“पर उपदेश कुशल बहुतेरे” नामक निबंध के निबंध लेखन (Nibandh Lekhan) से अन्य सम्बन्धित शीर्षक, अर्थात “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” से मिलता जुलता हुआ कोई शीर्षक आपकी परीक्षा में पूछा जाता है तो इसी प्रकार से निबंध लिखा जाएगा। ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं।
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- अर्द्धाली का अर्थ
- उपदेश देना-सामान्य प्रवृत्ति
- आचरण की महत्ता
- कथनी-करनी में एकरूपता
- उपसंहार
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
प्रस्तावना
गोस्वामी तुलसीदास बहुत बड़े नीतिकार भी थे। इसका स्पष्ट प्रमाण उनके द्वारा रचित श्री रामचरितमानस है जिसमें नीति सम्बन्धी उपदेशों का विपुल भण्डार है। जीवन के मार्मिक अवसरों पर हमें अनायास मानस की कोई चौपाई स्मरण हो आती है। उनका काव्य फलक इतना व्यापक था कि शायद ही कोई क्षेत्र ‘मानस’ से अछूता रहा हो।
अर्द्धाली का अर्थ
प्रस्तुत अर्द्धाली श्री रामचरितमानस के लंकाकाण्ड में है। मेघनाद जब युद्ध में मारा गया तो मन्दोदरी एवं अन्य रानियां विलाप करने लगी। इस अवसर पर रावण ने उन्हें जगत की नश्वरता आदि के बारे में उपदेश देकर जीवन को क्षणभंगुर बताते हुए शोक न करने के लिए कहा। इसी अवसर पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है :
आपुन मंद कथा सुम पावन।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।
दूसरों को उपदेश देने में तो बहुत से लोग कुशल होते है, किन्तु स्वयं उन उपदेशों पर अमल करने वाले, उन उपदेशों को आचरण में उतारने वाले लोग अधिक नहीं होते।
उपदेश देना सामान्य प्रवृत्ति
दूसरों को उपदेश देना एक सामान्य प्रवृत्ति है। हम प्रायः अपने को श्रेष्ठ मानकर दूसरों को उपदेश देने लगते हैं और यह भूल जाते हैं कि जो उपदेश हम दूसरों को दे रहे हैं, क्या स्वयं भी उस प्रकार का आचरण करते हैं? दूसरों को उपदेश देकर हम प्रायः अपनी श्रेष्ठता, विद्वता की धाक जमाकर अपने अहम को संतुष्ट करना चाहते हैं साथ ही दूसरों को हीन सिद्ध करने की भावना भी इसके पीछे काम करती है। प्रायः देखा गया है कि जो जितना खोखला हाता है, वह उतने ही अधिक उपदेश देता है। अंग्रेजी में कहावत है:
आचरण की महत्ता
प्रभाव उपदेश का नहीं आचरण का पड़ता है। यदि कोई महात्मा लम्बे-चौड़े उपदेश प्रतिदिन देता है, किन्तु स्वयं उस पर आचरण अच्छा नहीं करता है, तो उसके उपदेशों का प्रभाव श्रोताओं पर नहीं पड़ेगा, किन्तु बिना एक शब्द कहे अच्छे आचरण के बल पर वह सबकी प्रभावित कर सकता है। इसीलिए सरदार पूर्णसिंह ने कहा है- ‘आचरण की भाषा शब्द रहित है‘।
सदाचरण बिना एक शब्द कहे हुए भी बहुत कुछ कह देता है। यदि कोई अध्यापक सच्चरित्र है, पक्षपात रहित है, नैतिक मूल्यों का पक्षधर है तो वह अपने इस आचरण से अपने विद्यार्थियों को जितना प्रभावित करेगा उतना लम्बे-चौड़े व्याख्यानों से नहीं कर सकता।
उपदेश से किसी का आचरण सुधर जाता, तो सब लोग अपने आचरण को सुधार लेते। जीवन के अरण्य में घुसे हुए व्यक्ति को सुनार की हथौड़ी की धीमी-धीमी पड़ने वाली चोटों के समान अपने आचरण को निरन्तर सुधारने का प्रयास करना चाहिए, तभी उसके व्यक्तित्व में आभूषण जैसी चमक आ जाती है।
कथनी और करनी में एकरूपता
जिन व्यक्तियों की कथनी-करनी में एकरूपता होती है, उन्हीं के उपदेश हमें प्रभावित करते हैं। शराब पीने वाला व्यक्ति दूसरों को मद्यपान की बुराइयां कैसे समझा सकता है? यदि शराब बुरी चीज है तो पहले उसका स्वयं परित्याग करो तब दूसरों को भी आप शराब न पीने का उपदेश दे सकते हैं।
पर यह नहीं हो सकता कि ‘आप गुरुजी बैगन खाएं, औरन कौं उपदेश दें‘। सिगरेट पीना, चाय पीना, नशा करना यदि बुरी आदतें हैं, तो पहले इनका अमल करना स्वयं छोड़े, फिर इन्हें छोड़ने का उपदेश देना आपको शोभा देगा।
वर्तमान समाज में तमाम ढोंगी महात्मा, साधु, समाज-सुधारक एवं धर्म-गुरु भरे पड़े हैं जिनकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर है। वे जनता को धन से दूर रहने, परिश्रम करने एवं नैतिक मूल्यों का पालन करने का उपदेश देते फिरते हैं पर स्वयं उनका जीवन वैभव एवं विलास से परिपूर्ण है।
वे स्वयं धन-सम्पत्ति के पीछे पागलों की तरह दौड़ रहे हैं, ऐशो आराम की जिन्दगी बिता रहे हैं और जनता से अपेक्षा करते हैं कि वह उनके उपदेशों पर अमल करे। अब तो राजनीति में भी इन ढोंगी साधु-महात्माओं का प्रवेश हो गया है।
उपसंहार
ढोंग एवं आडम्बर से समाज में मिथ्याचार पनपता है। इससे समाज का कल्याण नहीं हो सकता। जब तक समाज में बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण, नानक, गांधी जैसे लोग नहीं होंगे जिनकी कथनी एवं करनी में एकरूपता थी—तब तक समाज पर उपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अंग्रेजी में कहा गया है— Example is better than percept. – अर्थात् उपदेश से आचरण अधिक श्रेष्ठ है। व्यक्ति को उपदेश देने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए और जीवन में अच्छा आचरण करने की ओर प्रवृत्त होना चाहिए।
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