भारत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना माना जाता है और इसे विश्व के महानतम पाठ्यक्रम में से एक कहा जा सकता है। Bharat ka Itihas लगभग 75,000 साल पुराना है, जिसकी पुष्टि होमो सेपियंस की प्राचीन मानव गतिविधियों से होती है। 5000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने कृषि और व्यापार पर आधारित एक उन्नत संस्कृति विकसित की थी, जो आश्चर्यजनक है। इसलिए, प्राचीन भारत के साथ-साथ आधुनिक भारत के इतिहास को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय इतिहास के स्रोत
भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी के चार प्रमुख स्रोत हैं—धर्मग्रन्थ, ऐतिहासिक धर्मग्रन्थ, विदेशियों का विवरण एवं पुरातत्त्व संबंधी साक्ष्य ।
- चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ नामक पुस्तक से मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है।
- कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’ को ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित भारत की प्रथम पुस्तक कहा जाता है। इससे कश्मीर के इतिहास की जानकारी मिलती है।
- पाणिनी द्वारा रचित संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक ‘अष्टाध्यायी’ से भी प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
विदेशी लेखकों में मेगस्थनीज, टॉलमी, फाह्यान, ह्वेनसाँग, इत्सिंग, अलबरूनी, तारानाथ, मार्कोपोलो इत्यादि की पुस्तकें प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों के विवरण की महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- मेगस्थनीज सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त के राजदरबार में आया था, इसके द्वारा रचित पुस्तक ‘इण्डिका’ से मौर्यकालीन समाज एवं संस्कृति के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं।
- टॉलमी ने ‘भारत का भूगोल’ नामक पुस्तक लिखी।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के दरबार में आने वाले चीनी यात्री फाह्यान द्वारा लिखे गए विवरणों से गुप्तकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है।
- हर्षवर्धन के शासनकाल में आने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा लिखे भ्रमण वृत्तांत ‘सि-यू-की’ से छठी सदी के भारतीय समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में पता चलता है।
- इत्सिंग नामक चीनी यात्री सातवीं शताब्दी के अन्त में भारत आया था, इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।
- महमूद गजनवी के साथ दूसरी शताब्दी के प्रारम्भ में भारत आने वाले लेखक अलबरूनी अपना विवरण तहकीक-ए-हिन्द या किताबुल हिन्द (भारत की खोज) नामक पुस्तक में लिखा है, इसमें राजपूत-कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।
- तारानाथ एक तिब्बती लेखक था, जिसने कंग्युर तथा तंग्युर नामक दो पुस्तकों में भारतीय इतिहास का वर्णन किया है।
- पुरातत्त्व संबंधी साक्ष्यों में अभिलेख, सिक्के, अवशेष, इत्यादि से भारतीय इतिहास के विविध पहलुओं का पता चलता है।
- मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ‘होलियोडोरस’ के वेसनगर (विदिशा) के गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है।
- कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास का साक्ष्य मिला है।
- प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है।
- सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।
- अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
कलिंग राजा खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख, रुद्रदामन के जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख, समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ अभिलेख, इत्यादि ऐतिहासिक जानकारियों के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं।
पाषाण काल (70000 से 3300 ई. पू)
पाषाण काल को तीन भागों में बाँटा गया है-पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल तथा नवपाषाण काल।
- पुरापाषाण काल में मनुष्य की जीविका का मुख्य आधार शिकार था। इस काल को आखेटक तथा खाद्य-संग्राहक काल भी कहा जाता है।
- लगभग 36,000 ई. पू. में आधुनिक मानव पहली बार अस्तित्व में आया।
- आधुनिक मानव को ‘होमोसेपियन’ भी कहा जाता है।
- मानव द्वारा प्रथम पालतू पशु कुत्ता था, जिसे मध्यपाषाण काल में पालतू बनाया गया।
- आग की जानकारी मानव को पुरापाषाण काल से ही थी, किन्तु इसका प्रयोग नवपाषाण काल से प्रारम्भ हुआ था।
- नवपाषाण काल से मानव ने कृषि कार्य प्रारम्भ किया, जिससे उसमें स्थायी निवास की प्रवृत्ति विकसित हुई।
- भारत में पाषाणकालीन सभ्यता का अनुसन्धान सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 ई. में प्रारम्भ किया।
- भारत में व्यवस्थित कृषि का पहला साक्ष्य मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ है।
- बिहार के चिरांद नामक नवपाषाणकालीन स्थल से हड्डी के औजार मिले हैं।
- पाषाण काल के तीनों चरणों का साक्ष्य बेलन घाटी इलाहाबाद से प्राप्त हुआ है।
- औजारों में प्रयुक्त की जाने वाली पहली धातु ताँबा थी तथा इस धातु का ज्ञान मनुष्य को सर्वप्रथम हुआ।
- चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य कोलडीहवा (इलाहाबाद) से पाया गया है।
- पहिए का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ।
प्राचीन भारत का इतिहास (मानव आगमन से 712 ईस्वी तक)
प्राचीन भारत का इतिहास एक समृद्ध और विविधता से भरा हुआ है, जिसका इतिहास मानव सभ्यता की शुरुआत से लेकर लगभग 712 ईस्वी तक है। इसका आरंभ सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2350 –1750 ईसा पूर्व) से होता है, जो विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। इसके बाद वैदिक काल (1500–600 ईसा पूर्व), जिसमें वैदिक साहित्य और हिंदू धर्म की नींव रखी गई।
प्राचीन भारत के महान साम्राज्यों में मौर्य साम्राज्य (322–185 ईसा पूर्व), जिसमें अशोक महान का शासन शामिल है, और गुप्त साम्राज्य (240–550 ईस्वी), जिसे भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है, प्रमुख थे। इस काल में विज्ञान, गणित, कला, और साहित्य का जबरदस्त विकास हुआ।
प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय भी हुआ, जिसने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धारा को गहराई से प्रभावित किया।
मेहरगढ़ (7000-3300 ई. पू)
मेहरगढ़ वह स्थल है जहाँ सिंधु नदी के कछारी मैदान और वर्तमान पाकिस्तान तथा ईरान के सीमांत प्रदेश के पठार मिलते हैं। यह स्थान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ‘बोलन दर्रे’ के निकट स्थित है। यहाँ से भारतीय उपमहाद्वीप में कृषक समुदाय के उद्भव के सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। मेहरगढ़ का उपयोग अस्थायी मानव आवास के रूप में किया गया था, और सम्भवत: यहाँ सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. के आसपास एक मानव बस्ती विकसित हो गई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता (3300-1300 ई.पू)
सर्वप्रथम 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने तत्कालीन भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में हड़प्पा नामक स्थल की खुदाई कर इस सभ्यता की खोज की। हड़प्पा के पश्चात् 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थल की खोज की। रेडियो कार्बन C14 विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. मानी गई है।
सिन्धु सभ्यता के अन्य नदी घाटियों तक विस्तृत स्वरूप का पता चलने के कारण इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ के नाम से अधिक जाना जाता है। हड़प्पा को इस नगरीय सभ्यता का प्रथम उत्खनन स्थल होने के कारण नामकरण का यह सम्मान प्राप्त हुआ।
- भारत में सर्वाधिक सैन्धव स्थल गुजरात में पाए गए हैं।
- सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) कांस्ययुगीन सभ्यता थी।
- मोहनजोदड़ो को ‘मृतकों का टीला’ भी कहा जाता है।
- कालीबंगा का अर्थ ‘काले रंग की चूड़ियाँ’ होता है।
- सिन्धु घाटी सभ्यता की महत्त्वपूर्ण विशेषता नगर-निर्माण योजना का होना था। एक सुव्यवस्थित जल निकास प्रणाली, इस सभ्यता के नगर-निर्माण योजना की प्रमुख विशेषता थी।
- हड़प्पा सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था।
- कृषि तथा पशुपालन के साथ-साथ उद्योग एवं व्यापार भी अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार थे।
- हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि था।
- विश्व में सर्वप्रथम यहीं के निवासियों ने कपास की खेती प्रारम्भ की थी। मेसोपोटामिया में ‘कपास’ के लिए ‘सिन्धु’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। यूनानियों ने इसे ‘सिण्डन’ कहा, जो सिन्धु का ही यूनानी रूपान्तरण है।
- हड़प्पा सभ्यता में आन्तरिक तथा विदेशी दोनों प्रकार का व्यापार होता था। व्यापार वस्तु-विनिमय के द्वारा होता था।
- माप-तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में थी।
- हड़प्पा सभ्यता में प्रशासन सम्भवतः वणिक् वर्ग द्वारा चलाया जाता था।
- इस सभ्यता में मातृदेवी की उपासना का प्रमुख स्थान था। साथ ही पशुपति, लिंग, योनि, वृक्षों एवं पशुओं की भी पूजा की जाती थी।
- पशुओं में कूबड़ वाला सांड सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पशु था और उसकी पूजा का प्रचलन था।
- इस काल में मन्दिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
- इस सभ्यता के निवासी मिट्टी के बर्तन-निर्माण, मुहरों के निर्माण, मूर्ति-निर्माण आदि कलाओं में प्रवीण थे।
- मुहरें अधिकांशतः सेलखड़ी की बनी होती थीं।
- हड़प्पा की लिपि, भाव-चित्रात्मक है। यह लिपि प्रथम पंक्ति में दाएँ से बाएँ तथा दूसरी पंक्ति में बाएँ से दाएँ लिखी गई है। इस लेखन पद्धति को ‘ब्रस्टोफेदम’ कहा गया है। इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
- हड़प्पा सभ्यता में शवों को दफनाने एवं जलाने की प्रथा प्रचलित थी।
- मानवशास्त्रियों के अनुसार चार जाति समूहों; प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, भूमध्य सागरीय, मंगोलियन एवं अल्पाइन; द्वारा इस सभ्यता का निर्माण हुआ था।
सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल, खोजकर्ता, नदियां, वर्तमान स्थिति एवं प्राप्त महत्वपूर्ण साक्ष्य आगे दिए गए हैं-
हड़प्पा
- उत्खननकर्ता: दयाराम साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स
- सन्: 1921
- नदी: रावी
- वर्तमान स्थिति: पाकिस्तान का माण्टगोमरी जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: ताँबे का पैमाना, ताँबे की इक्कागाड़ी, ताँबा गलाने की भट्टी, अन्नागार
मोहनजोदड़ो
- उत्खननकर्ता: राखालदास बनर्जी
- सन्: 1922
- नदी: सिंधु
- वर्तमान स्थिति: पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त का लरकाना जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: स्नानागार, अन्नागार, पुरोहित आवास, सभा भवन, कांसे की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति की मूर्ति, सूती धागा
चन्हूदड़ो
- उत्खननकर्ता: गोपाल मजूमदार
- सन्: 1934
- नदी: सिंधु
- वर्तमान स्थिति: सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान)
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: मनका बनाने का कारखाना, दवात, काजल, कंघा
रंगपुर
- उत्खननकर्ता: रंगनाथ राव
- सन्: 1953-19954
- नदी: मादर
- वर्तमान स्थिति: गुजरात का काठियावाड़ जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: चावल की भूसी
रोपड़
- उत्खननकर्ता: यज्ञदत्त शर्मा
- सन्: 1953-1955
- नदी: सतलज
- वर्तमान स्थिति: पंजाब का रोपड़ जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: मानव के साथ कुत्ते को दफनाने का साक्ष्य
लोथल
- उत्खननकर्ता: रंगनाथ राव
- सन्: 1955-1962
- नदी: भोगवा
- वर्तमान स्थिति: गुजरात का अहमदाबाद जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: गोदीवाड़ा, युग्मित शवाधान, रँगाई के कुण्ड, हाथी दाँत का पैमाना
कोटदीजी
- उत्खननकर्ता: फजल अहमद
- सन्: 1953
- नदी: सिंधु
- वर्तमान स्थिति: सिन्ध प्रान्त का खैरपुर स्थान
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: पत्थर के वाणाग्र
आलमगीरपुर
- उत्खननकर्ता: यज्ञदत्त शर्मा
- सन्: 1958
- नदी: हिंडन
- वर्तमान स्थिति: उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: साँप तथा रीछ की मृण्मूर्ति
कालीबंगा
- उत्खननकर्ता: बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर
- सन्: 1960
- नदी: घग्घर
- वर्तमान स्थिति: राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: जुते खेत, अग्नि वेदियाँ, पकी ईंटें, अलंकृत फर्श
धौलावीरा
- उत्खननकर्ता: जे. पी. जोशी
- सन्: 1960
- नदी: लूनी
- वर्तमान स्थिति: गुजरात का कच्छ जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: पॉलिशदार श्वेत पाषाण खण्ड, स्टेडियम सैन्धव लिपि के दस बड़े अक्षर, लम्बा जलाशय
बनावली
- उत्खननकर्ता: रवीन्द्र सिंह बिष्ट
- सन्: 1990
- नदी: रंगोई
- वर्तमान स्थिति: हरियाणा का हिसार जिला
- प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य: मिट्टी का खिलौना, हल, जौ, मातृदेवी की मृण्मूर्ति
धार्मिक विकास
प्राचीन भारत में विभिन्न धार्मिक परंपराओं का उदय और विकास हुआ। प्रारंभ में, वैदिक धर्म का प्रचलन था, जिसमें वेदों, यज्ञों और मंत्रों का महत्व था। इसके बाद जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय हुआ, जो अहिंसा, सत्य और मोक्ष के सिद्धांतों पर आधारित थे। जैन धर्म ने व्यक्तिगत तप और साधना को महत्व दिया, जबकि बौद्ध धर्म ने मध्य मार्ग और चार आर्य सत्य का प्रचार किया। इसके साथ ही, वेदांत और उपनिषद जैसे दर्शन ने भी धर्म को गहराई से प्रभावित किया।
वैदिक काल (1500-600 ई.पू)
वैदिक काल का विभाजन दो भागों में किया गया है-
- ऋग्वैदिक काल- इसे 1500 ई. पू.-1000 ई.पू. माना गया है।
- उत्तर वैदिक काल- इसे 1000 ई. पू.-600 ई. पू. माना गया है।
मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना है। भारत में आर्य सर्वप्रथम ‘सप्तसिन्धु’ क्षेत्र में बसे। यह क्षेत्र आधुनिक पंजाब तथा उसके आस-पास का क्षेत्र था।
ऋग्वैदिक काल
- ऋग्वैदिक आर्य कई छोटे-छोटे कबीलों में विभक्त थे। ऋग्वैदिक साहित्य में कबीले को ‘जन’ कहा गया है।
- कबीले के सरदार को ‘राजन’ कहा जाता था, जो शासक होते थे।
- सबसे छोटी राजनीतिक इकाई कुल या परिवार थी, कई कुल मिलकर ग्राम बनते थे जिसका प्रधान ‘ग्रामणी’ होता था, कई ग्राम मिलाकर ‘विश’ होता था, जिसका प्रधान ‘विशपति’ होता था तथा कई ‘विश’ मिलकर ‘जन’ होता था जिसका प्रधान ‘राजा’ होता था।
- ऋग्वेद में ‘जन’ का 275 बार तथा ‘विश’ का 170 बार उल्लेख हुआ है।
- ‘सभा’, ‘समिति’ एवं ‘विदथ’ राजनीतिक संस्थाएँ थीं।
- परिवार पितृसत्तात्मक था।
- समाज में वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। ऋग्वेद के दसवें मण्डल के ‘पुरुष सूक्त’ में चार वर्णो; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, का उल्लेख है।
- ‘सोम’ आर्यों का मुख्य पेय था तथा ‘यव’ (जौ) मुख्य खाद्य पदार्थ।
- समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। इस समय समाज में ‘विधवा विवाह’, ‘नियोग प्रथा’ तथा ‘पुनर्विवाह’ का प्रचलन था लेकिन ‘पर्दा प्रथा’, ‘बाल-विवाह’ तथा ‘सती-प्रथा’ प्रचलित नहीं थी।
ऋग्वैदिक काल की नदियां:
क्रम | प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
1. | क्रुभु | कुर्रम |
2. | कुभा | काबुल |
3. | वितस्ता | झेलम |
4. | आस्किनी | चिनाव |
5. | परुष्णी | रावी |
6. | शतद्रि | सतलुज |
7. | विपाशा | व्यास |
8. | सदानीरा | गंडक |
9. | दृषद्वती | घग्घर |
10. | गोमती | गोमल |
11. | सुवास्तु | स्वात |
12. | सिंधु | सिन्ध |
13. | सरस्वती/दृशद्वर्ती | घघ्घर/रक्षी/चित्तग |
14. | सुषोमा | सोहन |
15. | मरुद्वृधा | मरुवर्मन |
ऋग्वेद में उल्लिखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी।
- ऋग्वैदिक काल के देवताओं में सर्वाधिक महत्त्व ‘इन्द्र’ को तथा उसके उपरान्त ‘अग्नि’ व ‘वरुण’ को महत्त्व प्रदान किया गया था।
- ऋग्वेद में इन्द्र को ‘पुरन्दर’ अर्थात् ‘किले को तोड़ने वाला’ कहा गया है। ऋग्वेद में उसके लिए 250 सूक्त हैं।
उत्तरवैदिक काल
- उत्तर वैदिक काल के राजनीतिक संगठन की मुख्य विशेषता बड़े राज्यों तथा जनपदों की स्थापना थी।
- राजत्व के ‘दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त’ का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में किया गया है।
- इस काल में राजा का महत्त्व बढ़ा। उसका पद वंशानुगत हो गया।
- उत्तर वैदिक काल में परिवार पितृसत्तात्मक होते थे। संयुक्त परिवार की प्रथा विद्यमान थी।
- समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र, में बँटा था। वर्ण व्यवस्था कर्म के बदले जाति पर आधारित थी।
- स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें धन सम्बन्धी तथा किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
- ‘जाबालोपनिषद्’ में सर्वप्रथम चार आश्रमों; ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास; का विवरण मिलता है।
- धार्मिक एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों में जटिलता आई ।
- इस काल में सबसे प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा), विष्णु एवं रुद्र (शिव) थे।
- लोहे के प्रयोग का सर्वप्रथम साक्ष्य 1000 ई. पू. उत्तर प्रदेश के अतरंजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश) से मिला है।
षड्दर्शन एवं उनके रचयिता:
- सांख्य दर्शन (कपिल)
- न्याय दर्शन (गौतम)
- योग दर्शन (पतंजली)
- पूर्व मीमांसा (जैमिनी)
- उत्तर मीमांसा (बादरायण)
- वैशेषिक दर्शन (कणाद या उलूक)
वैदिक साहित्य
भारत की धार्मिकता का मूल वैदिक साहित्य ही है। वेदों से ही धर्म का निरूपण माना जाता है। वैदिक काल (Vaidik Age) 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक माना जाता है। वेदों की भाषा (वैदिक संस्कृत) और वैदिक साहित्य सबसे प्राचीन है। वैदिक साहित्य को तीन विभागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- 1. संहिताएं (वेद) 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक तथा उपनिषद।
वेद
वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद्।
ऋग्वेद: यह प्राचीनतम वेद है, इसमें 10 मण्डल तथा 1028 सूक्त हैं। इसकी भाषा पद्यात्मक है। इसमें गायत्री मन्त्र का उल्लेख है, जो सूर्य से सम्बन्धित देवी सावित्री को सम्बोधित है।
सामवेद: इसमें संकलित मन्त्रों को यज्ञ के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिए गाया जाता था। इसे ‘भारतीय संगीत का मूल’ कहा जाता है।
यजुर्वेद: यह एकमात्र ऐसा वेद है जिसकी रचना पद्य तथा गद्य दोनों में की गई है। यह मूलतः कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थ है।
अथर्ववेद्: इसमें ब्रह्म ज्ञान, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जन्त्र-तन्त्र टोना-टोटका आदि का वर्णन है।
उपनिषद
ब्रह्म विषयक होने के कारण इसे ‘ब्रह्म विद्या‘ भी कहा जाता है। इसमें आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है। इनकी संख्या 108 है। भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
वेदांग
वेदों के अर्थ समझने व सूक्तियों के सही उच्चारण के लिए वेदांग की रचना की गई। इनकी संख्या 6 है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द एवं ज्योतिष ।
स्मृति
स्मृतियों को ‘धर्म-शास्त्र‘ भी कहा जाता है। ‘मनुस्मृति‘ सबसे प्राचीन है जिसकी रचना 200 ई. पू. से 100 ई. के मध्य की गई।
पुराण
इनकी संख्या 18 है। सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक ‘मत्स्य पुराण‘ है। इसमें विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख है।
जैन धर्म
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे; ये इस धर्म के संस्थापक हैं। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं।
- जैन धर्म में कर्मफल से छुटकारा पाने के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक माना गया है। ये त्रिरत्न हैं—सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् आचरण।
- महावीर ने पाँच महाव्रतों के पालन का उपदेश दिया। ये पाँच महाव्रत हैं—सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य। इनमें से शुरू के चार महाव्रत जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के थे, अन्तिम महाव्रत ब्रह्मचर्य महावीर स्वामी ने जोड़ा।
- जैन धर्म अनीश्वरवादी है।
महावीर स्वामी का संक्षिप्त परिचय:
- जन्म– कुण्डग्राम (वैशाली)
- जन्म का वर्ष – 540 ई. पू.
- पिता– सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल)
- माता– त्रिशला (लिच्छवि शासक चेटक की बहन)
- पत्नी– यशोदा
- गृह त्याग– 30 वर्ष की आयु में
- तपस्थल– जृम्भिक ग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे)
- कैवल्य– ज्ञान की प्राप्ति 42 वर्ष की अवस्था में
- निर्वाण– 468 ई. पू. (पावापुरी में)
महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिये।
कालान्तर में जैन धर्म दो सम्प्रदायों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में बँट गया।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी वस्त्रों का परित्याग करते हैं।
प्रमुख जैन महासंगीतियाँ/सम्मेलन:
संगीति | समय | स्थल | अध्यक्ष | कार्य |
प्रथम | 322 ई.पू. – 298 ई.पू. | पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र | जैन धर्म दो भागों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में विभाजित। |
द्वितीय | 512 ई. | वल्लभी | देव ऋद्धिगणि (क्षमाश्रमण) | धर्मग्रन्थों को लिपिबद्ध किया गया। |
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।
गौतम बुद्ध का संक्षिप्त परिचय
- जन्म– लुम्बिनी ग्राम, कपिलवस्तु
- जन्म का वर्ष– 563 ई. पू.
- पिता– शुद्धोधन (शाक्य गण के प्रधान)
- माता– महामाया (कोलियगण की राजकुमारी)
- पत्नी– यशोधरा
- पुत्र– राहुल
- गृह त्याग– 29 वर्ष की आयु में (महाभिनिष्क्रमण)
- तपस्थल– उरुवेला (निरंजना नदी के किनारे)
- ज्ञान– ज्ञान की प्राप्ति 35 वर्ष की अवस्था में
- महापरिनिर्वाण– 483 ई. पू. (कुशीनगर में)
गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ (ऋषिपतनम) में दिया। बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के बारे में चार आर्य सत्य बताये हैं। ये हैं- दुःख, दुःख समुदय, दुःख विशेष तथा दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा।
दुःखों से छुटकारा पाने के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया। ये हैं- सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति तथा सम्यक् समाधि।
- प्रतीत्यसमुत्पाद को गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का सार कहा जाता है।
- बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी तथा अनात्मवादी है।
- बुद्ध, संघ एवं धम्म- ये तीन बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं।
- जातक कथाओं में गौतम बुद्ध की जीवन सम्बन्धी कहानिया है।
- बौद्ध ग्रन्थों; सुत्त पिटक, विनय पिटक तथा अभिधम्म पिटक; को सामूहिक रूप से ‘त्रिपिटक‘ कहा गया है। त्रिपिटक की भाषा पालि है।
- महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिये।
कनिष्क के शासनकाल में बौद्ध धर्म का विभाजन हीनयान तथा महायान दो शाखाओं में हो गया।
- हीनयान शाखा के अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के मूल उपदेशों को स्वीकार किया जबकि महायान शाखा के अनुयायियों ने बुद्ध की मूर्ति-पूजा का प्रचलन शुरू किया।
बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाएँ एवं उनके प्रतीक चिह्न:
घटना | प्रतीक चिह्न |
जन्म | कमल एवं सांड |
गृह त्याग | घोड़ा |
ज्ञान | पीपल वृक्ष |
निर्वाण | पद चिह्न |
मृत्यु | स्तूप |
प्रमुख बौद्ध संगीतियाँ/सम्मेलन:
संगीति | स्थान | शासनकाल | समय | अध्यक्ष |
प्रथम बौद्ध संगीति | राजगृह | अजातशत्रु | 483 ई. पू | महाकस्सप |
द्वितीय बौद्ध संगीति | वैशाली | कालाशोक | 383 ई. पू. | सर्वकामी (सब्बकामी) |
तृतीय बौद्ध संगीति | पाटलिपुत्र | अशोक | 250 ई. पू. | मोग्गलिपुत्त तिस्स |
चतुर्थ बौद्ध संगीति | कुण्डल वन | कनिष्क | प्रथम शताब्दी ई. | वसुमित्र |
प्राचीन भारत में प्रचलित सम्प्रदाय एवं संस्थापक:
संस्थापक | संस्थापक |
आजीवक | मक्खलिपुत्त गोशाल |
यदृच्छावाद | आचार्य अजित |
अनिश्चयवादी | केशकम्बलिन |
घोर अक्रियावादी | पूरण कस्सप |
भौतिकवादी | पकुध कच्चायन |
भौतिक दर्शन | संजय वेट्ठलिपुत्त |
महाजनपद
भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे- अंग, अवंति, अश्मक, कंबोज, काशी, कुरु, कोशल, गांधार, चेदि, पंचाल, मगध, मत्स्य, मल्ल, वज्जि, वत्स, शूरसेन।
मगध साम्राज्य
ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था। प्राचीन भारत में साम्राज्यवाद की शुरूआत या विकास का श्रेय मगध को दिया जाता है।
मगध साम्राज्य पर कई राजवंशों ने शासन किया जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
हर्यक वंश (544 ई.पू. – 412 ई.पू.)
मगध साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार (544 ई.पू. – 492 ई.पू.) था। उसकी राजधानी गिरिवज (राजगृह) थी।
- बिम्बिसार ने वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ की।
- बिम्बिसार ने अपने राजकीय चिकित्सक ‘जीवक’ को पड़ोसी राज्य अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत महासेन की चिकित्सा के लिए भेजा था।
- बिम्बिसार को उसके पुत्र अजातशत्रु (492 ई.पू.- 460 ई.पू.) ने बन्दी बनाकर सत्ता पर कब्जा जमाया। अजातशत्रु को ‘कुणिक’ के नाम से भी जाना जाता है।
अजातशत्रु ने वज्जि संघ के लिच्छवियों को पराजित करने के लिए ‘रथमूसल’ एवं ‘महाशिलाकण्टक’ नामक नये हथियारों का प्रयोग किया।
- अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह के सप्तपर्ण गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
अजातशत्रु का पुत्र उदयिन (उदयभद्र) (460 ई.पू.- 444 ई.पू.) हर्यक वंश का तीसरा महत्त्वपूर्ण शासक था, उसने पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना ) की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. -344 ई.पू.)
हर्यक वंश के सेनापति शिशुनाग ने मगध की सत्ता पर कब्जा कर शिशुनाग वंश की स्थापना की।
- इस वंश के शासक कालाशोक (काकवर्ण) के शासनकाल में मगध की राजधानी वैशाली थी, जहाँ द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
नन्द वंश (344 ई.पू. – 324 ई.पू.)
नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द था। उसे सर्वक्षत्रान्तक अर्थात् ‘सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला’ कहा गया है।
- महापद्मनन्द ने एकछत्र राज्य की स्थापना की तथा ‘एकराट्’ की उपाधि धारण की।
नन्द वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था। इसी के शासनकाल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था।
सिकन्दर का भारत अभियान
सिकन्दर मेसीडोनिया (मकदूनिया) के क्षत्रप फिलिप का पुत्र था।
- अपने विश्व विजय की योजना के अन्तर्गत सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया।
- झेलम तथा चिनाब के मध्यवर्ती प्रदेश के शासक पोरस (पुरु) ने सिकन्दर का प्रतिरोध किया।
- सिकन्दर एवं पोरस के बीच 326 ई. पू. में झेलम नदी के किनारे भीषण युद्ध हुआ, जिसमें पोरस की हार हुई।
- इस युद्ध को ‘वितस्ता का युद्ध’ या ‘हाइडेस्पीज का युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।
- बाद में सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी के आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। अन्ततः सिकन्दर को वापस लौटना पड़ा।
- वापस लौटते समय 323 ई.पू. में बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
मौर्य वंश (322 ई.पू. – 185 ई.पू.)
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के शासक धनानन्द को अपदस्थ कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था।
- सेन्ड्रोकोट्स की पहचान चन्द्रगुप्त के रूप में सर्वप्रथम ‘विलियम जोन्स’ ने की।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अन्तिम समय में जैन भिक्षु भद्रबाहु से दीक्षा लेकर श्रवणबेलगोला में कायाक्लेश के द्वारा प्राण त्याग दिया।
विन्दुसार (298 ई. पू. -272 ई. पू.) को ‘अमित्रघात’ के नाम से भी जाना जाता है। वह आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था ।
- बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस से अंजीर मंदिरा तथा एक दार्शनिक की माँग की थी।
अशोक (273 ई.पू.- 236 ई.पू.) अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए प्रतिपादित ‘धम्म’ के लिए विश्व विख्यात है।
- अशोक ने अपने शासन के 8वें वर्ष (261 ई. पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया।
- कलिंग के साथ हुए युद्ध में भारी रक्तपात को देख अशोक ने ‘युद्ध नीति’ को छोड़ ‘धम्म नीति‘ का पालन किया।
- अशोक ने अपने बड़े भाई सुमन के पुत्र ‘निग्रोध’ से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया। बाद में ‘उपगुप्त‘ ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- अशोक के धम्म की परिभाषा ‘राहुलोवादसुत्त‘ से ली गई है।
- अशोक के कलिंग युद्ध तथा हृदय परिवर्तन की जानकारी उसके 13वें शिलालेख से मिलती है।
- अशोक ने अपने शासकीय एवं राजकीय आदेशों को शिलालेखों पर खुदवाकर साम्राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित किया।
- ये शिलालेख ‘ब्राह्मी‘, ‘खरोष्ठी, ‘अरामाईक‘ तथा ‘ग्रीक‘ लिपि में हैं।
- अशोक के शिलालेखों का पता सर्वप्रथम टी. फैन्थेलर ने लगाया तथा इसे पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता जेम्स प्रिंसेप को मिली।
मौर्य साम्राज्य में उच्च स्तर के अधिकारियों को ‘तीर्थ‘ कहा जाता था, जिनकी संख्या 18 बताई गई है। कौटिल्य (चाणक्य) के ‘अर्थशास्त्र‘ तथा मेगस्थनीज के ‘इण्डिका‘ से मौर्य साम्राज्य के बारे में विशेष जानकारी मिलती है।
मौर्योत्तर काल के वंश और विदेशी आक्रमण
मौर्योत्तर काल में दो तरह के राजवंश देखने को मिलते हैं-
- मौर्योत्तर राजवंशों में शुंग वंश, कण्व वंश, सातवाहन वंश और वाकाटक वंश प्रमुख हैं।
- विदेशी आक्रमणकारियों में यवन, शक, कुषाण, पार्थियन प्रमुख हैं।
शुंग वंश
शुंग वंश की स्थापना ‘पुष्यमित्र’ ने 185 ई.पू. में मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रय को मारकर की। शुंग वंश का अंतिम सम्राट देवहूति था, उसके साथ ही शुंग साम्राज्य समाप्त हो गया था।
कण्व वंश
कण्व वंश की स्थापना अमात्य ‘वासुदेव’ ने अन्तिम शुंग राजा देवभूति मारकर की थी। इस समय शक आक्रान्ता बड़े वेग से भारत पर आक्रमण कर रहे थे।
सातवाहन वंश
यह राजवंश ‘आन्ध्र वंश‘ के नाम से भी विख्यात है। सातवाहन वंश का प्रारम्भिक राजा ‘सिमुक’ था। इस वंश के राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों से जमकर संघर्ष किया था।
कांची के पल्लव
इस वंश का उत्थान सातवाहनों के पतन से शुरू होता है। इस वंश के संस्थापक ‘सिंहविष्णू’ थे जिनका शासनकाल 575-600 ईस्वी तक रहा। इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय ने कैलाश नाथ मंदिर, महाबलीपुरम का मंदिर बनवाया। और प्रसिद्ध विद्वान ‘दंडिन’ इसके दरबारी थे।
वाकाटक वंश
वाकाटक वंश का संस्थापक ‘विंध्यशक्ति’ था।
यवन (यूनानी) आक्रमण
मौर्योत्तर काल में भारत पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण बैक्ट्रिया के ग्रीकों ने किया। इन्हें ‘हिन्द-यवन’ या ‘इण्डोग्रीक’ के नाम से भी जाना जाता है।
- हिन्द-यवन शासकों में मिनान्डर सबसे महत्वपूर्ण हैं। उसकी राजधानी साकल थी।
- प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागसेन के साथ मिनाण्डर (मिलिन्द) के द्वारा किये गए वाद-विवाद का विस्तृत वर्णन ‘मिलिन्दपन्हो’ नामक ग्रन्थ में है।
- इण्डो-ग्रीक शासकों ने भारत में सर्वप्रथम ‘सोने के सिक्के’ तथा ‘लेखयुक्त सिक्के’ जारी किये।
- विभिन्न ग्रहों के नाम, नक्षत्रों के आधार पर भविष्य बताने की कला, सम्वत् तथा सप्ताह के सात दिनों का विभाजन यूनानियों ने भारत को सिखलाया।
शक आक्रमण
शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे।
- शक शासकों में रुद्रदामन प्रथम प्रमुख था। जूनागढ़ से प्राप्त उसका अभिलेख संस्कृत भाषा का पहला अभिलेख है।
- रुद्रदामन प्रथम ने चन्द्रगुप्त मौर्य के समय निर्मित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।
पहलव (पार्थियन) आक्रमण
पहलव मूलतः पार्थिया के निवासी थे।
- पहलवों का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक गोन्दोफर्निस था। उसके शासनकाल में ईसाई धर्म प्रचारक सेण्ट टॉमस भारत आया था।
कुषाण आक्रमण
कुषाण यू-ची जनजाति से सम्बन्धित थे। वे पश्चिमी चीन से भारत आये थे।
- कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। कनिष्क ने 78 ई. में शक सम्वत् को प्रचलित किया।
- कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया। मथुरा कनिष्क की द्वितीय राजधानी थी।
- कश्मीर में कनिष्क ने ‘कनिष्कपुर‘ नामक नगर की स्थापना की।
- कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसके शासनकाल में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कुण्डल वन (कश्मीर) में हुआ था।
गुप्त वंश (240 ई.–550 ई.)
गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपनी अधीनता स्वीकार कराई। गुप्त वंश का प्रथम महत्त्वपूर्ण शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था, लेकिन इसके पहले श्रीगुप्त (240-285 ई.) तथा घटोत्कच (280-320 ई.) का शासक के रूप में उल्लेख मिलता है।
- गुप्तकालीन प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘ग्राम‘ थी, जिसका प्रशासन ग्रामिक के हाथ में होता था।
- कई गाँवों को मिलाकर पेठ बनते थे।
- भारत में मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल से शुरू हुआ। देवगढ़ का दशावतार मन्दिर गुप्तकाल का सबसे उत्कृष्ट मन्दिर है।
- गुप्तकालीन बौद्ध गुफा मन्दिरों में अजन्ता एवं बाघ की गुफाएँ प्रमुख हैं।
- गुप्त शासकों की राजकीय या आधिकारिक भाषा संस्कृत थी।
- गुप्तकाल में ‘भाग‘ एवं ‘भोग‘ राजस्व कर था, ‘भाग’ उपज का छठा हिस्सा होता था जबकि भोग सब्जी तथा फलों के रूप में दी जाती थी।
चन्द्रगुप्त प्रथम (319-350 ई.) ने 320 ई. में गुप्त सम्वत् की शुरूआत की। उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।
- चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था, जो उस समय की महत्त्वपूर्ण घटना थी।
समुद्रगुप्त (350-375 ई.) चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था। विभिन्न अभियानों के कारण इतिहासकार वी. ए. स्मिथ ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है।
- समुद्रगुप्त की विजयों और उसके बारे में जानकारी के स्रोत उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख है।
- समुद्रगुप्त की अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ स्थापित किया था।
- समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-415 ई.) का काल गुप्तकाल में साहित्य और कला का स्वर्ण काल कहा जाता है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की तथा चाँदी के सिक्के चलाये।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-412 ई.) भारत आया था।
- उसके दरबार में नौ विद्वानों की मण्डली थी जिसे ‘नवरत्न‘ कहा जाता था। इस नवरल में कालिदास अमर सिंह आदि शामिल थे।
कुमार गुप्त प्रथम (415-455 ई.) के समय में नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।
स्कन्दगुप्त (455-467 ई.) गुप्त वंश का अन्तिम प्रतापी शासक था। उसने हूणों के आक्रमण को विफल किया था। स्कन्दगुप्त ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा के समय निर्मित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।
गुप्तोत्तर काल के वंश
पुष्यभूति वंश (वर्द्धन वंश)
पुष्यभूति वंश की स्थापना थानेश्वर में हुई थी। इस वंश का पहला महत्त्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्द्धन था।
- हर्षवर्द्धन (606-647 ई.) इस वंश का महान् शासक था। उसने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित की।
- बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था। उसने ‘हर्षचरित’ की रचना की। हर्ष ने स्वयं ‘नागानन्द’, ‘रत्नावली’ एवं ‘प्रियदर्शिका’ नामक नाटकों की रचना की थी।
- हर्ष का चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से नर्मदा नदी तट पर युद्ध हुआ था, जिसमें हर्ष की पराजय हुई थी।
- हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। उसका यात्रा- वृत्तांत ‘सी-यू-की’ के नाम से जाना जाता है।
पल्लव वंश
पल्लव वंश की स्थापना सिंहविष्णु ने की थी। इसकी राजधानी काँची (काँचीपुरम) थी।
- ‘मत्तविलास प्रहसन’ की रचना पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन ने की।
- महाबलीपुरम् के रथ मन्दिर का निर्माण पल्लव नरेश नरसिंहवर्मन प्रथम के समय हुआ था। उसने वातापीकोंड की उपाधि ग्रहण की।
राष्ट्रकूट राजवंश
राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दन्तिदुर्ग ने की थी। इसकी राजधानी मान्यखेट थी।
- ध्रुव प्रथम राष्ट्रकूट (दक्षिण भारत) शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया।
- अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था, इसने कन्नड़ में ‘कविराजमार्ग’ की रचना की।
- एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
- एलोरा एवं एलिफेंटा गुहा मन्दिरों का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों के द्वारा हुआ।
चोल वंश
चोल वंश की स्थापना विजयालय ने की थी। इसकी राजानी तंजौर थी।
- चोल शासक राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण करके विजित प्रदेशों को चोल साम्राज्य का नया प्रान्त बनाया।
- राजराज प्रथम ने तंजौर में ‘राजराजेश्वर का शिव मन्दिर’ (वृहदेश्वर मन्दिर) बनवाया।
- राजराज प्रथम ने शैलेन्द्र शासक को नागपट्टनम् में बौद्ध मठ स्थापित करने की अनुमति दी थी।
- राजेन्द्र प्रथम ने गंगाघाटी के सफल अभियान के क्रम में पाल वंश के शासक महिपाल को पराजित किया। इस विजय की स्मृति में उसने ‘गंगैकोण्डचोलपुरम्’ नगर का निर्माण किया।
- स्थानीय स्वशासन चोल साम्राज्य की प्रमुख विशेषता थी।
पाल वंश
बंगाल के पाल वंश का संस्थापक गोपाल था। उसने औदन्तपुरी (बिहार शरीफ) में बौद्ध विहार की स्थापना की थी। धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया।
प्रतिहार वंश (गुर्जर-प्रतिहार राजवंश)
इस राजवंश का संस्थापक प्रथम नागभट्ट था, जिनके वंशजों ने पहले उज्जैन और बाद में कन्नौज को राजधानी बनाते हुए एक विस्तृत भूभाग पर शासन किया। कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी तथा त्रिपक्षीय संघर्ष का अन्त गुर्जर-प्रतिहारों की अन्तिम विजय से हुआ था।
कार्कोट वंश
7 वीं शताब्दी में दुर्लभवर्धन ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की। उसने प्रतापपुर नामक नगर वसाया। कश्मीर के कार्कोट वंश के शासक ‘ललितादित्य मुक्तापीड‘ ने प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर ‘मार्तण्ड‘ का निर्माण करवाया।
लोहार वंश
लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था। ‘राजतरंगिणी’ का रचयिता कल्हण कश्मीर के लौहार वंश के शासक हर्ष के दरबार में रहता था।
- कलश का पुत्र हर्ष विद्वान, कवि एवं कई भाषाओं एवं विद्याओं का जानकार था।
- कल्हण ने ‘राजतरंगिणी‘ की रचना लौहार वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के काल में की।
गंग वंश
उड़ीसा के गंग वंश के शासक नरसिंह प्रथम ने भी कोणार्क में सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया।
चन्देल वंश
चन्देल वंश का संस्थापक नन्नुक था। इसकी राजधानी खजुराहो थी। खजुराहो के मन्दिरों का निर्माण चन्देलों ने करवाया था।
परमार वंश
गोविंद तृतीय ने मालवा विजय करके परमार वंश की स्थापना की, जबकि प्रथम शासक उसका भरोसेमंद उपेन्द्र नाम का एक व्यक्ति था।
- परमारों की राजधानी उज्जैन थी, बाद में चलकर धारा उनकी राजधानी बनी।
- परमारवंशी शासक भोज एक महान् कवि था, उसने कविराज की उपाधि धारण की थी।
- भोज की कुछ रचनाओं में ‘समरांग सूत्रधार’, ‘सरस्वतीकण्ठाभरण’, ‘विद्याविनोद’, ‘राजमार्तण्ड’ आदि प्रमुख हैं।
- भोज ने धार में एक सरस्वती मन्दिर की स्थापना की।
चौहान वंश
शाकंभरी के चौहान वाक्यपतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अलग होकर चौहान वंश की नींव रखी।
- चौहान शासक अजयपाल ने ‘अजमेर‘ नगर की स्थापना की।
- पृथ्वीराज चौहान को ‘रायपिथौरा‘ भी कहा जाता है। उसके राजकवि चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो‘ नामक महाकाव्य लिखा।
- पृथ्वीराज चौहान ने तराईन के प्रथम युद्ध (1191 ई.) में मुहम्मद गोरी को पराजित किया, किन्तु तराईन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) में गोरी से पराजित हो गया।
तोमर वंश
अनंगपाल तोमर इस वंश के शासक थे। अनंगपाल तोमर ने 11वीं शताब्दी में ‘दिल्ली‘ शहर की नींव डाली थी।
चालुक्य राजवंश (वातापी के चालुक्य)
यह चालुक्य वंश की मूल शाखा ‘पश्चिमी चालुक्य’ के नाम से जानी जाती है। जिसके संस्थापक ‘पुलिकेशन प्रथम’ हैं। चालुक्यों की शक्ति का केंद्र वातापी था। जो बीजापुर राज्य में स्थित था। इस वंश का एक महत्वपूर्ण शासक विक्रमादित्य (565-680 ईस्वी) हुआ।
गुजरात के चालुक्य
गुजरात के चालुक्य वंश का संस्थापक ‘मूलराज प्रथम’ था। इस वंश के कर्ण नामक शासक ने कर्णेस्वर मदिर तथा कर्ण सागर झील का निर्माण करवाया। इस वंश के मूलराज द्वितीय (भीम द्वितीय) ने 1178 ईस्वी में आबू पर्वत के नीचे मुहम्मद गोरी को पराजित किया।
मध्यकालीन भारत का इतिहास
मध्यकालीन भारत के इतिहास का समयकाल लगभग 8वीं से 18वीं शताब्दी तक का माना जाता है, जिसमें भारत में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन हुए। इस काल की शुरुआत प्रारंभिक मुस्लिम (मुहम्मद बिन कासिम) आक्रमणों (712 ई.) और दिल्ली सल्तनत (1206–1526 ई.) की स्थापना से होती है।
दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद, भारत में मुगल साम्राज्य (1526–1707 ई.) का उदय हुआ, जिसने कला, वास्तुकला, और संस्कृति में एक नई ऊँचाई दी। इस दौरान, दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य (1336–1646 ई.) और मराठा साम्राज्य (1674–1818 ई.) जैसी शक्तियाँ भी उभरीं।
भारत पर मुस्लिम (अरब/तुर्क) आक्रमण
भारत पर पहला सफल मुस्लिम आक्रमण अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद ‘मुहम्मद बिन कासिम’ ने 712 ई. में किया था। सिंध के शासक दाहिर को हराकर उसने ‘सिन्ध‘ एवं ‘मुल्तान‘ को जीत लिया था।
महमूद गजनवी ने 1001 से 1027 ई. के बीच भारत पर 17 आक्रमण किये। इनमें 1025 ई. में सोमनाथ के शिव मन्दिर पर किया गया आक्रमण सबसे प्रसिद्ध था।
मुहम्मद गोरी को भारत में तुर्क सत्ता का संस्थापक माना जाता है।
- 1175 ई. में चालुक्य सोलंकी वंश के शासक भीम द्वितीय ने आबू पर्वत के समीप मुहम्मद गोरी को पराजित किया था।
- 1191 ई. के तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हाथों पराजय के बाद 1192 ई. के तराईन के द्वितीय युद्ध में उसने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया।
- 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में कन्नौज के गहड़वाल राजा जयचन्द को मुहम्मद गोरी ने पराजित किया।
- 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की हत्या गजनी लौटने के क्रम में हो गई।
दिल्ली सल्तनत
गुलाम वंश (1206-1290 ई.) (84 year)
गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.) था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक को उसकी उदारता के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दान करने वाला) कहा गया।
- ऐबक ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारम्भ करवाया।
- 1210 ई. में चौगान (पोलो) खेलते समय ऐबक की मृत्यु हो गई।
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) ने अपने विरोधियों से निबटने के लिए चालीस दासों का एक दल बनाया जिसे ‘तुर्कान ए-चहलगानी’ कहा गया।
- इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को छोटे-छोटे क्षेत्रों में बाँट दिया जिसे इक्ता कहा गया, इसका प्रशासक इक्तादार होता था।
- इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार के निर्माण को पूरा करवाया।
- इसने अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित की।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.) भारत की प्रथम महिला मुस्लिम शासिका थी।
- रजिया ने पहनावे में पर्दे को त्याग कर कुबा (कोट) तथा कुलाह (टोपी) धारण की। उसने भटिण्डा के प्रशासक अल्तूनिया से निकाह किया।
बलबन (1265-87 ई.) दिल्ली सल्तलत का प्रथम सुल्तान था, जिसने सुल्तान की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से राजत्व सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किया।
- बलबन ने फारसी (ईरानी) परम्परा की तर्ज पर ‘सिजदा’ तथा ‘पाबोस’ की प्रथा चलाई।
- उसने फारसी परम्परा पर आधारित ‘नवरोज’ उत्सव की शुरूआत की।
- बलबन ने अपने विरोधियों से निबटने के लिए ‘लौह एवं रक्त’ की नीति का अनुसरण किया।
खिलजी वंश (1290-1320 ई.) (30 year)
खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.) था।
- उसने अपनी राजधानी दिल्ली के निकट किलोखरी में बनाई।
- जलालुद्दीन फिरोज दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने राजत्व का आधार प्रजा का समर्थन माना ।
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) का मूल नाम अली गुरशास्प था। उसने सिकन्दर द्वितीय सानी की उपाधि धारण की।
- अलाउद्दीन खिलजी प्रथम मुस्लिम सुल्तान था, जिसने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और उसे अपने अधीन किया।
- उसके सेनानायक मलिक काफूर को दक्षिण विजय का श्रेय दिया जाता है।
- अलाउद्दीन की नीतियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘बाजार नियन्त्रण नीति’ थी, जिसका उद्देश्य अपनी विशाल सेना की आवश्यकताओं को पूरा करना था।
- अलाउद्दीन ने इनाम, मिलक तथा वक्फ भूमि को खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया।
- वह प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की माप के आधार पर लगान निर्धारित किया।
- अलाउद्दीन ने सैनिकों की सीधी भर्ती तथा नकद वेतन देने की प्रथा की शुरूआत की।
- उसने सैनिकों के लिए ‘चेहरा’ तथा उनके घोड़ों के लिए ‘दाग’ प्रथा की शुरूआत की।
तुगलक वंश (1320-1413 ई.) (93 year)
तुगलक वंश का संस्थापक ग्यासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.) था। ग्यासुद्दीन तुगलक ने नहरों तथा कुओं का निर्माण करवाया तथा डाक व्यवस्था को संगठित किया।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ई.) का मूल नाम जौना खाँ था। कुछ इतिहासकारों ने मुहम्मद बिन तुगलक को ‘पागल‘, ‘रक्त-पिपासु‘ कहा है।
- मुहम्मद तुगलक द्वारा चार प्रयोग किये गए, ये राजधानी परिवर्तन, दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि, सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन तथा कराचिल एवं खुरासान विजय की योजना थी।
- उसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरि) स्थानान्तरित की। पर बाद में पुनः दिल्ली ही राजधानी बनी।
- सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन के लिए उसने ताँबे तथा इससे मिश्रित काँसे के सिक्के चलाए थे। पर यह योजना भी कतिपय कारणों से असफल रही।
- “रेहला” पुस्तक का रचयिता मोरक्को का यात्री इब्नबतूता था, जो मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आया था।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए एक नवीन कृषि विभाग ‘दीवान-ए-अमीर कोही’ की स्थापना की।
फिरोजशाह तुगलक (1351-88 ई.) अपने कल्याणकारी कार्यों के लिए प्रसिद्ध है।
- फिरोजशाह ने सिंचाई की सुविधा के लिए कई नहरों का निर्माण करवाया। वह पहला सुल्तान था जिसने प्रजा से सिंचाई कर ‘शर्ब‘ वसूला।
- फिरोजशाह ने एक दान विभाग ‘दीवान-ए-खैरान‘ की स्थापना की। उसने एक दास विभाग ‘दीवान-ए-बन्दगान’ की भी स्थापना की थी।
- वह पहला सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर भी ‘जजिया कर’ लगाया।
- फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा ‘फुतूहात-ए-फिरोजशाही‘ की रचना की।
मुहम्मदशाह ‘तुगलक वंश’ का अन्तिम शासक था, जिसके शासनकाल में तैमूरलंग का दिल्ली पर आक्रमण (1398 ई.) हुआ।
सैय्यद वंश (1414-51 ई.) (37 year)
सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खाँ था। इस वंश के प्रमुख शासक थे- खिज्र खान, मुबारक शाही, मुहम्मद शाही, अलाउद्दीन शाह।
लोदी वंश (1451-1526 ई.) (65 year)
लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी (1451-88 ई.) था, उसने भारत में पहली बार अफगान राज्य की स्थापना की।
सिकन्दर लोदी (1489-1517 ई.) ने भूमि की माप के लिए सिकन्दरी गज के इस्तेमाल की शुरूआत की।
- उसने ‘गुलरुखी‘ के उपनाम से कविताएँ भी लिखीं।
- सिकन्दर लोदी ने 1504 में आगरा नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
इब्राहिम लोदी (1517-26 ई.) दिल्ली सल्तनत का अन्तिम सुल्तान था।
- पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित कर दिल्ली सल्तनत का अन्त कर दिया।
भक्ति एवं सूफी आंदोलन
मध्यकाल में सर्वप्रथम दक्षिण के आलवार सन्तों द्वारा भक्ति आन्दोलन की शुरूआत हुई। उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन प्रारम्भ करने का श्रेय रामानन्द को है। रामानन्द का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। उन्होंने विष्णु के अवतार के रूप में राम की भक्ति को लोकप्रिय बनाया।
- कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। उनकी रचनाएँ ‘बीजक‘ में संगृहीत हैं। वे निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि थे।
- गुरुनानक का जन्म ननकाना साहब (तलवण्डी) में हुआ था। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
- चैतन्य बंगाल में भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक थे। उन्होंने संकीर्तन प्रथा को जन्म दिया।
- सूरदास कृष्ण भक्ति परम्परा से सम्बन्धित थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘सूरसागर’ के राधा-कृष्ण के आदर्श प्रेम को लोकप्रिय बनाया।
- गुजरात के संत नरसिंह मेहता राधा-कृष्ण भक्ति से सम्बन्धित थे।
शंकराचार्य के अद्वैतदर्शन के विरोध में दक्षिण में वैष्णव सन्तों द्वारा चार मतों की स्थापना की गई थी, जो इस प्रकार हैं-
क्रम | संप्रदाय | संस्थापक | मत |
1. | श्री सम्प्रदाय | रामानुजाचार्य | विशिष्टाद्वैतवाद |
2. | ब्रह्म सम्प्रदाय | माधवाचार्य | द्वैतवाद |
3. | रुद्र सम्प्रदाय | विष्णुस्वामी | शुद्धाद्वैतवाद |
4. | सनकादि सम्प्रदाय | निम्बार्काचार्य | द्वैताद्वैतवाद |
सूफियों का संगठन ‘सिलसिला‘ कहा जाता था। जो लोग सूफी संतों से शिष्यता ग्रहण करते थे, उन्हें ‘मुरीद‘ कहा जाता था।
- चिश्ती सम्प्रदाय के संस्थापक ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती थे। उनका मकबरा अजमेर में स्थित है।
- बाबा फरीद की कुछ रचनाएँ ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में शामिल है।
- हजरत निजामुद्दीन औलिया ने अपने जीवनकाल में दिल्ली के सात सुल्तानों का शासन देखा था।
“अभी दिल्ली दूर है“, ये वचन निजामुद्दीन औलिया ने ग्यासुद्दीन तुगलक को कहे थे।
- शेख अब्दुल्ला सत्तारी ने सत्तारी सिलसिले की स्थापना की थी। इसका मुख्य केन्द्र बिहार था।
- रोशनिया सम्प्रदाय के संस्थापक वायजीद अंसारी थे।
- सुहरावर्दी परम्परा की शाखा फिरदौसी पूर्वी भारत विशेषकर बिहार में विकसित हुई, जिसके महत्त्वपूर्ण सन्त शर्फुद्दीन याह्या मनेरी थे।
दक्षिण भारत के राज्य
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना संगम के पुत्रों हरिहर तथा बुक्का ने 1336 ई. में की। उस समय दिल्ली का सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक था।
विजयनगर साम्राज्य
क्रम | राजवंश | शासनकाल | संस्थापक |
1. | संगम वंश | 1336 1485 ई. | हरिहर एवं बुक्का |
2. | सलुव वंश | 1485-1505 ई. | नरसिंह सलुव |
3. | तुलुव वंश | 1505-1570 ई. | वीर नरसिंह |
4. | अरवीडु वंश | 1570-1650 ई. | तिरूमल्ल |
विजयनगर का महान् शासक कृष्णदेव राय (1509-29 ई.) तुलुव वंश का था।
- कृष्णदेव राय के दरबार में आठ महान् कवि रहते थे, जिन्हें ‘अष्ट दिग्गज‘ कहा जाता था।
- कृष्णदेव राय ने तेलुगू भाषा में ‘अमुक्तमाल्यद‘ ग्रन्थ की रचना की। उसने ‘हजारा’ तथा ‘विट्ठल स्वामी मन्दिर’ का निर्माण भी करवाया।
सदाशिव राय के शासनकाल में 1565 ई. में ‘तालिकोटा‘ या ‘बन्नीहट्टी‘ की लड़ाई हुई, जिसमें विजयनगर की हार हुई तथा विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया।
विजयनगर आने वाले प्रमुख विदेशी यात्री:
यात्री | देश | काल | शासक |
निकोलो कोंटी | इटली | 1420 ई. | देवराय ॥ |
अब्दुर्रज्जाक | फारस | 1442 ई. | देवराय॥ |
नूनिज | पुर्तगाल | 1450 ई. | मल्लिकार्जुन |
डोमीनग पायस | पुर्तगाल | 1515 ई. | कृष्ण देवराय |
बारबोसा | पुर्तगाल | 1516 ई. | कृष्ण देवराय |
बहमनी राज्य
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में 1347 ई. में हसनगंगू ने बहमनी राज्य की स्थापना की। वह अलाउद्दीन बहमन शाह के नाम से सत्तासीन हुआ।
- मुहम्मद तृतीय के शासनकाल में ‘ख्वाजा जहाँ’ की उपाधि से महमूद गवाँ को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया।
- महमूद गवाँ ने बीदर में एक महाविद्यालय की स्थापना की।
- ताजुद्दीन फिरोज के शासनकाल में रूसी यात्री निकितन बहमनी राज्य की यात्रा पर आया था।
- कलीमउल्लाह बहमनी वंश का अन्तिम शासक था।
कलीमउल्लाह की मृत्यु के समय बहमनी राज्य पाँच स्वतन्त्र राज्यों में बँट गया। इन स्वतन्त्र राज्यों से सम्बन्धित विवरण इस प्रकार है-
क्रम | राज्य | वंश | संस्थापक | वर्ष |
1. | बीजापुर | आदिलशाही | युसुफ आदिल शाह | 1489 ई. |
2. | अहमदनगर | निजामशाही | मलिक अहमद | 1490 ई. |
3. | बरार | हमादशाही | फतेहउल्लाह इमादशाह | 1490 ई. |
4. | गोलकुण्डा | कुतुबशाही | कुलीकुतुबशाह | 1512 ई. |
5. | बीदर | बरीदशाही | अमीर अली बरीद | 1526 ई. |
मुगल साम्राज्य
मुगल वंश का संस्थापक बाबर था। उसने पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल वंश की स्थापना की।
बाबर (1526-1530 ई.)
बाबर फरगना के शासक उमर शेख मिर्जा का बेटा था। पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार ‘तुलगमा पद्धति‘ तथा ‘तोपखाने‘ का प्रयोग किया था। प्रारम्भ में बाबर के शव को आगरा में दफनाया गया, बाद में काबुल में दफनाया गया।
बाबर के शासनकाल में लड़े गए प्रमुख युद्ध-
युद्ध का नाम | वर्ष | प्रतिपक्षी शासक | परिणाम |
पानीपत का प्रथम युद्ध | 1526 ई. | इब्राहिम लोदी | बाबर विजयी |
खानवा का युद्ध | 1527 ई. | राणा साँगा | बाबर विजयी |
चन्देरी का युद्ध | 1528 ई. | मेदनी राय | बाबर विजयी |
घाघरा का युद्ध | 1529 ई. | अफगानों की सम्मिलित सेना | बाबर विजयी |
हुमायूँ (1530-1556 ई.) (1545-1555 तक निर्वासन काल)
हुमायूँ ने अपने राज्य का बँटवारा अपने भाइयों में कर दिया। 1533 ई. में उसने ‘दीनपनाह‘ नामक नगर की स्थापना की।
- जून 1539 ई. में हुमायूँ तथा शेर खाँ (शेरशाह सूरी) के बीच चौसा का युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूँ पराजित हुआ, और 1540 में कन्नौज/बिलग्राम के युद्ध में हारने के बाद आगरा और दिल्ली की गद्दी छोड़कर भागना पड़ा।
- 1540 ई. में हुमायूँ तथा शेर खाँ, के बीच कन्नौज या बिलग्राम का युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूँ पुनः पराजित हुआ तथा उसे भारत छोड़कर भागना पड़ा।
- हुमायूँ के निर्वासन काल में ही 1542 ई. में अमरकोट में अकबर का जन्म हुआ।
- 1555 ई. में ‘मच्छीवाड़ा एवं सरहिन्द के युद्ध’ में हुमायूँ ने अपना खोया साम्राज्य वापस प्राप्त कर लिया।
हुमायूँ की मृत्यु 1556 ई. में दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हो गई।
शेरशाह सूरी (1540-45 ई.)
शेरशाह का असली नाम फरीद खाँ था। उसके पिता हसन खाँ सासाराम के जमींदार थे। 1540 ई. में कन्नौज के युद्ध में विजयी होने के बाद उसने शेरशाह की उपाधि धारण की।
- उसने पुराने सिक्कों की जगह शुद्ध सोने-चाँदी के सिक्के जारी किये।
- उसने ‘जब्ती’ प्रणाली लागू की, जिसके अन्तर्गत लगान का निर्धारण भूमि की माप के आधार पर किया जाता था।
- शेरशाह ने रुपया का प्रचलन शुरू किया, जो 178 ग्रेन चाँदी का होता था।
- उसने दिल्ली में पुराने किले का निर्माण करवाया। उसके अन्दर ‘किला-ए-कुहना मस्जिद’ का निर्माण करवाया।
- उसके शासनकाल में मलिक मुहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ की रचना की।
- शेरशाह का मकबरा सासाराम में स्थित है।
- कालिंजर विजय अभियान के दौरान शेरशाह की तोप फटने से मृत्यु हो गई।
- शेरशाह ने ‘सड़क-ए-आजम’ (ग्राण्ड ट्रंक रोड) का निर्माण करवाया, सोनारगाँव से पेशावर तक जाती थी।
इस अफ़ग़ानी ‘सूरी वंश‘ का अंतिम शासक आदिल शाह सूरी था। जबकि उसका भी सिकंदर शाह सूरी दिल्ली पर राज करता था, जिसे हुमायूँ ने 1555 ई. में सरहिन्द के युद्ध में हराकर सूरी वंश का अंत किया।
अकबर (1556-1605 ई.)
अकबर का राज्याभिषेक 14 वर्ष की आयु में पंजाब के कलानौर नामक स्थान पर हुआ था। बैरम खाँ अकबर का संरक्षक था। पानीपत का द्वितीय युद्ध नवम्बर, 1556 ई. में हुआ, जिसमें बैरम खाँ के नेतृत्व वाली मुगल सेना ने हेमू के नेतृत्व वाली अफगान सेना को पराजित किया।
अकबर के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य:
वर्ष | कार्य |
1562 ई. | दासप्रथा का अन्त |
1562 ई. | अकबर को हरमदल से मुक्ति |
1562 ई. | तीर्थयात्रा कर समाप्त |
1564 ई. | जजिया कर समाप्त |
1571 ई. | फतेहपुर सीकरी की स्थापना एवं राजधानी का आगरा से फतेहपुर सीकरी स्थानान्तरण |
1575 ई. | इबादतखाने की स्थापना |
1578 ई. | इबादतखाने में सभी धर्मों के लोगों के प्रवेश की अनुमति |
1579 ई. | मजहर की घोषणा |
1582 ई. | दीन-ए-इलाही की स्थापना |
1583 ई. | इलाही सम्वत् की शुरूआत |
अकबर के शासनकाल के दौरान 1576 ई. में मेवाड़ के शासक राणा प्रताप तथा मुगल सेना के बीच ‘हल्दी घाटी का युद्ध‘ हुआ, जिसमें मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना विजयी रही।
- अकबर के दीवान राजा टोडरमल ने 1580 ई. में ‘दहसाला बन्दोबस्त‘ लागू किया।
- दीन-ए-इलाही स्वीकार करने वाला प्रथम एवं अन्तिम हिन्दू राजा बीरबल था। बीरबल के बचपन का नाम महेश दास था।
- अबुल फजल ने ‘आईन-ए-अकबरी’ तथा ‘अकबरनामा’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
- अकबर के दरबार में ‘नवरत्न‘ थे जिनमें तानसेन, बीरबल, टोडरमल आदि प्रमुख थे।
- ‘मनसबदारी प्रथा’ एक विशिष्ट सैन्य एवं प्रशासनिक व्यवस्था थी, जिसे भारत में अकबर ने प्रारम्भ किया था।
- अकबर के दरबार में अब्दुस्समद, दसवन्त एवं बसावन प्रमुख चित्रकार थे।
- अकबर का मकबरा सिकन्दरा में है।
जहाँगीर (1605-27 ई.)
जहाँगीर के बचपन का नाम सलीम था। यह नाम अकबर ने सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा था। जहाँगीर को ‘न्याय की जंजीर‘ के लिए याद किया जाता है जो उसने आगरा के किले में लगवाई थी।
- अपने विद्रोही पुत्र खुसरो का साथ देने के आरोप में उसने सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को फाँसी दे दी थी।
- जहाँगीर ने मेहरुन्निसा को शादी के बाद ‘नूरमहल’ एवं ‘नूरजहाँ’ की उपाधि दी।
- नूरजहाँ ईरान निवासी ग्यासबेग की पुत्री एवं अली कुली बेग (शेर अफगान) की विधवा थी।
- जहाँगीर के शासनकाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपनी पहली फैक्ट्री सूरत में स्थापित की।
- जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहाँगीरी’ की रचना फारसी भाषा में की।
- जहाँगीर के समय मुगल चित्रकला चरमोत्कर्ष पर थी।
- जहाँगीर के दरबार में आगा रजा, अबुल हसन, उस्ताद मंसूर, विशनदास, मनोहर आदि प्रमुख चित्रकार थे।
- जहाँगीर की मृत्यु भीमवार नामक स्थान पर हुई। उसे शहादरा (लाहौर) में रावी नदी के किनारे दफनाया गया।
शाहजहाँ (1627-1657 ई.)
शाहजहाँ के शासनकाल को ‘स्थापत्य कला का स्वर्ण युग’ कहा जाता है। उसने पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से 1632 ई. में पुर्तगालियों से युद्ध किया एवं हुगली पर अधिकार कर लिया।
- उसने दिल्ली में एक महाविद्यालय का निर्माण एवं दारुल बका नामक महाविद्यालय की मरम्मत करवाई।
- उसने दिल्ली में ‘शाहजहांनाबाद’ नामक नया नगर बसाया तथा यहाँ नई राजधानी स्थापित की।
- मयूर सिंहासन का निर्माण शाहजहाँ ने ही करवाया था।
- अपनी बेगम मुमताजमहल की याद में शाहजहाँ ने आगरा में ताजमहल का निर्माण करवाया।
- शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई प्रमुख इमारतें हैं- दिल्ली का लाल किला, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद आदि।
- उत्तराधिकार के युद्ध में औरगंजेब ने शाहजहाँ को बन्दी बना कर आगरा के किले में डाल दिया जहाँ, 1666 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
औरंगजेब (1658-1707 ई.)
औरंगजेब को शासक बनने के लिए अपने भाइयों से युद्ध करना पड़ा था। दारा एवं औरंगजेब के बीच उत्तराधिकार का अन्तिम युद्ध देवराई की घाटी में 1659 ई. में हुआ। युद्ध में औरंगजेब विजयी रहा। उसके बाद उसने इस्लाम धर्म की अवहेलना के आरोप में दारा की हत्या करवा दी।
- 1659 ई. में दिल्ली में शाहजहाँ के महल में दूसरी बार औरंगजेब का हुआ।
- औरंगजेब के समय मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ था। उसके शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या भी सबसे अधिक थी।
- इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करने के कारण सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर की हत्या औरंगजेब ने करवा दी।
- उसे ‘जिन्दा पीर’ भी कहा जाता है।
- उसने 1679 ई. में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया।
- उसने ‘झरोखा दर्शन’ तथा ‘तुलादान प्रथा’ पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
- औरंगजेब ने अपना अधिकतर समय दक्षिण भारत को जीतने में लगा दिया, जो उसके लिए नासूर साबित हुआ।
- औरंगजेब को मृत्यु के बाद दौलताबाद के निकट दफना दिया गया। उसका मकबरा औरंगाबाद में स्थित है।
- दिल्ली के लाल किला में ‘मोती मस्जिद’ का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था।
मराठा साम्राज्य: एक उत्कर्ष
मराठा-शक्ति का उत्कर्ष शिवाजी के नेतृत्व में हुआ। उनका जन्म 1627 ई. में पूना के निकट स्थित शिवनेर किले में हुआ था। शिवाजी (1627-1680 ई.) के पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी के गुरु एवं संरक्षक दादाजी कोण्डदेव थे। उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी समर्थ रामदास थे।
- अपने सैन्य अभियान के अन्तर्गत शिवाजी ने सर्वप्रथम तोरण के किले को जीता।
- शिवाजी की राजधानी रायगढ़ थी। उन्होंने बीजापुर के सेनापति अफजल खाँ को पराजित कर, उसकी हत्या कर दी।
- शिवाजी ने ‘गुरिल्ला युद्ध‘ पद्धति को अपनाया था।
- शिवाजी और राजा जयसिंह के बीच 1665 ई. में पुरन्दर की सन्धि हुई।
- 1674 ई. में शिवाजी ने रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक कराया। उनका राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान् श्री गंगा भट्ट से करवाया गया। उन्होंने ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की।
- शिवाजी का अन्तिम महत्त्वपूर्ण अभियान 1676 ई. में कर्नाटक का अभियान था। उनकी मृत्यु 1680 ई. में हो गई।
- शिवाजी ने शासन कार्यों में सहयोग के लिए आठ मन्त्रियों की एक परिषद गठित की, जि.से ‘अष्ट प्रधान’ कहा जाता था ।
- शिवाजी की कर व्यवस्था मलिक अम्बर की व्यवस्था पर आधारित थी।
- बालाजी विश्वनाथ मराठों के प्रथम पेशवा थे, उन्हें मराठा साम्राज्य का ‘द्वितीय संस्थापक’ भी कहा जाता है।
- बालाजी विश्वनाथ ने 1719 ई. में मुगलों से एक सन्धि की, जिसे ‘मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है।
- बाजीराव प्रथम के समय मराठों की शक्ति चरमोत्कर्ष पर थी। उसे हिन्दू पद पादशाही का सिद्धान्त प्रतिपादित करने का भी श्रेय दिया जाता है।
- बालाजी बाजीराव को ‘नाना साहब’ के नाम से भी जाना जाता है। इसने पेशवा के पद को पैतृक बनाया।
- बालाजी बाजीराव के समय ही पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी, 1716 ई.) हुआ। इसमें अहमदशाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगान सेना विजयी रही।
- बाजीराव द्वितीय मराठों का अन्तिम पेशवा था। 1818 ई. में अंग्रेजों ने पेशवा पद को समाप्त करके बाजीराव द्वितीय को कानपुर के निकट बिठूर निर्वासित कर दिया, जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
आधुनिक भारत का इतिहास
आधुनिक भारत का इतिहास 18वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब भारत पर धीरे-धीरे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण स्थापित हुआ। 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद कंपनी ने बंगाल पर अधिकार कर लिया, और 1858 तक पूरे भारत पर अपना शासन फैला दिया। इसके बाद भारत ब्रिटिश सिंहासन के अधीन आ गया, जिसे ब्रिटिश राज कहा जाता है।
19वीं और 20वीं शताब्दी में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज हुआ। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेताओं ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे प्रमुख आंदोलनों ने अंग्रेजों पर दबाव डाला।
15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली, और इसके बाद देश ने लोकतांत्रिक संविधान अपनाया। 1950 में भारत एक गणराज्य बना। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की, लेकिन विभाजन और गरीबी जैसी चुनौतियों का भी सामना किया। आधुनिक भारत का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम, विभाजन, राष्ट्र निर्माण, और विकास की कहानी है।
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन तथा अंग्रेजी आधिपत्य
- 1498 ई. में वास्कोडिगामा केरल के कालीकट के तट पर समुद्री मार्ग से पहुँचा।
- 1505 ई. में ‘फ्रांसिस्को द अल्मीडा‘ भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनकर आया ।
- अल्बुकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के युसूफ आदिलशाह से गोवा जीता।
- भारत में प्रथम पुर्तगाली व्यापारिक कोठी कोचीन में स्थापित हुई।
- भारत में पहली डच फैक्ट्री मसूलीपट्टनम् में स्थापित की गई।
- डचों का भारत में अन्तिम रूप से पतन 1759 ई. में ‘वेदरा के युद्ध’ से हुआ।
- मुगल दरबार में जाने वाला प्रथम अंग्रेज कैप्टन हॉकिन्स था, जो जेम्म प्रथम के राजदूत के रूप में जहाँगीर के दरबार में गया था।
- 1615 ई. में सर टॉमस रो जहाँगीर के दरबार में पहुँचा ।
- 1717 ई. में फर्रुखसियर ने 3,000 रुपये वार्षिक कर के बदले कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में व्यापारिक अधिकार प्रदान किया।
- 1757 ई. में क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को प्लासी के युद्ध में हराकर अंग्रेजी आधिपत्य कायम किया।
- बक्सर के युद्ध (1764 ई.) में अंग्रेजों ने शाहआलम (मुगल सम्राट), शुजाउद्दौला (अवध का नवाब) तथा मीर कासिम (बंगाल का नवाब) की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर अंग्रेजी प्रभुत्व का विस्तार दिल्ली तक किया।
- फ्रांसीसियों ने 1667 ई. में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री खोली।
- फ्रांसीसी गवर्नर इप्ले बहत महत्त्वाकांक्षी था। वह भारत में फ्रांसीसी विस्तार की इच्छा रखता था।
- 1760 ई. में ‘वाण्डीवाश के युद्ध’ में फ्रांसीसियों की महत्त्वाकांक्षा ध्वस्त हो गई। उसे अंग्रेजों से इस युद्ध में पराजय मिली।
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन:
वर्ष | कम्पनी |
1498 ई. | पुर्तगाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1600 ई. | अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1602 ई. | डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1616 ई. | डेनिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1664 ई. | फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1731 ई. | स्वीडिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
1857 का विद्रोह
1857 ई. के विद्रोह की शुरूआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई। विद्रोह का तात्कालिक कारण नई एनफील्ड राइफल में चर्बीयुक्त (गाय एवं सूअर की चर्बी) कारतूस का प्रयोग करना था। इससे पहले बैरकपुर (प. बंगाल) में 34वीं नेटिव के सिपाही मंगल पाण्डे ने 28 मार्च, 1857 ई. को अपने सार्जेण्ट मेजर लेफ्टिनेन्ट बाघ पर गोली चला दी।
1857 ई. के विद्रोह के केन्द्र, भारतीय नायक तथा विद्रोह को दबाने वाले अधिकारी-
केन्द्र | भारतीय नायक | ब्रिटिश अधिकारी (विद्रोह दबाने वाला) |
दिल्ली | बहादुरशाह जफर/बख्त खाँ (सैन्य नेतृत्व) | निकल्सन एवं हडसन |
कानपुर | नाना साहब /तात्यां टोपे (सैन्य नेतृत्व) | कैंपबेल |
लखनऊ | बेगम हजरत महल | कैंपबेल |
झाँसी | रानी लक्ष्मीबाई | ह्यूरोज |
इलाहाबाद | लियाकत अली | कर्नल नील |
जगदीशपुर | कुँवर सिंह | विलियम टेलर एवं विन्सेंट आयर |
बरेली | खान बहादुर खाँ | विन्सेंट आयर |
फैजाबाद | मौलवी अहमद उल्ला | – |
फतेहपुर | अजीमुल्ला | जनरल रेनर्ड |
सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलन
- राजा राममोहन राय को ‘भारतीय पुनर्जागरण का जनक’ कहा जाता है।
- राजा राममोहन राय ने कोलकाता में ‘वेदान्त कॉलेज’ तथा डेविड हेयर के साथ मिलकर ‘हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना की।
- ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना 1828 ई. में राजा राममोहन राय ने की।
- ‘ब्रह्म समाज’ में विभाजन के बाद केशवचन्द्र सेन ने 1866 ई. में आदि ब्रह्म समाज की स्थापना की।
- यंग बंगाल आन्दोलन के प्रवर्तक हेनरी विवियन डेरोजियो, हिन्दू कॉलेज के प्राध्यापक थे।
- प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पाण्डुरंग ने बम्बई में की।
- आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. में बम्बई में की।
- दयानन्द सरस्वती का वास्तविक नाम मूलशंकर था।
- दयानन्द सरस्वती ने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया।
- रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई. में की। इस मिशन का नाम रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा गया था।
- स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेन्द्र दत्त था।
- विवेकानन्द ने 1893 ई. में शिकागो (अमेरिका) की विश्व धर्म संसद में भाग लिया था।
- थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना न्यूयॉर्क में 1875 ई. में कर्नल एच. एस. अल्काट तथा मैडम ब्लावाट्स्की द्वारा की गई।
- थियोसोफिकल सोसायटी की शाखा चेन्नई के निकट अड्यार में 1886 ई. में स्थापित की गई।
- वहाबी आन्दोलन के नेता सैयद अहमद बरेलवी थे। वहाबी आन्दोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
- ‘अलीगढ़ आन्दोलन’ की शुरूआत सर सैयद अहमद खाँ ने की थी।
भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी ए. ओ. ह्यूम द्वारा 1885 ई. में की गई।
- कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन दिसम्बर 1885 ई. में बम्बई में हुआ। इसमें कुल 72 सदस्यों ने भाग लिया था। इसके पहले अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।
- बदरुद्दीन तैयबजी कांग्रेस के पहले मुस्लिम अध्यक्ष (1887 ई.) तथा जार्ज यूले प्रथम ईसाई तथा विदेशी अध्यक्ष (1888 ई.) थे।
- बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रवादी भावना को बढ़ाने के उद्देश्य से 1893 ई. में ‘गणपति उत्सव’ तथा 1895 ई. में ‘शिवाजी उत्सव’ प्रारम्भ किया।
- बंगाल में राष्ट्रीय चेतना को समाप्त करने के लिए लॉर्ड कर्जन द्वारा 16 अक्टूबर, 1905 ई. में बंगाल का विभाजन कर दिया गया।
- बंगाल विभाजन के विरोध में पूरे देश में स्वदेशी एवं बहिष्कार आन्दोलन चलाया गया।
- लाल, बाल एवं पाल क्रमशः लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल को कहा जाता था। ये उग्रपन्थी विचारधारा के समर्थक थे।
- दादा भाई नौरोजी ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (1906 ई.) में सर्वप्रथम स्वराज की माँग प्रस्तुत की। उन्हें ‘ग्रैण्ड ओल्ड मैन ऑफ इण्डिया’ कहा जाता है।
- दादा भाई नौरोजी ने सर्वप्रथम ‘धन निकासी’ का सिद्धान्त दिया जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि किस प्रकार अंग्रेज भारत से धन ले जा रहे हैं।
- स्वदेशी के मुद्दे पर 1907 ई. के कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन दो भागों में हो गया।
- 1906 ई. में ढाका के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में ‘मुस्लिम लीग’ का गठन हुआ।
- सरकार ने 1909 ई. में भारतीय परिषद् अधिनियम पारित किया, जिसमें पहली बार मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्र एवं मताधिकार की व्यवस्था दी गई थी।
- 1911 ई. में दिल्ली में इंग्लैण्ड के सम्राट जॉर्ज पंचम एवं महारानी मेरी के स्वागत में भव्य दरबार का आयोजन किया गया। इस समारोह में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा की गई।
- 1916 ई. में लखनऊ में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस के विभाजित धड़ों में समझौता हो गया। इसी अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग एक मंच पर आये ।
- स्वशासन की माँग तेज करने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल, 1916 ई. में तथा ऐनी बेसेन्ट ने सितम्बर, 1916 ई. में ‘होमरूल लीग’ का गठन किया। कांग्रेस के 1917 ई. के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीमती ऐनी बेसेन्ट ने की। इस पद पर चुनी जाने वाली वे पहली महिला थीं।
- 1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन की व्यवस्था की गई।
- पंजाब के दो महत्त्वपूर्ण नेता सैफुद्दीन किचलू तथा डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 ई. को विशाल जनसभा आयोजित की गई थी।
- जनरल डायर के निर्देश पर इस सभा पर गोलियाँ चलाई गई, जिसमें सैकड़ों निहत्थे लोग मारे गए। इसे ‘जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड’ के नाम से जाना जाता है।
- जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी ‘सर’ की उपाधि लौटा दी।
- 1920 ई. में तुर्की के खलीफा के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के विरोध में भारत में ‘खिलाफत आन्दोलन’ चलाया गया।
- कांग्रेस ने गाँधीजी के नेतृत्व में 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। 5 फरवरी, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने कुछ सिपाहियों को थाने में जिन्दा जला दिया। इससे क्षुब्ध होकर गाँधीजी ने आन्दोलन को तत्काल वापस ले लिया।
- जनवरी, 1923 ई. में चित्तरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने ‘कांग्रेस खिलाफत स्वराज्य पार्टी’ की स्थापना की।
- 1923 ई. के चुनावों में स्वराज पार्टी केन्द्रीय विधायिका में विट्ठल भाई पटेल को अध्यक्ष के पद पर निर्वाचित करवाने में सफल रही।
- 8 नवम्बर, 1927 ई. को 1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम की समीक्षा करने के लिए साइमन कमीशन का गठन किया गया।
- 3 फरवरी, 1928 ई. को साइमन कमीशन भारत आया, लेकिन इस कमीशन में एक भी भारतीय के न होने के कारण देश भर में इसका विरोध किया गया।
- लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन पर हुए लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय को गम्भीर चोट लगी, जिसके कारण बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
- 1929 ई. के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए, जवाहलाल नेहरू ने ‘पूर्ण स्वराज’ का लक्ष्य घोषित किया।
- 31 दिसम्बर, 1929 ई. को लाहौर में रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगे झण्डे को फहराया।
- 12 मार्च, 1930 ई. को महात्मा गाँधी ने 78 स्वयं सेवकों के साथ साबरमती आश्रम से डाण्डी के लिए प्रस्थान किया।
- 6 अप्रैल 1930 ई. को डाण्डी पहुँचकर गाँधीजी ने नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत की।
- 5 मार्च, 1931 को गांधीजी एवं तत्कालीन वायसराय इरविन के बीच हुए समझौते के बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया।
- लन्दन में आयोजित तीन गोलमेज सम्मेलनों में कांग्रेस ने सिर्फ द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। इसमें कांग्रेस का प्रतिनिधित्व महात्मा गाँधी ने किया था।
- ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड द्वारा 1932 ई. में दलितों के लिए पृथक निर्वाचन सम्बन्धी ‘साम्प्रदायिक पंचाट’ (कम्युनल अवार्ड) की घोषणा की गई।
- 1932 ई. में महात्मा गाँधी एवं बी. आर. अम्बेडकर के बीच ‘पूना समझौता’ हुआ, जिसके बाद अम्बेडकर ने दलितों (हरिजनों) के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की माँग को वापस ले लिया।
- जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव एवं मीनू मसानी के प्रयासों से 1934 ई. में ‘कांग्रेस समाजवादी दल’ का गठन किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के अन्तर्गत ‘प्रान्तीय स्वायत्तता’ की व्यवस्था की गई तथा एक संघीय न्यायालय के गठन का प्रावधान किया गया।
- 1937 ई. के प्रान्तीय विधानसभाओं के चुनाव के बाद कांग्रेस ने 8 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाई। मुहम्मद अली जिन्ना ने 1940 ई. के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पृथक पाकिस्तान की माँग की।
- 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रारम्भ करते हुए, महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
- महात्मा गाँधी से मतभेद होने के कारण सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर 1939 ई. में ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ का गठन किया।
- ‘आजाद हिन्द फौज’ के गठन का विचार सर्वप्रथम कैप्टन मोहन सिंह के मन में आया था।
- 21 अक्टूबर, 1943 ई. को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की।
- ‘दिल्ली चलो’ तथा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का नारा सुभाषचन्द्र बोस ने दिया था।
- महात्मा गाँधी को सर्वप्रथम ‘राष्ट्रपिता’ सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था ।
- 1946 ई. में ‘कैबिनेट मिशन’ भारत आया। इसके सदस्य थे- स्टैफर्ड क्रिप्स, पैथिक लॉरेन्स एवं ए. वी. अलेक्जेण्डर ।
- कैबिनेट मिशन की संस्तुति पर ही ‘संविधान सभा’ का गठन किया गया था।
- 3 जून, 1947 ई. को तत्कालीन वायसराय माउण्टबेटन ने ‘माउण्टबेटन योजना’ प्रस्तुत की, जो बाद में भारत विभाजन का आधार बनी।
- 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत एवं पाकिस्तान नाम के दो नये राष्ट्र अस्तित्व में आए।
- भारत की स्वतन्त्रता के समय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट एटली थे। वे ‘लेबर पार्टी’ से सम्बन्धित थे।
- भारत की स्वतन्त्रता के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी थे।
- भारत के प्रथम गवर्नर जनरल ‘लॉर्ड माउण्टबेटन’ थे। बाद में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी प्रथम एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर जनरल बने थे।
स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान प्रमुख क्रान्तिकारी
- भारत में प्रथम क्रान्तिकारी घटना 22 जून, 1897 ई. को घटी, जब चापेकर बन्धुओं ने पूना के प्लेग अधिकारियों रैण्ड एवं आमर्स्ट की गोली मारकर हत्या कर दी।
- ‘अभिनव भारती’ की स्थापना वी.डी. सावरकर ने की थी।
- प्रफुल्ल चन्द्र चाकी एवं खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर के जज किंग्स फोर्ड को 1907 ई. में मारने का प्रयास किया। इस मामले में खुरीदाम बोस को फाँसी दी गई।
- 1905 ई. में लन्दन में श्याम जी कृष्ण वर्मा ने ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की।
- 1907 ई. में जर्मनी के स्टुटगार्ट शहर में मैडम भीकाजी कामा ने भारत का राष्ट्रीय तिरंगा फहराया। उन्हें ‘मदर ऑफ इण्डियन रिवोल्यूशन’ कहा जाता है।
- रासबिहारी बोस ने 1911 ई. में नई राजधानी दिल्ली में प्रवेश करते समय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका था।
- लाल हरदयाल ने प्रवासी भारतीयों के सहयोग से 1913 ई. में सेनफ्रांसिस्को में ‘गदर पार्टी’ की स्थापना की।
- 1924 ई. में ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई, जिसके सदस्यों ने अगस्त, 1925 ई. को काकोरी जाने वाली ट्रेन में सरकारी खजाने को लूटा।
- चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 1928 ई. में दिल्ली में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई।
- लाल लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह के नेतृत्व में पुलिस कप्तान साण्डर्स की हत्या 1928 ई. में कर दी गई।
- 8 अप्रैल, 1929 ई. को ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ के विरोध में भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंका।
- बंगाल से प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सूर्यसेन के नेतृत्व में 1930 ई. में चटगाँव शस्त्रागार पर धावा बोला गया था।
- 23 मार्च, 1931 ई. को लाहौर षड्यन्त्र केस में भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फाँसी दी गई।
आधुनिक भारत एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय गठित महत्त्वपूर्ण राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन तथा संस्थाएँ:
संस्था | स्थापना वर्ष (ई.) | संस्थापक |
---|---|---|
एशियाटिक सोसाइटी | 1784 | विलियम जोन्स |
आत्मीय सभा | 1815 | राजा राममोहन राय |
वेदान्त कॉलेज | 1825 | राजा राममोहन राय |
युवा बंगाल आन्दोलन | 1826 | हेनरी लुई विवियन डेरोजियो |
ब्रह्म समाज | 1828 | राजा राममोहन राय |
तत्त्वबोधिनी सभा | 1839 | देवेन्द्रनाथ ठाकुर |
ब्रिटिश सार्वजनिक सभा | 1843 | दादाभाई नौरोजी |
परमहंस सभा | 1849 | दादोबा पाण्डुरंग |
रहनुमाई माजदायान सभा | 1851 | दादाभाई नौरोजी |
बालिका विद्यालय | 1851 | ज्योतिबा फूले |
मोहम्मडन एंग्लो लिटरेरी सोसायटी | 1863 | अब्दुल लतीफ |
साइन्टिफिक सोसायटी | 1864 | सर सैयद अहमद खाँ |
इण्डियन एसोसिएशन | 1866 | दादाभाई नौरोजी |
पूना सार्वजनिक सभा | 1867 | एम. जी. रानाडे |
प्रार्थना समाज | 1867 | एम. जी. रानाडे, आत्माराम पाण्डुरंग |
वेद समाज | 1867 | श्री घरलू नायडू |
अलीगढ़ मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज | 1875 | सर सैयद अहमद खाँ |
इण्डियन लीग | 1875 | शिशिर कुमार घोष |
आर्य समाज | 1875 | स्वामी दयानन्द सरस्वती |
इण्डियन एसोसिएशन, | 1876 | आनन्दमोहन बोस, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
थियोसोफिकल सोसायटी | 1882 | मैडम ब्लावट्स्की एवं कर्नल अल्काट |
यूनाइटेड इण्डियन कमेटी | 1883 | व्योमेशचन्द्र बनर्जी |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 1885 | ए. ओ. ह्यूम |
बॉम्बे प्रेसीडेन्सी एसोसिएशन | 1885 | फिरोजशाह मेहता, तैलंग तथा तैयबजी |
बेलूर मठ | 1887 | स्वामी विवेकानन्द |
इण्डियन सोशल कॉन्फ्रेंस | 1887 | महादेव गोविन्द रानाडे |
शारदा सदन | 1889 | रमाबाई |
रामकृष्ण मिशन | 1897 | स्वामी विवेकानन्द |
सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसायटी | 1905 | गोपाल कृष्ण गोखले |
मुस्लिम लीग | 1906 | आगा खाँ एवं सलीमुल्लाखान |
अभिनव भारती | 1906 | विनायक दामोदर सावरकर |
अनुशीलन समिति | 1907 | बारीन्द्र घोष, भूपेन्द्र दत्त |
सोशल सर्विस लीग | 1911 | नारायण मल्हार जोशी |
विश्व भारती | 1912 | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
गदर पार्टी | 1913 | लाला हरदयाल, काशीराम |
हिन्दू महासभा | 1915 | मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय एवं केलकर |
होमरूल लीग | 1916 | तिलक एवं ऐनी बेसेन्ट |
वीमेन्स इण्डिया एसोसिएशन | 1917 | लेडी सदाशिव अय्यर |
खिलाफत आन्दोलन | 1919 | अली बन्धु |
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन | 1920 | एन. एम. जोशी |
स्वराज पार्टी | 1923 | मोतीलाल नेहरू एवं चितरंजन दास |
बहिष्कृत हितकारिणी सभा | 1924 | बी. आर. अम्बेडकर |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ | 1927 | डॉ. हेडगेवार एवं बी. एस. मुंजे |
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी | 1928 | भगत सिंह एवं चन्द्रशेखर आजाद |
स्वतन्त्र श्रमिक पार्टी | 1936 | बी. आर. अम्बेडकर |
खुदाई खिदमतगार. | 1937 | खान अब्दुल गफ्फार खाँ |
फॉरवर्ड ब्लॉक | 1939 | सुभाषचन्द्र बोस |
आजाद हिन्द फौज | 1942 | रास बिहारी बोस |
आजाद हिन्द सरकार | 1943 | सुभाषचन्द्र बोस |
प्रमुख गवर्नर जनरल एवं वायसराय तथा उनसे संबंधित प्रमुख कार्य
बंगाल के गवर्नर जनरल:
गवर्नर | कार्यकाल (ई.) | कार्य |
---|---|---|
वारेन हेस्टिंग्स | 1774-85 | रेवेन्यू फौजदारी व अपीलीय न्यायालयों की स्थापना, द्वैध शासन की समाप्ति |
लॉर्ड कार्नवालिस | 1786-93 | स्थायी भूमि बन्दोबस्त, कार्नवालिस कोड |
लॉर्ड वेलेजली | 1798-1805 | सहायक सन्धि प्रणाली |
भारत के गवर्नर जनरल:
गवर्नर | कार्यकाल (ई.) | कार्य |
---|---|---|
विलियम बैंटिंक | 1833-35 | सती प्रथा की समाप्ति, ठगी प्रथा का उन्मूलन |
चार्ल्स मेटकॉफ | 1835-36 | प्रेस पर प्रतिबन्ध की समाप्ति |
लॉर्ड एलनबरो | 1842-44 | सिन्ध का विलय |
लॉर्ड डलहौजी | 1848-46 | रेल, आधुनिक डाक, तार व पी. डब्ल्यू. डी. की स्थापना, वुड डिस्पैच की घोषणा, ‘हड़प नीति’ का जनक |
भारत के वायसराय:
वायसराय | कार्यकाल (ई.) | कार्य |
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लॉर्ड कैनिंग | 1858-62 | कलकत्ता, बम्बई व मद्रास विश्वविद्यालय स्थापित |
लॉर्ड लिटन | 1876-80 | दिल्ली दरबार, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट |
लॉर्ड रिपन | 1880-84 | प्रथम कारखाना अधिनियम, इल्बर्ट बिल |
लॉर्ड कर्जन | 1899-1905 | बंगाल विभाजन, प्राचीन स्मारक परिरक्षण कानून, भारतीय विश्वविद्यालय कानून |
लॉर्ड मिण्टो | 1995-10 | पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था |
लॉर्ड हार्डिंग | 1910-16 | भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित |
लॉर्ड चेम्सफोर्ड | 1916-21 | रौलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड |
लॉर्ड इरविन | 1926-31 | गाँधी-इरविन समझौता (1931 ई.) |
लॉर्ड वेलिंगटन | 1931-34 | कम्युनल अवार्ड (1931 ई.) |
लॉर्ड लिनलिथगो | 1934-37 | प्रान्तीय चुनाव |
लॉर्ड वैवेल | 1943-47 | शिमला सम्मेलन, कैबिनेट मिशन, संविधान सभा की स्थापना |
लॉर्ड माउण्टबेटन | 1947 | भारत विभाजन एवं भारत की स्वतन्त्रता |
ब्रिटिश शासन के दौरान हुए महत्वपूर्ण विद्रोह
आन्दोलन/विद्रोह | प्रभावित क्षेत्र | सम्बन्धित नेता / नेतृत्व | विद्रोह का वर्ष (ई.) |
संन्यासी विद्रोह | बिहार, बंगाल | केना सरकार, दिरजीनारायण | 1763-1800 |
फकीर विद्रोह | बंगाल | मजनुशाह एवं चिराग अली | 1776-77 |
चुआर विद्रोह | बाकुड़ा (बंगाल) | दुर्जन सिंह | 1798 |
पॉलीगरों का विद्रोह | तमिलनाडु | वीर पी. काट्टावाग्मान | 1799-01 |
वेलुथाम्पी विद्रोह | ट्रावनकोर | वेलुथाम्पी | 1808-09 |
भील विद्रोह | पश्चिमी घाट | सेवाराम | 1825-31 |
रामोसी विद्रोह | पश्चिमी घाट | चित्तर सिंह | 1822-29 |
पागलपन्थी विद्रोह | असोम | टीपू | 1825-27 |
अहोम विद्रोह | असोम | गोमधर कुँवर | 1828 |
वहाबी आन्दोलन | बिहार, उत्तर प्रदेश | सैयद अहमद टीटूमीर | 1831 |
कोल आन्दोलन | छोटा नागपुर (झारखण्ड) | नारायण राव | 1831-32 |
खासी विद्रोह | असोम | तीरथ सिंह | 1833 |
फैराजी आन्दोलन | बंगाल | शरीयतुल्ला | 1839 |
संथाल विद्रोह | बंगाल, बिहार | सिद्धू कान्हू | 1855-57 |
मुण्डा विद्रोह | बिहार | बिरसा मुण्डा | 1899-1900 |
पाइक विद्रोह | उड़ीसा | बख्शी जंगबन्धु | 1817-1825 |
नील आन्दोलन | बंगाल | दिगम्बर | 1859-60 |
पाबना विद्रोह | पाबना (बंगाल) | ईशानचन्द्र राय एवं शम्भुपाल | 1873-76 |
दक्कन विद्रोह | महाराष्ट्र | – | 1874-75 |
मोपला विद्रोह | मालाबार (केरल) | अली मुदालियार | 1920-22 |
कूका आन्दोलन | पंजाब | भगत जवाहरमल | – |
रम्पा विद्रोह | आन्ध्र प्रदेश | सीताराम राजू | 1879-1922 |
तानाभगत आन्दोलन | बिहार | जतरा भगत | 1914 |
तेभागा आन्दोलन | बंगाल | कम्पाराम सिंह एवं भवन सिंह | 1946 |
तेलंगाना आन्दोलन | आन्ध्र प्रदेश | – | 1946 |
भारत का इतिहास संपन्नता और परंपराओं से भरा हुआ रहा है, जो विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, और सभ्यताओं के संगम से निर्मित हुई है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, भारत ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिसने इसे एक अद्वितीय पहचान प्रदान की है।
प्राचीन भारत की महान सभ्यताएँ, जैसे सिंधु घाटी और वैदिक संस्कृति, ने सामाजिक और धार्मिक मूल्यों की नींव रखी। मध्यकालीन भारत में, विभिन्न साम्राज्यों का उदय और गिरावट, युद्धों और सांस्कृतिक विनिमय का समय था, जिसने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया।
आधुनिक भारत का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों से भरा है, जो हमारी स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव हैं। यह विविधता, सहिष्णुता, और समर्पण की कहानी है, जिसने भारत को एक सशक्त और अद्वितीय राष्ट्र बनाया है। आज भारत एक तेजी से विकसित हो रहा देश है, जो अपने ऐतिहासिक धरोहर को सहेजते हुए, भविष्य की ओर बढ़ रहा है।