संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) – Sanskrit Grammar – संस्कृत

संस्कृत भाषा का इतिहास व उद्गम

Sanskrit Vyakaran or Sanskrit Grammar
Sanskrit Vyakaran

संस्कृत (Sanskrit) भारतीय उपमहाद्वीप की एक धार्मिक भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा हैं।

आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान ) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं।

Sanskrit: (संस्कृतम्) is a language of ancient India with a documented history of about 3,500 years. It is the primary liturgical language of Hinduism; the predominant language of most works of Hindu philosophy as well as some of the principal texts of Buddhism and Jainism. Sanskrit, in its various variants and dialects, was the lingua franca of ancient and medieval India. In the early 1st millennium CE, along with Buddhism and Hinduism, Sanskrit migrated to Southeast Asia, parts of East Asia and Central Asia, emerging as a language of high culture and of local ruling elites in these regions.

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संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran)

Sanskrit Grammar (संस्कृत व्याकरण) : संस्कृत व्याकरण की उत्पत्ति वेदों से हुई मानी जाती है, इसीलिए संस्कृत व्याकरण को ‘वेदांग‘ भी कहा जाता है। अतः संस्कृत के व्याकरण की परंपरा बहुत प्राचीन रही है। आचार्य पाणिनी द्वारा लिखित ‘अष्टाध्यायी‘ संस्कृत व्याकरण का आधार ग्रंथ है। संस्कृत भाषा को सीखने के लिए इसका अध्ययन किया जाता हैं।

संस्कृत भाषा

संस्कृत भारत की एक प्राचीन भाषा है जिसका समृद्ध इतिहास और परंपरा है। इसे व्याकरण और वाक्य-विन्यास की अत्यधिक विकसित प्रणाली के साथ दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे जटिल भाषाओं में से एक माना जाता है। “संस्कृत” शब्द की उत्पत्ति “सम् स् कृ त” से हुई है, जिसका अर्थ है “परिष्कृत” या “परिमार्जित” भाषा।

भाषा विकास के समय इसके व्याकरण का भी निर्माण किया गया। संस्कृत भाषा के व्याकरण की उत्पत्ति का क्रम निम्न है:-

वेद ⇒ आरण्यक ⇒ उपनिषद् ⇒ ब्राह्मण ⇒ वेदांग ⇒ व्याकरण।

वेद के हाथ, पैर, मुख, और नेत्र किसे कहा गया है?

वेद का मुख ⇒ व्याकरण,
वेद का पैर ⇒ छंद,
वेद का नेत्र ⇒ ज्योतिष,
वेद का हाथ ⇒ कल्प।

संस्कृत व्याकरण का आधार ग्रन्थ पाणिनि द्वारा लिखित ‘अष्टाध्यायी‘ है। अष्टाध्यायी में आठ अध्याय और प्रत्येक अध्याय में 4 पाद या चरण हैं। अष्टाध्यायी में कुल 32 चरण हैं। अष्टाध्यायी में लगभग 4000 में 4 कम अर्थात “3996 सूत्र” हैं।

अष्टानां अध्यानां समाहारः (अष्टाध्यायी) – इसमें “द्विगु समास” है।

अष्टाध्यायी: अष्टाध्यायी “महर्षि पाणिनि” की रचना है। पाणिनि के पिता का नाम पाणिन तथा माता का नाम दाक्षी और ये शालातुर, पर्णदेश के रहने वाले थे। पर्णदेश का मतलब पकिस्तान होता है। महर्षि पाणिनि शिव के उपासक थे इसलिए इन्हें शैव कहा जाता है।

त्रिमुनि: पाणिनि, कात्यायन, और पतंजलि को संयुक्त रूप से विद्वान त्रिमुनि कहते हैं।

पाणिनि ⇒ अष्टाध्यायी,
कात्यायन ⇒ वार्तिक,
पतंजलि ⇒ महाभाष्य।

सिद्धांत कौमुदी: ‘लघु सिद्धांत कौमुदी’ अष्टाध्यायी पर आधारित है, लघु सिद्धांत कौमुदी के लेखक वरदराजाचार्य जी हैं। तथा इनके गुरु “भट्टोजी दीक्षित” जिनकी रचना सिद्धांत कौमुदी हैं। वरदराजाचार्य ने तीन पुस्तकें लिखी हैं- लघु सिद्धांत कौमुदी, मध्य सिद्धांत कौमुदी, सार सिद्धांत कौमुदी।

भट्टोजी दीक्षित ⇒ सिद्धांत कौमुदी,
वरदराजाचार्य ⇒ लघु सिद्धांत कौमुदी, मध्य सिद्धांत कौमुदी, सार सिद्धांत कौमुदी।

लघु सिद्धांत कौमुदी में सरस्वती की वन्दना की गई है:-

नत्वाम् सरस्वती देवीं,
शुद्धां गुन्यां करोम्यहम्
पाणिनीय प्रवेशाय्
लघु सिद्धान्त कौमुदीं।

वर्ण विभाग

संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर, 33 व्यंजन और 4 आयोगवाह ऐसे कुल मिलाकर के 50 वर्ण हैं । संस्कृत व्याकरण में स्वर को ‘अच्’ और ब्यंजन को ‘हल्’ कहते हैं । अच् – 13, हल् – 33, आयोगवाह – 4…और अधिक पढ़े!

  • अच् = 13 (अ, आ, इ, ई, ऋ, ॠ, लृ, उ, ऊ, ए, ऎ, ओ, औ)
  • हल् = 33 (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्, च्, छ्, ज्, झ्, ञ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्, त्, थ, द्, ध्, न्, प्, फ्, ब्, भ्, म्, य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह्)
  • आयोगवाह = 4 (अनुस्वार, विसर्ग, जीव्हामूलीय, उपध्मानीय)

संस्कृत में प्रत्येक वर्ण, स्वर और व्यंजन के संयोग से बनता है, जैसे कि “क” यानिकी क् + अ = क। स्वर सुर/लय सूचक होता है, और व्यंजन शृंगार सूचक

माहेश्वर सूत्र – संस्कृत व्याकरण

माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि) को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिङ्ग इत्यादि तथा…Read More

महेश्वर सूत्रों की कुल संख्या 14 है जो इस प्रकार हैं-

  1. अ, इ ,उ ,ण्।
  2. ॠ ,ॡ ,क्,।
  3. ए, ओ ,ङ्।
  4. ऐ ,औ, च्।
  5. ह, य ,व ,र ,ट्।
  6. ल ,ण्
  7. ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म्।
  8. झ, भ ,ञ्।
  9. घ, ढ ,ध ,ष्।
  10. ज, ब, ग ,ड ,द, श्।
  11. ख ,फ ,छ ,ठ ,थ, च, ट, त, व्।
  12. क, प ,य्।
  13. श ,ष ,स ,र्।
  14. ह ,ल्।

प्रत्याहारमाहेश्वर सूत्रों की व्याख्या – संस्कृत व्याकरण

महेश्वर सूत्र 14 है। इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, महर्षि पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप में ग्रहण करते हैं। माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। Read More!

पद – सार्थक शब्द 

सार्थक शब्दो के समूह को ही पद कहा जाता है। संस्कृत मे सार्थक शब्द दो प्रकार के होते है-

  1. सुबंत
  2. तिड्न्त

सुबंत प्रकरण

संज्ञा और संज्ञा सूचक शब्द सुबंत के अंतर्गत आते है । सुबंत प्रकरण को व्याकरण मे सात भागो मे बांटा गया है – नाम, संज्ञा पद, सर्वनाम पद, विशेषण पद, क्रिया विशेषण पद, उपसर्ग, निपात।…और अधिक पढ़े।

विभक्तियों के रूपों का पदक्रम:

विभक्ति एकवचन द्विवचन वहुवचन्
प्रथमा अ: आ: (जस् )
द्वतीया अम् औट् आ: (शस् )
त्रतीया आ (टा) भ्याम् भि: (भिस् )
चतुर्थी ए (ङे ) भ्याम् भ्य: (भ्यस् )
पञ्चमी अ: (ड़स् ) भ्याम् भ्य: (भ्यस् )
षष्ठी अ: ओ: (ओस् ) आम्
सप्तमी इ (डि.) ओ: (ओस् ) सु (सुप् )

निम्नलिखित स्वरान्त, व्यञ्जनान्त एवं सर्वनाम शब्दों के शब्द रूप महत्वपूर्ण  हैं –

और अधिक पढ़ें: शब्द रूप

तिड्न्त प्रकरण

क्रिया वाचक प्रकृति को ही धातु (तिड्न्त ) कहते है। जैसे : भू, स्था, गम् , हस् आदि। संस्कृत में धातुओं की दस लकारे होती है।

लकार

संस्कृत में धातुओं की 10 लकारें निम्न हैं-

  1. लट् लकार (Present Tense, वर्तमान काल), जैसे- रामः खेलति। राम खेलता है।
  2. लोट् लकार (Imperative Mood, आज्ञार्थक), जैसे- भवान् गच्छतु। आप जाइए।, सः क्रीडतु। वह खेले।, त्वं खाद। तुम खाओ।, किमहं वदानि। क्या मैं बोलूँ?
  3. लङ्ग् लकार (Past Tense, अनद्यतन भूत काल), जैसे- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत्। आपने उस दिन भोजन पकाया था।
  4. विधिलिङ्ग् लकार (Potential Mood, चाहिए के अर्थ में), जैसे- भवान् पठेत्। आपको पढ़ना चाहिए।, अहं गच्छेयम्। मुझे जाना चाहिए।
  5. लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic, अनद्यतन भविष्यत् काल), जैसे- सः परश्वः विद्यालयं गन्ता। वह परसों विद्यालय जायेगा।
  6. लृट् लकार (Second Future Tense, सामान्य भविष्य काल) जैसे- रामः इदं कार्यं करिष्यति। राम यह कार्य करेगा।
  7. लृङ्ग् लकार (Conditional Mood, हेतु हेतुमद भूतकाल), जैसे- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत्। यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।
  8. आशीर्लिन्ग लकार (Benedictive Mood, आशीर्वादात्मक), जैसे- भवान् जीव्यात् आप जीओ।, त्वं सुखी भूयात्। तुम सुखी रहो।
  9. लिट् लकार (Past Perfect Tense, अनद्यतन परोक्ष भूतकाल), जैसे- रामः रावणं ममार। राम ने रावण को मारा।
  10. लुङ्ग् लकार (Perfect Tense, सामान्य भूत काल), जैसे- अहं भोजनम् अभक्षत्। मैंने खाना खाया।

ये एक प्रकार के दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन सभी लकारों के प्रारंभ में ‘ल’ वर्ण होने के कारण इन्हें ‘लकार‘ कहते हैं। जिन लकारों के अंत में ‘ट्‘ वर्ण प्रयुक्त हुआ है उन्हें ‘टित्‘ और जिनके अंत में ‘‘ उन्हें ‘ङित्‘ लकार कहा जाता है। संस्कृत व्याकरण में जब धातुओं से पिबति, खादति आदि रूप बनाए जाते हैं तब इन टित् और ङित् प्रत्यय शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।

इन 10 लकारों के अतिरिक्त एक 11वां लकार और होता है “लेट लकार” जो केवल वेदों में और ईश्वरीय कार्यों में प्रयुक्त होता है, क्यूंकि ईश्वर काल से परे हैं।

निम्न पठ् धातु रूप लट् लकार का उदाहरण देखिए-

dhatu example

महत्वपूर्ण  धातु रूप निम्नलिखित हैं –

और अधिक पढ़ें: – Dhatu Roop in Sanskrit

णिजन्त प्रकरण – संस्कृत में प्रेरणार्थक क्रिया

जब कर्ता किसी कार्य को स्वयं ना करके किसी अन्य को करने को कहता है तब उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते है। जैसे – राम: प्रखरं ग्रहम् प्रेषति। – राम प्रखर को घर भेजता है।…और अधिक पढ़े।

तिड्, णिज् के अतिरिक्त संस्कृत में क्रियाओ के तीन रूप और होते है –

  1. सनन्त,
  2. यङन्त और
  3. नाम धातु

संस्कृत लिंग – संस्कृत में लिंग की पहिचान करना

लिंग का अर्थ है-चिह्न। जिनके द्वारा यह पता चले कि अमुक शब्द संज्ञा स्त्री जाति के लिए और अमुक पुरुष जाति के लिए प्रयुक्त हुआ है, उसे लिंग कहते हैं। संस्कृत भाषा में लिंग का ज्ञान हिन्दी भाषा के आधार पर नहीं हो सकता क्योंकि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जो हिन्दी में पुल्लिंग हैं… देखें- संस्कृत लिंग

संस्कृत में तीन लिंग होते हैं-

  1. पुल्लिंग– ऐसे शब्द जिनसे पुरुष जाती का बोध हो, उन्हे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे रामः, बालकः, सः आदि।
    • स: बालकः अस्ति।
    • तौ बालकौ स्तः।
    • ते बालकाः सन्ति।
  2. स्त्रीलिंग– ऐसे शब्द जिनसे स्त्री जाति का बोध होता है, उन्हें स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे रमा, बालिका, सा, सीता आदि।
    • सा बालिका अस्ति।
    • ते बालिके स्तः।
    • ताः बालिकाःसन्ति।
  3. नपुंसकलिंग– ऐसे शब्द जिनसे णा ही स्त्री और नया ही पुरुष का बोध उन्हें नपुंसकलिंग कहा जाता है। इन्हें जड़ शब्द भी कहते हैं। जैसे: फलम् , गृहम, पुस्तकम , तत् आदि।
    • तत् फलम् अस्ति।
    • ते फले स्त:।
    • तानि फलानि सन्ति ।

वचन – संस्कृत व्याकरण में वचन

संस्कृत व्याकरण में तीन वचन होते हैं-

  1. एकवचन
  2. द्विवचन
  3. बहुवचन

जहां संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से संख्या के एक होने का ज्ञान होता है वहाँ ‘एकवचन‘, जहां दो होने का वहाँ ‘द्विवचन‘ और दो से अधिक का बोध होने पर ‘बहुवचन‘ का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

  • एक वचन– एकः बालक: क्रीडति।
  • द्विवचन– द्वौ बालकौ क्रीडतः।
  • बहुवचन– त्रयः बालकाः क्रीडन्ति।

पुरुष (person) – संस्कृत में पुरुष

संस्कृत व्याकरण में तीन पुरुष होते हैं-

  1. प्रथमः पुरुषः / उत्तम पुरुषः (First person)
  2. मध्यमः पुरुषः (Second person)
  3. अन्य पुरुषः (Third person)

प्रथम पुरुष (अस्मद्), मध्यम पुरुष (युष्मद्) और अन्य पुरुष (तद्) के एकवचन, द्विवचन और बहुवचन प्रथमा विभक्ति रूप-

पुरुषः एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
प्रथमः पुरुषः अहम्(मैं) आवाम्(हम दोनों) वयम्(हम सब)
मध्यमः पुरुषः त्वम्(तू) युवाम्(तुम दोनों) यूयम्(तुम सब)
अन्य पुरुषः स:/सा/तत् (वह) तौ/ते/ते (वे दोनों) ते/ता:/तानि (वे सब)
  • प्रथम और माध्यम पुरुष में लिंग भेद नहीं होता है।
  • जबकि अन्य पुरुष में पुल्लिंग एकवचन शब्द के लिए ‘स:‘ , स्त्रीलिंग एकवचन के लिए ‘सा‘ और नपुंसकलिंग एकवचन के लिए ‘तत्‘ का प्रयोग होता है।

संस्कृत में कारक

व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं। । कारक यह इंगित करता है कि वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का काम क्या है। कारक कई रूपों में देखने को मिलता है। संस्कृत व्याकरण में कारक पढ़ने के लिए संस्कृत कारक पर क्लिक करें।

7.अधिकरण कारकमें, परछात्राः विद्यालये पठन्ति ।

# कारक चिन्ह(परसर्ग ) वाक्य
1. कर्त्ता कारक ने रामः पठति।
2. कर्म कारक को अंशु फलं खादति।
3. करण कारक से, द्वारा (साधन के लिए) रामः वाणेन रावण हतवान्।
4. सम्प्रदान कारक को, के लिए सीता ब्राह्मणाय भोजनं पचति।
5. अपादान कारक से (जुदाई के लिए) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति ।
6. संबंध कारक का-के-की, ना-ने-नी, रा-रे-री इदं रामस्य गृहम् अस्ति।
7. अधिकरण कारक में, पर छात्राः विद्यालये पठन्ति ।
7. सम्बोधन कारक हे!,भो!,अरे! हे रामः! अहं निर्दोषः।

संस्कृत में संधि 

दो वर्णो के पास-पास आने से उनमें जो परिवर्तन या विकार होता है उसे संस्कृत व्याकरण में सन्धि कहते है। जैसे-

  • हिम + आलयः = हिमालयः
  • रमा + ईशः = रमेंशः
  • सूर्य + उदयः = सूर्योदयः

संस्कृत भाषा में संधियो के तीन प्रकार होते है-

  1. स्वर संधि – अच् संधि
  2. व्यंजन संधि – हल् संधि
  3. विसर्ग संधि

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे-

  • हिम+आलय= हिमालय।
  • रवि + इंद्र = रवींद्र
  • नारी + इंदु = नारींदुई
  • भानु + उदय = भानूदय
  • भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

व्यंजन का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते है। जैसे-

  • उत + उल्लास = उल्लास
  • अप + ज = अब्ज

विसर्ग का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है ,उसे विसर्ग संधि कहते है। जैसे-

  • निः + चय = निश्चय
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
  • निः + छल = निश्छल

संस्कृत में समास

जब अनेक पद अपने जोड़नेवाले विभक्ति-चिह्नादि को छोड़कर परस्पर मिलकर एक पद बन जाते हैं, तो उस एक पद बनने की क्रिया को ‘समास’ एवं उस पद को संस्कृत में ‘सामासिक’ या समस्तपद’ कहते है।

संस्कृत में मुख्य रूप से चार प्रकार के समास होते हैं-

  1. अव्ययीभाव समास
  2. तत्पुरुष समास
    1. कर्मधारय समास
    2. द्विग समास
    3. नञ् समास
  3. द्वंद्व समास
  4. बहुब्रीह समास

संस्कृत व्याकरण में समास पढ़ने के लिए “संस्कृत समास” पर क्लिक करें।

संस्कृत में उपसर्ग

संस्कृत में बाइस (22) उपसर्ग हैं। प्र, परा, अप, सम्‌, अनु, अव, निस्‌, निर्‌, दुस्‌, दुर्‌, वि, आ (आं‌), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत् /उद्‌, अभि, प्रति, परि तथा उप। इनका अर्थ इस प्रकार है… और अधिक पढ़े

संस्कृत में प्रत्यय

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। संस्कृत में प्रत्यय पांच प्रकार के होते हैं- सुप् , तिड् , क्रत् , तध्दित् और स्त्री।

  1. सुप् प्रत्यय (सुबन्त प्रकरण) – ये संज्ञा पदों में नाम विभक्ति वचन आदि के बारे में बताते है।
  2. तिड् प्रत्यय (तिड्न्त प्रकरण) – ये धातुओं के काल पुरुष आदि के बारे में बताते है।
  3. कृत् प्रत्यय – ये धातुओं के नामपद (संज्ञापद) बनाते हैं।
  4. तध्दित् प्रत्यय – ये नामपदों के विभिन्न रूपों के प्रयोग बताते हैं।
  5. स्त्री प्रत्यय – ये नामपदों के स्त्रीवाचक रूप बताते हैं।

संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय के उदाहरण :

  • भू + क्त = भूत:
  • भू + तव्य = भवितव्य
  • भू + तुमुन् = भवितुम्

संस्कृत में अव्यय

भाषा के वे शब्द अव्यय (Indeclinable या inflexible) कहलाते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नहीं होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। अव्यय का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो व्यय न हो।’…और अधिक पढ़े

संस्कृत व्याकरण में चार प्रमुख अव्यय हैं-

  1. क्रियाविशेषण (Adverb)
  2. समुच्चयबोधक अव्यय (Conjunction)
  3. सम्बन्धबोधक अव्यय (Preposition)
  4. विस्मयादिबोधक अव्यय (Interjection)

संस्कृत में वाच्य

वाच्य क्रिया के उस रूप को कहते है जिससे पता चलता है कि वाक्य में क्रिया के द्वारा किसके विषय में कहा गया है। (विस्तार से पढ़ें – संस्कृत में वाच्य।)

वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. कर्तृवाच्य (कर्ता-प्रधान वाक्य): कर्ता प्रथमा विभक्ति का होता है। जैसे- “रामः श्लोकं पठति।” यहाँ रामः कर्ता है, जो प्रथमा विभक्ति में है।
  2. कर्मवाच्य (कर्म-प्रधान वाक्य): कर्ता तृतीया विभक्ति का होता है। जैसे- “छात्रेण श्लोकः पठ्यते।” यहाँ छात्रेण कर्ता है, जो तृतीया विभक्ति में है।
  3. भाववाच्य (क्रिया/भाव प्रधान वाक्य): कर्ता प्रायः प्रथमा विभक्ति का होता है। कर्मवाच्य और भाववाच्य में क्रियारूप एक जैसे रहते हैं।
कर्तृवाच्य भाववाच्य
त्वं वर्धस्व त्वया वर्ध्यताम्
भवती नृत्यतु भवत्या नृत्यताम्
भवत्यः उत्तिष्ठन्तु भवतीभिः उत्थीयताम्
भवत्यौ हसताम् भवतीभ्यां हस्यताम्
भवन्तः न सिद्यन्ताम् भवद्भिः न खिद्यताम्
भवन्तौ रुदिताम् भवद्भयां रुद्यताम्
भवान् तिष्ठतु भवता स्थीयताम्
यूयं संचरत युष्माभिः संचर्यताम्
विमानम् उड्डयताम् विमानेन उड्डीयताम्
सर्वे उपविशन्तु सर्वेः उपविश्यताम्

संस्कृत के पर्यायवाची शब्द

हिन्दी व्याकरण की तरह ही संस्कृत व्याकरण में पर्यायवाची होते हैं। ये पर्यायवाची शब्द सभी बोर्ड परीक्षाओ और अन्य हिन्दी के पाठ्यक्रम सहित TGT, PGT, UGC -NET/JRF, CTET, UPTET, DSSSB, GIC and Degree College Lecturer, M.A., B.Ed. and Ph.D आदि प्रवेश परीक्षाओं में पूछे जाते है।

संस्कृत में विलोमार्थी शब्द

हिन्दी व्याकरण की तरह संस्कृत व्याकरण में भी विलोम शब्द होते हैं। इन विलोम शब्दों में ज्यादा अंतर नहीं होता है। इस प्रष्ठ पर कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत विलोम शब्द दिये गए हैं।

समोच्चरित शब्द एवं वाक्य प्रयोग

जो शब्द सुनने और उच्चारण करने में समान प्रतीत हों, किन्तु उनके अर्थ भिन्न -भिन्न हों , वे श्रुतिसमभिन्नार्थक / समोच्चरित शब्द कहलाते हैं !

संस्कृत में रस – काव्य सौंदर्य

‘स्यत आस्वाद्यते इति रसः’- अर्थात जिसका आस्वादन किया जाय, सराह-सराहकर चखा जाय, ‘रस’ कहलाता है। Read in Deatail –संस्कृत में रस

संस्कृत में अलंकार – काव्य सौंदर्य

‘अलंकार शब्द’ ‘अलम्’ और ‘कार’ के योग से बना है, जिसका अर्थ होता है- आभूषण या विभूषित करनेवाला । शब्द और अर्थ दोनों ही काव्य के शरीर माने जाते हैं अतएव, वाक्यों में शब्दगत और अर्थगत चमत्कार बढ़ानेवाले तत्व को ही अलंकार कहा जाता है। Read in Deatail –संस्कृत में अलंकार

संस्कृत व्याकरण में पाणिनी द्वारा प्रयुक्त शब्द

संस्कृत व्याकरण की शब्दावली और पाणिनी द्वारा प्रयुक्त संस्कृत व्याकरण के प्रमुख शब्द निम्नलिखित हैं-

संस्कृत शब्द पाणिनि द्वारा प्रयुक्त शब्द अंग्रेजी तुल्य
व्यञ्जन हल् Consonant
आज्ञा लोट् Command Mood
संकेत लृङ् Conditional Mood
अनद्यतन लुट् Distant Future Tense
भूत लुङ् Recent Past Tense
परोक्षभूत लिट् Distant Past Tense
विधि लिङ् Option Mood
वर्तमान लट् Present Tense
अनद्यतनभूत लङ् Ordinary Past Tense
मध्यमः मध्यमः Second Person
पुरुषः पुरुषः Person
संध्यक्षर एच् Compound Vowel
उपसर्ग उपसर्ग Prefix
अव्यय अव्यय Uninflected Word
स्वरः अच् Vowel
विशेषण × Adjective
क्रियाविशेषण × Adverb, Agreement
महाप्राण × Aspirated
आत्मनेपद × Self-Oriented Verbs
विभक्तिः × Case
प्रथमा × Case 1 (Subject)
द्वितीया × Case 2 (Object)
तृतीया × Case 3 (“With”/”Agent”)
चतुर्थी × Case 4 (“For”)
पञ्चमी × Case 5 (“From”)
षष्ठी × Case 6 (“Of”)
सप्तमी × Case 7 (“In”)
संबोधनम् × Case 8 (Address)
णिजन्त × Causal Verb
समास × Compound (Word)
सन्नन्त × Desiderative
अभ्यास × Doubling
द्विवचन × Dual (Number)
द्वन्द्व × ×
स्त्रीलिङ्ग × Feminine Gender
उत्तमः × First Person
लिङ्ग × Gender
क्त्वान्त × Gerund, Grammatical Case
व्याकरण × Grammar
तालु × Hard Palate
गुरु × Heavy (Syllable)
यणन्त × Intensive
लघु × Light (Syllable)
ओष्ठ × Lip
दीर्घ × Long Vowel
पुंलिङ्ग × Masculine Gender
गुण × Medium Vowel
अनुनासिक × Nasal Sound
नपुंसकलिङ्ग × Neuter Gender
सुप् × Noun Endings
नामधातु × Noun From Verb
सुबन्त × Nouns
वचन × Number
कर्मन् × Object
भविष्यन् × Ordinary Future Tense
परस्मैपद × Others-Oriented Verbs
बहुवचन × Plural (Number)
स्थान × Point Of Pronunciation
प्रादि × Prefix
कृत् × Primary (Suffix)
सर्वनामन् × Pronoun
ऊष्मन् × “S”-Sound
तद्धित × Secondary (Suffix)
अन्तःस्थ × Semivowel
ह्रस्व × Short Vowel
समानाक्षर × Simple Vowel
एकवचनम् × Singular (Number)
कण्ठ × Soft Palate
प्रातिपदिक × Stem (Of A Noun)
अङ्ग × Stem (Of Any Word)
स्पर्श × Stop
वृद्धि × Strong Vowel
कर्तृ × Subject
प्रत्यय × Suffix
अक्षर × Syllable
प्रथमः × Third Person
दन्त × Tooth
उभयपद × ×
अल्पप्राण × Unaspirated
अघोष × Unvoiced
गण × Verb Class
तिङ् × Verb Ending
धातु × Verb Root, Base Form
तिङन्त × Applied Verb Forms
घोषवत् × Voiced

संस्कृत में अनुवाद करने के कुछ टिप्स

Learn Sanskrit Translation: संस्कृत भाषा के सरल वाक्यो का अनुवाद करना सीखें- Sanskrit Translation

संस्कृत के प्रमुख साहित्य एवं साहित्यकार

संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है।…Sanskrit Ke Important Granth/Sahitya

Sanskrit shlokas

प्राचीनकाल से लेकर आज तक संस्कृत के श्लोक हमारे जीवन के आधार बने हुए हैं। संस्कृत के श्लोक (Shlokas of Sanskrit) जीवन जीने के मूल्य, जीवन जीने की नीतियाँ तथा उनसे होने वाले लाभों को बताया गया है; जैसे– बिना नाविक के नाव तथा बिना पायलट के वायुयान दिशाहीन है वैसे ही संस्कृत में श्लोकों (Shlokas in Sanskrit) के अध्ययन तथा ज्ञान के अभाव में मानव जीवन दिशाहीन तथा भ्रमित-सा प्रतीत होता है। पढ़ें- सभी संस्कृत श्लोक

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