तर्क क्या है?
तर्क (Arguments): तर्क एक अभिव्यक्त क्रिया है, जिसका प्रकटीकरण समस्या समाधान व्यवहार से होता है। तर्क के द्वारा समस्या के प्रति रुचि जाग्रत होती है और समस्या के समाधान के साथ ही रुचि एवं तर्क दोनों ही समाप्त हो जाते हैं।
सामान्य जीवन में तर्क-शक्ति का प्रयोग स्वाभाविक रूप से होता रहता है। इसमें हमें किसी भी अतिरिक्त शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता। इसीलिये इसे उच्च मानसिक क्रिया कहा जाता है। परीक्षा के समय हम तर्क के द्वारा प्रश्नों के सही और उचित उत्तरों का चयन करके परीक्षा देते हैं ताकि अच्छे अंक प्राप्त हों। साक्षात्कार के समय तर्क द्वारा दिये गये उत्तर अधिक स्पष्ट एवं बौद्धिक क्षमता के परिचायक होते हैं।
अत: तर्क वह प्रक्रिया है, जो उपस्थित समस्या के लिये उपयुक्त हल प्रस्तुत करते हैं ताकि समस्या का हल शीघ्र प्राप्त हो जाये।
तर्क की परिभाषा एवं अर्थ
हम विद्वानों के मतों के द्वारा तर्क की क्षमता, स्वरूप, परिभाषा आदि को निम्न रूप से प्रस्तुत करते हैं-
1. गैरेट (Garrett) के अनुसार तर्क की परिभाषा
“मन में किसी उद्देश्य एवं लक्ष्यको रखकर क्रमानुसार चिन्तन करना तर्क है।”
Reasoning in step-wise thinking with a purpose or goal in mind.
2. वुडवर्थ (Woodworth) के शब्दों में तर्क की परिभाषा
“तर्क में (तथ्यों एवं सिद्धान्तों) जो स्मृति या वर्तमान निरीक्षण द्वारा प्राप्त होते हैं-को परस्पर मिलाया जाता है फिर उस मिश्रण का परीक्षण में से निष्कर्ष निकाला जाता है।”
In reasoning items (facts and principles) furnished by recall, present observation or both are combined to see what conclusion can be drawn from the combination.
3. स्किनर (Skinner) के मतानुसार तर्क की परिभाषा
“तर्क शब्द का प्रयोग ‘कारण तथा प्रभाव‘ के सम्बन्धों की मानसिक स्वीकृति को स्वयक्त करने के लिये किया जाता है। यह किसी निरीक्षित कारण से एक घटना की भविष्यवाणी या किसी निश्चित घटना के किसी कारण का अनुमान हो सकता है।”
Reasoning is the word used to describe the mental recognition of cause and effect relationship. It may be the production of an event from an observed cause or the inference of a cause from an observed even.
तर्क की विशेषताएँ
Characteristics of Argument
उपर्युक्त विद्वानों के मतों का विश्लेषण करने पर हम तर्क सम्बन्धी निम्न निष्कर्षों या विशेषताओं को पाते हैं-
1. निश्चित् लक्ष्य (Definite goal)
तर्क शक्ति का प्रारम्भ लक्ष्य प्राप्ति के लिये होता है। मानव प्रगति लक्ष्य प्राप्ति पर निर्भर करती है। अत: चिन्तन और तर्क के द्वारा जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है।
2. प्रतिक्रिया में शिथिलता (Slackness in response)
तर्क शक्ति का प्रारम्भ पतिक्रिया की शिथिलता से होता है। जब व्यक्ति किसी कार्य को करने में असमर्थ होता है तो वह विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है लेकिन सफलता न मिलने परे शिथिल हो जाता है और तर्क का सहारा लेता है।
3. पूर्वज्ञान (Previous knowledge)
तर्क में पूर्वज्ञान, पूर्व अनुभव तथा पूर्व अनुभतियों का विश्लेषण किया जाता है। इसमें समस्या समाधान के नवीन तरीकों का जन्म होता है।
4. कारण की खोज (Discovery of cause)
तर्क में किसी घटना के कारण को खोजा जाता है। क्यों, कैसे’ आदि प्रश्नों के उत्तर खोज कर कारण और प्रभाव के बीच सम्बन्ध देखा जाता है। कारण खोज से समस्या का समाधान सरल हो जाता है।
5. सीखने की विधियों का उपयोग (Use of learning method)
तर्क में सीखने की विभिन्न विधियों ‘प्रयत्न एवं भूल’, ‘सूझ द्वारा’, ‘अनुकरण द्वारा’, ‘साहचर्य द्वारा’ आदि का सहारा लिया जाता है। ये विधियाँ क्रमवार प्रयोग की जाती हैं ताकि समस्या का समाधान सही प्रकार से हो।
6. समस्या-समाधान (Problem-solving)
तर्क का प्रयोग समस्या समाधान के लिये किया जाता है। जब तक समस्याएँ हैं तर्क का प्रयोग होता रहेगा।
तर्क वृद्धि के तरीके
Methods of Promoting Argument
शिक्षा में तर्क का प्रयोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिये किया जाता है। इससे जो निष्कर्ष ज्ञात होता हैं वे जनसामान्य के लिये लाभदायक सिद्ध होते हैं। अत: जी. स्टेनले ग्रे ने लिखा है- “तर्क (आगमन-निगमन) वैज्ञानिक तथ्यों और सिद्धान्तों जैसे कि ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, जननशास्त्र, कोशिका विज्ञान आदि जीवन जगत में समाजशास्त्र, शासन विज्ञान, नेतृत्वशास्त्र, सहकारिता आदि के जगत् में विद्यमान है का अध्ययन करता है।“
बालकों में तर्क-शक्ति के विकास के लिये निम्न तरीके इस प्रकार हैं –
1. दृढ़ निश्चय (Firm determination)
शिक्षक को बालकों में आत्म-विश्वास की भावना की वृद्धि करनी चाहिये ताकि वे जीवन के लक्ष्यों का पूर्ण करने का दृढ़ निश्चय कर सके। दृढ़ निश्चय से लगन, बुद्धि, उत्साह, क्रियाशीलता एवं आत्म-विश्वास विकसित होता है, जो तर्क शक्ति का आधार है।
2. स्वाभाविकता का विकास (Development of naturality)
बालकों को तर्क की प्रेरणा आपसी बातचीत से मिलती है। परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर जब विचार विमर्श करते हैं तो बालक भी अपनी राय देते हैं। हमें उनकी राय की नकारना नहीं चाहिये बल्कि उनकी स्वाभाविकता की प्रशंसा करनी चाहिये।
इस प्रकार से विभिन्न रायों में से उपयुक्त समस्या का समाधान करती है, जो बालक के मस्तिष्क कर उपज होती हैं अनुकरण नहीं। इसीलिए विद्वानों ने तर्क प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिये ‘आगमन विधि‘ को निगमन विधि से अधिक उपयुक्त माना है।
3. क्रमागत् ज्ञान (Systematic knowledge)
तर्क विधि विभिन्न चरणों पर आधारित है। बालकों को क्रमबद्ध तरीके से चरणों में ज्ञान देना चाहिये ताकि वे सभी चरणों को समझ सकें। इसके साथ ही उनके सामने समस्या प्रस्तुत की जाये और चरणों का व्यावहारिक प्रयोग
करना सिखाया जाय। इस प्रकार से बालकों को तर्क के लिये प्रेरित करना चाहिये।
4. सूझशक्ति का प्रयोग (Use of insight)
चिन्तन एवं तर्क, सूझशक्ति और पूर्वानुभवों पर निर्भर करता है। हमें सूझ एवं पूर्व अनुभवों का सही प्रयोग करना बालकों को सिखाना चाहिए। जब बालक किसी समस्या का समाधान पूर्व ज्ञान के द्वारा नहीं कर पायेंगे तो वे सूझशक्ति का प्रयोग करेंगे। इस प्रकार स्वयं के मानसिक चिन्तन द्वारा समस्या समाधान किया जाता है जो सूझ का परिणाम होता है।
तर्कों के प्रकार
Types of Arguments
सामान्य रूप से तर्क को ज्ञान के विश्लेषण का आधार माना जाता है। तर्क के आधार पर ही छात्रों के लिये जटिलतम विषयों को सामान्य रूप में प्रस्तुत करने में शिक्षक को सहायता मिलती है। इसलिये शिक्षकों को यह ज्ञान होना आवश्यक है कि किस स्थिति में किस प्रकार के तर्कों का प्रयोग करने से छात्रों को विषयवस्तु सरलता से समझायी जा सकती है।
तर्कों के विभिन्न प्रकारों को निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1. निगमनात्मक तर्क (Deductive arguments)
निगमनात्मक तर्क का आशय उन तर्क वाक्यों से होता है जो कि एक निश्चित नियम या सिद्धान्त से सम्बन्धित होते हैं। इन नियम एवं सिद्धान्तों के आधार पर विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त किया जाता है। इन सूचनाओं के आधार पर ही छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होती है।
जैसे- जहाँ-जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग होती है। यह एक तर्क वाक्य है। इसके आधार पर छात्रों द्वारा अनुभव के आधार पर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पहाड़ पर धुआँ है तो पहाड़ पर आग है। इस प्रकार के अनेक वाक्य ऐसे होते हैं जो नियम एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हैं। इनके विश्लेषण करने पर इनके द्वारा ज्ञान के क्षेत्र को विकसित किया जा सकता है। इसमें छात्र अज्ञात से ज्ञात की ओर चलते हैं।
2. आगमनात्मक तर्क (Inductive arguments)
इस तर्क के अन्तर्गत सर्वप्रथम अनेक उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण किया जाता है जिनके आधार पर छात्र एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करता है। इस विधि में छात्र विशिष्ट से सामान्य की ओर चलता है तथा ये सभी तर्क सामान्यीकरण एवं सिद्धान्त निर्माण में सहायक होते हैं।
जैसे- राम की मृत्यु हो गयी। राम ने जन्म लिया था। भैंस की मृत्यु हो गयी। भैंस ने जन्म लिया था। चिड़िया की मृत्यु हो गयी। चिड़िया ने जन्म लिया था। अत: जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। इस उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि उपरोक्त उदाहरणों के आधार पर अन्त में निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया गया है। अत: आगमनात्मक तर्क में सर्वप्रथम विभिन्न तर्क वाक्यों का प्रयोग करने के पश्चात् अन्त में निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है।
3. आलोचनात्मक तर्क (Criticism arguments)
इस प्रकार के तर्कों के आधार पर छात्र विभिन्न प्रकार के आलोचनात्मक अध्ययन के बाद एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचता है। जैसे छात्र विद्यालय में प्रथम अवस्था में जाने पर संकोच करता है परन्तु जाने पर यह देखता कि विद्यालय में शिक्षक पढ़ाते हैं तथा कहानी सुनाते हैं, दोपहर में भोजन देते हैं तथा खेलने का अवसर प्रदान करते हैं। इस स्थिति में वह छात्र समझ जाता है कि विद्यालय में छात्रों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाता है। इसलिये विद्यालय में जाना लाभदायक है।
इस प्रकार अनेक तथ्यों के बारे में बालक सामान्य रूप से विचार करके उनके गुण-दोषों का विवेचन करके स्वीकार करता है। इस प्रकार के तर्कों को आलोचनात्मक तर्क के माध्यम से जाना जाता है।
4. सादृश्यवाची तर्क (Similar arguments)
अनेक अवसरों पर हम किसी एक व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानते हैं। उसके आधार पर हम दूसरे व्यक्ति के व्यवहार का ज्ञान कर सकते हैं। जैसे-धातुएँ ऊष्मा की संचालक होती हैं। इस आधार पर हम समझ जाते हैं कि
ताँबा, पीतल एवं लोहा आदि धातुएँ ऊष्मा की संचालक होंगी।
इसी क्रम में चन्द्रशेखर आजाद एवं सरदार भगतसिंह एक समान क्रान्तिकारी थे। इस आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के बारे में जानकारी प्राप्त करके सरदार भगतसिंह के कार्य एवं व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार इसे सादृश्यवाची तर्क के रूप में स्वीकार किया जाता है।
5. अनौपचारिक तर्क (Non-formal arguments)
अनौपचारिक तकों का प्रयोग सामान्य रूप से हम अनेक प्रकार से अपने दैनिक जीवन में घर-परिवार के वार्तालाप में करते हैं। इन तर्कों का कोई क्रमबद्ध रूप नहीं होता इसलिये इनको उचित महत्त्व प्रदान नहीं किया जा सकता। इन तर्कों में साम्यता की स्थिति भी नहीं पायी जाती है।
जैसे-भूतों के चार पैर होते हैं। भूत किसी भी स्वरूप को धारण कर लेता है। मनुष्य को भी भूत कहते हैं। बहुत-से मनुष्यों के चार पैर होते हैं। इस प्रकार के तर्क अनौपचारिक होते हैं जो किसी नियम या निष्कर्ष विशेष की
ओर अग्रसर नहीं करते।
6. औपचारिक तर्क (Formal arguments)
सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि जब हम किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये तर्क वाक्यों का प्रयोग करते हैं तो इसमें क्रमबद्धता पायी जाती है। इस प्रकार के तर्क वाक्यों में एक-दूसरे से सम्बन्ध होता है तथा ये किसी निश्चित उद्देश्य की ओर अग्रसर करते हैं। इस प्रकार के तर्क वाक्य दार्शनिक विचार प्रक्रिया का अंग होते हैं।
जैसे- शीर्षासन से मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। पद्मासन से पैर सुदृढ़ होते हैं। गरुड़ासन से रीढ़ की हड्डी सुदृढ़ होती है। ये सभी योगासन के प्रमुख अंग हैं। अत: योग मानवीय विकास की प्रमुख आवश्यकता है।
उपरोक्त उदाहरण में प्रस्तुत तर्क वाक्य एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा निष्कर्ष भी तर्क वाक्यों से पूर्णत: सम्बन्धित है। इस प्रकार के तर्क वाक्य औपचारिक तर्क वाक्यों की श्रेणी मेंआते हैं क्योंकि ये तर्क वैध एवं विश्वसनीय हैं।
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