सुबंत प्रकरण – संस्कृत में विभक्तियाँ और उनके नियम

सुबंत प्रकरण

Subant Prakaran

संज्ञा और संज्ञा सूचक शब्द सुबंत के अंतर्गत आते है। सुबंत प्रकरण को व्याकरण मे सात भागो मे बांटा गया है – नाम, संज्ञा पद, सर्वनाम पद, विशेषण पद, क्रिया विशेषण पद, उपसर्ग, निपात

विभक्तियाँ कितनी होती है ?

प्रातिपदिक के उत्तर प्रथमा से लेकर सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं- प्रथमा विभक्ति, द्वतीया विभक्ति, तृतीया विभक्ति, चतुर्थी विभक्ति, पंचमी विभक्ति, षष्ठी विभक्ति, और सप्तमी विभक्ति।

आपको ज्ञात है, संज्ञा आदि शब्‍दों में जुड़ने वाली विभक्तियाँ सात होती हैं। इन विभक्ति‍यों के तीनों वचनों (एक, द्वि, बहु) में बनने वाले रूपों के लिए जिन विभक्ति-प्रत्‍ययों की पाणिनि द्वारा कल्‍पना की गई है, वे ‘सुप्’ कहलाते हैं। इनका परिचय इस प्रकार है-

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सु (स् = : )  जस् (अस्)
द्वितीया अम् औट् (औ) शस् (अस्)
तृतीया टा (आ) भ्याम् भिस् (भिः)
चतुर्थी ङे (ए) भ्याम् भ्‍य:
पंचमी ङसि‍ (अस्) भ्याम् भ्‍य:
षष्‍ठी ङस (अस्) ओस् (ओ:) आम्
सप्‍तमी ङि (इ) ओस् (ओ:) सुप् (सु)

ये प्रत्‍यय शब्‍दों के साथ जुड़कर अनेक शब्द रूप बनाते हैं।

इन विभक्तियों के अतिरिक्त सम्बोधन में प्रायः प्रथमा विभक्ति होती है इसलिए सम्बोधन का रूप प्रथमा के जैसा होता है। कुछ शब्दों के सम्बोधन में कुछ अंतर पाया जाता है। अत: सम्बोधन का शब्द रूप अलग कर दिया गया है। सर्वनाम शब्दों का सम्बोधन नहीं होता है।

Sanskrit Vibhakti
संस्कृत विभक्ति

संस्कृत की विभक्तियाँ, कारक और उनका अर्थ:-

विभक्ति कारक प्रयोग
प्रथमा कर्त्ता ने
द्वतीया कर्म को
तृतीया करण से, के साथ, के जैसा
चतुर्थी सम्प्रदान के लिए,
पंचमी अपादान से, अलग होने के अर्थ में
षष्ठी सम्बन्ध का, की, के
सप्तमी अधिकरण में, पे, पर

प्रत्येक विभक्ति के तीन वचन होते हैं :-

  1. एकवचन
  2. द्विवचन
  3. बहुवचन

विभक्तियों के रूपों का पदक्रम :-

विभक्ति एकवचन द्विवचन वहुवचन्
प्रथमा अ: आ: (जस् )
द्वतीया अम् औट् आ: (शस् )
त्रतीया आ (टा) भ्याम् भि: (भिस् )
चतुर्थी ए (ङे ) भ्याम् भ्य: (भ्यस् )
पञ्चमी अ: (ड़स् ) भ्याम् भ्य: (भ्यस् )
षष्ठी अ: ओ: (ओस् ) आम्
सप्तमी इ (डि.) ओ: (ओस् ) सु (सुप् )
  • कोई शब्द जब इन विभक्तियों में होता है तब वह पद सुबन्त कहलाता है।
  • वाक्यों में केवल पदों का ही प्रयोग  है। पद पांच प्रकार के होते है।  1. विशेष्य, 2. विशेषण, 3. सर्वनाम, 4. अव्यय, 5. क्रिया

1. संज्ञा (विशेष्य)

किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान,  भाव, या  गुण के नाम को विशेष्य पद (संज्ञा) कहते है। जैसे – राम:, नदी, लता, क्रोध: आदि।

2. सर्वनाम

जो संज्ञापदों की पुनरावृत्ति रोकता है  सर्वनाम पद कहलाता है। जैसे – अन्य , तद् , यद् , इदम् आदि। संज्ञा (नाम) जिस लिंग और वचन का होता हैसर्वनाम का प्रयोग भी उसी लिंग एवं वचन में किया जाता है। इनकी कुल संख्या 35 है- सर्व, विश्व, उभ, उभय, डतर, डतम, अन्य, अन्यतर, इतर, त्वत्, त्व, नेम, सम, सिम; पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर; स्व, अन्तर; त्यद्, तद्, यद्, एतद्, इदम्, अदस्, एक, द्वि, युष्मद्, अस्मद्, भवत्, किम्।

3. क्रिया (धातु)

जिन शब्दों से किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- गम्, पठ्, खाद्, चल्, लिख्, वद्, पा, हस्, स्था आदि शब्दो को धातु या क्रिया  कहते है। धातुएँ तीन प्रकार की होती है- परस्मैपदी, आत्मनेपद तथा उभयपदी। तथा धातुओं की 10 लकार होती हैं। विस्तार पढ़ें – धातु रूप

4. विशेषण

जो विशेष्य के गुण  को प्रकट करे वह विशेषण पद कहलाता है। जैसे – सुंदरी नारी, स्वच्छं जलं आदि। संज्ञा (विशेष्य) के लिङ्ग-वचन विभक्ति के अनुसार ही विशेषण पद का रूप होता है। विशेषण के प्रमुख रूप से चार प्रकार के ही होते है- (1) ‘गुणवाचक विशेषण’ जैसे- नीलं नभः, रक्तं उत्पलम्, (2) ‘परिमाणवाचक विशेषण’ जैसे- स्वल्पं तोयम्, प्रभूतं धनम्, प्रचुरं दुग्धम्, (3) संख्यावाचक विशेषण: (i) ‘संख्या बोधक’ जैसे- एक, द्वि, त्रि, चतुर, पञ्चन्, (ii) ‘पूर्णवाचक’ जैसे- प्रथमः,द्वितीय:, तृतीयः आदि। 

5. अव्यय

अव्यय उन शब्दों को कहा जाता  है, जो लिंग, वचन, एवं विभक्तियों से सदा अप्रभावित रहता है। जैसे- यदा, कदा, एकदा, आदि।

महत्वपूर्ण नोट :-

  • विशेष्य के लिङ्ग-वचन विभक्ति के अनुसार ही विशेषण पद का रूप होता है।
  • सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है इसलिए सम्बोधन का रूप प्रथमा के जैसा होता है।
  • किसी-किसी सम्बोधन के एकवचन में कुछ अंतर पाया जाता है। अत: सम्बोधन का रूप अलग  कर दिया गया है।
  • अव्यय भी सुबन्त होता है क्योकि उनमें सुप्  प्रत्यय लगता है, भले ही वह लुप्त रहता है।
  • उपसर्ग और निपात दोनों अव्यय ही है। इनका सुप् भी लुप्त रहता है।

संस्कृत में शब्द रूप की दृष्टि से संज्ञा पद कितने होते है ?

संस्कृत में शब्द रूप की दृष्टि से संज्ञा पद छह (6) प्रकार के होते हैं-

  1. अजन्त पुल्लिंग – देव, मुनि, भानु, पितृ आदि।
  2. अजन्त स्त्रीलिंग – लता, मति, धेनु, मातृ  आदि।
  3. अजन्त नपुंसकलिंग – फल, दधि, मधु, धातृ आदि।
  4. हलन्त पुल्लिंग – मरुत् , राजन् , वेधस्  आदि।
  5. हलन्त स्त्रीलिंग – सरित् , गिर् , दिश्  आदि।
  6. हलन्त नपुंसकलिंग – जगत् , पयस्  आदि।

छह वर्गों में आने वाले कुछ महत्वपूर्ण संज्ञा पदों के शब्द रूप इस प्रकार हैं –


  1. देव (देवता),
  2. बालक ,
  3.  विश्वपा (विश्व के रक्षक),
  4.  पति (स्वामी),
  5.  सखि (सखा/मित्र),
  6.  सुधी (पंडित),
  7.  साधु,
  8.  स्वयम्भू (ब्रह्म),
  9.  दातृ (दाता /दानी),
  10.  पितृ (पिता),
  11.  रै (धन /सोना),
  12.  गो (गौ / बैल / इन्द्रियाँ / किरण / सूर्य),
  13.  ग्लौ (चन्द्रमा/कपूर),
  14.  लता ,
  15.  ज़रा (बुढ़ापा),
  16. मति (बुध्दि),
  17. नदी
  18. श्री (लक्ष्मी, शोभा)
  19. स्त्री (woman)
  20. धेनु (गाय)
  21. वधू (स्त्री , पतोहू ,wife )
  22. भू (पृथ्वी)
  23. …………….…………..पूर्ण लिस्ट देखने के लिए क्लिक करें ।

Sanskrit Me Pratyay Ke Bhed / Prakar

प्रत्यय प्रकरण – संस्कृत में प्रत्यय के प्रकार

  1. तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay, तद्धितान्त)
  2. कृत् प्रत्यय (Krit Pratyaya, धातुज्, कृदन्त)
  3. स्त्री प्रत्यय (Stree Pratyay)
  4. तिड्न्त प्रकरण: धातु रूप, विभक्तियाँ, लकार, भेद
  5. सुबंत प्रकरण – संस्कृत में विभक्तियाँ और उनके नियम

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