अभिप्रेरणा or अभिप्रेरण or प्रेरणा – Motivation

Abhiprerana
अभिप्रेरणा / अभिप्रेरण / प्रेरणा

अभिप्रेरणा का अर्थ (Meaning of Motivation)

प्रेरणा या अभिप्रेरणा या अभिप्रेरण शब्द का प्रचलन अंग्रेजी भाषा के मोटीवेशन (Motivation) के समानार्थी के रूप में होता है। ‘मोटीवेशन‘ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के मोटम धातु से हुई है, जिसका अर्थ मूव या इन्साइट टु ऐक्सन होता है। अतः प्रेरणा एक संक्रिया है, जो जीव को क्रिया के प्रति उत्तेजित करती है या उकसाती है।

प्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करने के लिये हमें इच्छाओं और प्रेरकों को स्पष्ट समझना आवश्यक है। जब हमें किसी वस्तु की आवश्यकता होती है तो हमारे अन्दर एक इच्छा उत्पन्न होती है, इसके फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है, जो प्रेरक शक्ति को गतिशील बनाती है।

प्रेरणा इन इच्छाओं और आन्तरिक प्रेरकों तथा क्रियाशीलता की सामूहिक शक्ति के फल-स्वरूप है। प्रेरक को जाग्रत करके ऊर्जा तथा इच्छा उत्पन्न होती है, जो व्यवहार के लिये आवश्यक है।

उच्च प्रेरणा के लिये उच्च इच्छा चाहिये, जिससे अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो जिसके फलस्वरूप अति गतिशीलता उत्पन्न हो। अभिप्रेरणा द्वारा व्यवहार को अधिक दृढ़ किया जा सकता है।

प्रेरणा का सम्बन्ध उन कार्यकलापों से है, जिन्हें मनुष्य अच्छा या बुरा समझते हैं। जिन्हें व्यक्ति अच्छा समझता है, उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है और जिन्हें वह बुरा समझता है, उन्हें दूर करने की इच्छा करता है। प्रत्येक व्यक्ति का ध्येय केवल धन प्राप्ति ही नहीं है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की चीजें जैसे- पदोन्नति, चुनाव में विजय प्राप्त करना, अपने सहयोगियों एवं मित्रों से सम्मान पाना आदि भी सम्मिलित हैं।

अभिप्रेरणा का व्यापक अर्थ (Wide Meaning of Motivation)

अभिप्रेरणा के लिये अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अभिप्रेरणा के अनेक शब्द ऐसे हैं जो भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। इन सभी शब्दों की व्याख्या आगे दी गयी है-

  1. प्रेरक (Motive) – यह प्रेरक के नाम से पुकारा जाता है। यह व्यक्ति के अन्दर उपस्थित मनो-शारीरिक दशा को किसी कार्य विशेष के लिये प्रेरित करता है।
  2. प्रणोदन (Drive) – प्रणोदन का सम्बन्ध शरीर की आवश्यकताओं से है। प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताएँ उसे कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य को भूख एवं प्यास लगना इसी का संकेत है।
  3. प्रोत्साहन (Incentive) – निश्चित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न करता है। इसका सम्बन्ध बाहरी वातावरण से माना जाता है।
  4. उत्सुकता (Curiosity) – उत्सुकता के द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को सम्पन्न करने को अभिप्रेरित होता है। बिना उत्सुक हुए किसी कार्य की सम्पन्नता सम्भव नहीं है। उत्सुकता व्यक्ति में अन्वेषण वृत्ति तथा जानने के प्रयास को सफलता की ओर अग्रसर करती है।
  5. रुचि (Interest) – प्रत्येक कार्य में प्रत्येक व्यक्ति की रुचि नहीं होती। रुचि सभी की पृथक-पृथक होती है। रुचि के अनुसार ही व्यक्ति अपने कार्य की सफलता निश्चित करता है। अत: रुचि प्रेरणा का पर्याय बन जाती है।
  6. लक्ष्य (Goals) – लक्ष्य व्यक्ति को परिणाम के सम्बन्ध में सूचित करता है। इसे व्यक्ति चेतनावस्था में प्राप्त करता है।

अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ (Definitions of Motivation)

अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ निम्न शिक्षाविदों द्वारा दी गयी हैं-

  1. फ्रेण्डसन (Frendson) के अनुसार, “सीखने में सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं।” (In learning, successful experiences motivates more for learning.)
  2. गिलफोर्ड (Guilford) के अनुसार, “प्रेरणा एक आन्तरिक दशा या कारक है, जिसकी प्रवृत्ति क्रिया को आरम्भ करने या बनाये रखने की होती है।” (A motive is any particular internal factor or condition that leads to initiate and to sustain activity.)
  3. गुड (Good) के अनुसार, “किसी कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित बनाने की प्रक्रिया को प्रेरणा कहते हैं।” (Motivation is the process to start any work, continue and regulize.)
  4. लोवेल (Lovell) के अनुसार, “प्रेरणा एक ऐसी मनोशारीरिक अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में प्रादुर्भूत होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है, जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।” (Motivation may be defined more for psychological or internal process initiated by some need, which leads to activity which will satisfy that need.)
  5. जॉनसन (Johnson) के अनुसार, “प्रेरणा सामान्य क्रिया-कलापों का प्रभाव है, जो व्यक्ति के व्यवहार को एक उचित मार्ग पर ले जाती है।” (Motivation is be influence of general pattern of activities indicating and directing the behaviour of the organism.)
  6. वुडवर्थ ने प्रेरणा के सम्बन्ध में समीकरण प्रस्तुत किया है, “निष्पत्ति (Achievement) = योग्यता (Ability) + प्रेरणा (Motivation)“।

अभिप्रेरणा की प्रकृति (Nature of Motivation)

अभिप्रेरणा एक मनोशारीरिक प्रत्यय है अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो क्रियाओं को आरम्भ करती है, उन्हें दिशा प्रदान करती है तथा आगे बढाती है। अधिगम की यह प्राथमिक आवश्यकता होती है।

अभिप्रेरणा के अनेक आन्तरिक कारक होते हैं, जो जीव को क्रियाओं के लिये प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें जारी रखते हैं परन्तु मानव अधिगम में आवश्यकताओं (needs) का विशेष महत्त्व होता है।

लॉविल (Lovell) ने अभिप्रेरणा के लिये आन्तरिक कारक आवश्यकता का ही उल्लेख किया है। अभिप्रेरणा मनो-शारीरिक अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो आवश्यकताओं से आरम्भ होती है, जो किसी क्रिया को जारी रखती है और जिससे आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।

संक्षेप में अभिप्रेरणा की प्रकृति को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-

  1. अभिप्रेरणा एक मनो-शारीरिक तथा आन्तरिक प्रक्रिया है।
  2. यह आन्तरिक प्रक्रिया किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है।
  3. शरीर की यह आन्तरिक प्रक्रिया किसी कार्य-कलाप (Activity) की ओर उन्मुख होती है, जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।
  4. ड्रेवर (Drever) के अनुसार, “अभिप्रेरणा एक चेतन अथवा अचेतन प्रभावशाली क्रियात्मक तत्त्व है, जो व्यक्ति के व्यवहार को किसी उद्देश्य की ओर चालित करती है।”
  5. मॉर्गन (Morgan) ने अभिप्रेरणा को क्रिया का चयन करना बताया है अथवा निर्दिष्ट दिशा में कार्य करने की तत्परता
  6. अभिप्रेरणा जन्मजात तथा अर्जित होती है।
  7. अभिप्रेरणा के अन्तर्गत सभी तरह के भीतरी और बाहरी उद्दीपक सम्मिलित होते हैं, जो प्राणी के व्यवहार को परिचालित करते हैं।
  8. अभिप्रेरणा के अन्तर्गत चालक का भी समावेश हो जाता है।
  9. चालक अथवा प्रोत्साहन से अभिप्रेरणा का अधिकाधिक प्रभाव पड़ता है, फलस्वरूप व्यक्ति सफलता की ओर अग्रसर होता है।
  10. यह शक्ति भीतर से जाग्रत होती है।
  11. अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह अवस्था होती है, जो किन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये निर्देशित करती है।

शिक्षा में अभिप्रेरणा का महत्त्व (Significance of Motivation in Education)

बालकों के सीखने की प्रक्रिया अभिप्रेरणा द्वारा ही आगे बढ़ती है। अभिप्रेरणा द्वारा ही छात्र/छात्राओं में शिक्षा के कार्य में रुचि उत्पन्न की जा सकती है और वे संघर्षशील बनते हैं।

थॉमसन ने अभिप्रेरणा के महत्त्व को इस प्रकार परिभाषित किया है, “अभिप्रेरणा एक कला है। इसके द्वारा उन छात्र/छात्राओं में पढ़ने के प्रति उत्पन्न की जाती है, जिनमें इस प्रकार की रुचि का अभाव है। जहाँ पर बालकों में पढ़ने की रुचि तो है, परन्तु वे उसका अनुभव नहीं करते वहाँ अभिप्रेरणा के द्वारा उन्हें यह अनुभव कराया जाता है। इसके अतिरिक्त अभिप्रेरणा द्वारा विशिष्ट पाठ्यचर्याओं के प्रति भी छात्र/छात्राओं की रुचि उत्पन्न की जाती है।

अतः शिक्षा के क्षेत्र में अभिप्रेरणा की भूमिका या महत्त्व को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है-

1. सीखना (Learning)

सीखने का प्रमुख आधार ‘अभिप्रेरणा‘ ही है। सीखने की क्रिया में ‘परिणाम का नियम‘ एक प्रेरक का कार्य करता है। जिस कार्य को करने से सुख मिलता है, उसे व्यक्ति पुनः करता है एवं दुख होने पर छोड़ देता है। यही परिणाम का नियम है।

अत: माता-पिता, अन्य बालकों तथा अध्यापक द्वारा बालक की प्रशंसा करने पर भी उसमें प्रेरणा का संचार होता है और इस प्रकार वह आगे बढ़ता रहता है, परन्तु दण्ड देने या फटकारने पर वह हताश हो जाता है तथा आगे के लिये वह निरुत्साहित हो जाता है।

2. लक्ष्य की प्राप्ति (To gain the object)

जिस प्रकार बालक के जीवन का एक लक्ष्य होता है, उसी प्रकार विद्यालय का भी एक लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में अभिप्रेरणा की मुख्य भूमिका होती है। ये सभी लक्ष्य प्राकृतिक प्रेरकों द्वारा प्राप्त होते हैं। यहाँ कृत्रिम प्रेरक असफल रहते हैं।

3. चरित्र-निर्माण (Character formation)

चरित्र-निर्माण शिक्षा का श्रेष्ठ गुण है। इससे नैतिकता का संचार होता है तथा अच्छे विचार एवं संस्कार जन्म लेते हैं और उनका निर्माण होता है। अच्छे संस्कार निर्माण में भी अभिप्रेरणा का प्रमुख स्थान है।

4. अवधान (Attention)

सफल अध्यापन के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों का अवधान पाठ की और बना रहे। कक्षा में छात्र पाठ के प्रति कितना जागरूक है, यह अभिप्रेरणा पर ही निर्भर करता है। अभिप्रेरणा के अभाव में पाठ की ओर अवधान नहीं रहेगा और छात्र मस्तिष्क को केन्द्रित नहीं कर पायेगा।

5. अध्यापन विधियाँ (Teaching methods)

शिक्षण में परिस्थिति के अनुरूप अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग करना पड़ता है। प्रयोग की जाने वाली शिक्षण विधि में भी अभिप्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। अभिप्रेरणा द्वारा पाठ को रोचक बनाया जा सकता है और अध्यापन को सफल बनाया जा सकता है।

6. पाठ्यक्रम (Curriculum)

छात्र/छात्राओं के पाठ्यक्रम निर्माण में भी अभिप्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। अत: पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को स्थान देना चाहिये, जो छात्रों अभिप्रेरणा एवं रुचि उत्पन्न कर सकें तभी सीखने का वातावरण बन पायेगा।

7. अनुशासन (Discipline)

वर्तमान युग में प्रत्येक स्तर पर हम अनुशासन की समस्या देख रहे हैं। यदि उचित प्रेरकों का प्रयोग विद्यालय में किया जाय तो अनुशासन की समस्या पर्याप्त सीमा तक हल हो सकती है। अत: अभिप्रेरणा अनुशासन के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।

अभिप्रेरणा के प्रकार (Kinds of Motivation)

अभिप्रेरणा को दो भाग (प्रकार) में बांटा जाता हैं-

  1. आन्तरिक अभिप्रेरणाएँ (Intrinsic motivations)
  2. बाह्य अभिप्रेरणाएँ (Extrinsic motivations)

1. आन्तरिक अभिप्रेरणाएँ (Intrinsic motivations)

वे अनेक कारक जो व्यक्ति के अन्दर जैसे उसकी इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, रुचियाँ तथा विचार आदि जो उसे किसी कार्य को करने के लिये उत्तेजित करती हैं, आन्तरिक अभिप्रेरणा (Intrinsic motivation) हैं।

आन्तरिक अभिप्रेरणा (Intrinsic motivation) को प्राकृतिक अभिप्रेरणा (Natural of motivation) या प्राथमिक अभिप्रेरणा (Primary motivation) भी कहा जाता है। इनका सम्बन्ध जन्मजात अभिवृत्तियों से है।

जब किसी कार्य को किसी बाह्य उत्तेजक या कारक के अभाव में भी करने की अन्तःप्रेरणा होती है तो वहाँ आन्तरिक अभिप्रेरणा कार्य करती है, जहाँ कोई कार्य ही प्रेरणादायक हो जाता है या आनंददायक हो जाता है। इस प्रकार के स्वाभाविक व्यवहार में सीखने की प्रक्रिया तीव्र होती है तथा उसमें अन्त तक रुचि बनी रहती है।

इस प्रकार की प्राकृतिक अभिप्रेरणा के अन्तर्गत शारीरिक अभिप्रेरणा (Bodily motivation) स्वाभाविक अभिप्रेरणा (Instinctive motivation) तथा संवेगात्मक अभिप्रेरणा (Emotional motivation) आदि सम्मिलित हैं।

आन्तरिक अभिप्रेरणा अन्तर्नोद (Drive) की शक्ति को क्षीण कर आन्तरिक खिंचाव को कम करती है। फलस्वरूप आन्तरिक साम्य (Internal equilibrium) स्थापित होता है तथा वैयक्तिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सीखने की स्वयं इच्छा उत्पन्न होती है।

आन्तरिक अभिप्रेरणाएँ निम्न प्रकार की होती हैं-

1. मनो-दैहिक अभिप्रेरणाएँ (Psycho-physio motivations)

यह अभिप्रेरणाएँ मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार की प्रेरणाएँ मनुष्य के जीवित रहने के लिये आवश्यक हैं; जैसे-खाना, पीना, काम, चेतना, आदत, भाव एवं संवेगात्मक प्रेरणा आदि।

2. सामाजिक अभिप्रेरणाएँ (Social motivations)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य जिस समाज में रहता है, वही समाज व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारित करता है। सामाजिक अभिप्रेरणाएँ समाज के वातावरण में ही सीखी जाती हैं; जैसे-स्नेह, प्रेम, सम्मान, ज्ञान, पद, नेतृत्व तथा यश आदि। सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ये अभिप्रेरणाएँ जाग्रत होती हैं।

3. व्यक्तिगत अभिप्रेरणाएँ (Individual motivations)

प्रत्येक प्राणी अपने साथ विशेष शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। ये शक्तियाँ उनको माता-पिता एवं पूर्वजों से हस्तान्तरित की गयी होती हैं। इसी के साथ ही पर्यावरण की विशेषताएँ भी छात्रों के विकास पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं। पर्यावरण बालकों की शारीरिक बनावट को सुडौल और सामान्य बनाने में सहायता देता है।

व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर ही व्यक्तिगत अभिप्रेरणाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इनके अन्तर्गत रुचियाँ, दृष्टिकोण, स्वधर्म, नैतिक मूल्य, क्रीड़ा, खेलकूद, प्रतिष्ठा, आत्म-प्रकाशन, अन्य अनुकरणीय उदाहरण, अभिलाषा आदि अभिप्रेरणाएँ सम्मिलित हैं।

2. बाह्य अभिप्रेरणाएँ (Extrinsic motivations)

वे सभी बाह्य कारक जैसे प्रोत्साहन (incentive), पदोन्नति, आर्थिक लाभ आदि जिसकी प्राप्ति से व्यक्ति सन्तोष एवं आनन्द की अनुभूति करता है बाह्य अभिप्रेरक हैं।

बाह्य अभिप्रेरणा (Extrinsic motivation) को अप्राकृतिक अभिप्रेरणा (Artificial motivation) या द्वितीय अभिप्रेरणा (Secondary motivation) भी कहा जाता है, जिसका सम्बन्ध वातावरण जनित कारकों से होता है।

पुरस्कार, दण्ड, लक्ष्य, भौतिक एवं आर्थिक लाभ, प्रशंसा तथा परीक्षा में अच्छे अंकों की प्राप्ति आदि, बाह्य लाभ या पुरस्कार आदि बाह्य अभिप्रेरणा के उदाहरण हैं।

बाह्य अभिप्रेरणाएँ निम्न रूपों में पायी जाती हैं-

1. दण्ड एवं पुरस्कार (Punishment and prize)

विद्यालय के कार्यों में विद्यार्थियों को प्रेरित करने में दण्ड एवं पुरस्कार का विशेष महत्त्व है। दण्ड एक सकारात्मक प्रेरणा है। इससे विद्यार्थियों का हित होता है। पुरस्कार एक स्वीकारात्मक प्रेरणा है। यह भौतिक, सामाजिक और नैतिक भी हो सकता है। यह बालकों को बहुत प्रिय होता है। फलस्वरूप शिक्षकों को चाहिये कि इसका प्रयोग बराबर करते रहें ताकि विद्यार्थी भविष्य में अच्छे नागरिक सिद्ध हों।

2. सहयोग (Co-operation)

सहयोग तीव्र अभिप्रेरक है, अत: इसी के माध्यम से शिक्षा देनी चाहिये। प्रयोजना विधि का प्रयोग विद्यार्थियों में सहयोग की भावना जाग्रत करता है।

3. लक्ष्य, आदर्श और सोद्देश्य प्रयत्न (Aims, ideals and aimful attempts)

प्रत्येक कार्य में अभिप्रेरणा उत्पन्न करने के लिये उसका लक्ष्य निर्धारित होना चाहिये। लक्ष्य स्पष्ट, आकर्षक, सजीव, विस्तृत एवं आदर्श पूर्ण होना चाहिये जिसको प्राप्त करने के लिये विद्यार्थियों को सोद्देश्य प्रयत्न की ओर आकर्षित करना चाहिये।

4. अभिप्रेरणा में परिपक्वता (Maturation in motivation)

विद्यार्थियों में अभिप्रेरणा उत्पन्न करने के लिये आवश्यक है कि उनकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिपक्वता को ध्यान में रखा जाय, जिससे वे अभिप्रेरित होकर उचित शिक्षा ग्रहण कर सकें।

5. अभिप्रेरणा और फल का ज्ञान (Knowledge of motivation and result)

अभिप्रेरणा को अधिकाधिक वेगवती बनाने के लिये यह आवश्यक है कि समय-समय पर विद्यार्थियों को उनके द्वारा किये गये कार्य में हुई प्रगति से अवगत कराया जाय, जिससे वह और अधिक उत्साह से कार्य कर सकें।

6. पूरे व्यक्तित्व को लगा देना (To engage the whole personality)

अभिप्रेरणा के द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति से किसी विशेष भावना की सन्तुष्टि न होकर पूरे व्यक्तित्व को सन्तोष प्राप्त होना चाहिये। समग्र व्यक्तित्व को किसी कार्य में लगना प्रेरणा उत्पन्न करने का बड़ा अच्छा साधन है।

7. भाग लेने का अवसर देना (Opportunity for participation)

विद्यार्थियों में किसी कार्य में सम्मिलित होने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, अत: उन्हें काम करने का अवसर देना चाहिये। इससे उन्हें अधिगम के प्रति अभिप्रेरणा मिलती है।

8. व्यक्तिगत कार्य प्रेरणा एवं सामूहिक कार्य प्रेरणा (Individual work motivation and group work motivation)

प्रारम्भिक स्तर पर व्यक्तिगत कार्य प्रेरणा और फिर उसे ही सामूहिक कार्य प्रेरणा में परिवर्तित करना चाहिये, क्योंकि व्यक्तिगत प्रगति ही अन्त में सामूहिक प्रगति होती है।

9. प्रभाव के नियम (Law of effect)

मनुष्य का प्रमुख उद्देश्य आनंदानुभूति है। अतः मनोविज्ञान के ‘प्रभाव के नियम‘ सिद्धान्त को अभिप्रेरणा हेतु अधिकता में प्रयोग किया जाना चाहिये।

अभिप्रेरणा के स्त्रोत (Sources of Motivation)

अभिप्रेरणा के चार स्रोत होते हैं –

  1. आवश्यकताएँ
  2. चालक
  3. उद्दीपक
  4. प्रेरक

1. आवश्यकताएँ (Needs)

प्रत्येक व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं। जीवित रहने के लिये उन्हें पूरा करना आवश्यक होता है। जब व्यक्ति कोई आवश्यकता अनुभव करता है तो उसके शरीर में तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस तनाव को दूर करने के लिये व्यक्ति उस आवश्यकता की पूर्ति का प्रयत्न करता है। जब व्यक्ति की आवश्यकता पूरी हो जाती है। तो उसके शरीर का तनाव दूर हो जाता है। इस प्रकार आवश्यकता तथा उसकी पूर्ति का प्रयास व्यक्ति को कार्य करने को प्रेरित करता है।

2. चालक (Driver)

किसी व्यक्ति की आवश्यकताएँ उनसे सम्बन्धित चालकों को जन्म देती हैं। भूख शान्त करने की आवश्यकताएँ भूख-चालक (Hunger driver) को जन्म देती हैं। इसी प्रकार अन्य आवश्यकताएँ अन्य चालकों को जन्म देती हैं। चालक व्यक्ति को विशेष प्रकार की क्रिया करने को प्रेरित करता है।

3. उद्दीपक (Incentive)

मनुष्य की कोई भी आवश्यकता किसी वस्तु से पूरी होती है। भूख की आवश्यकता भोजन से, प्यास की आवश्यकता ‘पानी‘ से, काम-वासना की आवश्यकता ‘विपरीत लिंग के व्यक्ति‘ से पूरी होती है। इन्हीं वस्तुओं या व्यक्ति को उद्दीपन कहते हैं।

बोरिंग तथा अन्य ने उद्दीपक की परिभाषा इस प्रकार की है, “उद्दीपक की परिभाषा उस वस्तु, स्थिति या क्रिया के रूप में की जा सकती है, जो किसी व्यक्ति के व्यवहार को उद्दीप्त, उत्साहित तथा निर्देशित करती है।

4. प्रेरक (Motive)

यह अत्यन्त व्यापक शब्द है। इसके अन्तर्गत उद्दीपन के अतिरिक्त चालक, तनाव, आवश्यकता आदि सभी आ सकते हैं। प्रेरक किसी व्यक्ति के अन्दर की वह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं, जो उसे निश्चित विधियों के अनुसार कार्य करने के लिये प्रेरित करती हैं। कुछ विद्वान प्रेरकों को जन्मजात या अर्जित शक्तियाँ मानते हैं। प्रेरक व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की क्रिया करने या व्यवहार करने के लिये उत्तेजित करते हैं।

अभिप्रेरणा की विधियाँ

कक्षा शिक्षण में प्रेरणा का अत्यन्त महत्त्व है। कक्षा में पढ़ने के लिये विद्यार्थियों को निरन्तर प्रेरित किया जाना चाहिये। प्रेरणा की प्रक्रिया में वे अनेक कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप विभिन्न छात्रों का व्यवहार भिन्न होता जाता है; उदाहरणार्थ– सामाजिक तथा आर्थिक अवस्थाएँ, पूर्व अनुभव, आयु तथा कक्षा का वातावरण आदि सभी तत्त्व प्रेरणा की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करते हैं। विस्तार से पढ़ें – अभिप्रेरणा की विधियाँ या अभिप्रेरित करने की विधियाँ