रेखाचित्र – रेखाचित्र क्या है? रेखाचित्र का अर्थ, तत्व या अंग और उदाहरण

REKHACHITRA - LEKHAK, PRAMUKH REKHACHITRA

रेखाचित्र

हिन्दी में रेखाचित्र के पर्याय रूप में व्यक्ति चित्र, शब्द चित्र, शब्दांकन आदि शब्दों का प्रयोग भी होता है, परन्तु प्रायः विद्वान् इस विधा को रेखाचित्र नाम से अभिहित करते हैं।

अंग्रेजी में ‘थंबनेल स्केच‘ नाम से प्रसिद्ध इस विधा में किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, घटना, दृश्य आदि का तटस्थतापूर्वक ऐसा संक्षिप्त अंकन किया जाता है कि हमारे मानस नेत्रों के समक्ष उसका एक अनाविरल एवं निर्धान्त चित्र साकार हो उठता है।

रेखाचित्र है क्या?

रेखाचित्र कहानी के ही जैसा हिन्दी साहित्य का एक रूप है। यह नाम अंग्रेज़ी के ‘स्केच‘ शब्द की नाप-तोल पर गढ़ा गया है। साहित्य में जिसे रेखाचित्र कहते हैं, उसमें भी कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द है, रेखाएँ नहीं। इसीलिए इसे शब्दचित्र भी कहते हैं।

रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्म-स्पर्शी, भावपूर्ण एवं सजीव चित्रण होता है। कहानी से इसका बहुत अधिक साम्य है- दोनों में क्षण, घटना या भाव विशेष पर ध्यान रहता है, दोनों की रूपरेखा संक्षिप्त रहती है और दोनों में कथाकार के नैरेशन और पात्रों के संलाप का प्रसंगानुसार उपयोग किया जाता है।

रेखाचित्र के तत्व या अंग

  1. चित्रात्मकता
  2. एकात्मकता
  3. तटस्थता

रेखाचित्र की विशेषता (तत्व)

चित्रात्मकता, एकात्मकता और तटस्थता आदि तत्वों का ध्यान रखना लेखक के लिए बहुत जरूरी होता है। तथा रेखाचित्र आकार में संक्षिप्त भी होना चाहिए। रेखाचित्र के तत्वों की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-

चित्रात्मकता

इस विधा की सर्वप्रमुख विशेषता उसकी चित्रात्मकता है। इसमें शब्दों को इस प्रकार चुन-चुन कर रखा जाता है जिससे चित्रित विषय का फोटो ही पाठक के सम्मुख उपस्थित हो जाता है। इस तत्त्व के महत्त्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि चित्रात्मकता के आधिक्य के कारण विद्वान् संस्मरणों को रेखाचित्र ही मानने लगे हैं।

एकात्मकता

एकात्मकता, इसका दूसरा तत्त्व है। इस विषय में डॉ. नगेन्द्र लिखते हैं, रेखाचित्र का विषय निश्चय ही एकात्मक होता है उसमें एक व्यक्ति या एक वस्तु की उद्दिष्ट रहती है। कहानी में एक डायमेंशन और बढ़ जाती है। यह अतिरिक्त डायमेंशन विषय के अन्तर्गत होती है। कहानी का विषय एकात्मक नहीं रह सकता, उसमें द्वैत भाव होना चाहिए, अर्थात् एक व्यक्ति अपने में कहानी नहीं बन सकता। उसका अपने आप में होना कहानी के लिए काफी नहीं है। कहानी में उसे दूसरे या दूसरों की सापेक्षता में कुछ करना होगा। प्रेम करना होगा, वैर करना होगा, सेवा करनी होगी, कुछ करना होगा, अपने में सिमट कर रह जाना काफी नहीं होगा, अपने से बाहर निकलना होगा।

तटस्थता

रेखाचित्र का तीसरा महत्त्वपूर्ण उपकरण है तटस्थता। जिस रेखाचित्र में तटस्थता जितनी अधिक होती है वह उतना ही सफल रेखाचित्र माना जाता है। डॉ. पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ के शब्दों में कहें तो, आनुपातिक दृष्टि से वैयक्तिकता तथा तटस्थता की मात्रा को देखकर ही यह निर्णय किया जा सकता है कि कोई रचना संस्मरण है, अथवा रेखाचित्र।

आकार

रेखाचित्र आकार में संक्षिप्त भी होना चाहिए। इस सम्बन्ध में कोई शब्द सीमा तो निर्धारित नहीं की जा सकती, पर प्रायः वह पाँच-सात पृष्ठ से बड़ा भी नहीं होना चाहिए।

शैली

रेखाचित्र में भाषा शैली का विशेष बंधन नहीं होता हैं। परंतु रेखाचित्र शैली के आधार पर निम्न वर्गों में रखा जा सकता है- संस्मरणात्मक, वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक और मनोवैज्ञानिक आदि।

रेखाचित्र के भेद (वर्गीकरण)

प्रायः विद्वान् रेखाचित्रों को कहानी प्रधान तथा संस्मरण प्रधान विभागों में बाँटते हैं, पर प्रतिपाद्य की दृष्टि से इन्हें मानव सम्बन्धी और मानवेत्तर सम्बन्धी वर्गों में रखा जा सकता है।

रेखाचित्र का विकास

रेखाचित्रों का सम्यक् विकास छायावादोत्तर काल में ही हुआ है, यद्यपि इसके पूर्व ‘हंस‘ तथा ‘मधुकर‘ ने रेखाचित्र विशेषांकों द्वारा इसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया था।

प्रमुख रेखाचित्रकार

हिन्दी में रामवृक्ष बेनीपुरी को श्रेष्ठ रेखाचित्रकार माना जाता है। बनारसी दास चतुर्वेदी लिखते हैं, “यदि हमसे प्रश्न किया जाये कि आज तक का हिन्दी का श्रेष्ठ रेखा चित्रकार कौन है तो हम बिना किसी संकोच के बेनीपुरी जी का नाम उपस्थित कर देंगे।”

अन्य रेखाचित्र

अन्य रेखाचित्रकारों में बनारसी दास चतुर्वेदी (हमारे आराध्य), पं. श्रीराम शर्मा, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (माटी हो गई सोना), विनय मोहन शर्मा, सत्यवती मलिक, ” चन्द्र गुप्त और जगदीश चन्द्र माथुर (दस तस्वीरें) के नाम विशेष रूप से उल्लेख्य हैं।

उदाहरण

क्रम रेखाचित्र (प्रकाशन वर्ष) रेखा-चित्रकार
1. पद्म पराग (1929 ई.) पद्म सिंह शर्मा
2. बोलती प्रतिमा (1937 ई.) श्रीराम शर्मा
3. शब्द-चित्र एवं रेखा-चित्र (1940 ई.), पुरानी स्मृतियाँ और नये स्केच (1947 ई.) प्रकाशचंद्र गुप्त
4. अतीत के चलचित्र (1941 ई.), स्मृति की रेखाएँ (1947 ई.) महादेवी वर्मा
5. जो न भूल सका (1945 ई.) भदन्त आनंद कौसल्यायन
6. माटी की मूरतें (1946 ई.), गेहूँ और गुलाब (1950 ई.) रामवृक्ष बेनीपुरी
7. रेखाएँ बोल उठीं (1949 ई.) देवेंद्र सत्यार्थी
8. अमिट रेखाएँ (1951 ई.) सत्यवती मल्लिक
9. रेखाचित्र (1952 ई.) बनारसी दास चतुर्वेदी
10. रेखा और रंग (1955 ई.) विनय मोहन शर्मा

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