‘भ्रष्टाचार का कारण एवं निवारण’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- भ्रष्टाचार की समस्या
- भ्रष्टाचार और काला धन
- भ्रष्टाचार : एक अभिशाप
- रिश्वतखोरी : सर्वव्यापी रोग
- भारत में भ्रष्टाचार
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र
- भ्रष्टाचार की व्यापकता
- आयकर की चोरी
- राजनीति में भ्रष्टाचार
- भ्रष्टाचार : एक सामाजिक अभिशाप
- भ्रष्टाचार के कारण
- भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उपाय
- उपसंहार
भ्रष्टाचार का कारण एवं निवारण
प्रस्तावना
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट-आचरण, किन्तु आज यह शब्द ‘रिश्वतखोरी’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। भ्रष्टाचार की यह समस्या इतनी व्यापक हो गई है कि हम यहाँ तक कहने लगे हैं कि आज के युग में ‘भ्रष्टाचार’ से वही बच पाता है जिसे भ्रष्ट होने का अवसर नहीं मिल पाता। नग्न सत्य तो यह है भ्रष्टाचार हमारी पहचान है, हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। आज के इस युग में राजनीतिज्ञ, अधिकारी, न्यायाधीश, वकील, शिक्षक, डॉक्टर, राजकर्मचारी, इन्जीनियर सबके सब भ्रष्ट हैं।
भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र
भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं तथा यह इतना सर्वव्यापी है कि हम भ्रष्टाचार को ही अपना चरित्र कह सकते हैं। यद्यपि भारत एक आध्यात्मिक देश है और इतिहास साक्षी है कि हम लोग सन्तोषी जीव रहे हैं तथापि धन लिप्सा ने हमें अपनी नैतिकता, मानवतावादी मूल्यों से जैसा वर्तमान समय में विचलित कर दिया है, वैसा पहले कभी नहीं था। धर्म, अध्यात्म, नैतिकता भले ही हमें सदाचार की शिक्षा देते हों, किन्तु हमारा आचरण दिनों दिन भ्रष्ट होता जा रहा है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर देनी आवश्यक है और वह यह है कि भ्रष्टाचार का तात्पर्य केवल ‘रिश्वत’ ही नहीं, अपितु अनुचित मुनाफाखोरी, करों की चोरी, मिलावट, कर्तव्य के प्रति उदासीनता, सरकारी साधनों का अनुचित प्रयोग भी भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं।
“आइए हम अपने-अपने गिरेबान में झाँककर देखें और फिर इस कथन की परीक्षा को क्या भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र नहीं है?“
भ्रष्टाचार की व्यापकता
स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर पर देश की जनता ने यह परिकल्पना की थी कि अब हमारी अपनी सरकार होगी और हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी, किन्तु यह परिकल्पना सच नहीं हुई और
अब तो हालात इतने बदतर हो गए हैं कि इस भ्रष्टाचार रूपी दानव ने समाज को पूरी तरह अपने मजबूत जबड़ों में फंसा लिया है। आज भ्रष्टाचार का जो स्वरूप हमारे देश में विद्यमान है उससे सभी परिचित हैं।
सरकारी कार्यालयों में बिना भेंट पूजा दिए हुए कोई काम करवा लेना असम्भव है। क्लर्क के रूप में जो व्यक्ति सीट पर बैठा हुआ है वही आपका असली भाग्य विधाता है। अफसर को यह ऐसे-ऐसे चरके देता है कि बेचारे को नानी याद आ जाती है। यदि क्लर्क न चाहे, तो आप एड़ियाँ रगड़ते रहिए आपकी फाइल पर ‘फारवर्डिंग’ नोट नहीं लगेगा और भला किस अफसर की मजाल है जो क्लर्क की टिप्पणी के बगैर अपना निर्णय लिख दे।
कहावत है कि प्रान्त में बस दो ही शक्तिशाली व्यक्ति हैं लेखपाल या राज्यपाल। लेखपाल ने जो लिख दिया, उसे काटने वाला तो जिलाधीश भी नहीं।
आयकर की चोरी
भ्रष्टाचार के चलते हुए आज लाखों रुपए महीने कमाने वाले डॉक्टर, वकील, वास्तुविद विभिन्न उपायों से आयकर की चोरी करते हैं। ‘प्रोफेशनल’ कार्य करने वाले कितने लोग ऐसे हैं जो सही आयकर देते हैं ? व्यापारियों और उद्योगपतियों ने तो बाकायदा चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट रखे हुए हैं जो उन्हें कर बचाने तथा कर चोरी करने के उपाय सुझाते हैं। यदि सभी लोग सही ढंग से आयकर अदा करने लगें तो हमारे देश की निर्धनता समाप्त हो जाए।
शिक्षक कॉलेजों में पढ़ाने में उतनी रुचि नहीं लेते जितनी ट्यूशन की दुकानों को चलाने में लेते हैं। विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ने के लिए बाध्य करने हेतु तरह-तरह के हथकण्डे अपनाए जाते हैं। स्कूल-कॉलेज में कक्षाएं नहीं लगतीं, किन्तु कोचिंग स्कूलों में सदैव भीड रहती है। ट्यूशन की मोटी कमाई कर वे कोई आयकर नहीं देते।
सरकारी अधिकारी, जिन्हें जनता का सेवक माना जाता है, दोनों हाथों से जनता को लूट रहे हैं। पुलिस का मामूली दरोगा चार-पांच वर्ष की नौकरी में ही मोटर साइकिल, मकान, टी. वी., फ्रिज जैसी सुविधाएं जुटा लेता है। क्या सरकार उससे कभी पूछती है कि भाई अपने वेतन में इतनी बचत कैसे कर लेते हो जो लाखों रुपए की सम्पत्ति खरीद ली। ये सब भ्रष्ट आचरण से काला धन अर्जित कर रहे है।
राजनीति में भ्रष्टाचार
राजनीति में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। सच तो यह कि भारतीय चुनाव पद्धति लोकतन्त्र की खिलवाड़ है। कौन नहीं जानता कि सरकार द्वारा प्रत्याशियों के लिए निर्धारित व्यय सीमा
में चुनाव लड़ पाना असम्भव है। नेतागण चुनाव जीतने के लिए सभी मर्यादाओं को त्याग देते हैं और जब वे भ्रष्ट आचरण से चुनाव जीतते हैं तो फिर नाक तक भ्रष्टाचार में डूबकर पैसा बनाते हैं। यदि ऐसा नहीं करेंगे, तो अगले चुनाव में अपनी नैया कैसे पार लगेगी।
राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव खर्च के लिए बड़े-बड़े उद्योगपतियों से चन्दा लेती हैं और फिर उन्हें लाभ पहुँचाने के लिए ऐसे नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं जिससे उद्योगतियों की चाँदी कटती है और गरीब जनता पर उसका बोझ पड़ता है। देश के लिए किए गए बड़े-बड़े सौदों में कमीशन, दलाली के नाम पर लम्बी रकमें ऐंठ ली जाती हैं। बोफोर्स सौदे में कमीशन लिया गया, यह तो सिद्ध हो गया पर किसने यह रकम डकार ली, यह रहस्य उजागर नहीं हो सका। ‘तहलका’ के जांबाज रिपोर्टरों ने छुपे कैमरे के माध्यम से जो सच टी.वी. पर उजागर किया उसने इन राजनीतिज्ञों को नंगा कर दिया। पर वे तो बेशर्म हैं, जानते हैं कि जनता कुछ दिनों में इसे भूल ही जायेगी।
भ्रष्टाचार : एक सामाजिक अभिशाप
भ्रष्टाचार एक सामाजिक अभिशाप है। भ्रष्टाचार को सही ठहराने के लिए लोग तरह-तरह के तर्क गढ़ते हैं। यथा- ‘साहब, इसी बढ़ती हुई महँगाई में वेतन से खर्च नहीं चल सकता’,
अतः मजबर होकर हमें रिश्वत लेनी पड़ती है, या फिर, क्या करें पुत्री के विवाह में बीस लाख का दहेज देना है। अब इतना पैसा वेतन से तो बचाया नहीं जा सकता। ऐसे कितने ही तर्क बेमानी हैं। सच तो यह कि वे अपने अपराध बोध से ग्रस्त रहते हैं और उसे कम करने के लिए इस प्रकार के तर्क गढ़ लेते हैं, जिनमें कोई वजन नहीं है।
भ्रष्टाचार के कारण
भ्रष्टाचार का मूल कारण है अधिक-से-अधिक धन कमाने की प्रवृत्ति। आज हमारी दृष्टि बदल गई है। हम भौतिकवादी हो गए हैं और वस्तुओं के प्रति गहरा मोह बढ़ गया है। सुविधाभोगी जीवन-पद्धति के हम आदी बन गए हैं। जैसे भी सम्भव हो भोग-विलास के उपकरण एकत्र किए जाएँ। पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने विचार को बढ़ावा दिया है। अब यदि पड़ोसी के घर में रंगीन टी. वी. और स्मार्ट टी० वी० है तो भला मेरे यहाँ क्यों न हो? बस एक अन्धी दौड़ प्रारम्भ हो जाती है जिसका समापन भ्रष्टाचार के कुएं में होता है।
सबसे चिन्ताजनक बात तो यह है कि आज भ्रष्टाचार को लोगों ने सामाजिक मान्यता प्रदान कर दी है। भ्रष्टाचार के बलबूते पर धन अर्जित करके लोग सम्मान प्राप्त कर रहे हैं और समाज यह जानते हुए भी कि धन बेईमानी से अर्जित किया गया है उसका तिरस्कार नहीं करता। परिणामतः भ्रष्टाचार पनपने में सहायता मिलती है। आज ईमानदारी, नैतिकता, सत्य को धता बताई जा रही है। कहा जाता है कि आज ईमानदार वही जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिल पाता। ईमानदार आदमी को लोग मूर्ख, पागल, गाँधी का अवतार कहकर खिल्ली उड़ाते हैं और बेईमान को इज्जत देते हैं। ऐसे समाज में कौन मूर्ख ईमानदार बनना चाहेगा।
भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उपाय
भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए सरकार ने कानून बनाए हैं, किन्तु वे अधिक प्रभावी नहीं हैं। कहा जाता है कि भ्रष्टाचार की जड़े ऊपर होती हैं। यदि किसी विभाग का मन्त्री या सचिव रिश्वत लेता है तो उसका चपरासी भी भ्रष्ट होगा। अतः भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ऊपर के पदों पर योग्य एवं ईमानदार लोगों को आसीन किया जाए। कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार लोगों को सरकार एवं समाज की ओर से सम्मानित किया जाए तथा नैतिक व आध्यात्मिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाए। शिक्षकों एवं समाज के अन्य जिम्मेदार नागरिकों को विद्यार्थियों के समक्ष आदर्श उपस्थित करना चाहिए। समाज भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का सामाजिक तिरस्कार एवं बहिष्कार करे और ऐसे लोगों को महिमामण्डित न करे जो भ्रष्टाचार से धन अर्जित करते हैं।
दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई को दूर करने पर भी भ्रष्टाचार में कमी आएगी। आयकर के अधिक-से-अधिक छापे मारे जाएँ और प्रत्येक व्यक्ति से उसके आय-व्यय का हिसाब-किताब पूछा जाए। सरकारी कर्मचारियों पर विशेष निगाह रखी जाए जिससे वे अनुचित साधनों से धन अर्जित न कर सकें। सम्भव हो तो उनकी सम्पत्ति की खुफिया जाँच करवाई जाए, उनके रहन-सहन के स्तर को भी देखा-परखा जाए।
उपसंहार
यदि इन उपायों को ईमानदारी से लागू कर दिया जाए तो कोई कारण नहीं कि हम भ्रष्टाचार की इस समस्या से छुटकारा न पा सकें।
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