कृत् प्रत्यय
कृत् प्रत्यय की परिभाषा (Definition of Krit Pratyay)
धातु पदों को नाम पद बनाने वाले प्रत्ययों को कृत् प्रत्यय कहते है और कृत् प्रत्यय के प्रयोग होने से जिन नए शब्दों का निर्माण होता है उन्हें कृदन्त शब्द कहते हैं। “धातुं नाम करोति इति कृत” । इस प्रत्यय को धातुज् या कृदन्त प्रत्यय भी कहते हैं।
कृत् प्रत्यय के उदाहरण (Some Examples of Krit Pratyay)
- पठ (धातु) + तव्य (कृत् प्रत्यय) = पठितव्यम्
- तेन संस्कृत पठितव्यम् । (उसे संस्कृत पढ़ना चाहिए।)
कृत् प्रत्यय के भेद (Types of Krit Pratyay)
कृत् प्रत्यय मुख्य रूप से सात प्रकार के होते हैं- तव्यत्, तव्य, अनीयर, ण्यत्, यत्, क्यप्, और केलिमेर्।
प्रयोग की दृष्टि से कृत् प्रत्यय के प्रकार
प्रयोग की दृष्टि से प्रमुख कृत् प्रत्यय इस प्रकार हैं-
- तुमुन् प्रत्यय
- अनीयर प्रत्यय
- तव्यत् प्रत्यय
- क्त्वा प्रत्यय
- शानच् त्यय
- शतृ प्रत्यय
- ल्युट् प्रत्यय
- ण्वूल् प्रत्यय
- णमुल् प्रत्यय
- तृच् प्रत्यय
- क्त् प्रत्यय
- क्तवतु प्रत्यय
- ल्यप् प्रत्यय
- क्तिन् प्रत्यय
- केलिमेर् प्रत्यय
- क्यप् प्रत्यय
- क्वसु प्रत्यय
- कानच् प्रत्यय
- स्यतृ प्रत्यय
- स्यमान प्रत्यय
तुमुन् प्रत्यय (Tumun Pratyaya)
तुमुन् प्रत्यय : तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग एक ही कर्ता द्वारा दो क्रियाओं को करने के लिए होता है। तुमुन् प्रत्यय के प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ “तुम” शेष बचता है। इसका अर्थ “के लिए” होता है।
तुमुन् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
गम् | तुमुन् | गन्तुम् |
पा | तुमुन् | पातुम् |
हल् | तुमुन् | हन्तुम् |
पठ् | तुमुन् | पठितुम् |
प्रयोग: बालक: ग्रहम् गन्तुम् उद्यत: अस्ति। – बालक घर जाने के लिये उत्सुक है।
अनीयर् प्रत्यय (Aniyar Pratyay)
अनीयर् प्रत्यय : अनीयर् प्रत्यय का प्रयोग “बिधिलिङ्ग् लकार” में किया जाता है। इसका अर्थ चाहिए होता है। अनीयर् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अन्त में पुल्लिंग में “अनीय”, स्त्रीलिंग में “अनीया”, नपुंसकलिंग में “अनीयम” शेष बचता है।
अनीयर् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
पठ् | अनीयर् | पठनीय: | पठनीया | पठनीयम् |
गम् | अनीयर् | गमनीय: | गमनीया | गमनीयम् |
कथ् | अनीयर् | कथनीय: | कथनीया | कथनीयम् |
कृ | अनीयर् | करणीय: | करणीया | करणीयम् |
लिख् | अनीयर् | लेखनीय: | लेखनीया | लेखनीयम् |
तव्यत् प्रत्यय (Tavyat Pratyay)
तव्यत् प्रत्यय : तव्यत् प्रत्यय का भी प्रयोग “बिधिलिङ्ग् लकार” में किया जाता है। इसका अर्थ चाहिए होता है। तव्यत् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अन्त में पुल्लिंग में “तव्य”, स्त्रीलिंग में “तव्या”, नपुंसकलिंग में “तव्यम्” शेष बचता है।
तव्यत् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
दा | तव्यत् | दातव्य: | दातव्या | दातव्यम् |
गम् | तव्यत् | गन्तव्य: | गन्तव्या | गन्तव्यम् |
पठ् | तव्यत् | पठितव्य: | पठितव्या | पठितव्यम् |
क्री | तव्यत् | कर्त्तव्य: | कर्त्तव्या | कर्त्तव्यम् |
वच् | तव्यत् | वक्तव्य: | वक्तव्या | वक्तव्यम् |
Note: तव्यत् प्रत्यय के साथ सामान्यतय: कर्त्ता में तृतीया विभक्ति तथा कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-
- मया ग्रन्थ पठितव्य: ।
- बालकेन पाठ: पठितव्य: ।
क्त्वा प्रत्यय (Ktva Pratyay)
क्त्वा प्रत्यय : क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ ‘त्वा’ शेष बचता है। ‘कर’ या ‘करके’ के अर्थ में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग होता है। इससे बने शब्द “अव्यय” होते हैं।
क्त्वा प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
अस् | क्त्वा | भूत्वा |
कृ | क्त्वा | कृत्वा |
कथ् | क्त्वा | कथयित्वा |
दृ | क्त्वा | दृष्ट्वा |
वच् | क्त्वा | उक्त्वा |
शानच् प्रत्यय (Shanach Pratyay)
शानच् प्रत्यय : शानच् प्रत्यय का प्रयोग ‘लट् लकार आत्मेनपदी’ धातुओ के ‘प्रथम पुरुष – एकवचन’ के रूप में जुडकर बनता है। शानच् प्रत्यय का प्रयोग ‘ते हुए’ के अर्थ में होता है। शानच् प्रत्यय के जुडने के बाद अंत में सिर्फ पुल्लिंग शब्दों में ‘मान:’, स्त्रीलिंग शब्दों में ‘माना’, नपुंसकलिंग में “मानम्” शेष बचता है।
शानच् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंगन | पुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
लभ् | शानच् | लभमान: | लभमाना | लभमानम् |
पच् | शानच् | पचमान: | पचमाना | पचमानम् |
नी | शानच् | नयमान: | नयमाना | नयमानम् |
वृध् | शानच् | वर्धमान: | वर्धमाना | वर्धमानम् |
वृत् | शानच् | वर्तमान: | वर्तमाना | वर्तमानम् |
कृ | शानच् | कुर्वाण: | कुर्वाणा | कुर्वाणम् |
शतृ प्रत्यय (Shatra Pratyay)
शतृ प्रत्यय : शतृ प्रत्यय का प्रयोग परस्मैपदी धतुओं में होता है। इसका प्रयोग ‘आ हुआ’ के अर्थ में होता है। शतृ प्रत्यय के प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ पुल्लिंग शब्दों में ‘अन्’, स्त्रीलिंग शब्दों में ‘अती’, नपुंसकलिंग में ‘अत्’ शेष बचता है।
शतृ प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
क्रीड् | शतृ | क्रीडन् | क्रीडति | क्रीडत् |
अर्च् | शतृ | अर्चन् | अर्चति | अर्चत् |
गम् | शतृ | गच्छन् | गच्छति | गच्छत् |
भू | शतृ | भवन् | भवति | भवत् |
ल्युट् प्रत्यय (Lyut Pratyay)
ल्युट् प्रत्यय : ल्युट् प्रत्यय के प्रयोग होने बाद अन्त में सिर्फ़् “नम् / णम्” शेष वचता है। ल्युट् प्रत्यय से बने शब्द ‘नपुसंकलिंग’ के होते है।
ल्युट् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
पठ् | ल्युट् | पठनम् |
कथ् | ल्युट् | कथनं |
ज्ञा | ल्युट् | ज्ञानम् |
कृ | ल्युट् | करणम् |
स्मृ | ल्युट् | स्मरणम् |
ण्वूल् प्रत्यय (Nvool Pratyay)
ण्वूल् प्रत्यय : ण्वूल् प्रत्यय को ‘अफ़् प्रत्यय’ भी कहते है। ण्वूल् प्रत्यय का प्रयोग ‘वाला, वाली’ के अर्थ में होता है। ण्वूल् प्रत्यय के प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ “अक:” शेष बचता है।
ण्वूल् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
गै | ण्वूल् | गायक: |
पच् | ण्वूल् | पाचक: |
गृह | ण्वूल् | ग्राहक: |
कृ | ण्वूल् | कारक: |
नृत | ण्वूल् | नर्तक: |
णमुल् प्रत्यय (Namul Pratyay)
णमुल् प्रत्यय : णमुल् प्रत्यय का प्रयोग, पुन्य अर्थ के बोध होने पूर्वकालिक क्रियावाचक धातु के उत्तर णमुल् होता है। णमुल् प्रत्यय का प्रयोग होने बाद अन्त में “ण् , उल् , इत् , अम्” शेष रहता हैं।
णमुल् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
स्मृ | णमुल् | स्मारम् |
स्तु | णमुल् | स्तावम् |
भुज् | णमुल् | भोजम् |
मृश् | णमुल् | मर्शम् |
हस् | णमुल् | हासम् |
तृच् प्रत्यय (Trach Pratyay)
तृच् प्रत्यय : तृच् प्रत्यय का भी प्रयोग ‘वाला, वाली’ के अर्थ में होता है। तृच् प्रत्यय के प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ “तृ” शेष बचता है।
तृच् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
कृ | तृच् | कर्तृ (कर्त्ता) |
दा | तृच् | दातृ (दाता) |
ज्ञा | तृच् | ज्ञातृ (ज्ञाता) |
गम् | तृच् | गन्तृ (गन्ता) |
क्त् प्रत्यय (Kta Pratyaya)
क्त् प्रत्यय : क्त् प्रत्यय का प्रयोग “लङ्ग् लकार – भूतकाल” में किया जाता है। क्त् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अन्त में पुल्लिंग में “त:”, स्त्रीलिंग में “ता”, नपुंसकलिंग में “तम्” शेष बचता है।
क्त् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
कृ | क्त् | कृत: | कृता | कृतम् |
श्रु | क्त् | श्रुत: | श्रुता | श्रुतम् |
क्री | क्त् | क्रीत: | क्रीता | क्रीतम् |
भक्ष् | क्त् | भसित: | भक्षिता | भक्षितम् |
दृश् | क्त् | दृष्ट: | दृष्टा | दृष्टम् |
क्तवतु प्रत्यय (Ktavatu Pratyay)
क्तवतु प्रत्यय : क्तवतु प्रत्यय का भी प्रयोग “लङ्ग् लकार – भूतकाल” में किया जाता है। क्तवतु प्रत्यय के प्रयोग होने पर अन्त में पुल्लिंग में “तवान्”, स्त्रीलिंग में “तवती”, नपुंसकलिंग में “तवत्” शेष बचता है।
क्तवतु प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
---|---|---|---|---|
ज्ञा | क्तवतु | ज्ञातवान् | ज्ञातवती | ज्ञातवत् |
गम् | क्तवतु | गतवान् | गतवती | गतवत् |
कृ | क्तवतु | कृतवान् | कृतवती | कृतवत् |
ल्यप् प्रत्यय (Lyap Pratyay)
ल्यप् प्रत्यय : ल्यप् प्रत्यय का भी प्रयोग ‘कर, करके’ के अर्थ में होता है। ल्यप् प्रत्यय के प्रयोग होने पर धातु के अंत में सिर्फ “य, त्य” शेष बचता है। इसका प्रयोग धातुओ में उपसर्ग होने पर होता है (अ, अन् को छोडकर)।
ल्यप् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
ज्ञा + ना | ल्यप् | ज्ञानाय |
वि + धा | ल्यप् | विधाय |
वि + हा | ल्यप् | विहाय |
क्तिन् प्रत्यय (Ktin Pratyay)
क्तिन् प्रत्यय : क्तिन् प्रत्यय का प्रयोग भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए होता है। क्तिन् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अंत में “ति” शेष बचाता है। ये शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
क्तिन् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
गम् | क्तिन् | गति: |
कृ | क्तिन् | कृति: |
श्रु | क्तिन् | श्रुति: |
मन् | क्तिन् | मति: |
स्त्रु | क्तिन् | स्त्रुति |
केलिमर् प्रत्यय (Kelimar Pratyay)
केलिमेर प्रत्यय : केलिमेर प्रत्यय का प्रयोग होने पर अन्त में सिर्फ़् “एलिम्” शेष बचता है।
केलिमर् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
भिद् | केलिमर् | भिदेलिम् |
पच् | केलिमर् | पचेलिम् |
क्यप् प्रत्यय (Kyap Pratyay)
क्यप् प्रत्यय : क्यप् प्रत्यय का प्रयोग होने पर अन्त में सिर्फ़् “अत्य” शेष बचता है।
क्यप् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
हन् | क्यप् | हत्य |
क्वसु प्रत्यय (Kvasu Pratyay)
क्वसु प्रत्यय : क्वसु प्रत्यय का प्रयोग “भूतकाल – परस्मैपदी” धातुओ में होता है। क्वसु प्रत्यय के प्रयोग होने पर अंत में सिर्फ “वस्” शेष बचता है। इससे प्राप्त शब्द विशेषण होते हैं।
क्वसु प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
श्रु | क्वसु | श्रुवुवस् |
भू | क्वसु | बभूवस् |
विद् | क्वसु | विविद्वस् |
कृ | क्वसु | चक्रवस् |
कानच् प्रत्यय (Kanach Pratyay)
कानच् प्रत्यय : कानच् प्रत्यय का प्रयोग “लिट लकार” की धातुओ में होता है। कानच् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अंत में सिर्फ “आन” शेष बचता है। इससे प्राप्त शब्द विशेषण होते हैं।
कानच् प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
युध् | कानच् | युयुधान |
रुच् | कानच् | रुरूवान |
स्यतृ प्रत्यय (Syatra Pratyay)
स्यतृ प्रत्यय : स्यतृ प्रत्यय का “भविष्यत् काल – परस्मैपदी” की धातुओ में होता है। स्यतृ प्रत्यय के प्रयोग होने पर अंत में सिर्फ “इत् , स्यत्” शेष बचता है।
स्यतृ प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
भू | स्यतृ | भविष्यत् |
गम् | स्यतृ | गमिष्यत् |
स्था | स्यतृ | स्थास्यत् |
पा | स्यतृ | पास्यत् |
स्यमान् प्रत्यय (Syaman Pratyay)
स्यमान् प्रत्यय : स्यमान् प्रत्यय का प्रयोग “भविष्यत् काल – आत्मनेपदी” की धातुओ में होता है। स्यमान् प्रत्यय के प्रयोग होने पर अंत में सिर्फ “आण, माण” शेष बचता है।
स्यमान प्रत्यय के उदाहरण
धातु | प्रत्यय | क्रदन्त शब्द |
---|---|---|
सेव् | स्यमान् | सेविष्यमाण |
वृत् | स्यमान् | वर्तिष्यमाण |
जन् | स्यमान् | जनिष्यमाण |