इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी (Indira Priyadarshini Gandhi) (उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917 – 31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार तीन कार्यकाल तक भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री रहीं। इसके बाद, चौथे कार्यकाल में 1980 से 1984 तक उन्होंने प्रधानमंत्री पद संभाला, जब तक कि उनकी राजनीतिक हत्या नहीं हो गई। वह भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं।
इंदिरा के जीवन की एक झलक: Indira Gandhi का संक्षिप्त परिचय
- पंडित नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था।
- अपनी स्कूली और विश्वविद्यालय शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय से विशिष्ट सम्मान भी मिला।
- 26 मार्च 1942 को उनकी शादी फिरोज गांधी से हुई, जिनसे उनके दो बेटे – राजीव गांधी और संजय गांधी हुए।
- 1955 में इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल हुईं और पार्टी के केन्द्रीय चुनाव में भाग लिया।
- 1958 में वे कांग्रेस के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड की सदस्य रहीं । 1956 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महिला विभाग तथा अखिल भारतीय युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय एकता परिषद की अध्यक्षता की ।
- 1959 में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं , इस पद पर वह 1960 तक रहीं और फिर जनवरी 1978 में दोबारा इस पद पर रहीं।
- 1964-1966 तक इंदिरा गांधी सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं। जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक और फिर 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984 तक वे भारत की प्रधानमंत्री रहीं ।
- जनवरी 1980 में उन्होंने योजना आयोग के अध्यक्ष का पद संभाला।
नाम | इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) |
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जन्म | 19 नवंबर 1917 |
जन्म स्थान | आनंद भवन, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश |
पिता | पंडित जवाहरलाल नेहरू |
माता | कमला नेहरू |
पति | फिरोज़ गांधी |
संतान | राजीव गांधी, संजय गांधी |
कार्य क्षेत्र | राजनीति और सामाजिक सेवा |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) |
पुरस्कार व सम्मान | भारत रत्न (1971), मैक्सिकन अकादमी अवार्ड, मदर्स अवार्ड, येल विश्वविद्यालय हाउलैंड मेमोरियल पुरस्कार, मरणोपरांत जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार आदि। |
प्रकाशित पुस्तकें | Safeguarding Environment, My Truth, On People and Problems, Eternal India आदि। |
निधन | 31 अक्टूबर 1984, नई दिल्ली |
स्मारक | शक्ति स्थल, दिल्ली |
Biography of Indira Gandhi in Hindi
इंदिरा गांधी का जीवन परिचय : इंदिरा की जीवनी
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को आनंद भवन, प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में हुआ था। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं। उनके दादा, मोतीलाल नेहरू, प्रसिद्ध वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने सेंट मेरी कान्वेंट (इलाहाबाद), लेकोले नोवेल (स्विट्जरलैंड), प्यूपिल्स ओन स्कूल (पुणे), विश्व-भारती (शांतिनिकेतन), और समरविल कॉलेज (ऑक्सफोर्ड) से शिक्षा प्राप्त की। शांतिनिकेतन में अध्ययन के दौरान वह रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन और शिक्षा विचारों से गहराई से प्रभावित हुईं।
Indira Gandhi: प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। उनके पिता, जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, जबकि उनकी माता कमला नेहरू सामाजिक कार्यों में सक्रिय थीं। विवाह के बाद उन्हें “गांधी” उपनाम फिरोज़ गांधी से मिला, हालांकि उनका महात्मा गांधी से कोई पारिवारिक संबंध नहीं था। उनके दादा, मोतीलाल नेहरू, प्रसिद्ध वकील और भारतीय राष्ट्रवादी थे।
1934-35 में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, इंदिरा ने शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां टैगोर ने उन्हें “प्रियदर्शिनी” नाम दिया। इसके बाद वे इंग्लैंड गईं, जहां ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में असफल होने के कारण कुछ समय ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में अध्ययन किया। 1937 में परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात फिरोज़ गांधी से होती रही, जिनसे उन्होंने 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में विवाह किया।
1941 में भारत लौटने के बाद, इंदिरा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गईं। 1950 के दशक में वे अपने पिता के प्रधानमंत्रित्व काल में उनकी अनौपचारिक सहयोगी के रूप में कार्य करती रहीं। नेहरू के निधन के बाद, 1964 में वे राज्यसभा सदस्य बनीं और लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री नियुक्त हुईं।
शास्त्री जी की आकस्मिक मृत्यु के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज की भूमिका से इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। उन्होंने आर्थिक नीतियों में वामपंथी दृष्टिकोण अपनाया और कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाया। 1971 में भारत-पाक युद्ध में निर्णायक जीत के बाद, देश में अस्थिरता बढ़ी, जिसके चलते 1975 में उन्होंने आपातकाल लागू किया। 1977 के चुनाव में पहली बार पराजय झेलने के बाद, 1980 में वे पुनः सत्ता में लौटीं। अपने अंतिम वर्षों में, वे पंजाब में अलगाववादियों से निपटने में व्यस्त रहीं, जिसके परिणामस्वरूप 1984 में उनके अंगरक्षकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई।
Indira Gandhi: भारतीय राजनीति में भूमिका और कैरियर
जैसा की ऊपर बताया जा चुका है कि इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के घर हुआ। वह उनकी एकमात्र संतान थीं। नेहरू परिवार की जड़ें कश्मीरी ब्राह्मण समुदाय से जुड़ी थीं। उनके दादा, मोतीलाल नेहरू, एक प्रतिष्ठित बैरिस्टर और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। जब इंदिरा का जन्म हुआ, उस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो चुके थे।
उनका बचपन चुनौतियों से भरा रहा। उनकी माँ अक्सर बीमार रहती थीं, जिससे इंदिरा पर आत्मनिर्भरता और संवेदनशीलता का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके पिता और दादा का राजनीतिक व्यस्तता के कारण घर में कम समय बिताना उनके लिए सामाजिक मेलजोल को कठिन बना देता था। यहां तक कि उनकी अपनी बुआओं, विशेष रूप से विजयलक्ष्मी पंडित के साथ भी मतभेद बने रहे, जो आगे चलकर राजनीतिक मतभेदों में परिवर्तित हो गए।
बचपन में ही इंदिरा ने ‘वानर सेना’ नामक एक युवा संगठन बनाया, जिसने विरोध प्रदर्शनों, झंडा जुलूसों और कांग्रेस के नेताओं के लिए गुप्त संदेशों के प्रसार में भूमिका निभाई। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, उन्होंने 1930 के दशक में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी दस्तावेज को पुलिस की नजरों से बचाकर अपने स्कूल बैग में छिपाकर बाहर निकाला था।
1936 में, उनकी माँ का तपेदिक से लंबी लड़ाई के बाद निधन हो गया, जब इंदिरा केवल 18 वर्ष की थीं। इसने उनके जीवन में एक स्थायी अस्थिरता ला दी। उन्होंने शांतिनिकेतन, बैडमिंटन स्कूल और ऑक्सफोर्ड सहित विभिन्न प्रतिष्ठित भारतीय और विदेशी संस्थानों में शिक्षा प्राप्त की।
1930 के दशक के अंत में, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सोमरविल कॉलेज में अध्ययन के दौरान, वे लंदन स्थित भारतीय स्वतंत्रता समर्थक संगठन ‘इंडियन लीग’ से जुड़ीं। इसी समय, उनकी मुलाकात पारसी कांग्रेस कार्यकर्ता फिरोज गांधी से हुई। कुछ वर्षों बाद, 16 मार्च 1942 को इलाहाबाद के आनंद भवन में एक ब्रह्म-वैदिक समारोह में दोनों ने विवाह कर लिया।
विवाह के तुरंत बाद, भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, और सितंबर 1942 में ब्रिटिश अधिकारियों ने इंदिरा को गिरफ्तार कर बिना किसी आरोप के हिरासत में डाल दिया। उन्होंने 243 दिन जेल में बिताए और 13 मई 1943 को रिहा हुईं। 1944 में उन्होंने राजीव गांधी और दो वर्ष बाद संजय गांधी को जन्म दिया।
1947 में भारत विभाजन की अराजकता के दौरान, इंदिरा गांधी ने शरणार्थी शिविरों के संगठन में मदद की और पाकिस्तान से आए लाखों विस्थापितों के लिए चिकित्सा सेवाएँ सुनिश्चित करने में योगदान दिया। यह उनके सार्वजनिक जीवन का पहला बड़ा अवसर था, जहाँ उन्होंने मानवीय सहायता कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।
बाद में, इंदिरा और फिरोज गांधी इलाहाबाद में बस गए, जहाँ फिरोज कांग्रेस पार्टी के समाचार पत्र और एक बीमा कंपनी से जुड़े। शुरूआती वर्षों में उनका वैवाहिक जीवन सहज था, लेकिन जब इंदिरा अपने पिता के पास नई दिल्ली चली गईं, तो उनके बीच दूरियां बढ़ने लगीं। प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू एकाकी जीवन जी रहे थे, और इंदिरा उनकी विश्वासपात्र, सचिव और देखभालकर्ता बन गईं। उनके बच्चे उनके साथ रहे, जबकि फिरोज़ से संबंध औपचारिक रूप से कायम रहा, लेकिन वे अलग-अलग रहने लगे।
1951 में भारत के पहले आम चुनावों के दौरान, इंदिरा ने अपने पिता और पति दोनों के चुनाव प्रचार का प्रबंधन किया। फिरोज़ ने रायबरेली से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के लिए नेहरू से सलाह नहीं ली थी। चुनाव जीतने के बाद, उन्होंने दिल्ली में अलग निवास का चयन किया। जल्द ही, उन्होंने राष्ट्रीयकृत बीमा उद्योग में एक बड़े घोटाले का खुलासा कर खुद को भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में स्थापित किया, जिससे नेहरू के एक करीबी सहयोगी और वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।
तनावपूर्ण परिस्थितियों में, इंदिरा और फिरोज़ का वैवाहिक संबंध औपचारिक रूप से अलग हो चुका था। हालांकि, 1958 में एक उपचुनाव के बाद, जब फिरोज को दिल का दौरा पड़ा, तो यह दोनों को फिर से करीब ले आया। इंदिरा कश्मीर में उनके स्वास्थ्य सुधार के दौरान उनके साथ रहीं। लेकिन 8 सितंबर 1960 को, जब इंदिरा अपने पिता के साथ विदेश यात्रा पर थीं, फिरोज गांधी का निधन हो गया।
Indira Gandhi: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष
1959 और 1960 में, इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा, क्योंकि वे मुख्य रूप से अपने पिता के सहयोगी और प्रशासनिक गतिविधियों की देखरेख कर रही थीं।
27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अनुरोध पर इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में सरकार में शामिल हुईं। जब हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के मुद्दे पर दक्षिण भारत में विरोध प्रदर्शन हुए, तो उन्होंने चेन्नई का दौरा किया। वहां उन्होंने सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की, स्थानीय समुदायों की चिंताओं को सुना और प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में सहायता की। उनके सक्रिय हस्तक्षेप से वरिष्ठ मंत्रियों को संकोच महसूस हुआ, हालांकि उनके प्रयासों का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक लाभ कमाना नहीं था। उनके मंत्रालय के कार्यों में उनकी सीधी रुचि सीमित थी, लेकिन वे मीडिया प्रबंधन और सार्वजनिक छवि निर्माण में निपुण थीं।
1965 के बाद, कांग्रेस नेतृत्व में उत्तराधिकार को लेकर इंदिरा गांधी और उनके प्रतिद्वंद्वियों के बीच संघर्ष शुरू हुआ। उन्होंने रणनीतिक रूप से विभिन्न प्रदेश कांग्रेस संगठनों में उच्च जाति के नेताओं को हटाकर पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों को प्रमुख स्थान दिलाया। यह बदलाव न केवल सामाजिक प्रगति की दिशा में एक कदम था, बल्कि कांग्रेस के भीतर अपने विरोधियों को कमजोर करने की रणनीति भी थी। हालांकि, इन हस्तक्षेपों के चलते कई राज्यों में जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष और अधिक उभरने लगे, जिससे कांग्रेस संगठन में नए तरह की चुनौतियाँ खड़ी हो गईं।
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, इंदिरा गांधी श्रीनगर सीमा क्षेत्र में मौजूद थीं। सेना ने उन्हें आगाह किया कि पाकिस्तानी घुसपैठिए तेजी से शहर के करीब पहुंच रहे हैं और उन्हें सुरक्षित स्थान, जैसे जम्मू या दिल्ली, जाने की सलाह दी। लेकिन उन्होंने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और स्थानीय प्रशासन से मुलाकात करने के साथ-साथ मीडिया का ध्यान आकर्षित करने में भी सक्रिय रहीं। उनके इस कदम को जनता और सैनिकों के बीच साहसिक नेतृत्व के रूप में देखा गया।
बाद में, जब ताशकंद में सोवियत मध्यस्थता के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, तो इसके कुछ ही घंटों बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का आकस्मिक निधन हो गया। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन दिया और उनके नेतृत्व को आगे बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
भारत की प्रधानमंत्री के रूप में : उल्लेखनीय योगदान
1966 में प्रधानमंत्री बनने पर इंदिरा गांधी को एक विभाजित कांग्रेस का सामना करना पड़ा, जिसमें उनका समाजवादी गुट और मोरारजी देसाई का रूढ़िवादी गुट आमने-सामने थे। देसाई अक्सर उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहकर उपहास करते थे। 1967 के चुनाव में कांग्रेस को 60 से अधिक सीटों का नुकसान हुआ और वह 545 सीटों वाली लोकसभा में केवल 297 सीटें जीत पाई। मजबूरी में, उन्हें मोरारजी देसाई को उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनाना पड़ा।
1969 में, देसाई से मतभेद बढ़ने पर कांग्रेस विभाजित हो गई। इंदिरा गांधी ने समाजवादियों और साम्यवादियों का समर्थन हासिल कर अगले दो वर्षों तक सरकार चलाई। इसी वर्ष जुलाई में उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका बढ़ी।
विदेश तथा घरेलू नीति एवं राष्ट्रीय सुरक्षा
1971 में, बांग्लादेशी शरणार्थी संकट से निपटने के लिए, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करते हुए पाकिस्तान पर युद्ध छेड़ दिया। इस दौरान, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भारत को कश्मीर सीमा विवाद के चलते युद्ध को बढ़ाने से रोकने के लिए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा।
इस कदम से भारत और पश्चिमी देशों के बीच दूरी बढ़ गई, जिससे इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित किया। भारत पहले ही सोवियत संघ के साथ मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर कर चुका था, जिसने 1971 के युद्ध में निर्णायक राजनीतिक और सैन्य समर्थन प्रदान किया।
परमाणु कार्यक्रम में Indira Gandhi की भूमिका
जनवादी चीन गणराज्य से परमाणु खतरे और दो प्रमुख महाशक्तियों की दखलंदाजी के कारण भारत की स्थिरता और सुरक्षा पर बढ़ते खतरे को ध्यान में रखते हुए, इंदिरा गांधी ने अब एक राष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रम की दिशा में कदम बढ़ाए। उन्होंने पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को शिमला शिखर वार्ता के लिए आमंत्रित किया, जो एक सप्ताह तक चली। हालांकि वार्ता विफलता की ओर बढ़ी, दोनों देशों के नेताओं ने अंततः शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कश्मीर विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए बातचीत जारी रखने का निर्णय लिया गया।
कुछ आलोचकों ने इंदिरा गांधी की आलोचना की, क्योंकि उन्होंने नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा नहीं माना, जबकि कुछ अन्य का मानना था कि पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदियों के बावजूद पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को भारत में मिलाया जाना चाहिए था। हालांकि, यह समझौता संयुक्त राष्ट्र या किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की संभावना को समाप्त कर, भविष्य में पाकिस्तान द्वारा किसी बड़े हमले के खतरे को काफी हद तक कम कर दिया। भुट्टो से किसी संवेदनशील मुद्दे पर पूरी तरह से आत्मसमर्पण की मांग न करके, इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को स्थिर होने और सामान्य स्थिति में लौटने का अवसर दिया।
इसके साथ ही, वर्षों से ठप पड़े कई व्यापारिक संबंधों को फिर से सामान्य किया गया।
1974 में, “स्माइलिंग बुद्धा” के छायामुखी नाम से, भारत ने राजस्थान के पोखरण में सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए बताते हुए, भारत ने स्वयं को दुनिया की सबसे नवीन परमाणु शक्तियों में से एक के रूप में स्थापित किया।
हरित क्रांति में Indira Gandhi की भूमिका
1960 के दशक में भारत ने विशेष कृषि कार्यक्रमों और सरकारी सहायता के तहत खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि की, विशेषकर गेहूं, चावल, कपास और दूध के संदर्भ में। इस बदलाव ने खाद्य संकट को, जो हमेशा से भारत की एक बड़ी समस्या था, अतिरिक्त उत्पादन में बदल दिया।
पहले खाद्य सहायता पर निर्भर रहने की बजाय, खासकर संयुक्त राज्य से, जहां इंदिरा गांधी को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से नफरत थी (और यह भावना आपसी थी; निक्सन इंदिरा को “चुड़ैल बुढ़िया” मानते थे), भारत एक खाद्य निर्यातक देश बन गया। इस सफलता को हरित क्रांति के रूप में जाना गया, जो वाणिज्यिक फसल उत्पादन के विविधीकरण का परिणाम था।
इसी दौरान, दूध उत्पादन में वृद्धि से आई श्वेत क्रांति ने बच्चों में कुपोषण की समस्या को भी काफी हद तक हल किया। ‘खाद्य सुरक्षा’ नामक यह कार्यक्रम 1975 तक श्रीमती गांधी के लिए जनसमर्थन का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा।
1960 के शुरुआती वर्षों में हरित क्रांति के तहत, संगठित कृषि कार्यक्रम जिसे गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईएडिपी) के नाम से जाना जाता था, ने शहरों में रहनेवाले लोगों को सस्ते अनाज की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की। इस पर गांधी का गहरा असर था, और यह कार्यक्रम चार मुख्य चरणों पर आधारित था:
- नई किस्मों के बीज
- भारतीय कृषि के रसायनीकरण को स्वीकृति, जैसे उर्वरक, कीटनाशक और घास-फूस निवारक
- नई और बेहतर बीज किस्मों के विकास के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहकारी अनुसंधान
- कृषि संस्थानों के वैज्ञानिक विकास के लिए भूमि अनुदान कॉलेजों की अवधारणा
दस वर्षों तक चले इस कार्यक्रम ने गेहूं उत्पादन में तीन गुना वृद्धि और चावल उत्पादन में भी अच्छा सुधार किया। हालांकि, बाजरा, चना और मोटे अनाज जैसे क्षेत्रों में वृद्धि सीमित रही, लेकिन इन उत्पादों में अपेक्षाकृत स्थिर उपज बनी रही, जो जनसंख्या वृद्धि और क्षेत्रीय समायोजन के साथ संतुलन बनाए रखे।
1971 के चुनाव में Indira Gandhi की विजय और द्वितीय कार्यकाल (1971- 1975)
गांधी की सरकार को 1971 में मिली विशाल जनादेश के बाद कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी की आंतरिक संरचना के असंख्य विभाजन के कारण पार्टी की ताकत कमजोर पड़ गई, जिससे चुनाव परिणाम पूरी तरह से गांधी के नेतृत्व पर निर्भर हो गए। 1971 के चुनाव की तैयारी में गांधी का प्रमुख नारा “गरीबी हटाओ” था। यह नारा और इसके साथ प्रस्तावित गरीबी हटाओ कार्यक्रम, जो गरीबों को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए थे, गांधी को ग्रामीण और शहरी गरीबों का व्यापक राष्ट्रीय समर्थन जुटाने में सक्षम बनाते थे। इस प्रकार, उन्हें प्रमुख ग्रामीण जातियों के प्रभाव वाले राज्यों और स्थानीय सरकारों तथा शहरी व्यापारी वर्ग को नज़रअंदाज करने का अवसर मिला। इससे पहले, जो गरीब राजनीति में हाशिए पर थे, अब उनके पास राजनीतिक मूल्य और प्रभाव दोनों बढ़ गए।
गरीबी हटाओ कार्यक्रम, जो स्थानीय स्तर पर संचालित किए गए थे, लेकिन उनका वित्तपोषण, विकास, निगरानी और कार्यान्वयन नई दिल्ली और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा किया गया। “ये कार्यक्रम केंद्रीय राजनीतिक नेतृत्व को देशभर में नए और बड़े संसाधनों के वितरण की सुविधा प्रदान करते थे…” हालांकि, गरीबी हटाओ कार्यक्रम से गरीबों को बहुत कम लाभ मिला: आर्थिक विकास के लिए आवंटित कुल निधियों का केवल 4% इन तीन प्रमुख गरीबी हटाओ कार्यक्रमों में गया, और इनमें से अधिकांश संसाधन “गरीब से गरीब” तक नहीं पहुंचे। इस तरह, जबकि यह कार्यक्रम गरीबी घटाने में सफल नहीं हुआ, इसने गांधी को चुनाव जीतने में मदद कर दी।
एकछ्त्रवाद की ओर Indira Gandhi का झुकाव
गांधी पर पहले ही तानाशाही रवैये का आरोप लगाया जा चुका था। उनके मजबूत संसदीय बहुमत का लाभ उठाते हुए, उनकी सत्ताधारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान में संशोधन कर केन्द्र और राज्यों के बीच सत्ता के संतुलन को बदल दिया था। उन्होंने दो बार विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को “कानूनविहीन और अराजक” घोषित कर, संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू कर इन राज्यों पर नियंत्रण स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त, संजय गांधी, जो अब निर्वाचित अधिकारियों की जगह पर उनके करीबी राजनीतिक सलाहकार बन गए थे, के बढ़ते प्रभाव पर उनके पूर्व सलाहकार पि.एन. हक्सर ने असंतोष व्यक्त किया था। गांधी के बढ़ते तानाशाही रवैये को देखते हुए, जयप्रकाश नारायण, सतेन्द्र नारायण सिन्हा और आचार्य जीवतराम कृपालानी जैसे प्रमुख नेताओं और पूर्व स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके और उनकी सरकार के खिलाफ सक्रिय प्रचार किया और पूरे देश का दौरा किया।
Indira Gandhi पर भ्रष्टाचार आरोप और चुनावी कदाचार का फैसला
राज नारायण, जो बार-बार रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते और हारते रहे थे, ने 12 जून 1975 को भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर एक चुनाव याचिका दायर की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया और उन्हें छह वर्षों तक चुनावों में भाग लेने और संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) का सदस्य बनने से प्रतिबंधित कर दिया। इस फैसले ने उन्हें प्रभावी रूप से प्रधानमंत्री पद से हटा दिया, क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य था।
जब गांधी ने इस फैसले के खिलाफ अपील की, तो विपक्षी दल और उनके समर्थक, जो राजनीतिक लाभ उठाने के लिए तैयार थे, उनके इस्तीफे की मांग करने लगे। विभिन्न यूनियनों और विरोधियों द्वारा हड़तालों के कारण कई राज्यों में सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को तेज करने के लिए पुलिस को निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेश का उल्लंघन करने का आह्वान किया। कठिन आर्थिक संकट और जनता के उनके शासन से मोहभंग के कारण विरोधियों की विशाल भीड़ ने संसद भवन और उनके सरकारी निवास को घेर लिया और इस्तीफे की मांग की।
आपातकालीन स्थिति (1975-1977) : Indira Gandhi
गांधी ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए, अशांति फैलाने वाले अधिकांश विरोधियों की गिरफ्तारी का आदेश दिया। इसके बाद उनके मंत्रिमंडल और सरकार ने यह सिफारिश की कि राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से उपजी अराजकता और असमंजस को देखते हुए, आपातकाल की घोषणा करें। इसके परिणामस्वरूप, अहमद ने 26 जून 1975 को संविधान की धारा-352 के तहत आपातकालीन स्थिति की घोषणा की, जो देश में आंतरिक अशांति की स्थिति को ध्यान में रखते हुए की गई।
आदेश आधारित शासन (डिक्री द्वारा शासन) : Indira Gandhi
कुछ महीनों के भीतर, गुजरात और तमिल नाडु, दो विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों पर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश को केंद्रीय शासन के अधीन कर लिया गया। पुलिस को कर्फ्यू लागू करने और नागरिकों को अनिश्चितकालीन रूप से रोकने की शक्तियाँ दी गईं, जबकि सभी प्रकाशनों को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सेंसरशिप के तहत रखा गया। इंदिरा कुमार गुजराल, जो भविष्य में प्रधानमंत्री बने, ने संजय गांधी की हस्तक्षेप की आलोचना करते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अंततः, आगामी विधानसभा चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया और संबंधित राज्यपालों की सिफारिश पर सभी विपक्षी शासित राज्य सरकारों को हटा दिया गया, जो संविधान के प्रावधानों के विपरीत था।
गांधी ने आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग करके अपने अधिकारों को और बढ़ाया।
नेहरू के विपरीत, जो अपने विधायी दलों और राज्य पार्टी संगठनों के मजबूत मुख्यमंत्रियों के साथ काम करना पसंद करते थे, इंदिरा गांधी ने प्रत्येक कांग्रेसी मुख्यमंत्री को हटाने और उनके स्थान पर उन मंत्रियों को नियुक्त करने की प्रक्रिया अपनाई जो व्यक्तिगत रूप से उनके प्रति वफादार थे। इसके बावजूद, राज्यों में स्थिरता बनाए रखना संभव नहीं हो पाया।
इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप है कि उन्होंने राष्ट्रपति अहमद के समक्ष आदेश जारी करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें संसद में बहस की आवश्यकता न हो और आदेश आधारित शासन की अनुमति प्राप्त हो।
साथ ही, गांधी की सरकार ने प्रतिवादियों को उखाड़ फेंकने और हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का अभियान शुरू किया। संजय गांधी के नेतृत्व में, जिनकी निगरानी में बाद में जग मोहन दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने, जामा मस्जिद के पास बसे अवैध बस्तियों को हटाया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों लोग बेघर हुए और सैकड़ों मारे गए, जिससे राजधानी में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा। इसके अलावा, लाखों पुरुषों पर नसबंदी अभियान लागू किया गया, जो अधिकांशतः निम्न स्तर पर चलाया गया।
चुनाव : Indira Gandhi के समय इलेक्शन
गांधी ने 1977 में मतदाताओं को उस शासन को फिर से मंजूरी देने का एक और अवसर प्रदान करने के लिए चुनाव करवाए। प्रेस पर भारी सेंसरशिप लागू होने के कारण जो कुछ भी उनके बारे में लिखा गया, संभवतः गांधी ने अपनी लोकप्रियता का अनुमान पूरी तरह से गलत तरीके से किया। जो भी कारण रहा हो, वह जनता दल से बुरी तरह हार गईं। लंबे समय से उनके प्रतिद्वंद्वी मोरारजी देसाई के नेतृत्व और जयप्रकाश नारायण के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में जनता दल ने भारत में “लोकतंत्र और तानाशाही” के बीच एक निर्णायक चुनाव जीतने का दावा किया। इंदिरा और संजय गांधी दोनों अपनी-अपनी सीटें हार गए, और कांग्रेस पार्टी केवल 153 सीटों तक सिमट गई, जो कि पिछली लोकसभा में 350 सीटों से काफी कम थी, जिसमें से 92 सीटें दक्षिण भारत से थीं।
Indira Gandhi: हटना, गिरफ्तारी और वापस लौटना
मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और 1969 में सरकारी चयन से नीलम संजीव रेड्डी गणराज्य के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किए गए। गांधी को 1978 के उपचुनाव तक अपनी राजनीतिक स्थिति में पुनर्निर्माण की कोशिशें जारी रखनी पड़ीं, जब तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। 1977 के चुनावी अभियान में कांग्रेस पार्टी विभाजित हो गई, और कई प्रमुख समर्थकों, जैसे जगजीवन राम ने उनका साथ छोड़ दिया। कांग्रेस (गांधी) दल अब संसद में एक छोटे विपक्षी समूह के रूप में रह गया था।
गठबंधन के भीतर विभिन्न पक्षों के बीच लगातार झगड़ों के कारण, जनता सरकार के गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी को कई आरोपों में गिरफ्तार करने का आदेश दिया, जिनमें से कोई भी आरोप भारतीय अदालत में साबित करना मुश्किल था। इस गिरफ्तारी का परिणाम यह हुआ कि इंदिरा गांधी स्वतः संसद से निष्कासित हो गईं, लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ गई। उनकी गिरफ्तारी और लंबी कानूनी प्रक्रिया ने उन्हें उन लोगों का समर्थन दिलवाया जो कुछ समय पहले उन्हें तानाशाह मानकर डर गए थे।
जनता गठबंधन केवल गांधी के खिलाफ एकजुट हुआ था, जिन्हें “वह औरत” के रूप में अपमानित किया गया था। छोटे-मोटे मुद्दों पर आपसी कलह में फंसी सरकार की स्थिति में गांधी ने अपनी स्थिति का लाभ उठाया। उन्होंने आपातकाल के दौरान की “गलतियों” के लिए माफी मांगते हुए अपने भाषणों की शुरुआत की। जून 1979 में देसाई ने इस्तीफा दिया और श्रीमती गांधी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार को फिर से स्थापित करने का वादा किया। इसके बाद, रेड्डी ने चरण सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
कुछ समय बाद, चरण सिंह ने अपना समर्थन वापस लिया और राष्ट्रपति रेड्डी ने 1979 की सर्दियों में संसद को भंग कर दिया। अगले साल जनवरी में हुए चुनावों में कांग्रेस ने भारी बहुमत से सत्ता में वापसी की।
इंदिरा गांधी को 1983-84 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Indira Gandhi: हत्या और ओपरेशन ब्लू स्टार
गांधी के शासन के बाद के वर्ष पंजाब में गंभीर समस्याओं से भरे थे। सितंबर 1981 में, जरनैल सिंह भिंडरावाले का अलगाववादी सिख आतंकवादी समूह, सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थल, हरिमंदिर साहिब परिसर में सक्रिय हो गया। स्वर्ण मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु होने के बावजूद, गांधी ने आतंकवादियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाने के लिए सेना को मंदिर परिसर में घुसने का आदेश दिया। सैन्य और नागरिक हताहतों की संख्या को लेकर विभिन्न रिपोर्टें थीं; सरकारी आंकड़ों के अनुसार 79 सैनिक और 492 आतंकवादी मारे गए, जबकि अन्य रिपोर्टों के अनुसार, 500 से अधिक सैनिक और 3000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें तीर्थयात्री भी शामिल थे। नागरिक हताहतों की संख्या पर विवाद था, और इस हमले का समय और तरीका भी सवालों के घेरे में था।
इंदिरा गांधी के दो प्रमुख अंगरक्षक, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह, दोनों सिख थे। 31 अक्टूबर 1984 को, इन्होंने प्रधानमंत्री निवास पर जाकर इंदिरा गांधी की हत्या की। वे ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव के साथ एक साक्षात्कार के लिए बाहर जा रही थीं, जब दोनों ने उन पर हमला किया। बेअंत सिंह ने उन्हें तीन बार गोली मारी, जबकि सतवंत सिंह ने स्टेन कार्बाइन से 22 गोलियां चलाईं। उनके अन्य अंगरक्षकों ने बेअंत सिंह को गोली मार दी, और सतवंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
गांधी की मौत का समाचार अस्पताल पहुंचते-पहुंचते ही फैल गया, लेकिन घंटों तक उनकी मृत्यु की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उनके शरीर से 29 घावों की पहचान की गई, जबकि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उनके शरीर से 31 गोलियां निकाली गईं। उनका अंतिम संस्कार 3 नवंबर को राज घाट के पास हुआ और इसे शक्ति स्थल के रूप में जाना गया। गांधी की हत्या के बाद, नई दिल्ली सहित कई अन्य शहरों जैसे कानपुर, आसनसोल, और इंदौर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, और हजारों सिखों की मौत हो गई। गांधी की मित्र और जीवनीकार पुपुल जयकर ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी के मानसिक तनाव और पूर्वाग्रहों पर अपनी राय दी है।
Indira Gandhi: निजी जीवन
इन्दिरा ने फिरोज़ गांधी से विवाह किया। शुरुआत में संजय को उनका उत्तराधिकारी माना गया था, लेकिन एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत के बाद, इन्दिरा ने राजीव गांधी को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया, हालांकि वह पहले पायलट थे और राजनीति में शामिल होने के लिए अनिच्छुक थे। फरवरी 1981 में राजीव ने राजनीति में कदम रखा।
इन्दिरा गांधी की मौत के बाद, राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। मई 1991 में, उनकी भी हत्या कर दी गई, इस बार लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के आतंकवादियों द्वारा। उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को अप्रत्याशित जीत दिलाई।
सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया, लेकिन कांग्रेस की राजनीति पर उनका पूरा नियंत्रण था; प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह, जो पूर्व में वित्त मंत्री थे, ने देश का नेतृत्व किया। राजीव के बच्चों, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी राजनीति में कदम रखा। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी, जिन्हें संजय की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री के घर से बाहर कर दिया गया था, और उनके बेटे वरुण गांधी, भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हैं।
Indira Gandhi: लोकप्रियता एवं विरासत
इंदिरा गांधी का उल्लेख लोकप्रिय संस्कृति में विभिन्न रचनाओं में किया गया है। उनके निधन का जिक्र टॉम क्लेन्सी के उपन्यास एक्जीक्यूटिव ऑर्डर्स में किया गया है। हालांकि नाम का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं होता, रोहिंतों मिस्त्री की ऐ फाईन बैलेंस में इंदिरा गांधी का स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री के रूप में चित्रण किया गया है।
सलमान रुशदी के मिडनाइट्स चिल्ड्रन में इंदिरा गांधी को “दा विडो” के रूप में संदर्भित किया गया है, और उपन्यास में उनका चरित्र अपने अविस्मरणीय पतन के लिए खुद जिम्मेदार ठहराया गया है। इस चित्रण को लेकर कुछ हिस्सों में विवाद है, खासकर उनके और उनकी नीतियों के कठोर चित्रण को लेकर।
शशि थरूर के दा ग्रेट इंडियन नोवेल में प्रिय दुर्योधन का पात्र स्पष्ट रूप से इंदिरा गांधी का संदर्भ देता है।
गुलज़ार द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म आंधी, जो इंदिरा गांधी के जीवन के कुछ पहलुओं को दर्शाती है, विशेष रूप से उनके पति के साथ कठिन रिश्ते (जिन्हें संजीव कुमार ने निभाया) का काल्पनिक चित्रण है।
यन्न मार्टेल की लाइफ ऑफ़ पाई में 1970 के दशक के मध्य के भारतीय राजनीतिक माहौल के संदर्भ में कई बार “श्रीमती गांधी” का उल्लेख किया गया है।
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के कुछ महान विचार
- “राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या शत्रु नहीं होता, केवल स्थायी स्वार्थ होते हैं।”
- “मैं केवल एक ही शर्त पर राजनीति में हूँ, और वह है – भारत की सेवा करना।”
- “हमारा संघर्ष किसी से भी नहीं, बल्कि खुद से है। अगर हम खुद को बदल लें, तो दुनिया अपने आप बदल जाएगी।”
- “जब तक हम अपने देश की रक्षा के लिए खड़े नहीं होते, तब तक हम कुछ नहीं हैं।”
- “आत्मविश्वास के साथ काम करो, परिणाम तुम्हारे पक्ष में होंगे।”
- “अगर आप किसी को गाली दे रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आप डर रहे हैं।”
- “सभी शक्तियाँ किसी न किसी रूप में खुदा के पास होती हैं। हमें अपनी मेहनत से अपना रास्ता बनाना चाहिए।”
- “हमारे पास अपनी स्थिति को बेहतर बनाने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपने प्रयासों को और अधिक सशक्त करें।”