रिपोर्ताज
अन्य अनेक गद्य विधाओं की तुलना में रिपोर्ताज अपेक्षाकृत नई विधा है। जिसका प्रादुर्भाव द्वितीय विश्व युद्ध (1936 ई.) से स्वीकार किया जाता है।
नई काव्य विधा होने के कारण अभी इसका स्वरूप काफी लचीला है और इसलिए कई बार उसे कहानी, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण आदि समझने की भूल कर दी जाती है। परन्तु रिपोर्ताज का इन विधाओं से पर्याप्त अंतर है जिसे इसके विधायक उपकरणों का परिचय प्राप्त कर समझा जा सकता है।
रिपोर्ताज का स्वरूप
रिपोर्ताज की पहली अनिवार्य शर्त यह है कि उसमें किसी महत्त्वपूर्ण सामयिक समाचार का प्रामाणिक विवरण होना चाहिए अर्थात् लेखक घटना का प्रत्यक्ष द्रष्टा हो। परंतु घटनाओं और तथ्यों के विवरण मात्र से कोई कृति रिपोर्ताज नहीं बन सकती। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि रचना लेखक के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध हो।
रिपोर्ताज लेखन
प्रत्येक रिपोर्ताज में कोई-न-कोई कहानी भी आवश्यक होती है और इसीलिए कई बार रिपोर्ताज में आने वाली कहानी वास्तविक कहानी होती है और दूसरे इसका उद्देश्य किसी समस्या का समाधान खोजने के स्थान पर छोटी-छोटी बातों के माध्यम से एक ऐसा चित्र निर्मित करना होता है। जिससे सम्पर्क स्थापित होते ही पाठक हमारे जीवन को संचालित करने वाले जीवन मूल्यों के
संबंध में सोचे बिना नहीं रह सकता।
रिपोर्ताज की शैली
रिपोर्ताज में लेखक निबंध शैली, पत्र शैली, डायरी शैली, किसी का भी प्रयोग कर सकता है। वह उसे लघु आकार में भी लिख सकता है और उपन्यास के समान वृहदाकार में भी परंतु उस रचना के लिए अपने युग का जीवन्त इतिहास होना अनिवार्य है।
रिपोर्ताज लेखक का उद्देश्य घटना चक्र में पिसने वाले साधारण जन की असामान्य वीरता, साहस, दृढ़ संकल्प की ऐसी कहानी प्रस्तुत करना होता है जिससे पाठक का हृदय संवेदना, करुणा, आक्रोश आदि भावों से आप्लावित हो उठे।
प्रमुख रिपोर्ताज और लेखक
हिन्दी रिपोर्ताज की प्रथम रचना का श्रेय डॉ. कैलाश चंद्र भाटिया ‘रूपाभ‘ के दिसम्बर, 1938 अंक में प्रकाशित शिवदास सिंह चौहान की रचना ‘लक्ष्मीपुरा’ को देते हैं परंतु वास्तविकता यह है कि कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के ‘क्षण बोले, कण मुस्काये’ के कई रिपोर्ताज इनसे पहले के हैं।
- भदंत आनन्द कौशल्यायन (देश की मटटी बुलाती है),
- भगवतशरण उपाध्याय (खून के छींट),
- फणीश्वर नाथ रेणु (ऋण जल, धनजल),
- रांगेय राधव (तूफानों के बीच)
अन्य रिपोर्ताज लेखकों में प्रकाश चंद्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, शमशेर बहादुर सिंह, अमृतराय, धर्मवीर भारती, विवेकीराय, निर्मल वर्मा, कामता प्रसाद मिश्र, शिवसागर मिश्र आदि ने विशेष ख्याति प्राप्त की है।
उदाहरण
क्रम | रिपोर्ताज (प्रकाशन वर्ष) | लेखक (रिपोर्ताजकार) |
---|---|---|
1. | लक्ष्मीपुरा (1938 ई ‘रूपाभ’ पत्रिका में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट) | शिवदान सिंह चौहान |
2. | तूफानों के बीच (1946 ई., ‘हंस’ पत्रिका में बंगाल के अकाल से संबंधित रिपोट का पुस्तकाकार संकलन) | रांगेय राघव |
3. | देश की मिट्टी बुलाती है। | भदंत आनंद कौसल्यायन |
4. | प्लाट का मोर्चा (1952 ई.) | शमशेर बहादुर सिंह |
5. | क्षण बोले कण मुस्काए (1953 ई.) | कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ |
6. | वे लड़ेगे हजारों साल (1966 ई.) | शिव सागर मिश्र |
7. | युद्ध यात्रा (1972 ई.) | धर्मवीर भारती |
8. | जुलूस रूका है (1977 ई.) | विवेकी राय |
9. | ऋण जल धन जल (1977 ई.), नेपाली क्रांति कथा (1978 ई.), श्रुत-अश्रुत पूर्व (1984 ई.) | फणीश्वरनाथ रेणु |
देखें सम्पूर्ण सूची – प्रमुख रिपोर्ताज और लेखक। देंखें अन्य हिन्दी साहित्य की विधाएँ– नाटक , एकांकी , उपन्यास , कहानी , आलोचना , निबन्ध , संस्मरण , रेखाचित्र , आत्मकथा, जीवनी , डायरी , यात्रा व्रत्त , रिपोर्ताज , कविता आदि।