‘दूरदर्शन का प्रभाव’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- दूरदर्शन की उपयोगिता
- विदेशी टी.बी. चैनलों का प्रभाव
- दूरदर्शन : लाभ और हानि
- दूरदर्शन : गुण और दोष
- दूरदर्शन का महत्व
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- भारत में दूरदर्शन
- दूरदर्शन की उपयोगिता
- विदेशी चैनलों का दुष्प्रभाव
- इलेक्ट्रोनिक मीडिया का प्रभाव
- विज्ञापन और टेलीविजन
- दूरदर्शन से हानियां
- सांस्कृतिक हमला
- उपसंहार
दूरदर्शन का प्रभाव
प्रस्तावना
दूरदर्शन (टी.वी.) का आविष्कार 1926 ई. में अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन लागी बेयर्ड द्वारा किया गया, तब शायद किसी को यह अनुमान भी नहीं था कि यह प्रत्येक घर में अपना स्थान बना लेगा और बीसवीं सदी के समापन पर मनोरंजन का प्रमुख साधन होगा। सूचना क्षेत्र में होने वाली क्रान्ति ने आज तकनीकी और प्रौद्योगिकी को इस स्तर पर पहुंचा दिया है कि अगले दस वर्षों में क्या होगा? इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
भारत में दूरदर्शन
पहले हमारे देश में टेलीविजन का अधिक विस्तार नहीं हो सका, यद्यपि दूरदर्शन केन्द्र दिल्ली की स्थापना 15 सितम्बर 1959 को दिल्ली में हो चुकी थी। सन 1976 में जब उपग्रह द्वारा टी.वी. कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाने लगा, तब दूरदर्शन केन्द्रों की संख्या बढी। बाद में सन् 1982 में एशियाड आयोजन के समय दूरदर्शन का पर्याप्त विस्तार हुआ।
प्रारम्भ में दूरदर्शन का केवल एक राष्ट्रीय नेटवर्क था। बाद में मेट्रो चैनल की स्थापना हुई और महानगरों के लोगों को यह विकल्प मिल गया कि चाहें तो राष्ट्रीय चैनल के कार्यक्रम देखें और चाहे तो मेट्रो चैनल के।
सभी देशो में सेटेलाइट टी.वी. चैनलों का आगमन हुआ। प्रारम्भ में तो डिश ऐन्टीना के माध्यम से केवल सम्पन्न लोग ही विदेशी टी.वी. चैनलों का आनन्द ले पाते थे, किन्तु बाद में केबिल ऑपरेटरों ने इसे घर-घर में पहुचाकर सर्वजन सुलभ बना दिया।
आज तो स्थिति यह है कि केविल टी.वी. के कार्यक्रमों की भरमार है-मोटे तौर पर 180 चैनल उपलब्ध हैं, जिनके कार्यक्रम चौबीस घण्टे उपलब्ध हैं। नित नए चैनल उपलब्ध हो रहे हैं, यही नहीं अब तो इन्टरनेट सेवा के माध्यम से आप अपनी कम्प्यूटर स्क्रीन पर देश-विदेश में प्रसारित हो रहे किसी भी कार्यक्रम को आसानी से कैच कर सकते हैं।
दूरदर्शन की उपयोगिता
टेलीविजन आज के युग की जरूरत बन गई है। शायद ही कोई ऐसा खाता-पीता परिवार हो, जिसके पास टी.वी. उपलब्ध नहीं। प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता को ध्यान में रखकर टी.वी. सेट
बनाए जा रहे हैं और इसकी कीमत मोटे तौर पर 1500 रुपये से लेकर लाखों रुपए तक है। आदमी की जेब जितना बर्दाश्त कर सके वैसा टी.वी. बाजार में उपलब्ध है। इसीलिए हर छोटा-बड़ा आदमी आज अपने घर में एक टी.वी. अवश्य रखता है।
टेलीविजन मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है। नृत्य, संगीत, नाटक, फिल्म के साथ-साथ खेल जगत की घटनाओं को भी आप घर बैठे देख सकते हैं। दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाली गतिविधि से आप टी वी के जरिए परिचित हो सकते हैं।
विदेशी टी.वी. चैनलों का दुष्प्रभाव
टेलीविजन कला, संस्कृति का वाहक भी है, किन्तु दूसरी ओर आज हमारे घरों में टी.वी. चैनलों का प्रकोप इस कदर छाया हुआ है कि लगता है कि यह सोची-समझी साजिश के अन्तर्गत हमारे देश पर सांस्कृतिक हमला किया जा रहा है।
एम टी.वी., जी टी.वी., स्टार प्लस. कई चैनल ‘सेक्स एवं हिंसा‘ से युक्त जो कार्यक्रम दिखा रहे हैं, वे हमारे युवाओं को लोकप्रिय भले ही लगते हो, किन्तु ये कार्यक्रम उन पर कुछ बुरा प्रभाव डाल रहे है।
जब आप पूरे दिन सेक्स के खुले प्रदर्शन को टी वी पर देखेंगे, जब पॉप संगीत एवं नृत्य के अश्लील कार्यक्रम से आपकी नजर नहीं हटेगी तो निश्चित रूप से उसका प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ेगा और अन्ततः हमारे मन में दूषित भावनाएं उत्पन्न होंगी।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया का प्रभाव
हमारे देश भारत के मुख्य धारा के न्यूज चैनल पैसों के लालच में (जैसे आज तक, एबीपी, इंडिया ग्रुप आदि) मुख्य खबरों को ना दिखाकर सिर्फ भौतिक, वासना से युक्त युवाओं को दिग्भ्रमित करने वाली खबरे ही दिखाते हैं।
कुछ न्यूज चैनल इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं। जैसे – NDTV को सच का पर्दाफास करने के लिए बीजेपी (जो एक राजनीतिक पार्टी है) सरकार ने एक दिन के लिए ब्लाक कर दिया था। जो भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए बहुत ही दुखद है।
भारत के कुछ अच्छे और सच्चे, शालीनता से युक्त, सेक्सी मीडिया (रवीश की भाषा में – गोदी मीडिया) से दूर पत्रकारमें से रवीश कुमार जी से आप परिचित होंगे। जिन्हे हाल ही में 2019 का रेमन मैग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।
अब आज भारत के लोग धीरे धीरे इस बिकाऊ मीडिया को छोड़ इंटरनेट पर शिफ्ट होने लगे है, लोग स्मार्ट टीवी लगवाने लगे हैं, स्मार्ट टीवी इंटरनेट की पूरी दुनिया होती है जैसे यूट्यूब, नेत्फ़्लिक्स, आदि। इंटरनेट दुनिया का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म YouTube है, जो लोगो को रोजगार भी देता है तथा स्वतंत्र पत्रकारिता का मौका भी।
देश के अच्छे कलाकार जिन्हे आर्थिक अभाव में अपनी कला के प्रदर्शन का मौका नहीं मिल पाता था, आज YouTube ने उनके लिए यह संभव कर दिया है।
विज्ञापन और टेलीविजन
आज के युग में विज्ञापनों का विशेष महत्व है। लोकप्रिय कार्यक्रमों के बीच में विज्ञापन देकर कम्पनियां अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाती हैं। ये विज्ञापन फिल्में भी प्रायः शिष्टता एवं अश्लीलता
की सीमा को पार कर जाती हैं।
कई विज्ञापनों को देखकर बच्चे इतने प्रभावित हो जाते हैं कि वे बिना जाने-समझे वही चीज लाने की फरमाइश मां-बाप से करने लगते हैं।
डब्लू. डब्लू. एफ. के अन्तर्गत दिखाई जाने वाली फ्रीस्टाइल कुश्तियां हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं। युवाओं और बच्चों में ये कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय हैं। वे इस देखते ही नहीं अपितु उसे अपने जीवन में अपनाकर हिंसावृत्ति से लोगों के भीतर निहित सम्वेदना एवं कोमलभाव नष्ट होते जा रहे हैं।
दूरदर्शन से हानियां
दूरदर्शन से जहां बहुत लाभ हैं वहां इससे अनेक हानियां भी हैं। बच्चों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे इस प्रकार के कार्यक्रम देखें, परन्तु इसे रोकने की कोई
साधन नहीं है। आप यदि अपना टी.वी. बन्द कर देंगे तो बच्चे की नाराजगी झेलेंगे और यह भी हो सकता है कि वह पड़ोसी के घर जाकर उस कार्यक्रम का आनन्द लें।
विदेशी चैनलों पर शराब, सिगरेट और अन्य नशीले पदार्थो के विज्ञापनों की भरमार रहती है। इसका देर-सवेर प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर अवश्य पड़ता है। विशेष रूप से बच्चे का कच्चा मस्तिष्क इससे अधिक प्रभावित होता है।
जब बच्चे कोई लोकप्रिय टी.वी. चैनल देख रहे हों तो आप उन्हें कोई अन्य कार्य करने के लिए नहीं कह सकते। इस समय वे आपकी अवहेलना कर सकते हैं। यही नहीं, अपितु कई घरों में तो इस बात पर झगड़े तक होने लगे हैं कि कौन-सा चैनल देखा जाए। एक सदस्य दूरदर्शन के ‘समाचार’ सुनना चाहता है दूसरा उसी समय प्रसारित होने वाला लोकप्रिय धारावाहिक ‘अमानत’ देखना चाहता है, बच्चे चाहते हैं कि ‘कार्टून फिल्में‘ देखी जाएं और मां चाहती है कि ‘जी सिनेमा’ पर चलने वाली फिल्म का आनन्द लिया जाए, पिताजी की आकांक्षा है कि हम तो ‘डिस्कवरी चैनल’ देखकर ज्ञान बढ़ाएंगे। अब किसकी मांग मानी जाए टी.वी. एक है, कार्यक्रम अनेक।
विदेशी चैनलों का सांस्कृतिक हमला
आज इन विदेशी चैनलों ने हमारी संस्कृति पर हमला किया हुआ है। लोग भारतीयता एवं भारतीय संस्कारों को भूलकर विदेशी सभ्यता एवं संस्कृति के रूप में रंगते जा रहे हैं। चारों ओर एक अन्धी दौड़ चल रही है जिसका समापन कहां होगा, किसी को नहीं पता। टी. वी. ने हमारी सामाजिकता को समाप्त कर दिया है।
आज किसी के पास समय नहीं है कि कहीं जाकर किसी के पास बैठे पहले लोग एक दूसरे के पास बैठकर एक-दूसरे का सुख-दुख बांटते थे, परन्तु इस टी.वी. और उसके निरन्तर चलने वाले कार्यक्रमों ने लोगों को घर की चारदीवारी में कैद कर दिया है। बच्चों की पढ़ाई चौपट हो रही है। अश्लील एवं हिंसक कार्यक्रमों ने हमारे नैतिक मूल्यों को नष्ट किया है।
देर रात को दिखाए जाने वाले कार्यक्रम एक ओर तो हमारी मानसिकता प्रभावित कर रहे हैं तो दूसरी ओर रात्रि जागरण के कारण तनाव, रक्तचाप मधुमेह जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।
यद्यपि विदेशी चैनलों में कुछ ज्ञानवर्द्धक चैनल भी हैं यथा डिस्कवरी चैनल, नेशनल ज्योग्राफिक चेनल किन्तु अधिकांश चैनलों के कार्यक्रम सैक्स प्रधान, विदेशी संस्कृति के पोषक एवं मद्यपान और हिंसा को बढ़ावा देने वाले हैं।
अतः आज इस बात की महती आवश्यकता है कि सरकार की ओर से कानून बनाकर उपग्रहों के माध्यम से फैलने वाले इस सांस्कृतिक प्रदूषण को रोकने का कानूनी उपाय किया जाए। सेन्सर किए हुए कार्यक्रम ही इन चैनलों पर दिखाए जाएं, इसकी व्यवस्था सरकार को सुनिश्चित करनी होगी।
उपसंहार
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विदेशी टी.वी. चैनलों का दुष्प्रभाव ही हमारे समाज पर अधिक पड़ रहा है। अतः सरकारी प्रयासों के द्वारा इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता आज हर जिम्मेदार नागरिक अनुभव कर रहा है।
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