‘भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान ‘ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-
- अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत
- भारत और अन्तरिक्ष अनुसन्धान
- भारत का अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम
- अन्तरिक्ष अनुसन्धान में भारत के बढ़ते कदम
निबंध की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान का प्रारम्भ
- उपग्रह प्रक्षेपण का इतिहास
- पी. एस. एल.वी. कार्यक्रम
- भविष्य के अन्तरिक्ष कार्यक्रम
- अन्तरिक्ष अनुसन्धान के उपयोग
- उपसंहार
भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान
प्रस्तावना
विज्ञान की चहुमुखी प्रगति में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की विशेष भूमिका है। आज मोबाइल फोन, टी. वी. चैनल, दूरसंचार, युद्ध आदि अनेक क्षेत्रों में अन्तरिक्ष अनुसन्धान का उपयोग किया जा रहा है।
भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान का प्रारम्भ
भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान का प्रारम्भ सन् 1972 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) की स्थापना से प्रारम्भ हुआ। विगत पाँच दशकों में इस क्षेत्र में भारत ने आशातीत प्रगति की है। हमने थुम्बा में राकेट लांचिग सेन्टर तथा श्री हरीकोटा में सैटेलाइट लांचिंग सेन्टर की स्थापना की है। इसके अतिरिक्त एक्सपेरीमेंटल सैटेलाइट कम्युनिकेशन अर्थ सेन्टर, आर्वी (महाराष्ट्र), राष्ट्रीय एयरोनोटीकल प्रयोगशाला, बंगलौर भी अन्तरिक्ष अनुसन्धान के महत्वपूर्ण केन्द्र हैं।
भारत में उपग्रह प्रक्षेपण का इतिहास
अब तक भारत ने सफलतापूर्वक अनेक उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है। सर्वप्रथम 19 अप्रैल 1974 को आर्यभट्ट नामक उपग्रह रूसी राकेट की मदद से छोड़ा गया। इसके अतिरिक्त भास्कर, रोहिणी, इन्सेट, ए. एस. एल. वी, पी. एस. एल. वी. तथा आई. आर. एस. श्रंखला के महत्वपर्ण प्रक्षेपण भारत ने सफलतापूर्वक किए हैं। इन परीक्षणों के फलस्वरूप अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा का लोहा पूरे विश्व ने माना है।
पी. एस. एल. वी. कार्यक्रम
सन 2003 में पी. एस. एल. वी. सी-3 के सफल प्रक्षेपण से भारत ने एक बार फिर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी। इस पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल की सहायता से हम अपने उपग्रहों के साथ-साथ अन्य देशों के उपग्रहों को भी अन्तरिक्ष में स्थापित कर सकने में सफल हुए हैं।
इस बार बेल्जियम के ‘प्रोबा‘ और जर्मनी के ‘बर्ड‘ नामक उपग्रहों को हमने व्यापारिक रूप में अन्तरिक्ष में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। अन्तरिक्ष बाजार पर अभी तक चीन अमेरिका, रूस और यूरोपियन अन्तरिक्ष एजेंसी का ही कब्जा था, किन्तु भारत ने पी.एस.एल.वी.सी-2 का 1999 में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण करके अन्तरिक्ष बाजार में अपने कदम आगे बढ़ाए। इस यान के द्वारा हमने अपने उपग्रह आई. आर. एस. पी-4 के साथ-साथ कोरिया का ‘किट सैट-3′ तथा जर्मनी का ‘टब सैट‘ भी अन्तरिक्ष में स्थापित किया है। इन उपग्रहों को छोड़ने के लिए भारत को 42 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई।
पी. एस. एल. वी. की सफलता ने यह प्रमाणित कर दिया है कि हम एक हजार किलोग्राम के उपग्रहों को एक हजार किलोमीटर ऊंची ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने में समर्थ हैं। इस प्रयोग की सफलता से भारतीय अन्तरिक्ष तथा सैन्य क्षेत्रों के विकास कार्यक्रमों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। सुदूर सम्वेदी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए पहले हम सोवियत संघ पर निर्भर थे, किन्तु अब यह कार्य पी. एस. एल. वी. करेगा। व्यावसायिक प्रक्षेपण के क्षेत्र में भी भारत अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा कर सकेगा क्योंकि भारत साठ करोड़ रुपया प्रति उड़ान की दर से सेवा शुल्क लेगा जो प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टि से सस्ती सेवा है। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की सेवाएं अन्य देशों की तुलना में आधे से भी कम खर्चे में उपलब्ध हो रही है।
भविष्य के अन्तरिक्ष कार्यक्रम
गगनयान
(“ऑर्बिटल व्हीकल”) एक भारतीय दलित अंतरिक्ष यान (इसरो और एचएएल द्वारा संयुक्त रूप से बनाया गया) है जो भारतीय मानव अंतरिक्ष यान कार्यक्रम का आधार है। अंतरिक्ष यान को तीन लोगों को ले जाने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है, और एक योजनाबद्ध उन्नत संस्करण को साज-सज्जा और डॉकिंग क्षमता से लैस किया जाएगा।
चंद्रयान -3
चंद्रयान -3 को भविष्य के चंद्रमा की खोज के लिए 2024 में तैनात किया जाएगा। चंद्रमा की खोज इसरो को चंद्र सतह पर निवास स्थान स्थापित करने में मदद करेगी।
आदित्य-एल 1
इसरो की योजना 2019-20 तक सूर्य तक एक मिशन को पूरा करने की है। [8] जांच को आदित्य -1 नाम दिया गया है और इसका वजन लगभग 400 किलोग्राम होगा। यह IR और बैंड के निकट सौर कोरोना का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय-आधारित सौर कोरोना पैराग्राफ है।
2012 में उच्च सौर गतिविधि की अवधि के दौरान आदित्य मिशन की शुरुआत की योजना बनाई गई थी, लेकिन निर्माण और अन्य तकनीकी पहलुओं में शामिल व्यापक कार्य के कारण 2015-2016 को स्थगित कर दिया गया था। मुख्य उद्देश्य कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) का अध्ययन करना है और परिणामस्वरूप अंतरिक्ष मौसम के लिए महत्वपूर्ण भौतिक पैरामीटर जैसे कि कोरोनल चुंबकीय क्षेत्र संरचनाएं, कोरोनल चुंबकीय क्षेत्र का विकास, आदि।
यह वेग क्षेत्रों पर पूरी तरह से नई जानकारी प्रदान करेगा। और कोरोना के हीटिंग की अनसुलझी समस्या पर एक महत्वपूर्ण असर रखने वाले आंतरिक कोरोना में उनकी परिवर्तनशीलता प्राप्त की जाएगी।
RISAT-1A
RISAT-1A रडार इमेजिंग उपग्रह है, इसका विन्यास RISAT-1 के समान है। यह भू-मानचित्रण में प्राथमिक अनुप्रयोग और मिट्टी की नमी के लिए भूमि, महासागर और पानी की सतह के विश्लेषण के साथ एक भूमि-आधारित मिशन है।
NISAR
नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) नासा और इसरो के बीच एक संयुक्त परियोजना है जो रिमोट सेंसिंग के लिए उपयोग की जाने वाली दोहरी आवृत्ति सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह को विकसित करने और लॉन्च करने के लिए है। यह पहला ड्यूल-बैंड रडार इमेजिंग उपग्रह होने के लिए उल्लेखनीय है।
मंगलयान 2
मार्स ऑर्बिटर मिशन 2 (एमओएम 2) जिसे मंगलयान 2 भी कहा जाता है, 2021-2022 के समय सीमा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा मंगल ग्रह के प्रक्षेपण के लिए भारत का दूसरा इंटरप्लेनेटरी मिशन है। इसमें एक ऑर्बिटर होगा, और इसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल हो सकता है।
Shukrayaan-1
भारतीय वीनसियन ऑर्बिटर मिशन शुक्र के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा वीनस के लिए एक योजनाबद्ध परिक्रमा है। इसे 2020 के कुछ समय बाद लॉन्च किया जाएगा।
अन्तरिक्ष में 36 हजार किलोमीटर दूर उपग्रह की स्थापना से अन्तरमहाद्वीपीय मिसाइल बनाने एवं प्रक्षेपित करने की हमारी क्षमता प्रमाणित हो चुकी है। आज ‘इसरो’ के बारह संगठन देश में कार्यरत है।
अन्तरिक्ष अनुसन्धान का उपयोग
निश्चय ही भारत अन्तरिक्ष अनसन्धान के क्षेत्र में दिनों-दिन प्रगति कर रहा है। इससे एक ओर तो हमें दूर संचार, मौसम, आदि क्षेत्रों में लाभ हो रहा है तो दूसरी ओर रक्षा क्षेत्र में भी हमारे कदम आगे बढ़ रहे हैं, अतः यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत का भविष्य उज्ज्वल है। अब विश्व के अनेक देश उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए भारत की सहायता ले रहे हैं और भारत इस क्षेत्र में धन एवं प्रतिष्ठा दोनों ही अर्जित कर रहा है।
उपसंहार
अन्तरिक्ष अनुसन्धान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। भारत ने इस दिशा में समय पर सचेष्ट होकर आशातीत प्रगति की है। इससे एक ओर तो विश्व को हमारे देश की शक्ति एवं क्षमता का बोध हुआ है दूसरे हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा बढ़ी है। अन्तरिक्ष अनुसन्धान में भारत के बढ़ते चरण अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इस क्षेत्र में हम पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते हैं अतः इसके व्यापक आर्थिक लाभ भी हैं।
वह समय निकट है जब विश्व बाजार में अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत एक प्रमुख शक्ति के रूप में पर्याप्त धन कमाने वाला देश बन जाएगा। आशा की जानी चाहिए कि हमारे वैज्ञानिक इन सपनों को साकार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगे।
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