संत काव्य
‘संत काव्य’ का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया, काव्य। लेकिन जब हिन्दी में ‘संत काव्य’ कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य। भारत में संतमत का प्रारम्भ 1267 ई.में “संत नामदेव” के द्वारा किया हुआ माना जाता है।
संत कवि
कबीर, नामदेव, रैदास, नानक, धर्मदास, रज्जब, मलूकदास, दादू, सुंदरदास, चरनदास, सहजोबाई आदि। सुंदरदास को छोड़कर सभी संत कवि कामगार तबके से आते हैं; जैसे— कबीर (जुलाहा), नामदेव (दर्जी), रैदास (चमार), दादू (बुनकर), सेना (नाई), सदना (कसाई)।
संत काव्य की धार्मिक विशेषताएँ
- निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना
- गुरु की महत्ता
- योग व भक्ति का समन्वय
- पंचमकार
- अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
- आडम्बरवाद का विरोध
- संप्रदायवाद का विरोध
संत काव्य की सामाजिक विशेषताएँ
- जातिवाद का विरोध
- समानता के प्रेम पर बल
संत काव्य की शिल्पगत विशेषताएँ
- मुक्तक काव्य-रूप
- मिश्रित भाषा
- उलटबाँसी शैली (संधा/संध्याभाषा–हर प्रसाद शास्त्री)
- पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग
- प्रतीकों का भरपूर प्रयोग।
संत काव्य की भाषा
- रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा‘ की संज्ञा दी है।
- श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी‘ कहा है।
- बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर‘ कहा है।
संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
संत काव्य धारा के मुख्य कवि तथा उनकी रचनाएं (Sant Kavya Dhara Ke Kavi) निम्नलिखित हैं-
क्रम | कवि(रचनाकर) | काव्य (रचनाएँ) |
---|---|---|
1. | कबीरदास (निर्गुण पंथ के प्रवर्तक) | बीजक (1. रमैनी 2. सबद 3. साखी; संकलन धर्मदास) |
2. | रैदास | बानी |
3. | नानक देव | ग्रंथ साहिब में संकलित (संकलन- गुरु अर्जुन देव) |
4. | सुंदर दास | सुंदर विलाप |
5. | मलूक दास | रत्न खान, ज्ञानबोध |
संत काव्य के कवियों का काल
भक्ति काल (1350 ई० – 1650 ई०) – भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जॉर्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे “ईसायत की देंन” मानते हैं। भक्तिकाल को चार भागों में विभक्ति किया गया है- 1. संत काव्य, 2. सूफी काव्य, 3. कृष्ण भक्ति काव्य, 4. राम भक्ति काव्य।
(विस्तार से जानें- Bhakti Kaal Hindi Sahitya) (See Also: भक्ति काल के कवि और उनकी रचनाएँ)
Frequently Asked Questions
1. संत कबीर किस काव्य धारा के कवि माने जाते है?
15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा की काव्यधारा केप्रवर्तक थे।
2. संत काव्य का दूसरा नाम क्या है?
संत काव्य का दूसरा नाम निर्गुण भक्ति काव्य की ज्ञानाश्रयी शाखा भी है। संतकाव्य को को ज्ञानाश्रयी शाखा के नाम से भी जाना जाता है।
3. संत काव्य धारा में कबीर का स्थान?
संत कवियों में एक भक्त, युग-चिंतक और एक प्रखर व्यक्ति के रूप में कबीर का स्थान अन्यतम है। इनके जन्म और मरण की तिथियों के संबंध में पर्याप्त मतभेद है। “1455 साल गए चंद्रवार एक ठाट ठए” के आधार पर उनका जन्म सवंत 1455 (सन 1398) को माना जाता है। कुछ लोग इसका अर्थ 1455 साल बीतने पर यानि 1456 लगाते हैं।
4. निर्गुण भक्ति धारा के कवि कौन है?
भक्तिकाल में सगुणभक्ति और निर्गुण भक्ति शाखा के अंतर्गत आने वाले प्रमुख कवि हैं – कबीरदास,तुलसीदास, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद दास, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास तथा चैतन्य महाप्रभु, रहीमदास।
5. भक्ति काल के प्रथम कवि कौन है?
हिंदी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता कबीर हैं।
6. संत काव्य का प्रधान रस कौन सा है?
संत काव्य में शांत रस की प्रधानता है।
7. रीतिकाल की कितनी धाराएं हैं?
रीतिकाल की प्रमुख काव्य-धाराएँ – रीतिबद्ध काव्य , रीतिसिद्ध काव्य , रीतिमुक्त काव्य अध्याय.
8. ज्ञानमार्गी शाखा के प्रवर्तक कौन थे?
कबीर दास, इनका मूल ग्रंथ बीजक है । इसके तीन भाग हैं : पहला भाग साखी है, जिसमें दोहे हैं ।