ संवाद में विकसित हुए।
सामाजिक विज्ञान एक व्यापक अकादमिक क्षेत्र है जो गहरे शोध और विश्लेषण पर केंद्रित है, जबकि सामाजिक अध्ययन एक शैक्षणिक विषय है जो छात्रों को समाज और उसके कार्यों के बारे में बुनियादी जानकारी देता है। दोनों का उद्देश्य समाज की बेहतर समझ और विकास में योगदान देना है।