‘नारी शिक्षा’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- नारी शिक्षा का महत्व
- नारी शिक्षा की आवश्यकता
- महिला सशक्तीकरण
- नारी जागरण अभियान
- भारत में नारी शिक्षा का महत्व
- नारी शिक्षा समय की जरूरत
निबंध की रूपरेखा
नारी शिक्षा या महिला सशक्तिकरण
प्रस्तावना
नारी और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं जिनमें सामंजस्य होने पर ही यह गाडी सरपट दौड़ पाती है। यदि एक पहिया बड़ा और दूसरा छोटा कर दिया जाय तो गाड़ी में आये असंतुलन
की इस कल्पना कर ही सकते है।
शिक्षा जीवन के लिए परम आवश्यक है। चाहे वह पुरुष हो या नारी। नारी को शिक्षा से वंचित करके हम उसे विकास के अवसरों से वंचित कर देते हैं जो कदापि उचित नहीं है। भारतीय समाज में नारी को अनेक दृष्टियों से सम्मानजनक स्थान दिया गया है। फिर भी भारतीय नारी की स्थिति अत्यन्त दयनीय ही रही है।
पुरुषों ने नारियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा तथा उन पर अत्याचार किए हैं। आधुनिक युग में नारी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई है। उसमें नारी चेतना का प्रादुर्भाव हुआ है। देश के अनेक समाज सुधारकों, वर्तमान सरकारों, कुछ साहसी महिलाओं के नियोजित एवं संगठित प्रयासों के फलस्वरूप नारियों की दशा में कुछ सुधार सम्भव हो सके हैं।
समाज में नारी का महत्व
भारतीय समाज में नारी की भूमिका को अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना है तथा उसे उच्च स्थान प्रदान किया गया है। उसे देवी के रूप में मानते हुए यहां तक कहा गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः‘ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवताओं का वास होता है।
एक नारी ही ग्रहस्थी को उचित प्रकार से चला सकती है। सन्तान का पालन-पोषण करने, अपने त्याग, धैर्य, परिश्रम, प्रेम, स्नेह, ममता एवं हर प्रकार से घर के वातावरण को जीवन्त एवं प्रगतिशील बनाने की दिशा में नारी का विशेष महत्व होता है। एक मां, पत्नी व पुत्री के रूप में वह अनेक दायित्वों का निर्वाह करती है। नारी ही अपनी गृहस्थी को ठीक प्रकार से चलाती है।
नारी की स्थिति
प्राचीन समय में नारी का स्थान बहुत ही सम्माननीय था। स्त्री के बिना कोई भी यज्ञ अपूर्ण माना जाता था। उन्हें शिक्षा प्राप्ति, शास्त्रार्थ और अपने विभिन्न कौशलों का विकास करने की स्वतन्त्रता प्राप्त थी। सीता, सावित्री, शकुन्तला, गार्गी, आदि उसके श्रेष्ठ नारियां इसी काल से सम्बन्धित हैं।
मध्यकाल में नारी की स्थिति दयनीय हो गई। उसे हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। उसका कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी ही रह गया। अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा, आदि अनेक कुरीतियों के फलस्वरूप नारी का जीवन नरकमय बनता चला गया।
मध्य काल आते-आते नारी का स्थान पुरुषों की स्वार्थ-परता, काम-लोलुपता, आदि के कारण न केवल गिर गया बल्कि उसके अधिकारों पर कुठाराघात होने लगा, कार्यक्षेत्र सीमित हो गया, नारी को गन्दे कपड़े की तरह बरता जाने लगा।
साहित्यकार भी नारी को दोषों की खान के रूप में देखने लगे थे। अंग्रेजी नाटककार कवि तो यहां तक कह गया कि Frailty! Thy name is woman‘. (व्यभिचार, दुर्बलता! तेरा नाम ही औरत है)। विदेशियों की काम-लोलुप निगाहों से बचने के लिए पर्दा प्रथा प्रारम्भ हुई, नारी घर की चारदीवारी में कैद हो गई, शिक्षा के प्रति भी नारी को निरुत्साहित किया गया।
नारी जागरण व नारी शिक्षा हेतु प्रयास
आधुनिक काल आते-आते जहां नारी को पैरों की जूती समझा जाता था, अनेक अत्याचार उन पर होते थे वहां अब नारी जागरण, नारी स्वातन्त्र्य का बिगुल बज उठा। स्वामी दयानन्द के आर्य समाज ने नारी शिक्षा का मन्त्र फूंका, राजा राममोहन राय ने सती-प्रथा रुकवाई, महात्मा गांधी ने नारी उत्थान का नारा दिया, अनेक समाजसेवी व्यक्तियों ने पतित अबलाओं, अपहृताओं और वेश्याओं का उद्धार किया।
सरकार ने भी संविधान द्वारा नारी को शिक्षा प्राप्त करने, नौकरी करने, आदि के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए हैं। महिला सुधार हेत नारी निकेतन खोल दिए हैं। आज की नारी डॉक्टरी, इन्जीनियरी, अध्यापकी, लिपिकी, आदि क्षेत्रों में तो लगी ही हैं, पुलिस, रक्षा विभागों, आदि में भी उच्च पदस्थ रही है।
किरण वेदी (आई. पी. एस.), बछेन्द्री पाल (पर्वतारोहण में) अपना उच्च स्थान प्राप्त कर चुकी है। दहेज प्रथा को भी समाप्त करने के लिए कानून बन चुका है किन्तु समाज ने उसे अभी पूर्णरूपेण नहीं अपनाया है, अतः आए दिन वधुओ को जलाने, घर से निकाल बाहर करने की घटनाएं देखने-सुनने को मिलती रहती हैं।
यद्यपि सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं व्यक्तियों द्वारा महिला उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं और किए जाते रहेंगे तथापि जब तक समाज अधिक जागरूक नहीं होगा और नारियों के प्रति असहिष्णुता का दृष्टिकाण नहीं त्यागेगा तब तक पर्याप्त सफलता नहीं मिलेगी।
राजनीति कूटनीति तो पुरुषों द्वारा महिलाओं में फूट कराने की कोशिश अब भी सवर्ण, असवर्ण, अगडे, पिछड़े वर्ग, आदि के माध्यम से हो रही है। आज आवश्यकता है कि पुरुष समाज अपने दृष्टिकोण को बदले, नारी को सच्चे हृदय से ऊपर उठाकर समकक्ष लाने का प्रयास करे और उसकी प्रगति में अडंगे डालने से बाज आए।
नारी शिक्षा की आवश्यकता
नारी का सम्बन्ध दो परिवारों से होता है। वह एक ओर तो पिता के घर में रहकर अपने व्यक्तित्व से परिवार को प्रभावित करती है तो दूसरी ओर ससुराल में जाकर अपने व्यक्तित्व
का प्रभाव डालती है। यदि नारी पढ़ीलिखी, जागरूक सचेत है तो वह दोनों कुलो को पवित्र कर देती है। नारी संतान को जन्म देती है। उसका संस्कार करती है तथा उसे भावी पीढ़ी को संवारने का पूरा अवसर मिलता है। स्पष्ट है कि पढ़ी लिखी नारी इस दिशा में जो कार्य कर सकती है वह अशिक्षित नारी नहीं कर सकती।
वह जमाना गया जब हम लोगों की सोच यह थी कि पुत्री तो पराया धन है, इसे तो ससुराल विदा करना है, अतः इस पर पैसा खर्च करके क्यों पढाया जाए? अब यह सोच बदल रही है। कई पारवारों में तो पढ़ी लिखी बेटियाँ माता-पिता का सहारा बन रही हैं और उस उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रही है जो पुत्र का कर्तव्य होता है।
शिक्षित नारी अपने पैरों पर खडी होकर समाज का एक उपयोगी अंग बनती है। उसमें आत्मविश्वास आता है, वह अन्याय और अत्याचार को चुपचाप सहन करना छोड देती है। स्त्री को आर्थिक रूप से स्वतन्त्र तभी बनाया जा सकता है जब वह पढ़-लिखकर योग्य बने।
जागरूक शिक्षित लडकियां समाज के हर क्षेत्र में अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रही हैं। वे पुरुषों से किसी प्रकार कम नहीं हैं। आज उच्च पदों पर वे सुशोभित हैं। क्या इन्दिरा गाँधी के व्यक्तित्व ने यह सिद्ध नहीं कर दिया कि नारी शिक्षित होने पर तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से सम्पन्न होने पर राष्ट्र का नेतृत्व कर उसे गौरवान्वित कर सकती है?
पुलिस सेवा, विदेश सेवा, आई. ए. एस. जैसे उच्च पदों पर कार्यरत भारतीय महिलाओं ने नारी शिक्षा के महत्व को स्वयं प्रतिपादित कर दिया है।
उपसंहार
नारी शिक्षा आज के युग की आवश्यकता है। हम नारियों को शिक्षित करके ही उन्हें विकास के समान अवसर प्रदान कर सकते हैं। नारी का कार्यक्षेत्र अब घर की सीमित चारदीवारी में बन्द नहीं है। अब वे जीवन संग्राम में पूर्णतः कूद चुकी हैं अतः अपनी भूमिका का सक्रिय निर्वाह करने हेतु उनका शिक्षित होना परम आवश्यक है। यह समय की माँग है जिसकी अवहेलना हम नहीं कर सकते।
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शिक्षा का महत्व।