उपागम प्रणाली (Approach System)
उपागम प्रणाली एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग करके अधिगम के नीति निर्धारकों द्वारा ध्यानपूर्वक और क्रमबद्ध अध्ययन करने के पश्चात् अधिगम की किसी समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया जाता है। उपागम का उपयोग तब किया जाता है जब कोई शिक्षण की समस्या सामने आती है। उपागम के द्वारा समस्या का योजनाबद्ध ढंग से अध्ययन करके सही समाधान प्राप्त किया जाता है तथा अधिगम प्रक्रिया को सरल एवं सार्थक बनाया जाता है।
अधिगम केन्द्रित उपागम की आवश्यकता (Need of Learning Centered Approach)
अधिगम केन्द्रित उपागम में बालक की अधिगम व्यवस्था को उच्च एवं स्थायी बनाने में अधिगम क्रियाकलापों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनकी आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है:-
-
अधिगम क्रियाकलापों का प्रमुख आधार मनोवैज्ञानिक है। इसमें गतिविधियों के आधार से सम्पन्न किया जाने वाला अधिगम अन्य परिस्थितियों में किये गये अधिगम से अधिक प्रभावशाली होता है तथा इसे अधिक समय तक याद रखा जा सकता है।
-
अधिगम क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों में मानसिक एवं शारीरिक क्रियाशीलता बनी रहती है जिससे छात्र रुचिपूर्ण ढंग से सीखने का प्रयास करता है तथा यह सीखना स्थायी रूप से अधिक समय तक स्मृति में बना रहता है।
-
अधिगम क्रियाकलापों के माध्यम से शिक्षा का स्वरूप बालकेन्द्रित शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में परिवर्तित हो जाता है। इससे यह छात्रों की सहभागिता को अधिकतम् करने में सहायता करता है।
-
अधिगम क्रियाकलाप करके सीखने की भावना पर आधारित होते हैं। इसलिये छात्रों द्वारा विभिन्न प्रकार कार्यों को उचित रूप में सम्पन्न करने पर उन्हें आत्मगौरव की अनुभूति होती है।
-
अधिगम क्रियाकलापों के माध्यम से बालकों की मानसिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है क्योंकि छात्र अपने परिवेश में अनेक प्रकार की क्रियाओं को सीखता है तथा उनका प्रयोग विद्यालयी स्तर पर भी करना चाहता है। इसलिये अधिगम क्रियाकलाप परिवेश एवं विद्यालय के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
-
अधिगम क्रियाकलापों द्वारा छात्रों को विद्यालयी व्यवस्था के अन्तर्गत तथा विद्यालयी व्यवस्था से बाहर अध्ययन कराया जा सकता है जिससे छात्रों को दोहरा लाभ प्राप्त होता है।
-
अधिगम क्रियाकलापों के द्वारा छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है क्योंकि इसमें छात्रों के शैक्षिक एवं अशैक्षिक पक्षों को व्यापक रूप से विकसित करने के लिये अधिगम क्रियाकलापों का चयन किया जाता है, जिससे कि छात्रों के जीवन का प्रत्येक पक्ष विकसित हो सके।
-
अधिगम क्रियाकलापों के अन्तर्गत छात्र स्वयं ही करके सीखता है। शिक्षक की भूमिका मात्र पर्यवेक्षक एवं सहायक के रूप में होती है। इसलिये इसमें छात्र का स्थान प्रमुख तथा शिक्षक का स्थान गौण होता है।
कक्षा के अन्दर अधिगम क्रियाकलाप
Learning Activities in Classroom
कक्षा-कक्ष के अन्तर्गत सम्पन्न किये जाने वाले अधिगम क्रियाकलापों के निश्चित नियम होते हैं तथा एक निश्चित समय होता है। इसलिये इनको औपचारिक अधिगम क्रियाकलापों के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख औपचारिक अधिगम क्रियाकलापों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है:-
1. लेखन क्रियाकलाप (Writing activities)
इसके अन्तर्गत प्राथमिक स्तर पर कक्षा के छात्रों को सुलेख लेखन के लिये आदर्श वाक्य दिये जा सकते हैं। कक्षा एक के छात्रों को विभिन्न प्रकार के अक्षर कार्ड देकर शब्दों का निर्माण करने सम्बन्धी कार्य दिये जा सकते हैं तथा इन शब्दों को छात्रों को अपनी उत्तर-पुस्तिका पर लिखने के लिये दिया जा सकता है।
2. कहानी का सुनना एवं सुनाना (Listening and telling of stories)
इस क्रियाकलाप के अन्तर्गत छात्रों को ध्यानपूर्वक कहानी सुनने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये। कहानी श्रवण के पश्चात् छात्रों से प्रश्न पूछकर उनकी स्थिति ज्ञात की जा सकती है। द्वितीय रूप में उनको कहानी कहने के अवसर दिये जाते हैं। इससे एक ओर छात्रों में श्रवण एवं वाचन कौशल विकसित होते हैं वहीं दूसरी ओर छात्रों में आत्म-विश्वास विकसित हो जाता है।
3. चित्रकला सम्बन्धी क्रियाकलाप (Picture art related activities)
बालकों को चित्र बनाने सम्बन्धी गतिविधियों में आनन्द आता है। अत: कक्षा शिक्षण में चित्र बनाने सम्बन्धी कार्य छात्रों को प्रदान किये जा सकते हैं; जैसे– फलों के चित्र बनाना तथा सब्जियों के चित्र बनाना तथा पालतू जानवरों के चित्र बनाना आदि। इस प्रकार के चित्रों से बालकों में सृजनात्मकता तथा हस्त कौशल का विकास सम्भव होगा।
4. वस्तुओं को पहचानना (Identification of things)
छात्रों के समक्ष अनेक प्रकार की वस्तुएँ वास्तविक रूप में या चित्रात्मक रूप में रख दी जाती है तथा छात्रों से उन्हें पहचानने के लिये कहा जाता है; जैसे– सब्जियाँ, फल, पालतू जानवर एवं विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न आदि। इन सभी के वास्तविक एवं चित्रात्मक रूप को पहचान कर छात्रों को अपनी उत्तर-पुस्तिका में नाम लिखने के लिये दिया जा सकता है या नाम बताने के लिये कहा जा सकता है यदि छात्र कक्षा एक में प्रवेश कर रहा है तथा नाम लिखने में असमर्थ है।
5. व्याख्या करना (Explanation)
सामान्यतः छात्रों को व्याख्या करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं तो छात्रों को बहुत अच्छा लगता है; जैसे– किसी यात्रा का वर्णन, किसी घरेलू जानवर की विशेषताओं का वर्णन, अपनी रुचियों का वर्णन तथा विद्यालय की व्यवस्था से सम्बन्धित वर्णन आदि। इससे छात्रों में तर्क, चिन्तन एवं उच्चारण के विकास के साथ-साथ मौखिक अभिव्यक्ति का विकास सम्भव होगा।
6. अन्त्याक्षरी (Antyakshari)
इस खेल के माध्यम से भी छात्रों में विद्यालयी व्यवस्था के प्रति प्रेम उत्पन्न किया जा सकता है। कक्षा में अन्त्याक्षरी कराने के लिये हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा की कविता या शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। इससे छात्रों में मनोरंजन के साथ-साथ कविता एवं शब्दों का व्यापक भण्डार संग्रहीत होता है तथा छात्रों में विद्यालय के प्रति रुचि विकसित होती है।
7. कविता पाठ (Recitation)
इसके माध्यम से भी छात्रों में विद्यालयी व्यवस्था के प्रति रुचि उत्पन्न की जा सकती है। कविता सम्बन्धी गतिविधियों के चयन में प्रशिक्षुओं को यह ध्यान रखना चाहिये कि छात्र कविता के भाव को समझते हुए तथा आंगिक हाव-भाव के माध्यम से कविता के अर्थ को स्पष्ट करे तथा आवश्यकता के अनुसार वाणी में अवरोह तथा आरोह लाने का प्रयास करें।
8. सामान्यीकरण करना (Generalization)
इस सोपान के अनुसार छात्रों को सामान्यीकरण की प्रक्रिया का ज्ञान कराया जाता है; जैसे– 5×10=50, 5×100=500, 5X1000=5000। इस प्रकार छात्र समझ जाता है कि गणित में 10, 100, 1000 तथा 10000 का गुणा किसी संख्या से करने से उस संख्या के अन्त में क्रमश: एक, दो, तीन तथा चार शून्य बढ़ा दिये जाते हैं। इस प्रकार कि अनेक गतिविधियाँ प्रदान करके सामान्यीकरण की व्यवस्था को सम्पन्न करना सीख जाता है।
कक्षा के बाहर अधिगम क्रियाकलाप
Out of Class Learning Activities
कक्षा के बाहर के अधिगम क्रियाकलापों के बारे में कोई निश्चित समय या नियम नहीं होते हैं। इसलिये इनको निरौपचारिक अधिगम क्रियाकलापों के नाम से जाना जाता है। इन क्रियाकलापों में छात्रों की इच्छा होती है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार एवं रुचि के अनुसार सीखने का प्रयास करता है।
प्रमुख अनौपचारिक क्रियाकलापों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है:-
1. समाचार-पत्र (News paper)
छात्रों में समाचार-पत्र पठन की रुचि विकसित करने चाहिये, जिससे छात्र समाचारों के माध्यम से भी बहुत से तथ्य सीखता है। समाचार-पत्रों में छात्र अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न क्रियाकलापों को सीखकर उनका प्रयोग करने लगता है। खेल सम्बन्धी समाचारों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के खेलों को सीखने लगता है तथा खेलों के नियम सीखता है।
2. दूरदर्शन (Television)
विभिन्न प्रकार के दूरदर्शन कार्यक्रों के माध्यम से भी छात्रों को सीखने का अवसर मिलता है। इससे छात्र अपनी रुचि एवं आवश्यकता के कार्यक्रम खोज लेता है तथा विभिन्न प्रकार के उपयोगी तथ्य सीख लेता है; जैसे– योगासन एवं विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायाम। ज्ञानदर्शन कार्यक्रम के माध्यम से छात्र विभिन्न प्रकार के गणित एवं विज्ञान विषय से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करता है।
3. संगीत (Music)
छात्रों के घर में विभिन्न प्रकार के संगीत सम्बन्धी उपकरण टेलिविज़न, रेडियो, स्मार्टफोन एवं स्मार्टटीवी आदि पाये जाते हैं। इन पर विभिन्न प्रकार के संगीत सम्बन्धी कार्यक्रमों को छात्र सुनता तथा उन क्रियाओं का अनुभव करता है। छात्र शास्त्रीय संगीत एवं पॉप संगीत दोनों में अन्तर करना सीख जाता है। इस प्रकार वह संगीत की अनेक विधाओं से परिचित हो जाता है।
4. नाटक सम्बन्धी क्रियाकलाप (Drama related activities)
नाटक सम्बन्धी विविध प्रकार की गतिविधियों को भी छात्रों द्वारा सहर्ष स्वीकार किया जाता है। छात्र स्थानीय स्तर पर परिवेश में सम्पन्न होने वाली रासलीला, कृष्ण लीला तथा अन्य नाटकों को देखते हैं, जिससे वह विविध प्रकार का शैक्षिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा उसका व्यवहार में अनुकरण करते हैं।
5. कठपुतली नृत्य सम्बन्धी क्रियाकलाप (Puppet dance related activities)
सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में कठपुतली का नृत्य बहुत ही पसन्द किया जाता है। छात्र अपने माता-पिता के साथ इसको देखने के लिये जाते हैं। इनसे छात्रों को विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है तथा वे शिक्षा के महत्त्व के बारे में जानते हैं। इससे एक ओर उनका व्यावहारिक अधिगम बढ़ता है वहीं दूसरी ओर सभी छात्र विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने की ओर आकर्षित होते हैं।
6. लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk song and folk dance)
विभिन्न प्रकार के लोकगीत एवं लोकनृत्यों का कार्यक्रम भी परिवेश में पाया जाता है। इस आधार पर छात्र वैवाहिक अवसर, भवन निर्माण, जन्मदिन एवं अनेक मांगलिक परम्पराओं के अवसर पर सम्पन्न होने वाले लोकनृत्य एवं लोकगीतों से सम्बन्धित कार्यों को सीखते हैं तथा व्यावहारिक जीवन में इस ज्ञान का उपयोग करते हैं।
7. खेल के मैदान का सफाई कार्य (Cleanliness work of playground)
सामान्यत: खेल सम्बन्धी क्रियाकलाप को सम्पन्न करने के लिये एक स्वच्छ खेल के मैदान की आवश्यकता होती है। इसके लिये विद्यालय प्रशासन द्वारा या खेल शिक्षक द्वारा खेल के मैदान को तैयार कराया जाता है तथा उसकी सफाई करायी जाती है। इसमें छात्रों का सहयोग लिया जाता है। इससे एक ओर छात्र विभिन्न प्रकार के खेलों के लिये मैदान की स्थिति के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं वहीं दूसरी ओर स्वच्छता के महत्त्व को भी समझते हैं।
8. विभिन्न प्रकार के खेल सम्बन्धी क्रियाकलाप (Various type game related activities)
विभिन्न प्रकार के खेलों के माध्यम से भी छात्रों द्वारा सीखने का प्रयास किया जाता है; जैसे– खेल के मैदान की माप से सेमी., मीटर, फुट एवं इंच आदि का ज्ञान, विभिन्न प्रकार के खेलों का ज्ञान, टीम भावना का विकास एवं सामाजिक गुणों का विकास आदि । इस प्रकार विभिन्न प्रकार के शैक्षिक एवं अशैक्षिक तथ्यों को छात्र द्वारा सीखा जाता है।
9. सामाजिक कार्य सम्बन्धी क्रियाकलाप (Social work related activities)
समाज में होने वाले विविध सामुदायिक कार्य भी छात्रों को अधिगम कराने में सक्षम होते हैं; जैसे– बालक अपने माता-पिता को सार्वजनिक कार्यों में सहयोग देते हुए देखता है तो वह भी इन कार्यों में सहयोग देने का प्रयास करता है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक एवं सामुदायिक कार्यों में बालक भाग लेते हैं तो वह अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित होते हैं। विभिन्न प्रकार की धार्मिक, मांगलिक एवं सामाजिक परम्पराओं का अधिगम छात्रों को सामाजिक कार्यों से ही प्राप्त होता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि औपचारिक एवं अनौपचारिक अधिगम क्रियाकलापों की भूमिका अधिगम केन्द्रित उपागम में महत्त्वपूर्ण होती है।
प्रशिक्षुओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वह प्रशिक्षण काल में ही उन सभी गतिविधियों एवं क्रियाकलापों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर ले जो कि बालकों का औपचारिक एवं अनौपचारिक ज्ञान की प्रक्रिया में सहयोग देते हैं क्योंकि इस अवस्था में शिक्षक का कार्य अधिगम परिस्थितियों का चयन करना तथा छात्रों को उसकी ओर प्रेरित करना है। विभिन्न प्रकार के अधिगम क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों के अधिगम स्तर को उच्च एवं स्थायी बनाया जा सकता है।
अधिगम क्रियाकलापों के चयन की सावधानियाँ या कसौटी
Precautions in Selection of Learning Activities
सामान्यतः किसी भी क्रिया का चुनाव करने से पूर्व उसके विभिन्न तथ्यों पर विचार करना आवश्यक होता है। ये सभी तत्त्व इस अधिगम क्रियाकलाप के लिये उसकी कसौटी के रूप में स्वीकार किये जाते हैं।
विभिन्न प्रकार के अधिगम क्रियाकलापों के चयन में निम्नलिखित कसौटियों या सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिये:-
-
प्रत्येक क्रियाकलापके मूल में अधिगम का समावेश होना चाहिये। जिस क्रियाकलाप में अधिगम का समावेश नहीं होता उसे उपयुक्त नहीं माना जा सकता। अतः क्रियाकलाप से कुछ न कुछ सीख अवश्य मिलनी चाहिये।
-
प्रत्येक अधिगम क्रिया का सम्बन्ध पाठ्यक्रम या पाठ्यक्रम सहगामी क्रिया से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होना चाहिये, जिससे कि उस क्रिया को व्यापक रूप से स्वीकार किया जा सके।
-
क्रियाकलापों का निर्धारण इस आधार पर किया जाना चाहिये, जिससे कि प्रतिदिन पढ़ाये जाने वाले पाठों में उसकी उपयोगिता सिद्ध हो सके क्योंकि पाठों से असम्बद्ध क्रियाकलापों को अधिगम क्रियाकलाप नहीं माना जा सकता।
-
क्रियाकलापों के चयन में शिक्षक को संसाधनों की उपलब्धता पर विचार करना चाहिये; जैसे– मिट्टी से सम्बन्धित क्रियाकलापों के लिये छात्रों को यह ध्यान रखना चाहिये कि मिट्टी के विविध प्रकार एवं उसको तैयार करने की प्रक्रिया तथा खिलौनों के निर्माण की प्रक्रिया को किस प्रकार छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा?
-
क्रियाकलापों के चयन के समय छात्रों की योग्यता एवं स्तर को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये, जिससे कि क्रियाकलाप को समझने एवं सम्पन्न करने में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
-
प्रत्येक क्रियाकलाप के मूल में सामाजिकता, शारीरिक एवं मानसिक विकास की अवधारणा छिपी होनी चाहिये क्योंकि ऐसे क्रियाकलाप में बालक, शिक्षक एवं अभिभावक सभी की रुचि होगी।
-
प्रत्येक क्रियाकलाप को यथार्थता एवं परिवेश से सम्बन्धित करने का प्रयास करना चाहिये अर्थात् उन क्रियाकलापों को विद्यालय में स्थान देना चाहिये जो कि वातावरण एवं सत्यता से सम्बन्धित हो; जैसे– वृक्षारोपण कार्यक्रम एवं स्वच्छता सम्बन्धी कार्यक्रम को विद्यालय एवं समाज स्तर पर सम्पन्न करना आदि।
-
अधिगम क्रियाकलापों का चयन करते समय यह ध्यान रखा जाय कि क्रियाकलाप छात्रों को आकर्षित करने वाला होना चाहिये तथा उसमें उनकी सहभागिता अधिक होनी चाहिये।
-
अधिगम क्रियाकलापों का चुनाव करते समय ध्यान रखा जाय कि शिक्षक की भूमिका निर्देशक एवं परामर्शक के रूप में तथा सहयोग के रूप में होनी चाहिये, जिससे कि छात्रों को यह अनुभव हो कि शिक्षक हमारे लिये नियन्त्रक नहीं है वरन् हमारी रुचिपूर्ण क्रियाओं में सहयोग करने वाला है।
-
क्रियाकलापों के चयन में यह ध्यान रखा जाय कि वह प्रायोगिक दृष्टि से सरल हो क्योंकि प्राथमिक स्तर पर छात्रों द्वारा अधिक कठिन कार्यों को सम्पन्न नहीं किया जा सकता। अतः सरल एवं छात्रों के स्तरानुकूल क्रियाएँ होनी चाहिये। उच्च प्राथमिक स्तर पर कठिन कार्यों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।
-
प्रत्येक क्रियाकलाप की व्यावहारिक एवं शैक्षिक दृष्टि से उपयोगिता होनी चाहिये क्योंकि इन दोनों गुणों के कारण छात्र एवं अभिभावक दोनों के द्वारा ही गतिविधियों की ओर ध्यान दिया जायेगा तथा व्यापक रूप में स्वीकार किया जायेगा।
-
प्रत्येक क्रियाकलाप में शिक्षकों को छात्रों के साथ सकारात्मक व्यवहार करना चाहिये, जिससे क्रियाकलापों में सहयोग करते समय छात्रों को शिक्षक से भय एवं संकोच उत्पन्न न हो तथा छात्र प्रत्येक समस्या को स्वतन्त्र रूप से शिक्षक से पूछ सके तथा शिक्षक को सहयोगी के रूप में स्वीकार कर सके।
अधिगम केन्द्रित उपागम में अधिगम क्रियाओं का आयोजन
Planning of Learning Activities in Learning Centered Approach
अधिगम केन्द्रित उपागम में अधिगम क्रियाओं के क्रियान्वयन हेतु योजना निर्माण की महत्त्वपूर्ण उपयोगिता होती है। यदि किसी योजना को उचित रूप में क्रियान्वित नहीं किया जाता तो उसमें निहित उद्देश्य एवं लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिये योजनाबद्ध रूप में अधिगम क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों के अधिगम स्तर को उच्च बनाया जा सकता है।
अधिगम केन्द्रित उपागम के सोपान
योजना में निम्नलिखित सोपानों को पूर्ण करके अधिगम क्रियाकलापों को उचित रूप में सम्पन्न किया जा सकता है तथा इसमें निहित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है:-
1. स्थिति निर्माण करना (Creation of situation)
इस सोपान के अन्तर्गत प्रशिक्षुओं से यह अपेक्षा की जाती है कि छात्रों के समक्ष वह इस प्रकार से विषयवस्तु या प्रकरण का प्रस्तुतीकरण करे, जिससे कि छात्र उसके सन्दर्भ में कार्य करने के लिये प्रेरित हो सकें; जैसे– दहेज प्रथा को सामाजिक कुरीति के रूप में स्वीकार करे तथा छात्रों को उसके दोषों के बारे में बताने का प्रयास करे।
छात्रों को इससे सम्बन्धित गीत एवं कविताओं को बताये जो दहेज प्रथा का विरोध करते हैं। इससे छात्र भी दहेज प्रथा के साथ-साथ अन्य सामाजिक कुरीतियों के बारे में चर्चा करेंगे तथा छात्रों द्वारा अनेक प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने की प्रेरणा प्राप्त होगी। जो कि सामाजिक कुरीतियों को हतोत्साहित करती हैं।
इसी प्रकार परिवेश भाषा, रीति-रिवाज एवं सभ्यता, संस्कृति से सम्बन्धित अनेक प्रकरणों पर आधारित अधिगम क्रियाओं में छात्र पूर्ण ध्यान से भाग लेने के लिये तैयार हो सकेंगे।
2. उद्देश्य निर्धारण (Aims determination)
प्रशिक्षुओं द्वारा विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों के आधार पर ही क्रियाकलापों का चयन किया जाता है। इसलिये सर्वप्रथम प्रत्येक क्रिया के लिये प्रशिक्षुओं द्वारा अपेक्षित व्यवहागत् परिवर्तन एवं उद्देश्यों का निर्धारण कर लेना चाहिये क्योंकि इसके आधार पर ही योजना की सफलता को ज्ञात किया जा सकता है कि किस स्तर पर हमारी योजना पूर्णतः सफल सिद्ध हुई या नहीं?
3. अधिगम क्रियाकलाप का स्वरूप (Form of learning activities)
प्रशिक्षुओं द्वारा विभिन्न प्रकार के अधिगम क्रियाकलापों का स्वरूप निश्चित करना चाहिये। अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि एक ही उद्देश्य की पूर्ति अनेक क्रियाकलापों के माध्यम से सम्भव होती है। इसलिये अनेक प्रकार के क्रियाकलापों का वर्णन करना चाहिये, जिससे कि किसी एक क्रियाकलाप पर निर्भर न रहना पड़े।
4. योजना का क्रियान्वयन (Implementation of planning)
इस सोपान के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों की सर्वोत्तम योजना को क्रियान्वित किया जाता है। इसमें प्रत्येक क्रिया के लिये वैकल्पिक व्यवस्था का भी संकेत दिया जाता है तथा प्रत्येक छात्र को इसमें सहभागिता का पूर्ण अवसर प्रदान किया जाता है।
इस प्रकार प्रत्येक प्रशिक्षु को योजना के क्रियान्वयन के सम्पूर्ण पक्षों पर दृष्टि रखनी चाहिये, जिससे योजना का क्रियान्वयन सफल रूप में हो।
आवश्यकता के अनुसार शिक्षकों द्वारा इसमें सहायता प्रदान की जाती है, जिससे कि छात्रों के उत्तरदायित्त्व निर्वहन में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो।
5. योजना का मूल्यांकन (Evaluation of project)
इस सोपान के अन्तर्गत अधिगम क्रियाकलापों के लिये जो योजना क्रियान्वित की गयी थी उसका मूल्यांकन किया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रशिक्षुओं द्वारा या शिक्षक द्वारा यह देखा जाता है कि जिन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर योजना तैयार की गयी थी वे उद्देश्य पूर्ण रूप से प्राप्त किये गये हैं या नहीं। छात्रों में अपेक्षित व्यवहारगत् परिवर्तन सम्भव हुआ है या नहीं।
इस प्रकार जब छात्रों में अपेक्षित व्यवहारगत् परिवर्तन प्राप्त हुए माने जाते हैं तो योजना को सफल माना जाता है। इसके विपरीत स्थिति में योजना को असफल माना जाता है।
6.अभिलेखन (Record)
यह अधिगम क्रियाकलापों के आयोजन का अन्तिम सोपान है। इन सम्पूर्ण अधिगम क्रियाकलापों को अभिलेख के रूप में तैयार किया जाता है तथा भविष्य में अच्छी योजना निर्माण के लिये आवश्यक सुझाव भी प्रस्तुत किये जाते हैं, जिससे अन्य प्रशिक्षुओं एवं शिक्षकों को योजना निर्माण में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं होती।
विभिन्न अधिगम उपागम
Various Learning Approaches
बालकों के सार्थक अधिगम के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक द्वारा अपनी सभी क्षमताओं का उपयोग किया जाय, जिससे कि प्रत्येक बालक शिक्षण अधिगम का पूरा लाभ उठा सके। शिक्षक अपने पूर्ण मनोयोग, अपने अनुभव एवं दक्षताओं के साथ विभिन्न प्रविधियों, विधियों तथा विधाओं का उपयोग करता है। विधियों एवं प्रविधियों से वह अधिगम को सुगम बना देता है।
यही विशेष प्रविधियाँ अधिगम केन्द्रित उपागम कहलाती हैं, जिन्हें निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:-
- बाल केन्द्रित अधिगम उपागम
- क्रियापरक या गतिविधि आधारित अधिगम उपागम
- रुचिपूर्ण या आनंददायी अधिगम उपागम
- दक्षता आधारित अधिगम उपागम
- विषय केंद्रित अधिगम उपागम
- व्यापक क्षेत्र अधिगम उपागम
- सामाजिक समस्या केंद्रित अधिगम उपागम
- संज्ञानात्मक अधिगम उपागम
- सहभागी शिक्षण अधिगम उपागम
- निदानात्मक शिक्षण एवं उपचारात्मक शिक्षण
- बहुकक्षा एवं बहुस्तरीय शिक्षण
1. बाल केन्द्रित अधिगम उपागम (Child Centered Learning Approach)
एक समय था जब बालक की अपेक्षा पाठ्यक्रम को अधिक महत्त्व दिया जाता था परन्तु शिक्षण अधिगम में मनोविज्ञान के प्रवेश से अब बालक को महत्त्व दिया जाने लगा है। अब बालक की क्षमताओं, रुचियों तथा रुझानों को विशेष महत्त्व दिया जाता है और उसकी अधिगम प्रक्रिया में इन बिन्दुओं का ध्यान रखा जाता है।
बाल केन्द्रित अधिगम का उद्देश्य बालक का चहुँमुखी विकास करना है। बाल केन्द्रित अधिगम की प्रमुख विशेषता बालक की प्रधानता है। इसके अन्तर्गत बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं को ध्यान में रखकर ही सम्पूर्ण अधिगम प्रक्रिया का आयोजन किया जाता है।
2. क्रियापरक (गतिविधि आधारित) अधिगम उपागम (Activity Based Learning Approach)
क्रियापरक एवं शिक्षण अधिगम का प्रवर्तक रूसो को माना जाता है। रूसो का कथन है, “यदि आप अपने बालक की बुद्धि का विकास करना चाहते हैं तो उस शक्ति का विकास करना चाहिये, जिसे इसको नियन्त्रित करना है। उसको बुद्धिमान और तर्कपूर्ण बनाने के लिये उसे हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ बनाना होगा।”
अत: क्रियापरक विधि का अर्थ है छात्र को अपनी स्वयं की क्रिया द्वारा ज्ञान प्राप्त करना। छात्र की क्रिया से तात्पर्य है जिस क्रिया को छात्र किसी उद्देश्य से पूर्ण करता है उसमें उसका मानसिक और शरीर दोनों क्रियाशील रहते हैं।
3. रुचिपूर्ण अथवा आनन्दायी अधिगम उपागम (Interest Based Learning Approach)
प्राथमिक शिक्षा में परम्परागत शिक्षण विधियों, विद्यालय का अनाकर्षक तथा अरुचिपूर्ण वातावरण, क्रियाकलाप विहीन पाठ्यक्रम आदि ने छात्र को विद्यालय से दूर कर ह्रास एवं अवरोध जैसी समस्याओं को जन्म दिया है और शिक्षण के सार्वजनीकरण का जो लक्ष्य हमें स्वतन्त्रता प्राप्ति के 10 वर्ष बाद ही प्राप्त कर लेना चाहिये था, वो हम 50 वर्षों में भी प्राप्त नहीं कर पाये।
अत: शिक्षा के सार्वजनीकरण एवं उपलब्धि की सम्प्राप्ति सुनिश्चित कराने हेतु शिक्षा विभाग ने वर्ष 1994 में प्राथमिक शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के सहयोग से यूनीसेफ वित्त पोषित रुचिपूर्ण शिक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ किया है।
4. दक्षता आधारित अधिगम उपागम (Efficiency Based Learning Approach)
आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा एवं प्रतियोगिता का युग है। इसमें बालकों को ज्ञान प्राप्ति के साथ ही समाज में अपना विशिष्ट स्थान बनाने के लिये किसी क्षेत्र में विशिष्ट दक्षता प्राप्त करना होती है। दक्षता मानसिक एवं भौतिक दोनों क्षेत्रों में हो सकती है। दक्षता प्राप्त करने के बाद ही बालक समाज में सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
5. विषय केन्द्रित अधिगम उपागम (Subject Based Learning Approach)
सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि किसी विषय की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का स्वरूप विस्तृत रूप में पाया जाता है तथा किसी विषय का संकुचित रूप में अर्थात् अधिगम प्रक्रिया में विषय का स्वरूप एवं उसकी उपयोगिता उत्तरदायी होता है।
जो विषय समाज के लिये उपयोगी होते हैं तथा समाज में जिनको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है, उस विषय से समाज को अधिक अपेक्षाएँ होती हैं, उस विषय के उद्देश्य भी व्यापक होते हैं तथा उसमें अधिक से अधिक अनुसन्धान भी होते हैं। इस प्रकार विषय की प्रकृति के आधार पर उस विषय का पाठ्यक्रम विस्तृत हो जाता है।
6. व्यापक क्षेत्र उपागम (Broad Field Approach)
विस्तृत क्षेत्र उपागम से आशय अधिगम प्रक्रिया की व्यापकता से है। किसी भी अधिगम प्रक्रिया को क्रियान्वित करने से पूर्व समाज की स्थिति, मानवीय समाज की विशेषता एवं उपलब्ध संसाधनों पर विचार किया जाता है।
इससे यह निश्चित हो जाता है जो भी अधिगम विषय अथवा क्रिया एक निश्चित क्षेत्र के लिये प्रभावी होती है, उसकी अधिगम प्रक्रिया भी निश्चित होती है तथा जिस विषय का क्षेत्र व्यापक होता है, उसका अधिगम भी व्यापक होता है; जैसे– पर्यावरणीय अधिगम का सम्बन्ध किसी निश्चित क्षेत्र से न होकर व्यापक क्षेत्र से होता है।
7. सामाजिक समस्या केद्रित उपागम (Social Problems Centered Approach)
सामाजिक समस्या केन्द्रित उपागम का आशय सामाजिक आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं से है जो कि बालकों की अधिगम प्रक्रिया को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।
दूसरे शब्दों में समाज में उत्पन्न होने वाली अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं का समाधान शिक्षा और ज्ञान के ही माध्यम से सम्पन्न होता है।
इन समस्याओं के समाधान हेतु जो उपाय किये जाते हैं उन्हें बालकों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का भाग बना दिया जाता है, जिससे इन समस्याओं का समाधान भविष्य में सरल और स्वाभाविक रूप में हो जाय। इस प्रकार सामाजिक समस्याओं का समाधान भी सम्भव होता है और अधिगम प्रक्रिया का विकास भी।
8. संज्ञानात्मक उपागम (Cognitive Approach)
संज्ञानात्मक उपागम प्रमुख रूप से मानव व्यवहार के मनोवैज्ञानिक पक्ष से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत अनुसन्धान करते समय प्रत्यक्ष ज्ञान, संकल्पना निर्माण, भाषा प्रयोग, चिन्तन, बोध, समस्या समाधान, अवधान एवं स्मृति जैसे क्रियाकलापों को ध्यान में रखा जाता है। इस प्रकार संज्ञानात्मक उपागम व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक क्रिया-व्यापार से सम्बन्धित अधिगम की संकल्पना एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के रूप में की गयी है।
अधिगम की प्रक्रिया के समय व्यक्ति की संज्ञानात्मक संरचना में परिवर्तन होते हैं जो सीखी गयी अथवा पढ़ाई गयी संकल्पना के विकास एवं बोध में उसकी सहायता करते हैं।
9. सहभागी शिक्षण (Participation Teaching)
शिक्षण प्रक्रिया का सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही दो पक्षों से रहा है। इसमें प्रथम पक्ष शिक्षा प्रदान करने वाला होता है जिसे गुरु के नाम से जानते थे। वर्तमान में उसको शिक्षक के नाम से जानते हैं। दूसरा पक्ष शिक्षा ग्रहण करने वाला होता था जिसे प्राचीनकाल में शिष्य तथा वर्तमान समय में छात्र के नाम से जानते हैं। इन दोनों पक्षों के मध्य ही शिक्षण व्यवस्था के तानेबाने को बुना जाता था। इन दोनों पक्षों को शिक्षण प्रक्रिया के लिये अनिवार्य माना जाता था। किसी भी एक के अभाव में शिक्षण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं मानी जाती थी।
शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये प्राचीनकाल में शिक्षकों तथा शिक्षार्थियों के लिये विभिन्न प्रकार की आचार संहिताएँ बनायी जाती थीं जिससे कि शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली बन सके।
इसी प्रकार शिक्षक के लिये भी सदाचार, समानता, निष्पक्षता, सत्य भाषण, मृदुभाषी एवं संयमी आदि गुणों से युक्त होना बताया गया। इससे यह स्पष्ट हुआ है कि शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के द्वारा ही शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जाता है।
10. निदानात्मक शिक्षण एवं उपचारात्मक शिक्षण (Diagnostic Teaching and Remedial Teaching)
यदि कोई छात्र लगातार किसी विषय में अनुत्तीर्ण होता है या पढ़ने में कमजोर होता है तो छात्र की असफलता की जानकारी प्राप्त करना निदान कहलाता है। छात्र की असफलता के कारणों की जाँच कर इनके निराकरण के लिये उपाय किये जाते हैं तो यह उपचार कहलाता है। निदानात्मक परीक्षण और उपचारात्मक शिक्षण की प्रतिक्रियाएँ साथ-साथ रहती हैं।
11. बहुकक्षा एवं बहुस्तरीय शिक्षण (Multi Grade and Multi Class Teaching)
बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण की तकनीकी बहुश्रेणी शिक्षण से ही सम्बन्धित होती है क्योंकि विभिन्न प्रकार की स्थितियों में छात्रों को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा प्रदान करना भी बहुश्रेणी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है।