‘भारत की प्रमुख समस्याएं’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- वर्तमान भारत की समस्याए
- भारत की समस्याएं : कारण एवं निवारण
- हमारी प्रमुख समस्याएं
- देश की प्रमुख समस्याएं
- जनता की प्रमुख समस्याएं
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- प्रमुख समस्याएं
- गरीबी और बेरोजगारी
- जनसंख्या व्रद्धि
- अशिक्षा
- क्षेत्रवाद एवं भाषावाद
- साम्प्रदायिकता एवं जातीयता
- दहेज प्रथा
- नशाखोरी
- भ्रष्टाचार
- नारी शोषण
- मॉब लिंचिंग
- आतंकवाद
- उपसंहार
भारत की प्रमुख समस्याएं
प्रस्तावना
स्वतन्त्रता के उपरान्त भारत का यद्यपि चहुमुखी विकास हुआ है, तथापि हम उतनी तेजी से विकसित नहीं हो पाए हैं, जितनी तेजी से जापान, कोरिया, जर्मनी जैसे देश विकसित हुए।
70 वर्ष किसी राष्ट्र के लिए कम नहीं होते और यह भी उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन एवं तकनीकी ज्ञान की दृष्टि से भारत का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है। फिर क्या कारण है कि हम अभी तक केवल विकासशील राष्ट्र ही हैं और अपनी जनता को जीवन के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएं यथा-शुद्ध पेयजल तक पूरी तरह उपलब्ध नहीं करा पाए हैं।
इसका मूल कारण है कि हम कुछ ऐसी मूलभूत समस्याओं से घिरे हुए हैं, जिन पर प्रयास के बावजूद काबू नहीं पाया जा सका है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी इन समस्याओं से अवगत हों और उनसे छुटकारा पाने की दशा में अग्रसर हों।
हमारी प्रमुख समस्याएं
भारत को आज जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
- गरीबी और बेरोजगारी
- अशिक्षा
- क्षेत्रवाद एवं भाषावाद
- साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद
- बढ़ती हुई जनसंख्या
- दहेज प्रथा
- नशाखोरी
- भ्रष्टाचार
- नारी समस्या – नारियों की दयनीय स्थिति
- आतंकवादी की समस्या
यहां हम प्रमुख समस्याओं पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे-
गरीबी और बेरोजगारी की समस्या
भारत की प्रमुख समस्या है गरीबी और बेरोजगारी, जिसका मूल कारण है बढ़ती हुई जनसंख्या। स्वतन्त्रता से पूर्व जहां भारत की जनसंख्या मात्र 36 करोड थी, वहीं वर्ष 2011 में जनसख्या 125 करोड़ को पार कर गई। इसका तात्पर्य यह है कि जनसंख्या वृद्धि की दर 13.3 प्रतिशत है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या का दुष्परिणाम यह है कि भारत में गरीबी और बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
आज भी भारत में 40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे अपनी गुजर-बसर करने को बाध्य हैं। जनसंख्या विस्फोट ने जहां हमें जीवन की मूलभत आवश्यकताओं भोजन, आवास, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, विधुत, आदि से वंचित किया है, वहीं बेरोजगारी बढाने में योगदान किया है। प्रतिवर्ष लाखों बेरोजगारों की फौज तैयार हो रही है। जितनी नौकरियां हैं, उसके अनुपात में काम मांगने वालों की संख्या हजार गुनी है।
गरीब-अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। बेरोजगार युवक शहरों की ओर दौड़ रहे हैं जिससे नगरों में जनसंख्या का बोझ बढ़ रहा है, आवास समस्या उत्पन्न हो रही है, अपराध बढ़ रहे हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को शिक्षा देना भी कोई आसान काम नहीं है।
हमें अपने भरपूर प्रयासों के बाद भी इस क्षेत्र में विशेष कामयाबी नहीं मिल सकी है। आज दुनिया में जितने लोग अशिक्षित हैं, उसके आधे तो केवल भारतीय हैं। जनसंख्या के इस दबाव ने पर्यावरण को बिगाड़ने में भी अपनी भूमिका का निर्वाह किया है।
जनसंख्या वृद्धि की समस्या
बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करने के लिए अनिवार्य परिवार नियोजन की स्कीम लागू की जानी चाहिए और चीन की तरह प्रत्येक दम्पति को केवल एक बच्चा उत्पन्न करने की छूट होनी
चाहिए। विवाह की आयु में वृद्धि करके भी इस समस्या पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है।
अशिक्षा भी जनसंख्या वद्धि का कारण है। अतः लोगों को परिवार नियोजन की जानकारी देकर, जन-चेतना के द्वारा जनजागरण करके इस समस्या पर किसी हद तक काबू पाया जा सकता है। यह कहना ठीक नहीं होगा कि इनसे कोई लाभ नहीं हुआ।
लोगों का जीवन स्तर पहले से सुधरा है और मध्यम वर्ग के लोगों की व्यय करने की क्षमता में वृद्धि हुई तथा भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार विश्व में माना जाने लगा है।
भारत सरकार ने जवाहर रोजगार योजना, प्रधानमन्त्री रोजगार योजना, आदि के द्वारा भी बेरोजगारी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया है।
अशिक्षा की समस्या
अशिक्षा भारत की दूसरी बड़ी समस्या है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 65.38 प्रतिशत लोग ही शिक्षित हैं।
अशिक्षा के अभिशाप से ग्रस्त लोगों को शोषण के चक्र में पिसना
पड़ता है, उन्हें विकास के बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं होते और वे अपने बच्चों को देश का भावी सुशिक्षित नागरिक बना पाने में पायः सफल नहीं हो पाते।
सरकार यद्यपि शिक्षा के लिए पर्याप्त धन व्यय कर रही है परंतु सरकारी योजनाए इस दिशा में अधिक सफल नहीं रही हैं। प्राथमिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा पर विशेष ध्यान देकर निरक्षर को साक्षर किया जा रहा है।
क्षेत्रवाद एवं भाषावाद की समस्या
आज क्षेत्रवाद और भाषावाद की समस्या भी बढ़ रही है। क्षेत्रीय दलों ने इस आग को और भड़काया है। कुछ निहित स्वार्थ पूरा करने के लिए नेतागण इन भावनाओं को उग्र रूप से भड़का देते हैं, जिससे देश का भारी अहित हो रहा है।
क्षेत्रीय विकास में असमानता एवं केन्द्र-राज्य सम्बन्धों की असमानता ने इन भावनाओं को तीव्र करने में योगदान किया है।
साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद की समस्या
साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद का जहर हमारी नसों में घुल गया है। इससे लोकतन्त्र की जड़े कमजोर हुई हैं। भारत की एकता को ही इससे खतरा उत्पन्न हो गया है।
राजनीतिक अस्थिरता भी इसी की देन है। आरक्षण की समस्या को लेकर आए दिन होने वाली अशांति भी जातिवाद की देन है। साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काकर लोग दंगे करवा देते हैं और धर्म की आग पर राजनीति की रोटियाँ सेंकते हैं।
कैसी विडम्बना है कि आज भी भारत में मन्दिर-मस्जिद के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतन्त्रता की छूट संविधान ने दी हुई है।
फिर हरेक की पूजा पद्धति भी अलग है, अतः उसमें हस्तक्षेप का कोई प्रश्न ही नहीं उठता? वस्तुतः ऐसा नहीं हो पा रहा है। छुआछूत एवं ऊंच-नीच की भावना से ग्रस्त भारत में आज भी ब्राह्मण और शूद्र का भेदभाव व्याप्त है।
दहेज प्रथा की समस्या
दहेज प्रथा के नाम पर आज नारियों को जलने के लिए विवश होना पड़ रहा है। तमाम प्रयासों के बावजूद समाज में लड़की की स्थिति लड़के की तुलना में दयनीय है।
उसे आगे बढ़ने के लिए
समान अवसर उपलब्ध नहीं है। कन्या पराया धन है। इस सूत्र के अनुसार लड़की को लोग दोयम दर्जे की सन्तान समझकर उसके पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई पर अधिक खर्च नहीं करना चाहते।
दहेज प्रथा ने समाज में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी जैसी बुराइयों को जन्म दिया है। आज यह बुराई छोटे स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक घर कर गई है। यहां तक कि सांसदों पर भी रिश्वत खाने या रिश्वत लेकर वोट देने के आरोप लगते रहे हैं।
नशाखोरी की समस्या
आधुनिकता की चपेट में आकर मादक द्रव्यों का सेवन करने की ओर नई पीढ़ी अग्रसर हो रही है। महानगरों में चरस, अफीम स्मैक के नशे के आदी नवयुवक एवं नवयुवतिया अपना जीवन
बरबाद कर रहे हैं। जब तक इन्हें परिवार से स्नेह नहीं मिलेगा तब तक नशे की लत से इनका छुटकारा सम्भव नहीं है। पढे विस्तार से – नशाखोरी की समस्या।
भ्रष्टाचार की समस्या
भ्रष्टाचार भारत के जनजीवन में इतनी बुरी तरह व्याप्त है कि इस बुराई को दूर करने का कोई कारगर उपाय दिखाई नहीं देता। भ्रष्टाचार की यह समस्या भारतवासियों की रग-रग में व्याप्त
है।
सरकारी कर्मचारी और अधिकारी रिश्वतखोर हैं, व्यापारी टैक्स चोर हैं तथा राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबे हुए हैं।
उपभोक्तावादी संस्कृति ने येन-केन प्रकारेण धनार्जन को ही जीवन का लक्ष्य मान लिया है परिणामतः लोग सही-गलत हर तरीके से धनार्जन कर रहे हैं।
नारी शोषण की समस्या
नारी स्वातन्त्र्य के इस युग में भी भारत में नारी को वह सम्मान एवं दर्जा प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए। आज भी हमारे परिवारों में ‘लड़की’ को लड़के की अपेक्षा कम महत्व दिया जाता है।
गर्भ में यदि लड़की है तो उस भ्रूण को पूर्ण विकसित होने से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है। नारी का शारीरिक शोषण एवं प्रताड़न आम बात है। दहेज हत्याएं निरन्तर बढ़ रही हैं।
मॉब लिंचिंग
मॉब लिंचिंग का शाब्दिक अर्थ होता है – भीड़ द्वारा हत्या। आज कल अक्सर ये खबरें सुर्खियों का हिस्सा जरूर रहती है कि फलां जगह पर भीड़ ने एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला।
वर्तमान बीजेपी सरकार में इस प्रकार के मामले बहुत अधिक बढ़ गए है। इसका मुख्य कारण है विशेष प्रकार की मनुवादी जातिवाद राजनीति। ये भीड़ चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम किसी को भी नहीं बख्सती।
कभी गौरक्षा के नाम पर, तो कभी छेड़छाड… कभी चोरी, तो कभी धर्म के नाम पर… अक्सर किसी ना किसी वजहों से ये मॉब लिंचिंग के मामले सामने आते है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर है किया ये मॉब लिंचिंग और कहां से आती है इतनी भीड़? इन्हें कौन इक्कठा करता है?
हाल ही में देश में ऐसे कई मामले सुर्खियों में रहे है जहां भीड़ के चलते कई लोगों की मौत हुई है। जिसके पीछे झूठी अफवाहों का हाथ रहा। इन अफवाहों के चलते ही ये मॉब लिंचिंग की भीड़ कई लोगों को मौत के घाट उतार चुकी है।
आखिर अचानक कैसे इतने सारे लोगों को एक जगह होने वाली घटना का पता चल जाता है, और ये लोग उस पर उपद्रव मचाने वहां पहुंच जाते है?
एक रिसर्च के दौरान यह पाया गया कि यह एक समाजिक मनौविज्ञान घटना है, जिसके लिए पहले लोगों को किसी विषय पर जबरदस्ती भड़काया और उकसाया जाता है और फिर उसके इस गुस्से का इस्तेमाल किया जाता है।
आज इस तरह के मारपीट के सभी मुद्दों पर सबसे ज्यादा मदद अगर किसी चीज से मिलती है, तो वो है सोशल मीडिया। आज सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसकी मदद से चंद दिनों और घंटों में ही लोगों को एक जगह पर इक्कठा किया जा सकता है।
लोगों को धर्म के नाम पर, गौरश्रा के नाम पर, मान-सम्मान के नाम पर और देश भकित के नाम पर इस कदर भड़काया जाता है, कि वह इस मॉब लिंचिंग भीड़ का हिस्सा बन जाते है। डॉक्टरों के अलावा कुछ लोगों का भी यही मानना है कि ये समाज विज्ञान और मनोविज्ञान तक पैथोलॉजी के तौर पर अनियमित घटनाओं के रूप में सीमित है।
आतंकवाद की समस्या
आतंकवाद की समस्या भी भारत की प्रमुख समस्या है। कश्मीर में हम पिछले पंद्रह वर्षों से आतंकवाद झेल रहे हैं। हजारों निर्दोष नागरिकों की हत्या कश्मीरी आतंकवादी घटनाओं में हुई है तथा लाखों लोग पलायन करने को विवश हुए हैं। सरकार को भारी आर्थिक संसाधन कश्मीर में सेना तैनात करने के हेतु जुटाने पड़ रहे हैं।
पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है। यद्यपि यह आतंकवाद सीमा पार से प्रायोजित है तथापि यह हमारे लिए एक गम्भीर समस्या है। जब तक हम सीमा पार आतंकवादी प्रशिक्षण केन्द्रों को ध्वस्त नहीं कर देते और अपनी सीमा की पूरी चौकसी नहीं करते तब तक इस समस्या से निजात पाना सम्भव नहीं है।
उपसंहार
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हम अनेक समस्याओं से घिरे हुए हैं। यदि इन समस्याओं पर काबू पा लें तो निश्चित रूप से भारत दुनिया के किसी भी विकसित राष्ट्र से बराबरी ही नहीं कर लेगा अपितु उससे आगे निकल जाएगा।
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