अधिगम (Learning)
अधिगम या सीखना एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाएं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।
अधिगम (सीखने) की अवधारणा (Concept of Learning)
प्रत्येक व्यक्ति नित्य प्रतिदिन अपने जीवन में नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम कहलाता है।
‘सीखना’ किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती रहती है। सीखना एक सार्वभौम अनुभव है।
शिशु जन्म से ही सीखना प्रारम्भ करता है। पहले वह माता के स्तन से दूध पीना सीखता है, तत्पश्चात् वह ध्वनि एवं प्रकाश के प्रति प्रतिक्रिया करना सीखता है। भूखे रहने पर वह रोना सीखता है ताकि माँ उसे दूध पिला दे। बोतल द्वारा दूध पिलाये जाने पर वह निपल कैसे मुँह में ले यह सीखता है। फिर क्रमश: वह माता-पिता को एवं रिश्तेदारों को पहचानना, उन्हें पुकारना, उनका अभिवादन करता, कपड़े पहनना, चलना, दौड़ना अपने परिवेश के बारे में जानना तथा विद्यालय जाना इत्यादि सीखता है। इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया जीवन पर्यन्त अविरत चलती रहती है।
अधिगम अथवा सीखने के लिये आवश्यक शर्तें-
- प्रथम शर्त है- सीखने वाले की अभिप्रेरणा अथवा सीखने के लिये तैयार होना।
- द्वितीय शर्त है- बहु-अनुक्रियाएँ करना अर्थात् प्रयास एवं त्रुटि (Trial and error)। यदि हम पेड़ से आम तोड़ते हैं तब हम अनेक बार पत्थर मारते हैं एवं किसी प्रयास में आम टूटकर नीचे आ जाता है।
- तृतीय शर्त है- पुनर्बलन (Reinforcement)। यदि हम कोई कार्य सफलतापूर्वक करते हैं अथवा सीखते हैं एवं इसमें हमें सही अनुक्रिया के लिये पुनर्बलन प्राप्त हो जाता है तब हम उस अनुक्रिया को पुनः दोहराना चाहेंगे।
- चतुर्थ शर्त है- अभ्यास (Exercise)। यदि हम किसी कार्य को एक बार करना सीख लेते हैं एवं उसे पुनः न करें तो हम उसे भूल जायेंगे। यदि हम उसका अभ्यास कर लें तो हम जब भी कभी उस कार्य को करेंगे, आसानी से कर सकेंगे।
सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ हैं:-
- निरन्तरता (Continuity)
- सार्वभौमिकता (Universality)
सीखने की प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिये, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम की अवस्था कभी नहीं आती है।
बालक को जन्म के कुछ समय बाद ही से अपने वातावरण में कुछ न कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर बालक उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप उसे एक नया अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है तब उसके प्रति उसकी प्रतिक्रिया भिन्न होती है। अनुभव ने उसे आग को न छूना सिखा दिया है। अतः वह आग से दूर रहता है।
अत: हम कह सकते हैं कि छोटा बालक यह सीख गया है कि जलती हुई वस्तु को छूने से हाथ जल जाता है। अब वह जलती हुई वस्तु को कभी नहीं पकड़ेगा। दूसरे शब्दों में उसके व्यवहार में परिवर्तन हो गया। पहला व्यवहार खेलने और पकड़ने का था, जबकि दूसरा व्यवहार परिवर्तित (Changed) है न पकड़ने का। इस व्यवहार में जलन/पीड़ा का अनुभव भी जुड़ गया है, जिससे उसके पहले वाले व्यवहार में परिवर्तन आ गया है। यही सीखना है। यहाँ बाद का व्यवहार उद्दीपन (Stimulus) तथा अनुक्रिया (Response) है।
अधिगम का अर्थ (Meaning of Learning)
अधिगम का अर्थ है- सीखना अथवा व्यवहार में परिवर्तन। यह परिवर्तन अनुभव के द्वारा होता है। जीवन की विभिन्न क्रियाओं को किस प्रकार किया जाये वह “सीखना” है। संकुचित अर्थ में सीखना केवल ज्ञान प्राप्ति की क्रिया है और व्यापक अर्थ में सीखना घर पर भी होता है और बाहर भी। यह एक मानसिक क्रिया है, जिसे व्यक्ति जान-बूझकर अपनाता है, जिससे वह अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त सके।
अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य घटक है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका विशेष स्थान बताया गया है। क्योंकि शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य ही सीखना है। हम सभी जानते है मनुष्य का जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक सीखना ही है। घर, स्कूल एवं अपने आस-पास के वातावरण से मनुष्य कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है और अपना सर्वपक्षीय विकास करता है।
उदाहरण के लिए – छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जानेपर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो जाता है। इसीविचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। अधिगम का सर्वोत्तम सोपान अभिप्रेरणा है।
विभिन्न शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
अधिगम की परिभाषाएँ (Definitions of Learning)
- वुडवर्थ (Woodworth)- “सीखना विकास की प्रक्रिया है।”
- स्किनर (Skinner) के अनुसार, “सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।”
“Learning is the process further co-ordination on the behavior.” - क्रो एवं क़ो (Crow and Crow)-“सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।”
- गिलफोर्ड (Guilford) के शब्दों में, “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना है।”
“Learning is any changes in behaviour resulting from behaviour.” - कॉलबिन (Colvin) के अनुसार, “पहले के निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।”
“Learning is the modification of our readymade original behaviour due to experience.” - प्रेसी (Pressy) के मतानुसार, “अधिगम एक अनुभव है, जिसके द्वारा कार्य में परिवर्तन या समायोजन होता है तथा व्यवहार की नवीन विधि प्राप्त होती है।”
“Learning is an experience by which change or adjustment in one work takes place and new method of behaviour is obtained.” - वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार, “किसी भी ऐसी क्रिया जो कि व्यक्ति के (अच्छे या बुरे किसी भी तरह के) विकास में सहायक होती है और उसके वर्तमान व्यवहार एवं अनुभवों को जो कुछ वे हो सकते थे भिन्नता स्थापित करती है, को सीखने की संज्ञा दी जा सकती है।”
“Any activity can be called learning so for as it develops the individual (in any respect, good or bad) and makes his later behaviour and experiences different from what they would otherwise have been.” - गेट्स एवं अन्य (Gates and others) के शब्दों में, “अनुभव एवं प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को सीखना कहते हैं।”
“Learning and Training is the modification of behaviour through experience.” - बर्नहर्ट (Bermharat) के अनुसार, “सीखना व्यक्ति के कार्यों में एक स्थायी परिवर्तन लाना है, जो निश्चित परिस्थितियों में किसी उद्देश्य या लक्ष्य को प्राप्त करने अथवा किसी समस्या को सुलझाने के प्रयास में अभ्यास द्वारा किया जाता है।”
“Learning is defined as the more or less permanent modification of an individual’s activity in a given situation, due to practice in attempts to achieve some goal or solve some problem.” - किंग्सले एवं गैरी (Kingsley, H.L. and Garry, R.) के शब्दों में, “अभ्यास तथा प्रशिक्षण के फलस्वरूप नवीन तरीके से व्यवहार (अपने विस्तृत अर्थ में) करने अथवा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं।”
“Learning is the process by which behaviour (in the broader sense) is originated or changed through practice or training.” - उदय पारीक (Udai Pareek) – “अधिगम वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्राणी किसी परिस्थिति में प्रतिक्रिया के कारण नये प्रकार के व्यवहार को ग्रहण करता है, जो किसी सीमा तक सीमा के सामान्य व्यवहार को बाध्य एवं प्रभावित करता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सीखने की प्रक्रिया में निम्नलिखित तथ्य जुड़े होते हैं-
- सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है।
- सीखने का अवलोकन हम प्रत्यक्ष (Direct) नहीं कर सकते बल्कि यह व्यवहारों में प्रकट होता है।
- इसके फलस्वरूप व्यक्ति के व्यवहारों में स्थायी परिवर्तन आते हैं।
- अधिगम अभ्यास तथा अनुभव पर निर्भर करता है।
- सीखना सहज क्रिया (General activity) नहीं है।
- सूचना, कौशल, सौन्दर्यानुभूति तथा दृष्टिकोण आदि सीखने के मुख्य क्षेत्र हैं।
- अनेक परिस्थितियों में सीखने का सम्बन्ध चेतन उद्देश्यों से होता है या सामाजिक तथा जैविक अनुकूलन से।
- अधिगम वातावरण द्वारा प्रस्तुत उत्तेजकों पर आधारित होता है।
- रुचि, निपुणता, योग्यता सभी सीखने की क्रिया की ही उपज हैं।
- सीखना समायोजित हो सकता है अथवा असमायोजित।
- सीखना सही हो सकता है या त्रुटिपूर्ण।
- सीखना व्यवहार, मानव संस्कार अथवा क्षमता में स्थायी अथवा अस्थायी परिवर्तन है।
- अधिगम व्यवहार का संगठन है।
- नवीन प्रक्रिया की पुष्टि है।
- सीखने की प्रक्रिया में दो मूल तत्त्व निहित हैं” परिपक्वता” एवं “अनुभूति”।
- अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया को गतिशील बनाता है।
अधिगम या सीखने की प्रकृति एवं स्वरूप (Nature of Learning)
अधिगम एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। अधिगम की अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं तथा अनेक अधिगम-सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इसके आधार पर अधिगम की प्रकृति की व्याख्या निम्नलिखित प्रकार की जा सकती है-
सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है। सीखने के फलस्वरूप व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण में भी परिवर्तन आता है। सीखने के आधार पर वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की भी क्षमता बढ़ती है। सीखने की प्रक्रिया के कारण कुछ उत्प्रेरक (Stimulus) हो सकते हैं। जो कार्य इन उत्प्रेरकों को सन्तुष्ट करते हैं। व्यक्ति उन कार्यों को दोहराने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार व्यक्ति धीर-धीरे नये व्यवहार सीख जाता है या पुराने व्यवहार में परिवर्तन लाता है।
प्रत्येक प्राणी में कार्य करने की प्रवृत्ति होती है। कार्यों के द्वारा वह अपने जीवन की रक्षा करता है। बालक सहज क्रियाओं और मूल प्रवृत्तियों के अनुसार सीखते हैं। व्यक्ति के अनुभव के आधार पर उसके कार्यों में परिवर्तन होता रहता है। अनुभव के इस प्रकार लाभ उठाने की क्रिया को सीखना या अधिगम कहते हैं।
प्रत्येक प्राणी अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखता है। जिस व्यक्ति में सीखने या अधिगम की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही अधिक उसके जीवन का विकास होता है। बालक प्रत्येक समय और प्रत्येक स्थान पर कुछ न कुछ सीखता रहता है। इसी आधार पर बुडवर्थ ने कहा है, “सीखना विकास की प्रक्रिया है।”
अधिगम के कारक (Factors of Learning)
सीखने (अधिगम) के दो मुख्य कारक हैं-
- अभिप्रेरणा (Motivation),
- सीखने की क्षमताएँ (Ability of learning)
इसके साथ अनेक मनोवैज्ञानिक (Psychological) एवं शारीरिक कारक (Phychological) भी है; जैसे- ग्रहणशक्ति, स्नायु संस्थान, मस्तिष्क, सुषुम्ना तथा ग्रंथियाँ आदि। सीखने में प्रत्यक्षीकरण (Perception), गामक क्रियाएँ (Psycho motor activities) तथा वैचारिक ग्रहण शक्ति (Acquisition of ideas) जैसे तथ्य (Fact), अर्थ (Meaning), पसन्द-नापसन्द (Likes and dislikes), पक्षपात (Prejudice and bias), मूल्य (Value), जीने का तौर तरीका (Life-style) चरित्र (Character) तथा इच्छा-शक्ति (will-power) आदि भी सम्मिलित हैं।
अधिगम प्रक्रिया (Learning Process)
अधिगम अथवा सीखने की प्रक्रिया को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-
इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया में सबसे पहले कोई परिस्थिति होती है, पुनः प्राणी की प्रतिक्रिया उस ओर होती है। इसका परिणाम नये प्रकार का व्यवहार रूपान्तर होता है और इसका प्रभाव प्राणी के सामान्य व्यवहार पर पड़ता है और इस प्रकार कोई नयी वस्तु सीखी जाती है।
अधिगम की प्रक्रिया पूर्ण रूप से अनुभव को प्राप्त करने में होती है। पूर्ण अनुभव प्राप्त करने में अनेक वस्तुएँ होती हैं। इनकी सहायता से ही अधिगम की प्रक्रिया पूरी होती है। सीखना एक साथ ही नहीं हो जाता वरन् सीखने के लिये विभिन्न अनुभवों को एकत्रित करना है। सम्पूर्ण अनुभव अनेक क्रियाओं तथा उपक्रियाओं से बनता है।
सीखना एक आनुवंशिक प्रक्रिया (Genetic process) है। आनुवंशिक प्रक्रिया के रूप में सीखने की व्यवस्था करने से सीखने की प्रक्रिया में एक व्यवस्था दिखलायी पड़ती है और यह ज्ञात होता है कि सीखने से सम्बन्धित सिद्धान्तों को कहाँ तक लागू किया जा सकता है।
मिलर तथा डॉलार्ड (Miller and Dollard) के अनुसार- “सीखने के लिये व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता अनुभव होनी चाहिये, उसे कुछ देखना भालना चाहिये, उसे कुछ करना चाहिये और अन्त में उसे कुछ प्राप्त करना चाहिये।” “In order to learn one must want something, notice something, do something and get something.”
सीखने की प्रक्रिया को निम्नलिखित चित्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है-
पढ़ें– अधिगम प्रक्रिया के सोपान या अंग।
अधिगम, परिपक्वता और विकास (Learning, Maturation and Development)
बोरिंग और उनके साथियों (Boring and others, 1962) के अनुसार – “परिपक्वता एक गौण विकास है, जिसका अस्तित्व सीखी जाने वाली क्रिया या व्यवहार के पूर्व होना आवश्यक है। शारीरिक क्षमता के विकास को ही परिपक्वता कहते हैं।”
अधिकतर यह देखा जाता है कि जब तक शरीर के विभिन्न अंग और उनकी माँस-पेशियाँ पूर्णरूप से परिपक्व नहीं होती तब तक व्यवहार का संशोधन नहीं हो सकता। किसी भी व्यक्ति के सीखने के लिये यह बहुत आवश्यक है कि वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्व हो।
शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता के कारण भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं तथा व्यक्ति की आयु के साथ होते जाते हैं। यह परिवर्तन सीखने के परिवर्तनों से भिन्न होते हैं। सीखने तथा परिपक्वता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिपक्वता के अभाव में सीखना सम्भव नहीं होता।
अधिगम तथा परिपक्वता में प्रमुख अन्तर
अधिगम/सीखने तथा परिपक्वता में प्रमुख रूप से निम्न अन्तर हैं:-
- परिपक्वता के कारण व्यवहार में परिवर्तन प्राकृतिक या स्वाभाविक होते हैं। जबकि सीखने के लिये व्यक्ति को अनेक प्रकार की क्रियाएँ करनी पड़ती हैं तब व्यवहार में संशोधन होते हैं।
- परिपक्वता चूँकि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अतः प्रेरणा का इस पर प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि सीखना प्रेरणा से प्रभावित होता है।
- परिपक्वता के कारण व्यवहार में परिवर्तन केवल उसी व्यक्ति में होते हैं, जो सीखता है।
- परिपक्वता अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में निरन्तर चलती रहती है, दूसरी ओर सीखना केवल अनुकूल परिस्थितियों में ही होता है, प्रतिकूल परिस्थितियों में नहीं होता।
- परिपक्वता के लिये अभ्यास आवश्यक नहीं है, जबकि सीखने के लिये अभ्यास आवश्यक होता है।
- व्यक्ति समाज में जीवनपर्यन्त सीखता रहता है, जबकि परिपक्वता की प्रक्रिया लगभग पच्चीस वर्ष की अवस्था तक पूर्ण हो जाती है।
अधिगम तथा परिपक्वता में अन्तर होते हुए भी दोनों आपस में घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। अधिगम की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित होती है, परन्तु परिपक्वता अधिगम पर आधारित नहीं होती। अनेक अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिगम के लिये उसके अनुरूप परिपक्वता आवश्यक होती है।
पढ़ें: अधिगम, परिपक्वता और विकास – संबंध और अंतर।
अधिगम (सीखने) के प्रकार (Kinds of Learning)
सीखने की क्रिया, ढंग तथा विषय-वस्तु के आधार पर सीखने के कुछ पक्ष या प्रकार निम्न हैं:-
1. ज्ञानात्मक अधिगम (Cognitive learning)
सीखने का यह तरीका बौद्धिक विकास तथा ज्ञान अर्जित करने की समस्त क्रियाओं पर प्रयुक्त होता है। ये क्रियाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं-
- प्रत्यक्षात्मक सीखना (Perceptual learning) – जब किसी वस्तु को देखकर, सुनकर या स्पर्श करके उसका ज्ञान प्राप्त किया जाता है, तो उसे प्रत्यक्षात्मक सीखना कहते हैं। शैशवावस्था और बाल्यावस्था में इसी प्रकार से सीखा जाता है।
- प्रत्यात्मक सीखना (Conceptual Learning) – जब बालक साधारण ज्ञान या अनुभव प्राप्त कर लेता है तो वह तर्क, चिन्तन और कल्पना के आधार पर सीखने लगता है। इस प्रकार वह अनेक अमूर्त बातें सीख जाता है। इसी को प्रत्यात्मक सीखना कहते हैं।
- साहचर्यात्मक सीखना ( Learning with association) – जब पुराने ज्ञान तथा अनुभव के द्वारा किसी तथ्य को सीखा जाता है तो इसे साहचर्यात्मक सीखना कहते हैं। प्रत्यात्मक सीखने में साहचर्य होने की क्रिया स्वाभाविक रूप से होती रहती है।
2. संवेदनात्मक अधिगम (Emotional learning)
उस सीखने को संवेदनात्मक अधिगम कहते हैं, जब सीखना संवेदनशील क्रियाओं द्वारा होता है। इस प्रकार के सीखने में गामक क्षमताओं का प्रशिक्षण होता है। इसमें किसी कौशल के कार्य को सम्मिलित किया जाता है; जैसे – तैरना, साइकिल चलाना, टाइप करना सीखना आदि।
3. गामक अधिगम (Dynamic learning)
जिस सीखने में अंग संचालन तथा गति पर नियन्त्रण की आवश्यकता होती है, उसे गामक अधिगम कहते हैं। इसमें समस्त शारीरिक कुशलता के कार्य सम्मिलित किये जा सकते हैं। इस अधिगम के निम्न उदाहरण हैं:-
- देखना
- सिर उठाना
- बैठना
- चलना
पढ़ें: अधिगम या सीखने के विधियाँ या प्रकार।
अधिगम के गुण (Properties of Learning)
1. अधिगम एक प्रक्रिया (Learning is a process)
मानवीय अधिगम एक प्रक्रिया के अन्तर्गत होता है। सीखने की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए डॉ. जे. डी. शर्मा ने लिखा है-” सीखने की प्रक्रिया का स्वरूप मस्तिष्कीय अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है। सीखने की प्रक्रिया केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में रूपान्तरण होने के साथ-साथ होती रहती है। इन रूपान्तरणों को कभी-कभी अनुरेखण भी कहा जाता है।”
अत: सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सीखने से हमारे मस्तिष्क में कुछ रेखाचित्र बनते हैं, जो अभ्यास से दृढ़ एवं स्पष्ट होते रहते हैं और भविष्य में जाग्रत होकर सहायता करते रहते हैं। अतः सीखना धीरे-धीरे निश्चित तरीके से उन्नति की ओर बढ़ता है। यही सीखने/अधिगम की प्रक्रिया है।
2. सही प्रतिचारों का चुनाव (Selection of right responses)
किसी कार्य को सीखते समय सीखने वाला जो प्रयास करता है, वे सभी प्रतिचार कहलाते हैं। सीखते समय सही प्रतिचारों का चयन करना होता है ताकि समय एवं शक्ति का सही प्रयोग हो सके।
3. अभ्यास (Practice)
उद्दीपक और प्रतिचार के बीच परिवर्तनीय सम्बन्धों को अभ्यास कहा जाता है। सीखने में सही प्रतिचारों का बार-बार प्रयोग किया जाता है ताकि सीखना स्थायी हो जाय।
4. परिवर्तन में स्थायित्वता (Stability in change)
जब किसी कार्य को करने में स्थायित्वता आ जाती है तो वह हमारे व्यवहार का स्थायी अंग बन जाता है। हम कभी भी उसका प्रयोग आसानी से कर सकते हैं। यही ज्ञान की वृद्धि में सहायक होता है।
5. लक्ष्य की प्राप्ति (Achieve of goal)
सीखने में लक्ष्य प्राप्ति करना आवश्यक होता है। बिना लक्ष्य निर्धारण के कोई भी सीखना सफल नहीं हो पाता है। लक्ष्य जीवन की आवश्यकताओं से सम्बन्धित होता है। इसी से सीखने वाले को उत्साह एवं बल प्राप्त होता रहता है।
6. विभेदीकरण (Differentiation)
मानव प्राणी की यह विशेषता होती है कि वह एक क्रिया और दूसरी क्रिया में क्या अन्तर है, स्वतः ही पहचान लेता है। इसी को मनोवैज्ञानिक विभेदीकरण मानते हैं। सीखने के क्षेत्र में यह बहुत पायी जाती है। व्यक्ति की मानसिक तत्परता इसी पर निर्भर करती है।
स्टैगनर ने लिखा है – “जब व्यक्ति में बौद्धिक तथा अनुकूलित व्यवहार आ जाता है, तो हम वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण करना तथा उनमें पारस्परिक सम्बन्ध देखना सीख जाते हैं।”
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सीखना सबसे अधिक जटिल प्रक्रिया है। सरल इसलिये दिखायी देता है कि मानव इसे सहज ही स्वीकार कर लेता है और विकास एवं अभिवृद्धि इसके बिना सम्भव नहीं है।
अत: हम कह सकते हैं कि अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अभ्यास के द्वारा व्यवहार में स्थायी परिवर्तन धारण करता है।
अधिगम (सीखने) की विशेषताएँ (Characteristics of Learning)
अधिगम या सीखने की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. सीखना सार्वभौमिक है (Learning is universal)
सीखने का गुण केवल किसी विशिष्ट स्थान या विशिष्ट मनुष्यों में ही पाया जाता है वरन् संसार के सभी स्थानों में तथा सभी जीवधारियों में पाया जाता है। पशु, पक्षी तथा कीड़े-मकोड़े भी सीखते हैं।
2. सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है (Learning during whole life)
सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। व्यक्ति जन्म के समय से ही माता-पिता, भाई-बहिन तथा परिवार के अन्य सदस्यों से सीखना आरम्भ करता है और वह जीवन भर विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं, संगी-साथियों, विद्यालय तथा अन्य व्यक्तियों आदि से कुछ न कुछ सीखता रहता है।
3. सीखना विकास है (Learning is development)
व्यक्ति को प्रशिक्षण में कुछ न कुछ नये अनुभव प्राप्त होते रहते हैं, जिनसे वह सीखता है। इसके फलस्वरूप उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इस प्रकार सीखना ही विकास का आधार है। पेस्टालॉजी (Pestolozzi) ने वृक्ष और फ्रॉबेल ने उपवन के उदाहरण के द्वारा सीखने की इस विशेषता को स्पष्ट किया।
4. सीखना परिवर्तन है (Learning is change)
व्यक्ति अपने तथा दूसरों के अनुभवों के आधार पर अपने व्यवहारों, विचारों, इच्छाओं, मूल प्रवृत्तियों तथा भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है और वास्तव में यही सीखना है। गेट्स व अन्य (Gates and Others) के अनुसार-“सीखना, अनुभव एवं प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।”
5. सीखना समायोजन है (Learning is adjustment)
समाज एवं वातावरण से समायोजन करने के लिये व्यक्ति को अनेक नये व्यवहारों, क्रियाओं, भाषा, उठने-बैठने के तरीकों, रहन-सहन तथा रीति-रिवाज आदि सीखने पड़ते हैं। अत: सीखने के बाद ही व्यक्ति नयी परिस्थितियों में अपना समायोजन कर सकता है।
6. सीखना, अनुभवों का संगठन है (Learning is an organization of experiences)
सीखना न तो नये अनुभवों की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग ही है। सीखना, वास्तव में नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति को नये अनुभव होते जाते हैं वह नयी-नयी बातें सीखता जाता है और अपनी आवश्यकतानुसार उन्हें संगठित करता जाता है।
7. सीखना उद्देश्यपूर्ण है (Learning is purposive)
सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। व्यक्ति किसी उद्देश्य से प्रेरित होकर ही कार्य को सीखता है। उद्देश्य जितना ही प्रबल होता है सीखने की प्रक्रिया भी उतनी ही तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना निष्फल रहता है। मरसेल (Mursell) के अनुसार-“सीखने के लिये उत्तेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में सफलता संदिग्ध है। ”
8. सीखना विवेकपूर्ण है (Learnir g is an intelligent work)
सीखना यान्त्रिक कार्य न होकर विवेकपूर्ण कार्य है। वही बात शीघ्र सीखी जा सकती है, जिसमें विवेक और बुद्धि का प्रयोग किया गया हो, बिना सोचे समझे सीखने में सफलता नहीं मिलती। परीक्षा में फेल होने का मुख्य कारण यह है कि छात्र विषय को समझ नहीं पाते हैं। मरसेल (Mursell) के अनुसार-“सीखने की असफलताओं का कारण समझने में असफलताएँ हैं। ”
9. सीखना सक्रिय प्रक्रिया है (Learning is an active process)
किसी कार्य को सीखने के लिये व्यक्ति का सक्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है। सक्रिय होकर सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जबकि वह सक्रिय होकर सीखने की प्रक्रिया में स्वयं भाग लेता है। इसी को ध्यान में रखते हुए आज बालकों की शिक्षा मॉण्टेसरी, डाल्टन प्लान, किण्डरगार्टन तथा प्रोजेक्ट पद्धति आदि प्रगतिशील शिक्षण विधियों को अपनाया जा रहा है। यह सभी विधियाँ बालक की क्रियाशीलता पर विशेष बल देती है।
10. सीखना व्यक्तिगत एवं सामाजिक क्रिया है (Learning is individual and social activity)
व्यक्ति प्राय: स्वयं प्रयत्न करके सीखता है। बहुत-सी बातों को वह दूसरों को देखकर और सुनकर सीखता है। वह समाज में रहने का ढंग, बात-चीत करने की कला, उठने-बैठने का ढंग, परम्पराओं और प्रथाओं को मानने, दूसरों से उचित व्यवहार करना आदि सीखता है। इस प्रकार सीखना, व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही है। योकम और सिम्पसन (Yokam and Simpson) के अनुसार- “सीखना सामाजिक है क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।”
11. सीखना वातावरण की उपज है (Learning is a product of environment)
बालक सदैव वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ही सीखता है। बालक जैसे वातावरण में रहता है उसी के अनुसार सीखता है। यही कारण है कि आजकल विद्यालयी वातावरण पर पर्याप्त अनुसन्धान हो रहे हैं और उसे सक्रिय, उपयुक्त एवं प्रभावशाली बनाने को प्रयास किया जा रहा है ताकि बालक अच्छी क्रियाओं तथा अच्छी बातों को सीख सके।
12. सीखना खोज करना है (Learning is discovery)
सीखना वास्तव में किसी कार्य को सोच-समझकर करना और एक निश्चित परिणाम पर पहुँचना है अर्थात् नये ज्ञान की खोज करना है। व्यक्ति में खोज करने की जितनी ही तीव्र इच्छा होती है वह उतनी ही शीघ्रता से किसी बात को सीखता है। मरसेल (Mursell) के अनुसार-“सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।”
13. सीखना और परिपक्वता एक-दूसरे के सहयोगी हैं (Learning and maturity are together)
जितना अधिक बालक अनुभवों द्वारा सीखता है, उतनी ही उसमें परिपक्वता आती है। परिपक्वता आने पर सीखना शीघ्रता से होता है। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
14. सीखना नया कार्य करना है (Learning is doing something new)
सीखने के अन्तर्गत वह बात आती है, जिसे हम पूर्व में नहीं जानते अर्थात् नये अनुभवों से सीखना ही सीखना कहा जाता है।
15. सीखना स्वाभाविक क्रिया है (Learning is natural activity)
जन्म के समय जब बालक निःसहाय, शक्तिहीन होता है तब से ही वह अपने आप सीखना प्रारम्भ कर देता है। भूख से चिल्लाना, माता देखकर तुरन्त पहचान लेना एक स्वाभाविक क्रिया है। मृत्यु तक व्यक्ति सामाजिक वातावरण में होने वाली घटनाओं से स्वतः सीखता रहता है। यह एक स्वाभाविक क्रिया है।
अधिगम (सीखने) के नियम (Laws of Learning)
विभिन्न खोजकर्ताओं ने सीखने को सरल और प्रभावशाली बनाने के लिये कुछ बातों पर बल दिया है। इनके पालन से सीखने में शीघ्रता होती है और अपेक्षाकृत समय एवं शक्ति की बचत होती है। अतः हम सीखने के नियमों एवं प्रभावशाली कारकों को निम्न रूप में प्रस्तुत करते हैं।
थार्नडाइक अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हुए है जिन्होंने सीखने के नियम की खोज की जिन्हें निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है-
(i) मुख्य नियम (Primary Laws)
- तत्परता का नियम
- अभ्यास का नियम (उपयोग का नियम, अनुप्रयोग का नियम)
- प्रभाव का नियम
(ii) गौण नियम (Secondary Laws)
- बहु-अनुक्रिया का नियम
- मानसिक स्थिति का नियम
- आंशिक क्रिया का नियम
- समानता का नियम
- साहचर्य-परिर्वतन का नियम
सीखने के मुख्य नियम
थार्नडाइक के सीखने के नियम तीन है जो इस प्रकार हैं-
- तत्परता का नियम – इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए पहले से तैयार रहता है तो वह कार्य उसे आनन्द देता है एवं शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत जब व्यक्ति कार्य को करने के लिए तैयार नहीं रहता या सीखने की इच्छा नहीं होती हैतो वह झुंझला जाता है या क्रोधित होता है व सीखने की गति धीमी होती है।
- अभ्यास का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति जिस क्रिया को बार-बार करता है उस शीघ्र ही सीख जाता है तथा जिस क्रिया को छोड़ देता है या बहुत समय तक नहीं करता उसे वह भूलने लगताहै। जैसे‘- गणित के प्रष्न हल करना, टाइप करना, साइकिल चलाना आदि। इसे उपयोग तथा अनुपयोग का नियम भी कहते हैं।
- प्रभाव का नियम – इस नियम के अनुसार जीवन में जिस कार्य को करने पर व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है या सुख का या संतोष मिलता है उन्हें वह सीखने का प्रयत्न करता है एवं जिन कार्यों को करने पर व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पडता है उन्हें वह करना छोड़ देता है। इस नियम को सुख तथा दुःख या पुरस्कार तथा दण्ड का नियम भी कहा जाता है।
गौण नियम या अन्य नियम
- बहु अनुक्रिया नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने किसी नई समस्या के आने पर उसे सुलझाने के लिए वह विभिन्न प्रतिक्रियाओं के हल ढूढने का प्रयत्न करता है। वह प्रतिक्रियायें तब तक करता रहता है जब तक समस्या का सही हल न खोज ले और उसकी समस्यासुलझ नहीं जाती। इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।
- मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम – इस नियम के अनुसार जब आदमी सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार नहीं रहता तो उस कार्य को वह सीख नहीं सकेगा।
- आंशिक क्रिया का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी समस्या को सुलझाने के लिए अनेक क्रियायें प्रयत्न एवं भूल के आधार पर करता है। वह अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर आंशिक क्रियाओं की सहायता से समस्या का हल ढूढ़ लेता है।
- समानता का नियम – इस नियम के अनुसार किसी समस्या के प्रस्तुत होने पर व्यक्ति पूर्व अनुभव या परिस्थितियों में समानता पाये जाने पर उसके अनुभव स्वतः ही स्थानांतरित होकर सीखने में मदद करते हैं।
- साहचर्य परिवर्तन का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थिति में या सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति भी करने लगता है। जैसे-कुत्ते के मुह से भोजन सामग्री को देख कर लार टपकरने लगती है। परन्तु कुछ समय के बाद भोजन के बर्तनको ही देख कर लार टपकने लगती है।
अधिगम (सीखना) के सिद्धान्त (Principles of Learning)
अधिगम (सीखना) एक प्रक्रिया है। जब हम किसी कार्य को करना सीखते हैं, तो एक निश्चित क्रम से गुजरना होता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने सीखना कैसे होता है, इस पर कुछ सिद्धांतों को निर्धारित किया है। अतः किसी भी उद्दीपक के प्रति क्रमबद्ध प्रतिक्रिया की खोज करना ही अधिगम सिद्धांत होता है।
अध्ययन की सुविधा के लिये हम यहाँ पर निम्न अधिगम (सीखने) के सिद्धांतों का वर्णन कर रहे हैं-
- प्रयत्न और भूल का सिद्धांत
- सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धांत
- ऑपरेन्ट कन्डीशनिंग या स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन
- अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत
- अनुकरण का सिद्धांत
जब हम किसी कार्य को करना सीखते हैं, तो एक निश्चित क्रम से गुजरना होता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने सीखना कैसे होता है, इस पर कुछ सिद्धांतों को निर्धारित किया है। अतः किसी भी उद्दीपक के प्रति क्रमबद्ध प्रतिक्रिया की खोज करना ही अधिगम का सिद्धांत होता है।
अधिगम पर अन्य लेख-
- अधिगम (सीखना) का अर्थ एवं परिभाषा
- अधिगम के सिद्धांत
- थार्नडाइक के सीखने के नियम और सिद्धान्त
- अधिगम या सीखने के विधियाँ या प्रकार
- अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ
- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक