‘राष्ट्रीय एकता’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय एकता के तत्व
- राष्ट्रीय एकता और अखण्डता
- राष्ट्रीय एकता हेतु उपाय
- राष्ट्रीय एकीकरण की बाधाएं
- राष्ट्रीय अखण्डता
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- विभिन्नता में एकता
- राष्ट्रीय एकता की बाधाएं
- राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
- राष्ट्रीय एकता में हमारा कर्तव्य
- संकटकाल और राष्ट्रीय एकता
- राष्ट्रीय एकता हेतु उपाय
- उपसंहार
राष्ट्रीय एकता
प्रस्तावना
राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय है सम्पूर्ण भारत को एकता एवं अखण्डता के सूत्र में बाँधे रखना। जब तक राष्ट्र के नागरिक परस्पर एकता के सूत्र में नहीं बँधते तब तक राष्ट्र की सर्वांगीण प्रगति सम्भव नहीं है। हमारी पारस्परिक फूट का लाभ विदेशी उठाना चाहते हैं। वे भारत को खण्ड-खण्ड करके इसे कमजोर करना चाहते हैं, अतः समय रहते हमें सचेत होना है और आपसी सदभाव को कायम रखते हुए एकता को बनाए रखना है।
विभिन्नता में एकता
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसमें विभिन्न धर्म, विभिन्न भाषाएं एवं विभिन्न संस्कृतियां हैं, किन्तु यह विभिन्नता भी शक्ति एवं सामर्थ्य की परिचायक है, उसकी कमजोरी नहीं। वस्तुतः विभिन्नता में एकता का मन्त्र भारत का उद्घोष है।
भारत के मूल निवासी इतने सहिष्णु एवं उदार रहे कि उन्होंने बाहर से आने वाले लोगों को अपना लिया उनके धर्म संस्कार पूजा पद्धति में किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं किया गया। परिणाम यह हुआ कि देश में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी सभी एक साथ अपनी-अपनी पूजा पद्धति, अपने-अपने इष्टदेव एवं अपनी-अपनी संस्कृति को लेकर माला में गूंथे हुए मनकों की भाति एकता के सूत्र में जुड़े रहे।
विडम्बना यह है कि देश की वर्तमान दशा को देखते हुए राष्ट्रीय एकता पर संकट के बादल छा रहे हैं और अब राष्ट्रीय एकता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। देश किस प्रकार एकता के सूत्र में आबद्ध रहे इस पर मनीषियों एवं प्रबद्ध नागरिकों में विचार-विनिमय होने लगा है।
राष्ट्रीय एकता की बाधाएं
राष्ट्र एक सांस्कृतिक शब्द है जिसका अभिप्राय केवल भौगोलिक सीमाओं से नहीं लिया जाता अपितु यह हमारे जातीय गौरव, जातीय स्वाभिमान एवं जातीय चरित्र को अभिव्यक्त करता है। जब कोई वर्ग किन्हीं कारणों से असन्तुष्ट होकर यह अनुभव करने लगता है कि अब इस ‘राष्ट्र’ से अलग होकर ही अपने वर्ग का उत्थान कर सकता है, तब ‘राष्ट्रीय एकता’ की भावना नष्ट हो जाती है और देश के टूटने का खतरा पैदा हो जाता है।
साम्प्रदायिकता की भावना राष्ट्रीय एकता में बाधक है। जब एक वर्ग स्वयं को इस देश में असुरक्षित अनुभव करता है, तो दूसरे वर्ग के प्रति विद्वेष, असन्तोष, ईर्ष्या के भावों से भर जाता है। इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा हो जाता है। इसी प्रकार प्रान्तीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, जातिवाद भी राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व हैं।
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
आज ‘कश्मीर जल रहा है’, पंजाब में आतंकवादी खून की होली खेल चुके हैं और असम में उग्रवाद सिर उठा रहा है। स्वतन्त्र कश्मीर के स्वप्न देखे जा रहे हैं और देश की मुख्य धारा से कटे हुए गुमराह युवक अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए अपहरण, गोलीबारी एवं बम विस्फोटों का सहारा ले रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत के टुकड़े-टुकड़े होने का खतरा पैदा हो गया है और देश की मनीषा यह सोचने पर विवश हो गई है कि टूटते हुए राष्ट्र को कैसे बचाया जाए।
यही सब कुछ देखते हुए 2019, 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शाषित प्रदेशों में अलग कर दिया है। पहला है जम्मू और कश्मीर तथा दूसरा लद्दाख। जो भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए, तथा कश्मीर में अलगाववादियों एवं आतंकवादियों पर लगाम लगानें के लिए अति आवश्यक था।
दूषित राजनीति ने राष्ट्र के सम्मुख महान संकट खड़ा कर दिया है। जब कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों के स्वार्थ पूरे नहीं हो पाते तो वे अपनी महात्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु इस प्रकार के आन्दोलन छेड़ देते हैं, जो राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर सकें।
यदि प्रधानमन्त्री बनने की महत्वाकांक्षा एक साथ सौ आदमी अपने दिमाग में पाल लें तो यह तभी सम्भव हो सकेगा जब देश के सौ टुकड़े कर दिए जाएं, अन्यथा भारत में तो एक ही प्रधानमन्त्री एक समय में रहेगा। बस ये स्वार्थी राजनीतिज्ञ अपनी इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए कभी भाषा के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर, कभी प्रान्त के नाम पर तो कभी वर्ग के नाम पर भाई-भाई को आपस में लड़वाकर अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने लगते हैं।
क्या यह हमारे लिए शर्म की बात नहीं है कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हम भाषा, धर्म जाति वर्ग प्रांत के नाम पर झगड रहे हैं। यदि हम पारस्परिक मतभेद भुलाकर परस्पर सौहार्द एवं भाईचारे की भावना से रहें तो कोई कारण नहीं कि देश को सभी समस्याओं से मुक्ति न मिल जाए और हम पुनः विकास के पथ पर अग्रसर न हो जाएं।
राष्ट्रीय एकता हेतु हमारा कर्तव्य
राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने राष्ट्र को एक परिवार के रूप में देखें उसके प्रति श्रद्धा भाव रखे और उसकालए त्याग और बलिदान देने के लिए तत्पर रहें। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागकर राष्ट्र को सर्वोपरि समझे और देश हित में पारस्परिक सौहार्द एवं भाईचारे की भावना को विकसित करे।
भारत एक विकासशील राष्ट्र है और विश्व के राजनीतिक मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज की उपेक्षा नहीं की जा सकती। भारत की इस भूमिका से कुछ देशों को ईर्ष्या स्वाभाविक है, अतः वे हमारे लिए इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं, जिससे भारत कमजोर हो जाए, उसकी एकता छिन्न-भिन्न हो जाए, वह आपस के झगड़ों का निपटारा करने में फँसा रहे और विकास कार्यों की ओर ध्यान न लगा सके।
संकटकाल और राष्ट्रीय एकता
इतिहास साक्षी है कि संकट के समय भारत ने अपनी एकता का परिचय दिया है। चीन और पाकिस्तान से हुए युद्ध के समय सारे राष्ट्र ने एकता का परिचय देकर दुश्मन के दांत खट्टे किए। हमारे देश के राजनीतिज्ञों ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अलगाववादियों को मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास भी किए, जिनमें आंशिक सफलता भी मिली है।
पूर्वोत्तर राज्यों में मिजोरम समस्या, नागालैंड समस्या, पंजाब समस्या, गोरखालैण्ड आन्दोलन, नक्सलवादी आन्दोलनों का समापन हो चुका है किन्तु कश्मीर में अभी भी हालात खराब हैं। विदेशी आक्रमण के समय सारा राष्ट्र, सारे राजनीतिक दल आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ खड़े हो जाते हैं और सरकार के हर कदम में उसका साथ देकर राष्ट्रीय एकता का परिचय देते हैं।
स्व. प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी तो इस राष्ट्रीय एकता के लिए अपना बलिदान ही दे चुकी है। स्व. प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने पंजाब समझौता करके राष्ट्रीय एकता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान किया किन्तु आतंकवादी गतिविधियों के सूत्रधारों ने सन्त हरचन्दसिंह लोंगोवाल की हत्या करवाकर उस समझौते को खटाई में डाल दिया।
राष्ट्रीय एकता हेतु उपाय
आज इस बात की महती आवश्यकता है कि हम सम्पूर्ण भारत को एक इकाई मानकर देश के समग्र विकास हेतु प्रयास करें। भाषा, धर्म, प्रान्तीयता. जाति, वर्ग की भावनाओं को पीछे धकेलकर राष्ट्रहित में कार्य करें। नदी जल का बंटवारा करने जैसे विवादों को मिल-बैठकर सुलझा ले और क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए देश हित का बलिदान न करें।
भारतीय राजनीति में उभरने वाले क्षेत्रीय दल भी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं। स्वायत्तता एवं अलगाववाद की आवाज ऐसे क्षेत्रीय दल ही उठाते हैं जो राजनीतिक दृष्टि से काफी मजबूत हैं और “राजनीतिक ब्लैकमेलिंग” में सक्षम भी हैं। जनता को चाहिए कि वह ऐसे दलों को नकार दे जो राष्ट्रीय एकता लिए खतरा बन गए हैं। पंजाब में अकाली दल, कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक ऐसे ही दल है।
राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में खेल, फिल्म, संचार, संस्कृति, संगीत एवं साहित्य की महती भूमिका हो सकती है। अमिताभ बच्चन किसी एक प्रान्त या भाषा का अभिनेता नहीं है वह भारत का गौरव है- स्टार ऑफ द मिलेनियम।
गोस्वामी तुलसीदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, शरच्चन्द्र, प्रेमचन्द, प्रसाद, निराला, आशापूर्णा देवी जैसे साहित्यकारों पर पूरे देश को गर्व है। सचिन तेन्दुलकर, सुनील गावस्कर, कपिल देव, विजय अमृतराज, लिएण्डर पेस, गोपीचन्द पुलेला, विश्वनाथन आनन्द किसी एक प्रान्त के नहीं अपितु भारत के गौरव हैं।
उपसंहार
राष्ट्रीय एकता समय की पुकार है। प्रत्येक देशवासी का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पालन करे और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में सक्रिय योगदान दे।
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