शिक्षण (Teaching) – शिक्षण की परिभाषा एवं अर्थ

Shikshan

शिक्षण (Teaching)

शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के मध्य कक्षागत परिस्थितियों में एक ऐसी अन्त:क्रिया को जिसके द्वारा शिक्षक, अपने गहन-ज्ञान तथा सम्प्रेषणीय कुशलता के आधार पर सम्बन्धित विषयवस्तु को अपने विद्यार्थियों को आत्मसात् कराने में सक्षम हो, शिक्षण कहते हैं।

शिक्षण की परिभाषाएँ (Definitions of Teaching)

प्रबुद्ध शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने ‘शिक्षण‘ को अपने-अपने विचार से अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया है। उन्हीं में से कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-

  1. बी. ओ. स्मिथ ( O. Smith) के विचारानुसार – “शिक्षण, अधिगम को उत्प्रेरित करने वाली एक पद्धति है।
    “Teaching is a system of actions to induce learning.”
  2. हैनरी सी मॉरिसन (Henry, C. Morrison) की दृष्टि से – “शिक्षण किसी परिपक्व व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के अपेक्षाकृत कम परिपक्व व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के साथ ऐसे आत्मीय सम्बन्ध हैं, जिनका प्रारूपण बाद वाले की शिक्षा को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।
    “Teaching is an intimate contract between a more mature personality and a less mature one which is designed to further the education of the latter.”

इसी परिभाषा से बहुत कुछ मिलती-जुलती परिभाषा योकम एवं सिम्पसन ने कुछ इस प्रकार दी है-

  1. योकम एवं सिम्पसन (Yoakum and Simpson) की दृष्टि से – “शिक्षण वह साधन है, जिसके द्वारा समूह के अनुभवी सदस्य अपरिपक्व एवं शिशु (छोटे) सदस्यों को उनके जीवनगत समायोजन हेतु मार्गदर्शन देते हैं।
    “Teaching is the means whereby the experienced members of the group guide the immature and infant members in their adjustment of life.”
  2. रायबर्न (Ryburn) ने शिक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है – “शिक्षण एक (प्रकार के) ऐसे सम्बन्ध हैं जो बालक को उसकी (अन्तर्निहित) क्षमताओं को विकसित करने में उसकी सहायता करते हैं।
    “Teaching is a relationship which helps the child to develop his powers.”
  3. एन. एल. गेज ( L. Gage) के अनुसार – “शिक्षण एक प्रकार का पारस्परिक प्रभाव है, जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्ति के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाना है।
    “Teaching if an act of interpersonal influence aimed at changing the ways in which other person can or will behave.”
  4. रायन्स (Rayans) के शब्दों में – “दूसरों को सीखने के लिये दिशा निर्देश देने तथा अन्य प्रकार से उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है।
    “Teaching is concerned with the activities which are concerned with the guidance or direction of the learning of others.”
  5. योकम तथा सिम्पसन (Yoakum and Simpson) के मतानुसार, “शिक्षण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा समूह के लोग अपने अपरिपक्व सदस्यों को जीवन से सामंजस्य स्थापित करना बताते हैं।
    “Teaching if the means where by the experienced members of the group guide the immature and infint members in their adjustment of life.”
  6. बी. एफ. स्किनर (F. Skinner) के कथनानुसार – “शिक्षण पुनर्बलन की आकस्मिकताओं का क्रम है।
    “Teaching if the arrangement of contingencies of reinforcement.”
  7. बी. ओ. स्मिथ (O. Smith) के शब्दों में, “शिक्षण एक उद्देश्य निर्देशित क्रिया है।
    “Teaching is agoal directed activity.”
  8. क्लार्क (Clarke) के अनुसार – “शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा संचालन की व्यवस्था इसलिये की जाती है कि छात्रों के व्यवहारों में परिवर्तन किया जा सके।
    “Teaching process is designed and performed to produce change in student “
  9. के. पी. पाण्डेय (P. Panday) के शब्दों में, “शिक्षण एक प्रभाव निर्देशित क्रिया है। यह एक विशिष्ट विषय वस्तु की संरचना सहित सीखने वाले पर प्रभाव डालता है।
    “Teaching is an influence direct activity. It is influencing the learner with a specific contents structure.”

परिभाषाएँ और भी हैं, परन्तु सभी में विचारगत अन्तर कम तथा भाषायी अन्तर अधिक है। इस दृष्टि से इन सभी परिभाषाओं का यदि विश्लेषण किया जाये तो शिक्षण के अर्थ को सहज ही समझा जा सकता है।

शिक्षण का अर्थ (Meaning of Teaching)

सभी परिभाषाओं के निष्कर्ष के आधार पर शिक्षण के अर्थ के सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि-

  1. शिक्षण शिक्षा के क्षेत्र में उद्देश्य प्राप्ति का साधन है।
  2. शिक्षण सीखने तथा सिखाने वाले के मध्य द्विध्रुवीय उपागम (Approach) या अन्त:क्रिया है।
  3. शिक्षण एवं अधिगम दोनों ही अन्त: सम्बन्धित हैं।
  4. शिक्षण विद्यार्थी की अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास में सहायक सिद्ध होता है।
  5. अधिगम की सफलता शिक्षण की प्रभाविता पर आधारित होती है।
  6. शिक्षण विषयवस्तु आधारित ज्ञान का अन्तरण (Transfer) है।

इस प्रकार शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिस पर प्रत्येक देश की शासन प्रणाली, सामाजिक दर्शन, सामाजिक परिस्थितियों, मूल्यों एवं संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। जिस देश में जैसी शासन प्रणाली या सामाजिक तथा औद्योगिक परिस्थितियाँ होंगी वहाँ उसी प्रकार की ‘शिक्षण प्रक्रिया‘ होगी। ऐसी स्थिति में शिक्षण का कोई निश्चित अर्थ बताना सम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होगा।

अत: शिक्षण के अर्थ को निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. एकतन्त्रात्मक शासन में शिक्षण का अर्थ (Meaning of teaching in monocratic government)

एकतन्त्रात्मक शासन में शिक्षक का स्थान शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रधान माना जाता है और छात्र का स्थान गौण होता है। इस प्रकार के वातावरण में शिक्षक को कक्षा में आदर्श माना जाता है। छात्रों की सभी क्रियाओं को शिक्षक दिशा प्रदान करता है। वह क्या सोचे, क्या करे एवं कैसे करे? शिक्षण के समय छात्र केवल श्रोता के रूप में कार्य करता है।

इस प्रकार शासन की व्यवस्था “परम्परागत सिद्धान्त” कार्य केन्द्रित (Classical Theory or Organization task centered) पद्धति का अनुसरण करती है। इसमें छात्रों की इच्छाओं तथा अभिवृत्तियों को कोई भी स्थान नहीं दिया जाता है तथा इस प्रकार के शिक्षण में छात्रों को वार्तालाप (Discussion), तर्क (Logic) तथा शिक्षक की आलोचना (Criticise) करने का अधिकार नहीं दिया जाता है।

एच. सी. मॉरिसन (H.C. Morrison) ने एकतन्त्र शासन के अन्तर्गत शिक्षण का वर्णन करते हुए लिखा है – “शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें अधिक परिपक्व व्यक्तित्व कम परिपक्व व्यक्तित्व के सम्पर्क में आता है और वह कम परिपक्व व्यक्तित्व की अग्रिम शिक्षा के लिये व्यवस्था करता है।

2. लोकतन्त्रात्मक या जनतन्त्र शासन में शिक्षण का अर्थ (Meaning of teaching in democratic government)

प्रजातन्त्र शासन प्रणाली में जनता की इच्छा को वरीयता देते हुए उसका सम्मान किया जाता है। यह शासन प्रणाली मानवीय सम्बन्धों पर आधारित होती है। इस प्रकार की शिक्षण प्रणाली में शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं और उनके मध्य शाब्दिक और अशाब्दिक अन्त:क्रिया चलती रहती है।

इस प्रणाली में बालक को तर्क करने, वार्तालाप करने, प्रश्न करने, उत्तर पाने तथा अन्य प्रकार के वार्तालाप करने का अवसर मिलता है। प्रजातन्त्रात्मक शिक्षण में शिक्षक एवं छात्र दोनों एक-दूसरे के व्यक्तित्व को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं।

एन. एल. गेज के अनुसार – “शिक्षण प्रक्रिया में पारस्परिक प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है, जिसमें दूसरों की व्यावहारिक क्षमताओं के विकास का लक्ष्य होता है।

एडमण्ड एमीडोन ने लोकतन्त्रात्मक शासन में शिक्षण की परिभाषा इस प्रकार दी है- “शिक्षण को एक अन्तःक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, मुख्य रूप से जिसके अन्तर्गत कक्षा-कथनों को सम्मिलित किया जाता है, जो शिक्षक तथा छात्र के मध्य परिचालित होते हैं। कक्षा-कथन का सम्बन्ध अपेक्षित क्रियाओं से होता है।

3. हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण का अर्थ (Meaning of teaching in laisses faire government)

इस प्रकार की शासन व्यवस्था में शिक्षण करते समय शिक्षक एक मित्र के रूप में कार्य करता हे और विद्यार्थियों को शिक्षण के समय अधिक सक्रिय बनाते हुए विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिये उन्हें अधिक से अधिक अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार के शिक्षण के बीच शिक्षक-छात्र क्रियाओं में हस्तक्षेप न करते हुए उनकी सृजनात्मक क्षमताओं के विकास की ओर ध्यान केन्द्रित करता है।

यह शासन प्रणाली आधुनिक व्यवस्था कार्य तथा सम्बन्ध केन्द्रित सिद्धान्त (Modern Theory of Organization Task and Relationship Centered) पर आधारित होती है।

ब्रूबेकर (Brubacher) ने हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण का विवेचन निम्नलिखित शब्दों में किया है – “शिक्षण परिस्थितियों का प्रबन्ध करना है, जिनमें अन्तर और बाधाएँ होती हैं और व्यक्ति या छात्र उन पर काबू पाना चाहेगा और इस दौरान वह कुछ सीख सकेगा।

शिक्षण का अर्थ, प्रकृति, विशेषताएँ, सोपान तथा उद्देश्य (Meaning, Nature, Characteristics, Steps and Aims of Teaching):-

  1. शिक्षण (Teaching) – शिक्षण की परिभाषा एवं अर्थ
  2. छात्र, शिक्षक तथा शिक्षण में सम्बन्ध
  3. शिक्षण की प्रकृति
  4. शिक्षण की विशेषताएँ
  5. शिक्षा और शिक्षण में अन्तर
  6. शिक्षण प्रक्रिया – सोपान, द्विध्रुवीय, त्रिध्रुवीय, सफल शिक्षण
  7. शिक्षण प्रक्रिया के सोपान
  8. द्विध्रुवीय अथवा त्रिध्रुवीय शिक्षण
  9. शिक्षण के उद्देश्य – शिक्षण के सामान्य, विशिष्ट उद्देश्यों का वर्गीकरण, निर्धारण और अंतर