सम्प्रेषण किसे कहते हैं?
सम्प्रेषण को शिक्षा की ‘रीढ़ की हड्डी’ माना जाता है। सम्प्रेषण के अभाव में अधिगम और शिक्षण नहीं हो सकता है। ‘सम्प्रेषण’ दो शब्दों से मिलकर बना है- सम + प्रेषण, अर्थात् ‘समान रूप से भेजा गया‘, इस प्रकार “परस्पर सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया को सम्प्रेषण कहते हैं।
सम्प्रेषण की अवधारणा (Concept of Communication)
मानव एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में रहता है। समाज में रहकर वह विचारों का आदान-प्रदान करता है। प्रत्येक मनुष्य के अपने विचार (Ideas), सम्प्रत्यय (Concepts), भावनाएँ (Feelings) एवं सिद्धान्त (Principles) आदि होते हैं जिनका वह दूसरे व्यक्तियों के साथ आदान-प्रदान या विनिमय (Exchange) करता है। यह परस्पर विचारों का आदान-प्रदान ही संचार अथवा सम्प्रेषण कहलाता है। संचार एक ऐसी प्रक्रिया (Process) है जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच घटित होती है।
प्रत्येक व्यक्ति के अपने कुछ विचार सम्प्रत्यय भावनाएँ एवं सिद्धान्त होते हैं, जिन्हें वह समाज में रहकर अन्य व्यक्तियों के साथ विनिमय करता है क्योंकि यह मानव का स्वभाव है कि वह दूसरों के विचार को जानना चाहता है और अपने विचार प्रकट करना चाहता है। इसके लिये वह अनेक प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करता है; जैसे-संकेत, भाषा, चित्र एवं प्रदर्शन आदि।
मुख्य रूप से विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया ही सम्प्रेषण कहलाती है। यह विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया नयी नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही इसकी परम्परा देखने को मिलती है। आदि मानव अपने विचारों को संकेतों के माध्यम से प्रकट करता था क्योंकि उसके पास भाषायी शक्ति का अभाव था। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास भाषा संस्कार एवं विद्वानों के आधार पर हुआ तत्पश्चात् सम्प्रेषण के माध्यम भी विकसित होने लगे।
वर्तमान समय में सूचना एवं तकनीकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास के कारण सम्प्रेषण की प्रणाली ही परिवर्तित हो गयी है। आज प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं सैद्धान्तिक विचारों को बिना किसी विलम्ब के आसानी से दूसरे व्यक्ति को प्रेषित कर सकता है।
विश्व में हुई संचार क्रान्ति ने सम्प्रेषण के महत्त्व एवं आवश्यकता में भी वृद्धि की है। सम्प्रेषण की अवधारणा केवल मानव समाज में ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों में समान रूप से पायी जाती है। केवल माध्यम अलग-अलग होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति अपनी भावनाओं को विचारों के माध्यम से स्पष्ट करता है वहीं एक पक्षी उसको संकेत एवं अपनी चहचहाने की भाषा में प्रस्तुत करता है। इस प्रकार सम्प्रेषण समस्त व्यक्तियों एवं प्राणियों द्वारा सम्पन्न होता है।
सम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of Communication)
सम्प्रेषण शिक्षा की ‘रीढ़ की हड्डी’ है। बिना सम्प्रेषण के अधिगम और शिक्षण नहीं हो सकता है। ‘सम्प्रेषण’ दो शब्दों से मिलकर बना है- सम + प्रेषण, अर्थात् समान रूप से भेजा गया। सम्प्रेषण को अंग्रेजी में कम्यूनीकेशन (Communication) कहते हैं। कम्यूनीकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्यूनिस‘ (Communis) शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है- सामान्य बनाना (To make common)। अतः सम्प्रेषण का अर्थ है परस्पर सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करना।
सम्प्रेषण का संकुचित अर्थ (Narrow meaning of communication)
सम्प्रेषण के संकुचित अर्थ में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, सन्देशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है, चाहे व्यक्ति इन सूचनाओं को समझे या नहीं तथा विश्वास करे या नहीं। आज वर्तमान समय में इस अर्थ को कोई स्वीकार नहीं करता।
सम्प्रेषण का व्यापक अर्थ (Extensive meaning of communication)
सम्प्रेषण के व्यापक अर्थ में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों,सन्देशों, सूचनाओं तथा तथ्यों को समझा जा सके तथा विश्वासों को भी समझा जा सके। सम्प्रेषण को इस प्रकार भी समझाया जा सकता है कि शिक्षक अपने प्रधानाचार्य से अथवा छात्रों से कुछ कहते हैं या छात्र उनको कुछ बताते हैं या प्रधानाचार्य बुलाकर उनको कुछ आदेश देते हैं तथा प्रशंसा या आलोचना करते हैं।
इसका तात्पर्य है कि सम्प्रेषण की प्रक्रिया चल रही है। छात्र आपस में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर कानों में फुसफुसाते हैं तो यह भी सम्प्रेषण की प्रक्रिया है।
इस प्रकार “सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने ज्ञान, हाव-भाव, मुख मुद्रा तथा विचारों आदि का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार से प्राप्त विचारों अथवा सन्देशों को वे समान तथा सही अर्थों में समझने और प्रेषण करने में उपयोग करते हैं।”
सम्प्रेषण की परिभाषाएँ (Definitions of Communication)
सम्प्रेषण की परिभाषाओं को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है:-
इस प्रकार संचार अथवा सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जो दो या दो से अधिक लोगों के मध्य सम्पन्न होती है तथा जिसके माध्यम से विचारों, तथ्यों, आवश्यकताओं एवं आदर्शों का आदान-प्रदान होता है।
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पाल लीगन्स के अनुसार- “संचार या सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक लोग विचारों, तथ्यों, आवश्यकताओं एवं प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ, उद्देश्य तथा उपयोग को भली-भाँति समझ लेता है।”
“Communication is the process by which two or more people exchange facts, ideas, feelings, inpressions and the like in a manner that the receiver gains a clear understanding of the meaning, input and use of the message.” -
ई. जी. मेयर के शब्दों में- “सम्प्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति के विचारों तथा सम्मतियों से दूसरे व्यक्तियों को परिचित कराने से है।”
“Communication means the act of making one’s ideas and opinions known to other.” -
डॉ. कुलश्रेष्ठ के अनुसार- “सम्प्रेषण एक गत्यात्मक, उद्देश्यपूर्ण, द्विध्रुवीय प्रक्रिया है। इसमें सूचनाओं तथा विचारों का सम्प्रेषण एवं ग्रहण करना लिखित, मौखिक अथवा संकेतों के माध्यम से होता है।“
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लुईस ए. एलन के मत में- “सम्प्रेषण अर्थों का एक पुल है जिसमें कहने, सुनने तथा समझने की व्यवस्थित तथा सतत् प्रक्रिया रहती है।”
“Communication is a bridge of meaning. It involves a systematic and continuous process of telling, listening and understanding.” -
श्रीमती आर. के. शर्मा के शब्दों में- “सम्प्रेषण विचार विमर्श की वह विद्या है जिसके माध्यम से व्यक्ति व्यवस्थित तथा तर्कसम्मत विचार व सम्मति को ग्रहण कर अपना मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।“
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एण्डरसन के अनुसार- “सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यत्ति चेतन रूप से अथवा अचेतन रूप से, दूसरों के संज्ञानात्मक ढाँचे को सांकेतिक हाव-भाव, रूप में, उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है।“
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एडगर डेले (Edgar Dale) के अनुसार- “सम्प्रेषण विचार-विनिमय के मूड (Mood) में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।”
“Communication is the sharing of ideas and feelings in a mood of mutuality.”
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