‘विज्ञान की उपलब्धियां’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- विज्ञान : अभिशाप या वरदान
- विज्ञान का महत्व
- विज्ञान का सदुपयोग
- विज्ञान और मानव
- विज्ञान और मानव कल्याण
- भारत की वैज्ञानिक प्रगति
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- ऊर्जा क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति
- संचार एवं यातायात
- कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति
- चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति
- औद्योगिक क्षेत्र
- शिक्षा क्षेत्र
- घरेलू उपकरण
- विज्ञान एक अभिशाप
- उपसंहार
विज्ञान की उपलब्धियां
प्रस्तावना
विज्ञान ने हमारे दैनन्दिन जीवन को इस सीमा तक प्रभावित किया है कि आज विज्ञान के बिना जीवन की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। वास्तविक अर्थ में आज का युग विज्ञान का युग है।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान और तकनीक का प्रवेश हो चुका है, अतः विज्ञान से असम्पृक्त होकर मानव अपना जीवन निर्वाह नहीं कर सकता।
प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने में विज्ञान ने मानव की जो सहायता की है, उसने हमारे जीवन को आमूल परिवर्तित कर दिया है। वैज्ञानिक सोच ने हमारी जीवन पद्धति, हमारे खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार इच्छा-आकांक्षा और चिन्तन-मनन को पर्याप्त प्रभावित किया है।
अन्धविश्वास एवं रूढ़ियों के धब्बों को साफ करके विज्ञान ने निर्मल दृष्टि प्रदान की है तथा प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का सतत अभियान मानव इस वैज्ञानिक सोच से ही प्रारम्भ कर सका है।
ऊर्जा क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति
ऊर्जा के क्षेत्र में विज्ञान ने आशातीत प्रगति की है। विद्युत ऊर्जा आज हमारे जीवन में इतनी उपादेय बन गई है कि उसके बिना हमारा कोई काम नहीं चल सकता। आज प्रत्येक घर में बिजली से चलने वाले ऐसे अनेक उपकरण हैं, जिनके बिना सामान्य क्रिया-कलाप भी सम्भव नहीं।
फ्रिज, कूलर. टी. वी. एयर कण्डीशनर, पंखे, हीटर गीजर वाशिंग मशीन, इलेक्टिक प्रेस, मिक्सी, प्रकाश देने वाले उपकरण बल्ब, ट्यूब लाइट, सोडियम लैम्प आदि के बिना हमारी सारी व्यवस्था भंग हो जाएगी।
पारम्परिक ऊजो स्रोत के अतिरिक्त अब विज्ञान एवं तकनीक ने सौर ऊर्जा एवं परमाणु ऊर्जा का उपयोग करना सम्भव कर दिया है। पहले काम करने में अधिक श्रम एवं समय लगता था किन्तु आज बटन दबाने भर से वह कार्य कम समय में और कम लागत पर हो जाता है।
संचार एवं यातायात क्षेत्र में प्रगति
संचार एवं यातायात के क्षेत्र में भी विज्ञान ने आशातीत उपलब्धियां प्राप्त की है। आज इंजन से चलने वाले दो पहिया वाहनों के बिना जनसामान्य का काम नहीं चल सकता। मोटर, कार, रेल, वायुयान, जहाज जैसे यातायात के साधन विज्ञान ने सुलभ कराए हैं, जिनसे हजारों मील की दूरी कुछ ही घण्टों में तय की जा सकती है।
ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाले सुपरसोनिक जेट विमानों ने महासागरों के विस्तार को पाट दिया है और वह दिन दूर नहीं जब अन्तरिक्ष यान में बैठकर पृथ्वी के निवासी सुदूर ग्रहों की यात्रा पर जाने का कार्यक्रम बनाया करेंगे।
दूर संचार के क्षेत्र में आशातीत वैज्ञानिक प्रगति हुई है। टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन एवं वायरलैस के द्वारा हम हजारों मील दूर बैठे अपने सम्बन्धियों से बात कर सकते हैं और संसार भर की प्रमुख घटनाओं को दूरदर्शन पर घर बैठे देख लेते हैं। रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा जहां स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं, वहीं अपने ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रमों द्वारा जन-शिक्षा का कार्य भी करते हैं।
कृषि क्षेत्र में प्रगति
कृषि क्षेत्र में विज्ञान ने पैदावार बढ़ाकर तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व वहन किया है। नए-नए अनुसन्धानों से प्राप्त निष्कर्षों से पैदावार में कई गुनी वृद्धि करने में कृषि वैज्ञानिकों को सफलता मिली है, सिंचाई की बेहतर सुविधाएं देकर, उन्नतिशील बीजों का प्रयोग करके, कीटनाशकों का उपयोग करके एवं उर्वरकों का प्रयोग करके आज भारतीय कृषक अपने खेतों में सोना उगा रहे हैं।
चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति
चिकित्सा क्षेत्र में हुई वैज्ञानिक प्रगति भी प्रशंसनीय है। विज्ञान ने आज असाध्य समझे जाने वाले रोगों का उपचार खोज लिया है और मनुष्य की औसत आयु को बढ़ा दिया है। मलेरिया, टी.
बी., चेचक, हैजा, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का उपचार अब सम्भव है।
बाल मृत्यु की दर में भी आशातीत कमी हुई है क्योंकि अब समय पर रोग निरोधी टीके दिए जाने लगे हैं जिससे बालकों को अकाल मृत्यु से बचा पाना सम्भव हो सका है।
शल्य चिकित्सा में हुई प्रगति से भी सभी लोग परिचित हैं। ऐसी-ऐसी मशीनें बनाई गई हैं जो शरीर के भीतरी हिस्सों की गतिविधियों की पल-पल की जानकारी देती रहती हैं।
शल्य चिकित्सक अब हृदय प्रतिरोपण एवं गुर्दा प्रतिरोपण करने में भी सक्षम हो गए हैं। प्लास्टिक सर्जरी के कृत्रिम अंग प्रतिरोपण ने विकलांगों को नया जीवन प्रदान किया है।
सन्तानहीन माता-पिता अब चिकित्सकीय देख-रेख में ‘परखनली शिशु‘(IVF) को जन्म देकर सन्तान सुख प्राप्त कर पाने में सक्षम हो सके हैं।
औद्योगिक क्षेत्र में प्रगति
औद्योगिक क्षेत्र में विज्ञान ने बहुमुखी प्रगति की है। आज देश में बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किए गए हैं जहां लाखों की संख्या में रोजगार के अवसर सुलभ कराए गए हैं। स्टील, सीमेन्ट,
वस्त्र, रसायन, भारी इन्जीनियरिंग उद्योगों में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है।
इसके अतिरिक्त तेल शोधन, चमड़ा, प्लास्टिक, कम्प्यूटर उद्योग में भी भारत का विकास सराहनीय रहा है। कम्प्यूटर साफ्टवेयर में तो भारत विश्व के अग्रणी देशों में है।
शिक्षा क्षेत्र में प्रगति
शिक्षा क्षेत्र में भी वैज्ञानिक कान्ति हुई है। मुद्रण यन्त्र के आविष्कार ने जहां पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों का प्रकाशन सुलभ कराया वहीं दर संचार माध्यमों से दी जाने वाली शिक्षा ने भी लाखो करोड़ो लोगो को लाभ पहुचाया।
आवास समस्या को दूर करने में भी विज्ञान ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। एक ओर तो बड़े शहरों में बहमंजिली इमारतें बनाई गई हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में
कम लागत के आवास सुलभ कराए जा रहे हैं।
घरेलू कार्य में विज्ञान
वास्तविकता तो यह है कि विज्ञान ने मानव जीवन को इतने क्षेत्रों में प्रभावित कर पाना भी यहां सम्भव नहीं है। निश्चित रूप से इन वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मानव जीवन को अधिक सुविधाजनक एवं सुखी बनाया है।
आज रसोई में काम करती हुई गृहिणी को चूल्हा फूंकने की आवश्यकता नहीं, केवल गैसलाइटर से गैस स्टोव जलाने की जरूरत भर है। न उसे चक्की पीसन
की आवश्यकता है, न सिलबट्टे पर चटनी पीसने की और न ही खरल में मसाला कूटने का जरूरत है।
घरेलू आटा-चक्की, मिक्सी के रूप में विज्ञान ने उसे ऐसे उपकरण दिए हैं जो पलक झपकते सारा काम कर देते है। घर की सफाई के लिए अब झाडू की नहीं वैक्यूम क्लीनर की सेवायें उसे उपलब्ध हैं। रसोई में वैज्ञानिक उपकरणो की भरमार है, कोई काम अब हाथ से करने की आवश्यकता ही नहीं रह गई है।
विज्ञान एक अभिशाप
विज्ञान की जहां इतनी उपलब्धियां हैं. वहीं इसके कछ अभिशाप भी हैं। आज मानव मशीन का गुलाम बन गया है, वह आलसी हो गया है और उसका स्वावलम्बन समाप्त हो गया है। मशीनीकरण ने बेरोजगारी की समस्या को बढ़ा दिया है तथा विज्ञान द्वारा आविष्कृत विनाशकारी परमाणु बमा, रासायनिक हथियारों से आज मानव जाति आशंकित एवं त्रस्त है।
अणु शक्ति यद्यपि मानव के लिए विपुल ऊर्जा का स्रोत है तथापि परमाणु बमों की भीषण विभीषिका का अनुभव द्वितीय विश्वयुद्ध में मानव जाति कर चुकी है, जब जापान के हीरोशिमा एवं नागासाकी नगरों पर गिराए गए बमों ने प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित कर दिया था। कविवर रामधारी सिंह दिनकर ने इसीलिए मनुष्य को सचेत करते हुए ‘कुरुक्षेत्र‘ में कहा है।
तो उसे दे फेंक तजकर मोह स्मृति के पार।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग तीखी है बड़ी यह धार।।
उपसंहार
आज इस बात की महती आवश्यकता है कि हम वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग मानव कल्याण के लिए करें तभी विज्ञान एक वरदान माना जा सकता है।
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