सूक्ष्म शिक्षण प्रविधि – Micro Teaching Method

Sookshm Shikshan Pravidhi

सूक्ष्म शिक्षण-प्रविधि (Micro Teaching Technique)

यह शिक्षण प्रक्रिया का संकुचित रूप होता हैं। सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) में छात्रों की संख्या एवं समय की अधिकता को कम कर दिया जाता हैं। इसका निर्माण छात्रों में शिक्षण कौशल को विकसित करने के लिए गया गया था। जब छात्राध्यापक शिक्षण के दौरान शिक्षण कार्य करते हैं तो उस समय उनके सामने छात्रों की उपस्थिति को सीमित कर 5 या 6 कर दिया जाता हैं।

सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा (Concept of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी अवधारणा है जिसका उपयोग सेवा पूर्व एवं सेवारत अध्यापक दोनों ही प्रकार के अध्यापकों व्यवसायिक विकास के उन्नयन हेतु किया जा सकता है।

इस शिक्षण प्रविधि की शुरुआत 1961 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में शोधरत कीथ एचीसन (Keith Echinson) द्वारा किया गया जिसमें यह विचार किया गया की छात्राध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को VCR की सहायता से उसे पुनः दिखाया जाए तो इससे छात्राध्यापक और पर्यवेक्षक दोनों को ही प्रतिपुष्टि मिलेगी और इस रूप में अध्यापन में अपेक्षित सुधार लाए जा सकेंगे। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रभाविता लाने एवं उनको कौशलों को सिखाने के लिए सूक्ष्म शिक्षण व्यवस्था को प्रभावी माना गया।

कक्षा शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक को अनेक कोशलों का उपयोग करना होता है। सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षक एक साथ क्रिया करके, शिक्षण के विभिन्न पक्षों को लघु रूप प्रदान कर अर्थात अलग अलग कौशलौं का अभ्यास करके शिक्षण की जटिलताओं को कम कर देता है। इसमें छात्राध्यापक को अपने शिक्षण पर तुरंत प्रतिपुष्टि मिल जाती है। इसमें पाठ की अवधि कम की जाती है और पाठ का क्षेत्र भी संकुचित कर दिया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण विधि के जनक कीथ एचिसन को माना जाता है।

इसी प्रकार सूक्ष्म शिक्षण को एलन (Allen) ने ‘अवरोही शिक्षण विधा’ कहा है। सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण क्षेत्र में एक नवाचार है जो उन्हें अपने पाठ की समाप्ति पर तुरंत इस तथ्य से अवगत कराता है कि उनका शिक्षण कैसा रहा, क्योंकि उन्हें तत्काल प्रतिपुष्टि मिल जाती है।

सारांश रुप में यह कहा जा सकता है कि सूक्ष्म शिक्षण में निम्न तत्त्व निहित हैं:-

सूक्ष्म शिक्षण के घटक / तत्व

  1. शिक्षण प्रक्रिया को अनेक व्यवहारों में विभक्त किया जा सकता है जिन्हें शिक्षण कौशल कहते हैं।
  2. शिक्षण अनेक कौशलों का योग है जिन्हें नियंत्रित वातावरण में विकसित किया जाना संभव है।
  3. शिक्षण प्रक्रिया को सरल प्रक्रिया में विभक्त कर उनके वांछित कौशलों को विकसित करता है और उन कौशलों को जोड़कर पूर्ण शिक्षण किया जा सकता है। जिससे शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
  4. इसमें पृष्ठपोषण दिया जाना संभव है। वीडियो टेप द्वारा अथवा पर्यवेक्षक द्वारा उसे पुनः सुधारा जा सकता है।
  5. इसके द्वारा छात्राध्यापक के समय की बचत होती है।

सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों से पाठ योजना का निर्माण करवाया जाता हैं। वह शिक्षण करते हैं फिर अध्यापकों एवं छात्रों से प्रतिपुष्टि (Feedback) देने को कहा जाता हैं यह प्रक्रिया दुबारा दोहराई जाती हैं जिसे सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Cycle of Micro Teaching) कहा जाता हैं। विभिन्न कौशल इस प्रकार हैं- श्यामपट्ट कौशल,पुनर्बलन कौशल,प्रस्तावना कौशल,व्याख्यान कौशल,उद्दीपन परिवर्तन कौशल।

सूक्ष्म शिक्षण विधि के जनक

सूक्ष्म विधि के जन्मदाता डी. एलेन (D. Allen) ने जो संयुक्त राज्य अमेरिका का स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के कार्य करते थे, 1966 में सूक्ष्म शिक्षण की इस प्रकार व्याख्या की, “सूक्ष्म शिक्षण एक विश्लेषित शिक्षण है जिसमें शिक्षण की प्रक्रिया लघु रूप में कम विद्यार्थियों वाली कक्षा के सामने अल्प समय में सम्पन्न की जाती है। इसका प्रयोग सेवारत एवं सेवापूर्व शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण, अध्यापकों को शिक्षण के अभ्यास के लिए ऐसी स्थिति प्रदान करता है जिससे कक्षा-शिक्षण की सामान्य जटिलताएँ कम हो जाती हैं। इसमें अध्यापक बहुत अधिक मात्रा में अपने शिक्षण व्यवहार के लिए प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है।”

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा

शिक्षण तकनीकी का इस बात पर आग्रह है कि अध्यापक प्रभावशाली ढंग से शिक्षण कराएं। इसी कारण शिक्षक व्यवहार में सुधार के लिए अनेक प्रविधियां आज प्रयुक्त की जा रही है। सूक्ष्म अध्यापन भी इसी प्रकार की प्रविधि है जिसके माध्यम से छात्राध्यापकों में प्रभावशाली शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषाओं से इसका अर्थ स्पष्ट हो सकेगा।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:-

  1. एलेन के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाटना हैं।”
  2. शिक्षा विश्वकोश के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षक-प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम विकास व अनुसंधान में प्रयुक्त किया जाता हैं।”
  3. पीक व टकर के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण विडियो टेप फीडबैक के प्रयोग से प्रमुख कौशलों के विकास को संकुचित रूप से जानने के लिए प्रयोगात्मक विधि की एक प्रणाली हैं।”
  4. बी० के० पासी के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र-अध्यापकों से यह अपेक्षा रखती हैं कि वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ट शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षण दें।”
  5. बी० एम० शोर के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण कम अवधि, कम छात्रों तथा कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि हैं।”
  6. बुश (Bush) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की प्रविधि है, जिसमें शिक्षक स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों का प्रयोग करते हुए, ध्यानपूर्वक नियोजित पाठों के आधार पर 5 से 10 मिनट तक वास्तविक छात्रों के छोटे समूह के साथ अंतः क्रिया करता है जिसके परिणामस्वरुप वीडियो टेप पर प्रेक्षण प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।”
  7. फिलिप एवं अन्य विद्वान– “सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक प्रशिक्षण की एक लघु प्रक्रिया जिसमें शिक्षण परिस्थितियों को सरल रूप में प्रस्तुत किया जाता है और जिसके अन्तर्गत विशिष्ट कौशल का अभ्यास कराया जाता है। इसमें कक्षा का आकार शिक्षण कालांश तथा प्रकरण का रूप लघु होता है।”

  8. उर्विन– “सूक्ष्म-शिक्षण वास्तविक कक्षा-शिक्षण की अपेक्षाकृत एक प्रेरणात्मक शिक्षण है।”

सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त (Principle of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण विधि के पांच आधारभूत सिद्धांतों का वर्णन एलेन (Allen) और रियान (Riyan) ने 1969 में किया जो निम्नलिखित है:-

1. यथार्थ शिक्षण (Real Teaching)

यद्यपि सूक्ष्म शिक्षण कृत्रिम स्थिति में होता है फिर भी इसमें यथार्थ अथवा वास्तविक शिक्षण होता है, क्योंकि छात्राध्यापक यथार्थ पाठ्यक्रम को यथार्थ रूप में पढ़ते हैं पढ़ाते हैं। इसके उपरांत यह भी सच है कि कौशल सीखने की तुलना में पाठ्यवस्तु का महत्व प्राय: कम ही होता है।

2. शिक्षण की जटिलताओं की कमी (Reduction complexity of teaching)

सूक्ष्म शिक्षण में साधारण कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है अर्थात इसमें कक्षा का आकार, पाठ्यवस्तु, समय, भूमिका एवं कौशल सभी को इतना कम कर दिया जाता है कि प्रशिक्षणार्थी नियंत्रित रहते हैं। एक समय में वे एक ही कौशल का अभ्यास करते हैं इसमें सामान्य शिक्षण की जटिलताएं कम हो जाती है।

3. विशिष्ट शिक्षण कौशलों का विकास (Development of specific teaching skills)

सूक्ष्म अध्यापन में एक विशिष्ट शिक्षण कौशल के सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है अर्थात एक समय में एक विशेष शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है। इसका मुख्य केंद्र किसी एक विशिष्ट कार्य को पूरा करने का प्रशिक्षण देना, अभ्यास कराना, प्रदर्शन करना अथवा पाठ्य सामग्री पर अधिकार करना आदि हो सकता है।

4. सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अभ्यास पर नियंत्रण (Micro Teaching Cantrols Practice)

सूक्ष्म शिक्षण कराते समय अभ्यास क्रियाओं को पूर्व नियोजित ढंग से नियंत्रित किया जाता है। छात्राध्यापकों को प्रतिपुष्टि अथवा पृष्ठ पोषण प्रदान करके निरीक्षण एवं अभ्यास पर नियंत्रित रखा जा सकता है। इस रूप में अवांछित अभ्यास क्रियाओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है और उसे समायोजित किया जा सकता है।

5. प्रतिपुष्टि के अनेक साधन (Various means of feedback)

सूक्ष्म शिक्षण में अनेक साधनों द्वारा प्रतिपुष्टि दी जा सकती है। उदाहरण के लिए एक सूक्ष्म पाठ को पढ़ाने के पश्चात तुरंत ही उस शिक्षण कार्य का विश्लेषण, समालोचना की जाती है इससे छात्राध्यापकों में अंतर्दृष्टि का विकास होता है और उन्हें प्रतिपुष्टि मिलती है। टेप रिकॉर्डर का प्रयोग करके, वीडियो फिल्म तैयार करके अथवा निरीक्षक द्वारा उन्हें प्रतिपुष्टि प्रदान की जा सकती है। इसमें प्रतिपुष्टि के पक्ष तथा परिणाम के ज्ञान को ध्यान में रखा जाता है। इसका अर्थ है कि छात्राध्यापक के शिक्षण पर चर्चा करके उनकी कमियां अथवा अच्छाइयों को दिखा कर या बता कर उन्हें प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है जिससे भविष्य में उसे और सुधार सकते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया तब तक चलती रहती है। जब तक छात्राध्यापक शिक्षण कौशल विशेष में दक्षता न प्राप्त कर ले। शिक्षण, पृष्ठ- पोषण , पुनः पाठ नियोजन, पुनः शिक्षण तथा पुनः पृष्ठ पोषण के पांच पद क्रमों को मिलाकर एक चक्र बन जाता है जो तब तक चलता रहता है जब तक कौशल पर पुर्ण अधिकार न प्राप्त हो जाए। यही सूक्ष्म शिक्षण चक्र कहलाता है।

Sookshm Shikshan Vidhi

सूक्ष्म शिक्षण का स्वरूप सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी विधि है जिसमें शिक्षण एक छोटा सा शिक्षण बिंदु लगभग 5 से 10 छात्रों के समूह को एक छोटे से 5 से 10 मिनट के कालांश में पढ़ाता है। सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी प्रविधि है जो प्रशिक्षणार्थी को पाठ की समाप्ति के तुरंत बाद उसके कार्य की प्रगति के बारे में ज्ञान कर देता है

सूक्ष्म शिक्षण विधि सोपान (Steps in Micro-Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के चरणों (Steps in Micro-Teaching) को में निम्नलिखित ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है:-

1. विशिष्ट कौशलों का चयन

किसी विशेष कौशल प्रशिक्षण व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है तथा उसका ज्ञान छात्रा अध्यापकों कराया जाता है।

2. कौशल का प्रदर्शन

इस पद के अंतर्गत सूक्ष्म शिक्षण पाठ के माध्यम से कौशल प्रदर्शन किया जाता है यह प्रदर्शन प्रशिक्षक दवारा या किसी वीडियो फिल्म के द्वारा किया जाता है।

3. लघु पाठ योजनाओं का निर्माण

इस पद के अंतर्गत छात्राध्यापक किसी विशिष्ट कौशल का प्रयोग करते हुए उससे संबंधित लघु पाठ योजना तैयार करता है।

4. छोटे समूह का शिक्षण

इसमें छात्राध्यापक एक छोटे समूह को पाठ योजना पढ़ाता है छात्रा अध्यापक के अन्य साथी भी उसके कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं।

5. पृष्ठपोषण या प्रतिपृष्टि

छात्रा अध्यापकों पृष्ठपोषण किया जाता है यह कार्य पर्यवेक्षक करता है पर्यवेक्षक छात्राध्यापक की गलतियां की ओर भी ध्यान दिलाता है।

6. पुनः नियोजन, पुनः शिक्षण और पुनः मूल्यांकन

पृष्ठपोषण व पर्यवेक्षक केस सुलझाओ छात्राध्यापक को पुणे अगली पाठ योजना को अधिक अच्छे ढंग से तैयार करने में सहायक होते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के निम्नलिखित हैं:-

  1. छात्राध्यापक में आत्मविश्वास की भावना में बृद्धि होती है।
  2. छात्राध्यापक को एक – एक करके विभिन्न कौशल शिक्षण में निपुणता प्राप्त होती है।
  3. छात्राध्यापक द्वारा जो त्रुटियाँ शिक्षण में की गई हैं उनको दूर करने का पूर्ण अवसर मिलता है।
  4. छात्राध्यापक को तुरंत ही पृष्ठपोषण प्राप्त हो जाता है।

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषता (Characteristics of Micro Teaching)

  1. यह कम समय में अधिक गुणवत्ता प्रदान करने की प्रविधि हैं।
  2. सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक व्यक्तिगत शिक्षण हैं।
  3. सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में एक ही कौशल का विकास करने का लक्ष्य रखा जाता हैं।
  4. सूक्ष्म शिक्षण के अंतर्गत छात्रों की संख्या में कटौती करके 5-6 तक रखी जाती हैं।
  5. सूक्ष्म शिक्षण में समय की अवधि को कम करके 5 से 10 मिनट तक रखा जाता हैं।
  6. इसके अंतर्गत उचित एवं तत्काल प्रतिपुष्टि(Feedback) की व्यवस्था की जाती हैं।

सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता (Utility of Micro Teaching)

  1. सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापकों में आसानी से कौशलों का विकास किया जाता हैं।
  2. सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा प्रशिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं।
  3. इस प्रकार से छात्रध्यापक कम समय में अधिक सिख पाते हैं।
  4. सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा उत्तम शिक्षक का निर्माण किया जाता हैं।
  5. इसके द्वारा छात्रों का वस्तुनिष्ट मुल्यांकन किया जाना संभव हैं।

सूक्ष्म शिक्षण में सावधानियां (Precautions in Micro Teaching)

  1. छात्राध्यापकों को शिक्षण शुरू करने से पूर्व पाठ योजना का निर्माण कर लेना चाहिए।
  2. एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का विकास करना चाहिए।
  3. जब छात्राध्यापक शिक्षण कर रहे हो तो उनको उचित प्रतिपुष्टि(Feedback) और प्रसंशा करनी चाहिए जिससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हो।
  4. इसके द्वारा पाठ्यवस्तु को क्रमबद्ध तरीके के साथ व्यवस्थित करना चाहिए।
  5. सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों को उचित सुझाव ही देने चाहिए अन्यथा उनके मनोबल में कमी आ सकती हैं।

सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण यद्यपि प्रशिक्षण विधि के रूप में अपने अन्दर अनेक अच्छे बिन्दुओं को समेटे हुए हैं, फिर भी इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं; जैसे:-

  1. यह सीमा से ज्यादा नियन्त्रित तथा संकुचित शिक्षण की ओर ले जाती है।
  2. यह शिक्षण को कक्षा-कक्षगत शिक्षण से दूर ले जाती है।
  3. सूक्ष्म कक्षा में वास्तविक कक्षा-शिक्षण का वातावरण नहीं बन सकता।
  4. सूक्ष्म शिक्षण की प्रयोगशाला की सामग्री और साज-सज्जा व्ययसाध्य है। सभी प्रशिक्षण महाविद्यालयों में इसे उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है।
  5. सूक्ष्म कक्षाओं की रचना करना और समय-सारणी की व्यवस्था करना कोई सरल कार्य नहीं।
  6. इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित पर्यवेक्षकों का अभाव है।
  7. एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का विकास करती है। फलस्वरूप बाद में उनमें एकीकरण करना कठिन होने लगता है।
  8. इसमें समय अधिक लगता है।
  9. इसमें प्रतिपुष्टि एकदम छात्राध्यापक को मिलना मुश्किल होता है।
  10. छात्राध्यापक को ‘शिक्षण कौशल दक्षता’ प्राप्त करने के लएि उचित प्रेरणा का अभाव रहता है।
  11. यह शिक्षण Diagnostic तथा Remedial work पर ध्यान नहीं देता।

उपर्युक्त सीमाओं के कारण सूक्ष्म शिक्षण विधि में अनेक परिवर्तन तथा सुधार किये जा रहे हैं। परिसूक्ष्म शिक्षण (Mini-teaching) इसका एक उदाहरण है।

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