साम्प्रदायिक सद्भाव – साम्प्रदायिकता की समस्या, निबंध

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‘साम्प्रदायिक सद्भाव या साम्प्रदायिकता की समस्या’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-

  • साम्प्रदायिकता : समस्या और समाधान
  • गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे
  • साम्प्रदायिक सद्भाव : समय की आवश्यकता
  • साम्प्रदायिकता : कारण एवं निवारण
  • साम्प्रदायिकता की आग में झुलसता गुजरात
Sampradayikta - Sampradayikta Ki Samasya

निबंध की रूपरेखा

  1. प्रस्तावना
  2. गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे
  3. भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव
  4. साम्प्रदायिकता के मूल कारण
  5. साम्प्रदायिकता का अर्थ
  6. साम्प्रदायिकता के कारक तत्व
  7. गुण्डो की भूमिका
  8. धर्म और साम्प्रदायिकता
  9. साम्प्रदायिकता से मुक्ति के उपाय

साम्प्रदायिक सद्भाव या साम्प्रदायिकता की समस्या

प्रस्तावना

भारत एक विशाल राष्ट्र है जिसमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग निवास करते है। भारतीय संविधान ने अपने प्रत्येक नागरिक को बिना भेद-भाव किए हुए समान अधिकार प्रदान किए हुए हैं। भिन्नता में एकता भारत की शक्ति है, भारत की पहचान है तथा यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति विश्व में अद्वितीय है।

गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे

इतने बड़े देश में कभी-कभी कुछ सिरफिरे लोगों की नादानियों के कारण साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की घटनाएँ भी हो जाती हैं। अभी पिछले ही दिनों अहिंसा के पुजारी गांधीजी की जन्मभूमि गुजरात में साम्प्रदायिक दंगों ने जो विकराल रूप धारण किया वह सभ्य मानव के मुंह पर करारा तमाचा है।

‘गोधरा’ में कुछ सिर-फिरे लोगों ने एक ट्रेन की बोगी में आग लगाकर एक ही सम्प्रदाय के लोगों को जीते जी जला दिया परिणामस्वरूप सारे गुजरात में साम्प्रदायिक तनाव व्याप्त हो गया, झगड़े प्रारम्भ हो गए। हिंसा, आगजनी, बलात्कार, लूट-पाट का ताण्डव प्रारम्भ हो गया और मानवता कराह उठी।

सैकड़ों लोगों की जानें गईं, अरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ और लाखों लोगों को अपने घर-बार छोड़कर शरणार्थी कैम्पों में जाकर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। मानव पर दानव की विजय का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा?

हमें इस साम्प्रदायिकता की जड़ पर प्रहार करना है तभी गुजरात जैसे प्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव पुनः स्थापित हो सकेगा।

भारत देश का दुर्भाग्य समझो या फिर भारत के लोगो की सहष्णुता, जो गोधरा कांड के सिरफिरे थे वही आज देश के कर्ता धर्ता बन बैठे हैं। कहते अपने आपको चाय वाले हैं पर इससे दूर-दूर तक इनका कोई रिस्ता नहीं हैं, ये भारत के लोगो को झूठ और फरेब की दुनिया में बांधे हुए हैं। भारत के लोग इतने सच्चे हैं कि कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं कौन सच बोल रहा है कौन झूठ। पर झूठ का पुलिंदा ज्यादा दिनों नहीं टिकता 2019 का आर्थिक संकट इसी का नतीजा है।

भारत में साम्प्रदायिक सदभाव

भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र है। यहां रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अपनी पूजा पद्धति, अपने धर्म एवं अपने विश्वास के अनुरूप जीवन यापन का अधिकार प्राप्त है। यही कारण है कि भारत में अनेक धर्मो एवं सम्प्रदायों को मानने वाले लोग रहते हैं।

भारतवर्ष अत्यन्त उदार एवं सहिष्णु रहा है, इसीलिए आक्रान्ताओं ने भी इसे अपना निवास बना लिया। तुर्क, मुगल, अंग्रेज भारतवर्ष में सैकड़ों वर्षों तक राज्य करते रहे, किन्तु उनका शासन समाप्त होने के बाद हिन्दुओं ने कभी उनके प्रति बैर-भाव या घ्रणा का बर्ताव नहीं किया।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किए गए आन्दोलनों में हिन्दू-मुसलमान ने कन्धे से कन्धा मिलाकर संघर्ष किया, किन्तु अंग्रेजों ने अपनी राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए हिन्दू-मुस्लिम का भेद स्वीकार करते हए एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की आवश्यकता को मान लिया और इस प्रकार भारत और पाकिस्तान के रूप में दो राष्ट्र बन गए।

अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में बॉटकर जाते-जाते एक ऐसी विकराल समस्या खड़ी कर दी जिसने देश के साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ दिया और सन् 1947 से जो साम्प्रदायिक तनाव पैदा हुए वे स्थायी हो गए।

साम्प्रदायिकता का मूल कारण

पाकिस्तान बनने के समय बहुत सारी जनसंख्या की अदला-बदली हुई। पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू भारत में आ गए और भारत में रहने वाले बहुत सारे मुसलमान पाकिस्तान चले गए किन्तु यह कार्य शान्तिपूर्वक सम्पन्न न हो सका। कत्लेआम हुए, निर्दोष नागरिकों को बलवाइयों के जुल्मो-सितम का शिकार बनना पड़ा, बलात्कार हुए और लूट-खसोट का ताण्डव चला।

बस, उसी समय से हिन्दू-मूसलमान के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी हो गई जो अब तक नहीं गिर सकी है। विशेष रूप से जो सिन्धी, पंजाबी, हिन्दू पाकिस्तान से ‘लुट-पिटकर’ भारत में आए, वे मुसलमानों के प्रति स्थायी घृणा लिए हुए थे और भारत में आकर उन्होंने बदले की भावना से मुसलमानों के प्रति घ्रणा भाव को प्रदर्शित किया।

साम्प्रदायिक भावना का जन्म इसी पृष्ठभूमि में हुआ, जिसे ऐतिहासिक तथ्य मानकर हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा।

साम्प्रदायिकता का अर्थ

साम्प्रदायिकता का सामान्य अर्थ है कि दो भिन्न सम्प्रदायो को मानने वाले लोगों के बीच पारस्परिक अविश्वास, घृणा भाव का पनपना जिससे वे एक-दूसरे के रक्त के प्यासे हो जाएं।

यह ध्यान रखने योग्य बात है कि ऐसा माहौल सदैव नहीं रहता, कुछ विशेष कारणों से जब तनाव बढ़ जाता है तो साम्प्रदायिकता की भावना उभर आती है और परस्पर भाई-चारे की भावना समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में हिन्दू-मुसलमान परस्पर अविश्वास, घृणा, विद्वेष से भर जाते हैं और साम्प्रदायिक हिंसा का ताण्डव प्रारम्भ हो जाता है।

साम्प्रदायिकता की यह भावना हिन्दू-मसलमानों में तो बहुत लम्बे समय से चली आ रही है, किन्तु हिन्दू और सिखो के बीच भी साम्प्रदायिक तनाव पंजाब समस्या के कारण उत्पन्न हुआ है। विशेष रूप से इन्दिरा गांधी की हत्या के उपरान्त हिन्दू-सिख साम्प्रदायिकता अपने चरम उत्कर्ष पर थी। उस समय जो दंगे हुए उनमें कितने ही निर्दोष सिख मारे गए।

साम्प्रदायिकता के कारक तत्व

साम्प्रदायिकता की इस समस्या के कुछ ऐसे कारक हैं, जिन पर विचार कर लेना आवश्यक है। साम्प्रदायिकता की समस्या वोटों की राजनीति से जुड़ी है। एक सम्प्रदाय विशेष के वोट हासिल करने के लिए कुछ राजनीतिक पार्टियां अपनी तिकडम भिडाना प्रारम्भ कर देती हैं और ऐसा माहोल बना देती हैं जिससे इन्हें राजनीतिक लाभ मिले, भले ही देश में साम्प्रदायिक दंगे क्यों न हो जायें।

सत्ता लोलुप राजनीतिज्ञ पुराने दबे हुए मामलों को चुनाव के अवसर पर उखाड़कर देश का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ देते हैं और येन-केन प्रकारेण कुर्सी तक पहुंचने की फिराक में रहते हैं। अभी पिछले चुनावों में अयोध्या में रामजन्म भूमि एवं बाबरी मस्जिद की समस्या ने देश के साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ दिया और कुछ राजनीतिक दलों ने इसका लाभ उठाकर सत्ता तक पहुंचने का प्रयास किया।

साम्प्रदायिकता की भावना को उभारने का काम विदेशी जासूस भी करते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि भारत में कानून-व्यवस्था एवं शान्ति रहे, अतः देश में साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न करने के लिए वे झूठी अफवाहें उड़ाते हैं और अपने संचार माध्यमों के द्वारा झूठी खबरें देते हैं।

इसे सुनकर एक सम्प्रदाय के लोग अपने ऊपर हुए कथित अत्याचार का बदला लेने को कटिबद्ध हो जाते हैं और लूट-खसोट, बलात्कार, कल का ताण्डव प्रारम्भ हो जाता है।

साम्प्रदायिक झगड़ों में गुण्डों की भूमिका

साम्प्रदायिक झगड़ों के समय गुण्डों एवं बलवाइयों की पौ बारह हो जाती है। वे दुकानें लूटते हैं, आग लगाते हैं, कत्ल करते हैं और जेबें भरते हैं। वे तो सदैव यही आकांक्षा करते हैं कि भगवान करे ऐसा तनाव हमेशा बना रहे। यह गुण्डा तत्व भी साम्प्रदायिकता को भड़काने में विशेष योगदान करता है।

धर्म और साम्प्रदायिकता

धर्म पर आधारित संगठन और राजनीतिक पार्टियाँ भी साम्प्रदायिक माहौल को खराब करती हैं। जब एक सम्प्रदाय के लोग अपनी सुरक्षा के लिए हथियार एकत्र करते हैं, तो स्वाभाविक रूप
से दूसरे सम्प्रदाय के लोग भी अपनी प्रतिरक्षा हेतु हथियार जमा करते हैं।

साम्प्रदायिकता से मुक्ति के उपाय

  • साम्प्रदायिकता के इस दानव को समाप्त करने के लिए हमें ठण्डे दिमाग से सोचना चाहिए। 
  • स्वार्थी राजनीतिज्ञों एवं सत्ता लोलुपों के बहकावे में नहीं आना चाहिए। 
  • राष्ट्रीय भावना का विकास
    करना चाहिए और इस सच्चाई को अंगीकार कर लेना चाहिए कि भारत में रहने वाले मुसलमान भी उतने ही भारतीय हैं जितने यहाँ रहने वाले हिन्दू ।
  • अब मुसलमानों को यहाँ से चले जाने की बात कहकर चिढ़ाना फिजूल की बात है।
  • साथ ही भारतीय मुसलमानों को भी पाक के प्रति नहीं अपितु भारत के प्रति वफादारी दिखानी चाहिए।
  • यह नहीं कि पाकिस्तान एवं भारत के बीच होने वाले मैच में वे पाकिस्तान की तरफदारी करें।
  • सरकार को साम्प्रदायिक संगठनों पर एवं साम्प्रदायिक दलों पर रोक लगा देनी चाहिए।
  • अफवाहें फैलाने वालों को कठोर दण्ड देने का प्रावधान करना चाहिए।
  • साम्प्रदायिक तनाव को जन्म देने वाले गुण्डों एवं बलवाइयों को कारागार में डाल देना चाहिए।
  • जो पूजा स्थल विवादग्रस्त हैं, उन्हें राष्ट्रीय स्मारक बना देना चाहिए और स्वतन्त्रता के समय जिस पूजा स्थल का जो स्वरूप था, उसे स्थिर कर देना चाहिए।
  • स्कूल कॉलेजों में ऐसी शिक्षा दी जाए जो साम्प्रदायिकता की नीव को समाप्त करने में सहायक हो।

सर्वधर्म समभाव की भावना जब लोगों में विकसित होगी तभी देश का साम्प्रदायिक माहौल ठीक रहेगा और साम्प्रदायिकता के अभिशाप से हम बच सकेंगे।

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