शिक्षण की प्रविधियों तथा युक्तियों की भूमिका
Introduction to the Devices and Techniques of Teaching
शिक्षण एक गतिशील तथा सुनियोजित प्रक्रिया है। शिक्षण का उद्देश्य है कि विद्यार्थी अधिक से अधिक सीखने के अनुभव प्राप्त करे। इस महान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये मनोवैज्ञानिक खोजों पर अनेक विधियों तथा प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है। स्मरण रहे विधियों और प्रविधियों में आकाश और पाताल का अन्तर होता है।
शिक्षण-विधियों का सम्बन्ध सीधा शिक्षण के उद्देश्य से होता है। अतः प्रत्येक शिक्षण-विधि शिक्षण की दिशा तथा गति को निर्धारित करती है। इसके विपरीत शिक्षण प्रविधि का सम्बन्ध शिक्षण के उद्देश्य से सीधा न होकर केवल शिक्षण की प्रविधि से होता है।
दूसरे शब्दों में, शिक्षा-विधि का शिक्षण के उद्देश्यों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है तथा शिक्षण प्रविधि का अप्रत्यक्ष। शिक्षण-विधि, पाठ्यवस्तु की उचित तथा क्रमबद्ध व्यवस्था पर बल देती है, जबकि शिक्षण-प्रविधि मनोवैज्ञानिक तथा तार्किक पक्षों पर बल देते हुए उन ढंगों की ओर संकेत करती है, जिनके द्वारा शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।
कक्षा शिक्षण में प्रविधियों तथा युक्तियों की आवश्यकता
Need of Techniques and Devices in Class Teaching
अध्यापक विषयानुसार तथा परिस्थिति अनुसार विभिन्न शिक्षण युक्तियों का प्रयोग कर शिक्षण को प्रभावशाली तथा सुगम बना सकता है। शिक्षण युक्तियाँ विषय को समझने में छात्रों को सरलता प्रदान करती हैं। विभिन्न युक्तियों के प्रयोग से ज्ञान का सम्प्रेषण छात्र की ओर तीव्र गति से होता है और छात्र कम से कम समय में अधिक ज्ञान अर्जित कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर ताजमहल का ज्ञान अध्यापक द्वारा विवरण या व्याख्यान देकर उतना सहज नहीं बनाया जा सकता जबकि पर्यटन युक्ति के द्वारा क्षेत्राटन से छात्र को उसका ज्ञान देखकर तुरन्त तथा अधिक होता है। इसी प्रकार विभिन्न युक्तियाँ छात्रों के लिये लाभप्रद होती हैं। इससे अध्यापक को भी शिक्षण कार्य में कम श्रम करना पड़ता है।
शिक्षण प्रविधियाँ एवं युक्तियाँ तथा विधियाँ शिक्षण कला को सजीव एवं प्रभावोत्पादक बनाती हैं। ये सभी ज्ञानार्जन में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है। विभिन्न युक्तियाँ तथा प्रविधियाँ विभिन्न उद्देश्यों के लिये भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्रयोग में लायी जाती है। वस्तुतः इन सबका उद्देश्य ज्ञानार्जन को प्रभावशाली, ग्राह्य, बोधगम्य एवं रोचक बनाना होता है।
युक्तियों का प्रयोग प्रायः स्वतन्त्र रूप से नहीं होता वरन् किसी न किसी विधि के साथ प्रयोग किया जाता है। अध्यापक कक्षा शिक्षण का प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षण युक्तियों का प्रयोग करते हैं। इससे विषय को समझाने का तरीका सरल बन जाता है जिससे ज्ञान सम्प्रेषण सुगम हो जाता है और छात्र विषय ज्ञान को आसानी से आत्मसात् कर लेते हैं।
शिक्षण युक्तियों का अर्थ (Meaning of Teaching Devices)
जिस प्रकार शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ; जैसे-प्रश्नोत्तर प्रविधि, उदाहरण प्रविधि, व्याख्या प्रविधि एवं स्पष्टीकरण प्रविधि आदि सभी किसी न किसी शिक्षण-प्रविधि के सहायक हैं, उसी प्रकार शिक्षण की विभिन्न युक्तियाँ भी किसी न किसी प्रकार शिक्षण प्रविधियों की सहायक हैं।
अन्य शब्दों में, “शिक्षण युक्तियाँ मौलिक रूप में अधिगम संरचना की आधारशिला हैं।”
श्रीमती राजकुमारी शर्मा के अनुसार, “विभिन्न विषयों की शिक्षण क्रियाओं में एक शिक्षण युक्ति, दक्ष शिक्षक के सफल शिक्षण के लिये प्रेरणादायक संचार तत्त्व है।”
वास्तव में सफल शिक्षण की आधारशिला उसके नियोजन पर है। जिस प्रकार एक शतरंज का कुशल खिलाड़ी नवीन चालों को सोचता रहता है तथा नयी-नयी युक्तियाँ बनाता है, ठीक उसी प्रकार एक आदर्श शिक्षक भी शिक्षण की नवीनतम युक्तियाँ प्रयोग में लाता है, जिससे कि विद्यार्थी की जटिलतम समस्याओं का अपनी युक्तियों के द्वारा समाधान कर सके। शिक्षण की युक्ति का अर्थ अनेक विद्वानों ने अपने ढंग से किया है।
प्रसिद्ध विद्वान स्टोन्स तथा मोरिस ने लिखा है, “शिक्षण की युक्ति लक्ष्य से सम्बन्धित है और शिक्षक के व्यवहार को प्रभावित करती है, इसके अन्तर्गत शिक्षण के समय एवं परिस्थिति के अनुसार शिक्षक किस प्रकार का व्यवहार करता है? वह विद्यार्थियों के साथ विभिन्न भूमिकाओं में कार्यों को कैसे पूरा करता है तथा किस प्रकार शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच अन्तःप्रक्रिया होती है? को सम्मिलित किया जाता है।”
शिक्षण एवं युक्तियों का सम्बन्ध
Relationship between Teaching and Devices
आज की आधुनिक शिक्षण संरचना में शिक्षण को वास्तविक गति शिक्षण की विभिन्न युक्तियों के द्वारा ही मिली है। यदि आलोचनात्मक रूप में हम शिक्षण युक्तियों का सम्बन्ध संरचना से स्थापित करें तो हमें ज्ञात होगा कि शैक्षिक तकनीकी में इनका प्रयोग अब विवाद का प्रश्न नहीं है। शिक्षक की स्वयं की योग्यताएँ तथा शिक्षण की युक्तियाँ दोनों बातें अलग-अलग हैं।
शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये, शिक्षण संरचना को व्यावहारिक, गत्यात्मक, प्रेरणादायक, सफल तथा प्रयोजनवादी बनाने के लिये हमें शिक्षण की सफल एवं उचित युक्तियों को प्रयोग में लाना परमावश्यक है।
आज का विद्यार्थी ज्ञान को ग्रहण करने के लिये सदैव निष्क्रिय होकर तैयार नहीं है। कक्षा शिक्षण अधिगम तभी सफल होता है, जबकि शिक्षण रुचिकर, चुनौतीपूर्ण एवं सामाजिक हो।
विभिन्न शिक्षण युक्तियाँ (Various Teaching Devices)
शिक्षण की महत्त्वपूर्ण युक्तियाँ निम्नलिखित प्रकार हैं:-
1. स्पष्टीकरण (Exposition)
स्पष्टीकरण का उद्देश्य है छात्रों के सामने नवीन ज्ञान को इतने सुन्दर और बोधगम्य ढंग से प्रस्तुत करना कि वे उसे हृदयंगम कर लें। अध्यापक इस युक्ति का प्रयोग उस समय करता है जब उसे यह ज्ञात होता है कि उसके छात्र उस विषय के बारे में अल्प ज्ञान रखते हैं जिसे वह पढ़ाने जा रहा है। इस प्रकार स्पष्टीकरण का अर्थ है खोलना, प्रदर्शित करना, दिखाना, प्रकाश में लाना तथा छात्रों को नयी सूचना प्रदान करना।
2. व्याख्या (Explanation)
व्याख्या का अर्थ है स्पष्ट करना, प्रतिपादित करना, अस्पष्टता को दूर करना और विवेक को विकसित करना। व्याख्या का प्रयोग सामान्यतया साहित्य, इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और विज्ञान के शिक्षण में किया जाता है।
3. विवरण (Narration)
विद्यार्थियों को विचारों, अवधारणाओं, नियमों, घटनाओं आदि का स्पष्ट बोध कराने हेतु अध्यापक के लिये विवरण युक्ति सीखना अत्यन्त आवश्यक है। जो अध्यापक प्रभावशाली विवरण दे सकता है वह निश्चित रूप से अपने शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है।
विवरण का उद्देश्य छात्रों के मस्तिष्क पर किसी घटना का स्पष्ट चित्र अंकित करना है जिससे कि वह उसके ज्ञान को सफलतापूर्वक ग्रहण कर लें। इस युक्ति इतिहास के शिक्षण में विशेष महत्त्व है क्योंकि अध्यापक विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण देकर ही छात्रों को उनसे अवगत करा सकता है।
4. वर्णन (Description)
वर्णन का अर्थ है परिभाषित करना या चित्रित करना। किसी वस्तु के आधार या तत्त्वों का शब्दों द्वारा चित्रण वर्णन कहलाता है। वर्णन वास्तव में स्पष्टीकरण का एक रूप है। अध्यापक इतिहास पढ़ाने में किसी युद्ध का, विज्ञान पढ़ाने में किसी यन्त्र का और भूगोल पढ़ाने में किसी प्रदेश का वर्णन करके छात्रों के मस्तिष्क में उनका चित्र अंकित करता है। वर्णन युक्ति का प्रयोग कम या अधिक मात्रा में सभी विषयों के शिक्षण में किया जाता है।
5. दृष्टान्त (Illustration)
दृष्टान्त का अर्थ है स्पष्ट करना, समझाना, चित्रित करना या उद्धृत करना। शिक्षण में दृष्टान्त को तकनीकी अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। इसमें केवल चित्रों, मानचित्रों, मॉडलों, चाटें, उदाहरणों एवं तुलनाओं का प्रयोग भी सम्मिलित नहीं बल्कि इसमें विभिन्न प्रकार के उपकरणों; जैसे– श्यामपट्ट, वैज्ञानिक एवं भौगोलिक यन्त्र तथा मनोवैज्ञानिक यन्त्रों एवं आरेखों का प्रयोग भी सम्मिलित है।
संक्षिप्त में दृष्टान्तों में वह हर वस्तु सम्मिलित है जो विद्यार्थी की भावना तथा कल्पना को प्रभावित करती है, उसकी रुचि एवं जिज्ञासा का उत्तेजित करती है तथा इस प्रकार वर्णित अंश को स्पष्टता प्रदान करती है।
6. प्रश्न कला युक्ति (Questioning device)
प्रश्न पूछना शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। शिक्षण की सफलता अधिकांश रूप से प्रश्न पूछने की कुशलता या कला पर निर्भर होती है। विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान के परीक्षण के लिये प्रश्न पूछे जाते हैं अर्थात यह जानने के लिये कि विद्यार्थी पहले से क्या जानते हैं, उनसे प्रश्न पूछे जाते हैं।
प्रश्न पूछना एक कला है जिसे अध्यापक को केवल स्वयं ही नहीं सीखना चाहिये बल्कि विद्यार्थियों को भी सिखाना चाहिये। प्रश्नों के प्रति अध्यापक का व्यवहार तथा दिये गये उत्तर शिक्षण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
7. उत्तर देना (Answering)
विद्यार्थियों के उत्तरों के प्रति अध्यापक का व्यवहार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि उसका प्रश्न पूछना। विद्यार्थियों के उत्तरों के सम्मुख भी उसी प्रकार सावधान रहना चाहिये जिस प्रकार प्रश्न पूछते समय।
8. दत्तकार्य (Assignment)
दत्तकार्य वह कार्य है जो विद्यार्थी या कक्षा को दिया जाता है। प्रमुखतः इसे शिक्षण के स्थान पर शिक्षक के पूरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह विद्यार्थी की पाठ्य क्रियाओं में निपुण निर्देशन प्रदान करता है।
9. गृहकार्य (Home work)
गृह अध्ययन या गृहकार्य वह कार्य है जो विद्यालय के सामान्य समय के बाहर किया जाता है। यह प्रायः विद्यार्थियों द्वारा घर पर भी किया जाता है। गृहकार्य परिश्रम एवं नियमित रूप से काम करने की आदत का विकास करता है। यह एक ऐसी आदत है जो ज्ञान प्राप्ति में बहुत काम आती है।
10. श्यामपट्ट (Black board)
श्यामपट्ट अध्यापक के हाथ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन है। कक्षा शिक्षण में यह शिक्षक की महत्त्वपूर्ण सम्पत्ति है जो छात्रों पर सीधा प्रभाव डालती है और उनकी ध्यान एवं एकाग्रता को सशक्त करती है।
11. पाठ्य-पुस्तक (Text book)
पाठ्य-पुस्तक युक्ति का उपयोग एक साधन, सहायता सामग्री एवं जानकारी के स्रोत के रूप में किया जाता है। अध्यापक को अपना शिक्षण रोचक, प्रभावशाली और सफल बनाने के लिये पाठ्य-पुस्तक युक्ति का उपयोग करना चाहिये।
12. सन्दर्भ पुस्तकें (Reference books)
सन्दर्भ पुस्तकों को जानकारी का भण्डार कहते हैं। यह पाठ्य-पुस्तक की सामग्री की न्यूनता को पूर्ण करने के लिये उपयोग की जाती है।
स्थिरीय शिक्षण युक्तियाँ (Fixing Teaching Devices)
शिक्षण की स्थिरीय युक्तियाँ इस प्रकार हैं:-
1. ड्रिल (Drill)
शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली स्थिरीय युक्तियों में महत्त्वपूर्ण युक्ति है ड्रिल युक्ति। शिक्षण में इसका व्यापक प्रयोग किया जाता है। ड्रिल प्रतीकात्मक अधिगम जैसे– बीजगणित, अंग्रेजी व्याकरण एवं विदेशी भाषा के अधिगम की शिक्षण युक्ति में।
2. समीक्षा या पुनर्वेक्षण (Review)
पुनर्वेक्षण भी अधिगम को स्थायी बनाने की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। इसका प्रयोग उन तथ्यों एवं कौशलों में निपुणता प्राप्त करने के लिये किया जाता है जो विद्यालय और जीवन दोनों के लिये अनिवार्य होते हैं।
3. पुनरावृत्ति (Recapitulation)
पुनरावृत्ति एक स्थिरीय युक्ति है जिसका शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में विशेष स्थान है। यह सभी पाठों में आवश्यक होती है। पुनरावृत्ति का अर्थ है अर्जित ज्ञान का पुनर्निरीक्षण करना या उसे दोहराना। इसमें पहले से सीखे गये ज्ञान का पुनर्निरीक्षण किया जाता है और उसे पुनः उत्पन्न किया जाता है।
4. पुनः अभ्यास (Repetitive practice)
स्थिरीय युक्ति के रूप में पुनः अभ्यास युक्ति का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया और उसके स्थिरीकरण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि पुन:अभ्यास सीखी गयी सामग्री की आवृत्ति है। यह शिक्षार्थी के लिये एक उपयोगी युक्ति है क्योंकि स्थायी अधिगम के लिये पुनः अभ्यास अत्यन्त आवश्यक होता है।
शिक्षण प्रविधि का अर्थ एवं महत्त्व
Meaning and Importance of Teaching Technique
शिक्षण नीति अथवा शिक्षण प्रविधि शिक्षक द्वारा शिक्षण के सतत् अभ्यास द्वारा विकसित वह अधिकतम अच्छाइयों वाला मार्ग है, जिस पर चलकर शिक्षण के उद्देश्य और लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। शिक्षण प्रविधि का विकास एक-दो प्रयासों से नहीं हो जाता। यह एक विशेष दिशा में किये गये निरन्तर प्रयत्नों का परिणाम है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई प्रविधि स्वयं में पूर्णतया निर्दोष है। प्रत्येक प्रविधि में कुछ अच्छे पक्ष होते हैं, जो उस प्रविधि की विशेषताएँ, लाभ अथवा धनात्मक बिन्दुओं के रूप में माने जाते हैं।
शिक्षण प्रविधि का आशय इस तथ्य से लगाया जाता है कि किसी विषय के ज्ञान को छात्रों तक किस प्रकार पहुँचाया जाय? किसी विषय के शिक्षण में प्रविधि का वही महत्त्व है जो किसी निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचने के लिये सही मार्ग का होता है।
एस.के. कोचर के अनुसार, “जिस प्रकार एक सैनिक को लड़ने के अनेक हथियारों का ज्ञान होना आवश्यक है, उसी प्रकार शिक्षक को भी शिक्षण की विभिन्न प्रविधियों का ज्ञान होना चाहिये। किस समय उसे कौन-सी प्रविधि अपनानी चाहिये? यह उसके निर्णय पर निर्भर है।”
कुशल अध्यापन में शिक्षण प्रविधियों का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है:-
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शिक्षण प्रविधियाँ वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ होती हैं, इसलिये अध्यापन में प्रभावशाली हैं।
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ये प्रविधियाँ शिक्षक को वांछनीय ज्ञान कराती हैं।
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इनके द्वारा विद्यार्थियों में सामाजिकता की भावना का विकास किया जाता है।
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ये प्रविधियाँ विद्यार्थियों को अध्यापन कला में प्रशिक्षित कर सकती हैं।
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शिक्षण प्रविधियाँ विद्यार्थियों को सहभागिता के लिये विभिन्न अवसर प्रदान करती हैं।
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ये प्रविधियाँ विद्यार्थियों में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति एवं कर्त्तव्यनिष्ठता की भावना उत्पन्न करती हैं।
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शिक्षण प्रविधियाँ विद्यार्थियों में चिन्तन-शक्ति का विकास करती हैं एवं उन्हें अध्ययन हेतु प्रोत्साहित करती हैं।
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ये प्रविधियाँ रोचक एवं उद्देश्यपूर्ण होती हैं।
शिक्षण प्रविधियों की आवश्यकता
Need of Teaching Techniques
शिक्षण के उद्देश्यों को शिक्षण प्रविधि के द्वारा प्राप्त करते हैं। एस.के. कोचर (S.K. Kocher) का कहना है कि जहाँ हम ज्ञानप्राप्ति के लक्ष्य को वाद-विवाद प्रविधि, व्याख्यान प्रविधि एवं पाठ्य-पुस्तक प्रविधि का अध्ययन कर प्राप्त करते हैं, वहीं हम कौशलों के विकास हेतु इकाई प्रविधि, समस्या समाधान प्रविधि एवं योजना प्रविधि का प्रयोग करते हैं। प्रविधि के प्रयोग के बिना शिक्षक अपने कार्य को सफलतापूर्वक सम्पादित नहीं कर सकता।
इन शिक्षण प्रविधियों की आवश्यकता अनेक कारणों से है:-
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छात्रों के उद्देश्यपूर्ण ढंग से सीखने तथा प्रोत्साहित किये जाने हेतु।
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छात्रों में उन कुशलताओं के विकास हेतु, जो उन्हें प्रजातन्त्र के लिये जागरूक बनाये रखती हैं।
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छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न करने एवं कतिपय सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास करने के लिये।
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छात्रों के ज्ञान में अभिवृद्धि करने एवं उनके चिन्तन की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने हेतु।
वास्तव में हमें शिक्षण प्रविधियों को शिक्षा की गतिमान प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिये न कि शिक्षण प्रक्रिया के स्थिर पहलू के रूप में। शिक्षण प्रविधियों के अन्तर्गत कक्षा में अध्यापक द्वारा की गयी सभी गतिप्रविधियों को निहित किया जाता है। यही प्रक्रिया शिक्षक की सफलता एवं असफलता का निर्धारण करती है।
शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ (Various Techniques of Teaching)
शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ निम्नलिखित प्रकार हैं:-
- पाठ्य-पुस्तक प्रविधि
- व्याख्यान या भाषण प्रविधि
- निरीक्षण प्रविधि
- आगमन प्रविधि
- निगमन प्रविधि
- प्रश्नोत्तर प्रविधि
- कहानी-कथन प्रविधि
- अनुसन्धान या ह्यूरिस्टिक प्रविधि
- इकाई प्रविधि
- कार्यगोष्ठी प्रविधि
- वार्तालाप/विचार विनिमय/वाद-विवाद प्रविधि
- समस्या समाधान प्रविधि
- प्रोजेक्ट या प्रायोजना प्रविधि
- स्रोत-सन्दर्भ प्रविधि
- पर्यवेक्षित अध्ययन प्रविधि
- दलीय शिक्षण-प्रविधि
- बालोद्यान शिक्षण-प्रविधि
- मॉण्टेसरी शिक्षण-प्रविधि
- डाल्टन शिक्षण-प्रविधि
- बुनियादी शिक्षण-प्रविधि
- खेल प्रविधि
- सूक्ष्म शिक्षण-प्रविधि
अब हम उपरोक्त शिक्षण प्रविधियों का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं (प्रविधियों का विस्तृत विवरण पढ़ने के लिए उपरलिखित संबंधित लिंक पर क्लिक करें):-
1. पाठ्य-पुस्तक प्रविधि (Text Book Technique)
शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक प्रविधि सबसे अधिक प्रचलित प्रविधि है। अन्य शब्दों में, “यह प्रविधि पाठ्य- पुस्तक को आधार मानती है, जैसे कोई अन्य प्रविधि किसी समस्या या योजना को आधार मानकर चलती है।” इस प्रविधि का प्रयोग भाषा-शिक्षण में किया जाता है।
2. व्याख्यान या भाषण प्रविधि (Lecture Technique)
व्याख्यान या भाषण प्रविधि भी प्राचीन प्रविधि है। इस प्रविधि में केन्द्रबिन्दु अध्यापक होता है। अध्यापक विषय-सामग्री को विद्यार्थियों के समक्ष भाषण के माध्यम से रखता है और विद्यार्थी उसके सामने बैठकर सुनते रहते हैं। इस प्रविधि में अध्यापक विषय-सामग्री को पहले घर पर तैयार करता है और ज्यों का त्यों कक्षा में जाकर उड़ेल देता है।
3. निरीक्षण प्रविधि (Observation Technique)
निरीक्षण प्रविधि शिक्षण में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें बालक किसी वस्तु, स्थान या व्यक्ति को देखकर ही उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। यह प्रविधि ‘देखकर सीखना’ (Learning by seeing) नामक सिद्धान्त पर आधारित है।
4. आगमन प्रविधि (Inductive Technique)
आगमन प्रविधि में छात्र विशिष्ट से सामान्य (Specific to general) की ओर अग्रसर होते हैं। छात्र के सामने सर्वप्रथम अनेक उदाहरण रखे जाते हैं और फिर वह इन उदाहरणों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालता है। इस प्रविधि का अधिकांश प्रयोग व्याकरण शिक्षण के अन्तर्गत किया जाता है।
5. निगमन प्रविधि (Deductive Technique)
निगमन प्रविधि, आगमन प्रविधि की विपरीत प्रविधि है, क्योंकि इसमें पहले कोई सिद्धान्त या नियम रखा जाता है, फिर विभिन्न उदाहरणों से उसकी पुष्टि की जाती है। इस प्रविधि में सामान्य से विशिष्ट की ओर (General to specific) चलते हैं।
6. प्रश्नोत्तर प्रविधि (Question-Answer Technique)
प्रश्नोत्तर प्रविधि शिक्षण क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस प्रविधि के जन्मदाता प्रसिद्ध विद्वान् सुकरात (Socrates) थे। अत: इस प्रविधि को सोकरेटिक मेथड (Socratic method) भी कहा जाता है।
7. कहानी-कथन प्रविधि (Story Telling Technique)
कहानी-कथन प्रविधि भाषा शिक्षण की, प्राथमिक स्तर पर बड़ी उपयोगी प्रविधि है, क्योंकि छोटे बालकों को कहानी सुनने का बड़ा शौक होता है। वे छोटी अवस्था से ही अपने माता-पिता, दादा-दादी आदि से कहानी सुनते आये हैं।
8. अनुसन्धान या ह्यूरिस्टिक प्रविधि (Heuristic Technique)
आर्मस्ट्रांग इस प्रविधि के जन्मदाता थे। अनुसन्धान या ह्यूरिस्टिक प्रविधि स्वयं खोज करने या स्वयं सीखने की प्रविधि है। इसमें बालक को स्वयं तथ्यों का अध्ययन, अवलोकन और निरीक्षण करने का अवसर दिया जाता है और बालक से यह आशा की जाती है कि वह अपने प्रयास से सत्य को ज्ञात करे और नियम का निर्धारण करे।
9. इकाई प्रविधि (Unit Technique)
विभिन्न विद्वानों ने इकाई प्रविधि की परिभाषाएँ विभिन्न प्रकार से दी हैं:- डॉ. माथुर के अनुसार, “इकाई का अर्थ वास्तव में अनुभव या ज्ञान को एक सूत्र में पिरोना है। यूनिट (इकाई) शिक्षण की वह योजना है, जो कि सीखने के किसी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र पर केन्द्रित होती है।”
10. कार्यगोष्ठी प्रविधि (Work Seminar Technique)
कार्यगोष्ठी प्रविधि, वह प्रविधि है जिसमें अध्यापक और छात्र मिलकर विषय की समस्याओं एवं कठिनाइयों का चयन करते हैं तथा प्रत्येक छात्र को उसकी रुचि का क्षेत्र प्रदान कर दिया जाता है। तत्पश्चात् सामूहिक चर्चा होती है तथा अन्त में निर्धारित कार्य का मूल्यांकन किया जाता है।
11. वार्तालाप/विचार-विनिमय/वाद-विवाद प्रविधि (Conversation or Discussion Technique)
विचार विनिमय प्रविधि को वाद-विवाद प्रविधि भी कहा जाता है। आजकल छात्र को एकमात्र निष्क्रिय श्रोता नहीं माना जाता, वरन् उससे यह आशा की जाती है कि वह स्वयं भी ज्ञान आदान-प्रदान की प्रक्रिया में सहयोग दे।
12. समस्या-समाधान प्रविधि (Problem Solving Technique)
समस्या समाधान प्रविधि बहुत कुछ योजना प्रविधि से मिलती-जुलती है। वुड (Wood) के अनुसार, “समस्या समाधान प्रविधि निर्देश की वह प्रविधि है, जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौतीपूर्ण स्थितियों में सृजन द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, जिनका समाधान करना आवश्यक है।”
13. परियोजना प्रविधि (Project Technique)
परियोजना प्रविधि या प्रोजेक्ट प्रविधि के जन्मदाता विलियम किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) थे। वे प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी के शिष्य रह चुके थे। अत: वे उनके प्रयोजनवाद या व्यवहारवाद से विशेष रूप से प्रभावित थे।
14. स्त्रोत-सन्दर्भ प्रविधि (Source Reference Technique)
स्रोत-सन्दर्भ एक प्रभावशाली शिक्षण प्रविधि है। इस प्रविधि का अर्थ स्पष्ट करने से पूर्व यह आवश्यक है कि ‘स्रोत‘ और ‘संदर्भ‘ शब्द का अर्थ समझा जाय। सर्वप्रथम हम स्रोत और तत्पश्चातसंदर्भ के अर्थ के बारे में चर्चा करेंगे।
15. पर्यवेक्षित अध्ययन प्रविधि (Supervised Study Technique)
पर्यवेक्षित अध्ययन प्रविधि का जन्म अमेरिका महान शिक्षाविद मॉरिसन द्वारा किया गया। इसको निरीक्षित, निरीक्षण, परिवीक्षित, समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि, पारिपाक विधि, उपचारी विधि, पर्यवेक्षण आदि नामों से भी जाना जाता है।
16. दलीय शिक्षण प्रविधि (Group Teaching Technique)
दलीय शिक्षण प्रविधि का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ और यद्यपि यह भारत के लिये नयी तकनीक है, लेकिन अमेरिका में इस तकनीक का प्रयोग इस सदी के पाँचवें दशक से ही किया जा रहा है।
17. बालोद्यान शिक्षण प्रविधि (Child Garden Teaching Technique)
बालोद्यान शिक्षण प्रविधि के जन्मदाता जर्मनी के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री फ्रॉबेल हैं। इन्होंने पाठशाला को एक उद्यान की संज्ञा दी है। इनके अनुसार, “जिस प्रकार पौधे के विकास के लिये खाद, पानी और उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता होती है और इन्हें पाकर पौधे में स्वयं विकास होता है, उसी प्रकार छात्र भी उपयुक्त संरक्षण एवं सुविधाओं में विकसित होता है।”
18. मॉण्टेसरी प्रविधि (Montessori Technique)
मॉण्टेसरी पद्धति की प्रवर्तिका इटली की महिला डॉ. मॉण्टेसरी हैं। उन्होंने मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण को शिक्षा में बड़ा महत्त्व दिया है। उनके मतानुसार छात्र स्वेच्छा से उठे-बैलें,खेले एवं कार्य करें। उसे आदेश देना अथवा बन्धित करना उपयुक्त नहीं है। उन्होंने ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा पर भी बल दिया है।
19. डाल्टन प्रविधि (Dalton Technique)
डाल्टन प्रविधि अथवा प्रयोगशाला योजना का प्रवर्तन अमेरिका की मिस पार्क हर्स्ट के द्वारा किया गया। इस प्रविधि में विद्यालय का संगठन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। छात्रों को पाठ निर्देश दिये जाते हैं। उन्हें आवश्यक सुझाव एवं निर्देश भी दिये जाते हैं एवं ज्ञानार्जन हेतु पुस्तकों की जानकारी भी दे दी जाती है तथा छात्र स्वत: कार्य पूरा करते हैं। अध्यापक मात्र पथ-प्रदर्शक होता है।
20. बुनियादी शिक्षण प्रविधि (Basic Teaching Technique)
महात्मा गाँधी ने भारतीय शिक्षा जगत् को बुनियादी शिक्षा के माध्यम से एक नवीन मोड़ दिया। भारत की दरिद्रता, निरक्षरता, परतन्त्रता एवं विद्यालय की नीरसता को दूर करने के लिये बुनियादी शिक्षा में निदान रखे गये।
21. खेल प्रविधि (Play Technique)
खेल प्रविधि के जन्मदाता यूरोप के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री श्री काल्डवेल कुक हैं। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैक्डूगल ने खेल को एक सामान्य स्वाभाविक प्रवृत्ति कहा है और लिखा है कि “खेल एक स्वाभाविक आनन्ददायक एवं जन्मजात शक्ति है।”
22. सूक्ष्म शिक्षण-प्रविधि (Micro Teaching Technique)
यह शिक्षण प्रक्रिया का संकुचित रूप होता हैं। सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) में छात्रों की संख्या एवं समय की अधिकता को कम कर दिया जाता हैं। इसका निर्माण छात्रों में शिक्षण कौशल को विकसित करने के लिए गया गया था। जब छात्राध्यापक शिक्षण के दौरान शिक्षण कार्य करते हैं तो उस समय उनके सामने छात्रों की उपस्थिति को सीमित कर 5 या 6 कर दिया जाता हैं।