नयी कविता
नयी कविता (1951 ई० से…): यों तो ‘नयी कविता’ के प्रारंभ को लेकर विद्वानों में विवाद है, लेकिन ‘दूसरे सप्तक‘ के प्रकाशन वर्ष 1951 ई०से नयी कविता’ का प्रारंभ मानना समीचीन है। इस सप्तक के प्रायः कवियों ने अपने वक्तव्यों में अपनी कविता को नयी कविता की संज्ञा दी है।
मुख्य तथ्य
- नयी कविता हिंदी साहित्य की उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया।
- यह प्रयोगवाद के बाद विकसित हुई हिंदी कविता की नवीन धारा है।
- नई कविता अपनी वस्तु-छवि और रूप-छवि दोनों में प्रगतिवाद और प्रयोगवाद का विकास होकर भी विशिष्ट है।
आधुनिक हिंदी कविता प्रयोगशीलता की प्रवृति से आगे बढ़ गयी है और अब वह पहले से अपनी पूर्ण पृथकता घोषित करने के लिए प्रयत्नशील है.आधुनिक काल की इस नवीन काव्यधारा को अभी तक कोई नया नाम नहीं दिया गया है।
जन्म
केवल नयी कविता नाम से ही अभी इसका बोध कराया जाता है सन १९५४ ई. में डॉ.जगदीश गुप्त और डॉ.रामस्वरुप चतुर्वेदी के संपादन में नयी कविता काव्य संकलन का प्रकाशन हुआ। इसी को आधुनिक काल के इस नए रूप का आरम्भ माना जाता है। इसके पश्चात इसी नाम के पत्र पत्रिकाओं तथा संकलनों के माध्यम से यह काव्यधारा निरंतर आगे बढ़ती चली आ रही हैं।
नयी कविता में प्रयोगवाद की संकचिता से ऊपर उठकर उसे अधिक उदार और व्यापक बनाया नयी कविता की आधारभूत विश्शेश्ता यह है कि वह किसी भी दर्शन के साथ बंधी नहीं है और वर्तमान जीवन के सभी स्तरों के यथार्थ को नयी भाषा नवीन अभिव्यजना विधान और नूतन कलात्मकता के साथ अभिव्यक्त करने
में संलठन है।
हिंदी की यह नयी कविता के परंपरागत रूप से इतनी भिन्न हो गयी है कि इस कविता न कहकर अकविता कहा जाने लगा है।
जिस तरह प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शुरू करने का श्रेय अज्ञेय की पत्रिका ‘प्रतीक‘ को प्राप्त है उसी तरह नयी कविता आंदोलन को शुरू करने का श्रेय जगदीश प्रसाद गुप्त के संपादकत्व में निकलनेवाली पत्रिका ‘नयी कविता‘ को जाता है।
‘नयी कविता’ भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गयी उन कविताओं को कहा जाता है, जिनमें परम्परागत कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प विधान का अन्वेषण किया गया।
अज्ञेय को ‘नयी कविता का भारतेन्दु‘ कह सकते हैं क्योंकि जिस प्रकार भारतेन्दु ने जो लिखा सो लिखा ही, साथ ही उन्होंने समकालीनों को इस दिशा में प्रेरित किया उसी प्रकार अज्ञेय ने भी स्वयं पृथुल साहित्य सृजन किया तथा औरों को प्रेरित-प्रोत्साहित किया।
कवि
आम तौर पर ‘दूसरा सप्तक’ और ‘तीसरा सप्तक‘ के कवियों को नयी कविता के कवियों में शामिल किया जाता है।
- ‘दूसरा सप्तक‘ के कविगण रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश
मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुंतला माथुर व हरि नारायण व्यास। - ‘तीसरा सप्तक‘ के कविगण : कीर्ति चौधरी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदार नाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना व मदन वात्स्यायन।
- अन्य कवि : श्रीकांत वर्मा, दुष्यंत कुमार, मलयज, सरेंद्र तिवारी, धूमिल, लक्ष्मीकात वर्मा, अशोक बाजपेयी, चंद्रकांत देवताले आदि।
आंदोलन
नयी कविता आंदोलन में एक साथ भिन्न भिन्न वाद/दर्शन से जुड़े रचनाकार शामिल हुए। यदि अज्ञेय आधुनिक भावबोध वादी अस्तित्ववादी या व्यक्तिवादी हैं तो मुक्तिबोध, केदार नाथ सिंह आदि माक्र्सवादी/समाजवादी; भवानी प्रसाद मिश्र यदि गाँधीवादी हैं तो रधुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि लोहियावादी समाजवादी और धर्मवीर भारती की रुचि सिर्फ देहवाद में है।
अस्तित्ववाद व आधुनिकतावाद का प्रभाव
नयी कविता के रचनाकारों पर दो वाद या विचारधाराओं- अस्तित्ववाद व आधुनिकतावाद का प्रभाव विशेष रूप से पड़ा।
- ‘अस्तित्ववाद‘ एक आधुनिक दर्शन है जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि मनुष्य के अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं और प्रत्येक कार्य के लिए वह खुद उत्तरदायी होता है। वैयक्तिकता, आत्मसम्बद्धता, स्वतंत्रता, अजनबियत, संवेदना, मृत्यु, त्रास, ऊब आदि इसके मुख्य तत्व हैं।
- ‘आधुनिकतावाद‘ का संबंध पूँजीवादी विकास से है। पूँजीवादी विकास के साथ उभरे नये जीवन मूल्यों एवं नयी जीवन पद्धति को आधुनिकतावाद की संज्ञा दी जाती है। इतिहास और परम्परा से विच्छेद, गहन स्वात्म चेतना, तटस्थता और अप्रतिबद्धता, व्यक्ति स्वातंत्र्य, अपने-आप में बंद दुनिया आदि इसके मुख्य तत्व हैं।
नयी कविता की विशेषताएं
- कथ्य की व्यापकता,
- अनुभूति की प्रामाणिकता
- लघुमानववाद, क्षणवाद तथा तनाव व द्वन्द्व।
- मूल्यों की परीक्षा (वैयक्तिकता का एक मुल्य के रूप में स्थापना, निरर्थकता बोध, विसंगति बोध, पीड़ावाद; सामाजिकता)
- लोक सम्पृक्त
- काव्य संरचना (दो तरह की कविताएं : छोटी कविताएं– प्रगीतात्मक, लंबी कविताएं– नाटकीय, क्रिस्टलीय संरचना, छंदमुक्त कविता, फैंटेसी/स्वप्न कथा का भरपूर प्रयोग)
- काव्य भाषा–बातचीत की भाषा, शब्दों पर जोर
- नये उपमान, नये प्रतीक, नये विम्वों का प्रयोग।
यदि छायावादी कविता का नायक ‘महामानव‘ था, प्रगतिवादी कविता का नायक ‘शोषित मानव‘ तो नयी कविता का नायक है ‘लघुमानव‘।
चरम बिन्दु
1959 ई० का साल ऐतिहासिक दृष्टि से नयी कविता के विकास का प्रायः चरम बिन्दु था। इस बिन्दु से एक रास्ता नयी कविता की रूढ़ियों की ओर जाता था जिसमें विम्व आदि विज्ञापित नुस्खों का अंधानुकरण किया जाता या फिर दूसरा रास्ता सच्चे सूजन का था जो विम्ववादी प्रवृत्ति को तोड़ता।
नये कवियों ने दूसरा रास्ता अपनाया। फलतः धीर-धार काव्य सृजन दिन के दायरे से निकलकर सीधे सपाट कथन की ओर अभिमुख हुआ, जिस अशोक बाजपेयी ‘सपाट बयानी’ की संज्ञा देते हैं।
नई कविता की शिल्पगत विशेषताएँ
- नई कविता ने लोक-जीवन की अनुभूति, सौंदर्य-बोध, प्रकृत्ति और उसके प्रश्नों को एक सहज और उदार मानवीय भूमि पर ग्रहण किया। साथ ही साथ लोक-जीवन के बिंबों, प्रतीकों, शब्दों और उपमानों को लोक-जीवन के बीच से चुनकर उसने अपने को अत्यधिक संवेदनापूर्ण और सजीव बनाया।
- कविता के ऊपरी आयोजन नई कविता वहन नहीं कर सकती। वह अपनी अन्तर्लय, बिंबात्मकता, नवीन प्रतीक-योजना, नये विशेषणों के प्रयोग, नवीन उपमान में कविता के शिल्प की मान्य धारणाओं से बाकी अलग है।
- नई कविता की भाषा किसी एक पद्धति में बँधकर नहीं चलती। सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बोलचाल की भाषा का प्रयोग इसमें अधिक हुआ है। नई कविता में केवल संस्कृत शब्दों को ही आधार नहीं बनाया है, बल्कि विभिन्न भाषाओं के प्रचलित शब्दों को स्वीकार किया गया है।
- नए शब्द भी बना लिए गये हैं- टोये, भभके, खिंचा, सीटी, ठिठुरन, ठसकना, चिडचिड़ी, ठूँठ, विरस, सिराया, फुनगियाना – जैसे अनेक शब्द नई कविता में धड़ल्ले से प्रयुक्त हुए हैं। जिससे इसकी भाषा में एक खुलापन और ताज़गी दिखाई देती है। इसकी भाषा में लोक-भाषा के तत्व भी समाहित हैं।
- नई कविता में प्रतीकों की अधिकता है। जैसे- साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं, न होंगे, नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया। एक बात पूँछु? उत्तर दोगे! फिर कैसे सीखा डँसना? विष कहाँ पाया? (अज्ञेय)
- नई कविता में बिंब भी विपुल मात्रा में उपलब्ध है।
- नई कविता की विविध रचनाओं में शब्द, अर्थ, तकनीकी, मुक्त आसंग, दिवास्वप्न, साहचर्य, पौराणिक, प्रकृति संबंधी काव्य बिंब निर्मित्त किए गये हैं। जैसे- सामने मेरे सर्दी में बोरे को ओढकर, कोई एक अपने, हाथ पैर समेटे, काँप रहा, हिल रहा,-वह मर जायेगा। (मुक्तिबोध)
- नई कविता में छंद को केवल घोर अस्वीकृति ही मिली हो- यह बात नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में विविध प्रयोग भी किये गये हैं।
- नये कवियों में किसी भी माध्यम या शिल्प के प्रति न तो राग है और न विराग।
- गतिशीलता के प्रभाव के लिए संगीत की लय को त्यागकर नई कविता ध्वनि-परिवर्तन की ओर बढ़ती गई है।
- एक वर्ण्य विषय या भाव के सहारे उसका सांगोपांग विवरण प्रस्तुत करते हुए लंबी कविता या पूरी कविता लिखकर उसे काव्य-निबंध बनाने की पुरानी शैली नई कविता ने त्याग दी है।
- नई कविता के कवियों ने लंबी कविताएँ भी लिखी हैं। किन्तु वे पुराने प्रबंध काव्य के समानान्तर नहीं हैं।
- नई कविता का प्रत्येक कवि अपनी निजी विशिष्टता रखता है। नए कवियों के लिए प्रधान है सम्प्रेषण, न कि सम्प्रेषण का माध्यम।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नई कविता कथ्य और शिल्प-दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
छायावादोत्तर युग की नवीन काव्यधारा
- प्रगतिवादी काव्यधारा – केदारनाथ अग्रवाल, राम विलास शर्मा, नागार्जुन, रांगेय राघव, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, त्रिलोचन आदि।
- प्रयोगवादी काव्य धारा – अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, मुक्तिबोध, भवानी प्रसाद मिश्र, शमशेर बहादुर।
- नयी कविता काव्य धारा – सिंह, धर्मवीर भारती आदि।
- नवगीत– शंभुनाथ सिंह, रामदरश मिश्र, कुँवर बेचैन, अनुप अशेष, देवेद्र शर्मा ‘इंद्र’ आदि।