‘नशाखोरी : एक अभिशाप’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- मादक द्रव्यों का सेवन
- मादक द्रव्य और युवा वर्ग
- युवाओं में नशाखोरी
- मादक द्रव्य सेवन के कारण एवं निवारण
- नशाखोरी की लत
- नशाखोरी: एक सामाजिक अभिशाप
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- नशाखोरी का अर्थ
- नशाखोरी के दुष्परिणाम
- मादक द्रव्यों के प्रकार
- युवा वर्ग में नशाखोरी
- नशाखोरी के कारण
- नशाबन्दी के उपाय
नशाखोरी : एक अभिशाप – युवाओं में नशाखोरी
प्रस्तावना
‘नशाखोरी’ युवा वर्ग में पनपने वाली एक ऐसी बुराई है जो ग्राम स्तर से लेकर महानगरों तक फैली हई है। आज का युवा वर्ग दिग्भ्रमित है और वह अपनी समस्याओं से जब छुटकारा नहीं पाता, तो उन्हें भूलने के लिए ‘नशाखोरी’ करने लगता है।
नशाखोरी एक सामाजिक अभिशाप है, अतः इसे दूर करने के लिए सामाजिक स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए।
नशाखोरी का अर्थ
मादक पदार्थों के नियमित सेवन को नशाखोरी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी मादक पदार्थ का प्रतिदिन नियमित सेवन करता है तो वह उसका आदी हो जाता है तथा उस नशे के अभाव में उसका मानसिक, शारीरिक सन्तुलन भी डगमगा जाता है।
भारतीय समाज में धनी-निर्धन, बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, छात्र-मजदूर, शिक्षित-अशिक्षित सभी वर्गों में नशाखोरी की प्रवृत्ति पाई जाती है।
नशाखोरी के दुष्परिणाम
नशाखोरी जैसे सामाजिक अभिशाप से जहां समाज में अनेक प्रकार की बुराइयां जन्म लेती हैं, वही अपराध बढ़ते हैं तथा सामाजिक व्यवस्था चरमराने लगती है, अतः कल्याणकारी राज्य में
सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह नशाखोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाए।
भारत में कई राज्यों में पूर्ण नशाबन्दी प्रचलित है किन्तु अनेक राज्य अपने यहां नशाबन्दी लागू नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यह उनके राजस्व का प्रमुख स्रोत है।
प्रतिवर्ष अरबों रुपया सरकार को शराब की दुकानों के ठेके उठाने से प्राप्त होता है। इस आय के मोह को जब तक नहीं छोड़ा जाएगा तब तक नशाबन्दी सम्भव नहीं है। नशा करने से व्यक्ति का विवेक कुंठित हो जाता है और उसका स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रहता, परिणामतः वह समाज विरोधी एवं अनैतिक कार्य करने में संकोच नहीं करता।
नशा करने वाले वे लोग जो निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के हैं, अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग ‘नशे’ पर व्यय कर देते हैं, परिणामतः उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, परिवारीजनों में कलह रहती है और सारा परिवार इसके दुष्परिणाम झेलता हुआ तनाव ग्रस्त रहता है।
नशा करने से अनेक प्रकार के रोग भी शरीर में घर कर लेते हैं। इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा कुछ नशे तो व्यक्ति को मृत्यु के मुख तक पहुंचा देते हैं।
शराब के सेवन से लाखों परिवार बरबाद हो जाते हैं। कम आमदनी वाले परिवारों में गृह कलह का मूल कारण शराब ही है। ऐसे घरों में दो वक्त की रोटी भी बच्चों को नसीब नहीं होती और घर का कर्ता-धर्ता अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा शराब में खर्च कर देता है।
बड़े घरों के ‘सपूत’ पिता की कमाई को क्लबों एवं होटलों में शराब की पार्टियाँ देकर उड़ा रहे हैं। असमय ही अनेक रोगों से ग्रस्त ये नवयुवक नशाखोरी की लत के कारण अनेक अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।
मादक द्रव्यों के प्रकार
मादक द्रव्य अनेक प्रकार के होते हैं, यथा-शराब, भांग, गांजा, चरस, अफीम, ताड़ी, कोकीन, मेथाडीन, पेथाडीन, केनेबी पौधे का रस, कोको पत्ती, मोर्फीन, हेरोइन, स्मैक, आदि। इनमें से सर्वाधिक प्रचलन शराब का है। शराब भी दो प्रकार की होती है— देशी शराब और विदेशी शराब।
देशी शराब का सेवन मजदूर एवं निम्न आर्थिक स्तर वाले लोग करते हैं, क्योंकि यह कम दामों में उपलब्ध हो जाती है जबकि विदेशी मदिरा का सेवन अपेक्षाकत अधिक आय वाले मध्य वर्ग एवं उच्च वर्ग के लोग करते हैं। भांग का सेवन प्रायः वर्ग विशेष के लोग पण्डे, पुरोहित आदि भगवान शंकर का प्रसाद मानकर करते हैं। भांग की तरंग में वे अपनी चिन्ताओं को भूलकर दीन-दुनिया से बेखबर बने रहते हैं।
युवा वर्ग में नाशाखोरी
युवा वर्ग में नशाखोरी का प्रचलन पिछले कुछ दशकों में बहुत बढ़ा है। विशेष रूप से स्कूल-कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं स्मैक, कोकीन, अफीम एवं हेरोइन का नशा करते हैं। यह नशा इंजेक्शन से भी लिया जाता है और मुख से भी। इस नशे की लत से छुटकारा पाना बड़ा कठिन है। एक बार जो इस नशे के चंगुल में फंस गया उसका जीवन बरबाद हो जाता है तथा उसे असमय ही मृत्यु के मुख में जाना पड़ता है। इस प्रकार के नशे बहुत खर्चीले भी हैं, जिसकी पूर्ति के लिए ये छात्र चोरी, डकैती, बैंक लूटने जैसी शर्मनाक घटनाओं में लिप्त हो जाते हैं।
नशाखोरी का कारण
मादक द्रव्यों का सेवन करने के प्रमुख कारण हैं :
- घर एवं परिवार में उचित स्नेह न मिलना
- तनाव, अवसाद, कुण्ठा की अधिकता
- बेरोजगारी, असुरक्षा की भावना
- अनिश्चित भविष्य
- नैतिक आचरण में गिरावट
- आधुनिक बनने की इच्छा
- नशेबाजों के चंगुल में फंसना
- सिनेमा, दूरदर्शन, विदेशी चैनलों एवं इंटरनेट के अश्लील चैनलों का प्रभाव।
नशाबन्दी के उपाय
सरकार को नशाबन्दी कानून कड़ाई से लागू करना चाहिए। इससे होने वाले राजस्व की हानि की भरपाई की चिन्ता न करके पूरे देश में नाशाबन्दी लागू कर देनी चाहिए तथा मादक पदार्थों के
व्यवसाय में लिप्त व्यक्ति को कड़ा दण्ड देने का प्रावधान करना चाहिए।
सामाजिक संस्थाओं, अभिभावकों, शिक्षकों धर्मगरुओं की भी नशाखोरी रोकने में प्रभावी भूमिका हो सकती है। जब तक सब लोग मिल-जुलकर प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इस सामाजिक अभिशाप से मुक्ति नहीं मिल सकती।
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