संस्कृत लिंग
लिंग का अर्थ है-चिह्न। जिनके द्वारा यह पता चले कि अमुक शब्द संज्ञा स्त्री जाति के लिए और अमुक पुरुष जाति के लिए प्रयुक्त हुआ है, उसे लिंग कहते हैं।
संस्कृत में लिंग के भेद (प्रकार)
संस्कृत में लिंग के तीन भेद होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग; जबकि हिन्दी में लिंग दो होते हैं- पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग; और अंग्रेज़ी में चार लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, उभयलिंग तथा नपुंसक। संस्कृत भाषा में प्रत्येक अर्थ बोधक शब्द तीन लिंगों में से एक लिंग में होता है।
संस्कृत में लिंग के नाम इस प्रकार हैं:-
- पुल्लिंग (masculine)
- स्त्रीलिंग (feminine)
- नपुंसक लिंग (neuter)
नपुंसक लिंग प्रायःनिर्जीव पदार्थों के लिए ही प्रयुक्त होता है। संस्कृत भाषा में लिंग का ज्ञान हिन्दी भाषा के आधार पर नहीं हो सकता क्योंकि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जो हिन्दी में पुल्लिंग हैं यथा-
- ‘देवता‘, शब्द संस्कृत में स्त्रीलिंग हैं, जबकि हिन्दी में पुल्लिंग हैं।
- ‘मित्र‘ शब्द संस्कृत में नपुंसक लिंग है, जबकि हिन्दी में यह शब्द पुल्लिंग हैं।
- ‘अग्नि‘ शब्द संस्कृत में पुल्लिंग है, किन्तु हिन्दी में स्त्रीलिंग है।
इतना ही नहीं अनेक एकार्थवाची शब्द भी विभिन्न लिंगों में पाये जाते हैं, यथा-
- पत्नीवाचक ‘भार्या‘ शब्द स्त्रीलिंग, ‘दार‘ शब्द पुल्लिंग और ‘कलत्र‘ शब्द नपुंसक लिंग है।
यद्यपि सभी शब्दों के लिंग नियम इस यहाँ नहीं दिये जा सकते; तथापि साधारण ज्ञान के लिए कुछ शब्द दिये जा रहे हैं-
1. पुल्लिंग शब्द
शब्दों के जिस रूप से किसी व्यक्ति या वस्तु की पुरुष जाति होने का बोध होता हो उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे-
- सुर असुरवाची शब्द– सुरः, देवः, शिवः, दैत्यः, दानवः, बलि आदि।
- यज्ञ तथा पर्यायवाची– मुखः, ऋतुः, अध्वरः, अदिः, शैला, नगः, मेरू: आदि।
- मेघवाची– मेघः, घनः, नीरदः, पयोदः, वारिवाहः, बलाहकः आदि, किन्तु ‘अम्र’ शब्द नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होता है।
- समुद्रवाची– अब्धिः, उदधिः, सागरः, वारिधिः, सिन्धुः, अर्णवः आदि।
- कालवाची– कालः, समयः, पक्षः, मासः आदि।
- यत्रान्त शब्द– मध्यरात्रः, अहोरात्र: आदि।
- वसन्त व अनन्त शब्द– चन्द्रमस, मेघस्, राजन्, आत्यन आदि।
- जिन शब्दों के अन्त में क,ष,ण, भ,म,य,र हो; यथा– लोक,वृष, गण, कुम्भ, धूम्र, शंकर आदि।
- प,थ,न,म,ट,स के अन्त वाले शब्द, जैसे– कूपः, निशीथः,फेनः,मन्यः वायसः, पट् आदि।
- घ, ब-घ कि इनम् प्रत्यान्त शब्द, यथा– निश्छन्दः, महिमः, गरिमः, लघिमः, विधि, निधि आदि।
- जिन शब्दों के अन्त में अहन् अथवा अहः होते हैं, वे शब्द पुल्लिंग होते हैं, किन्तु पुष्प तथा आम्र शब्द भी नपुंसकलिंग माना जाता है।
2. स्त्रीलिंग शब्द
शब्दों के जिस रूप से किसी व्यक्ति या वस्तु की स्त्री जाति होने का बोध होता हो उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे-
- एक स्वर वाले ईकारान्त एवं अकारान्त शब्द प्रायः स्त्री लिंग होते हैं, जैसे– श्रीः,धी:, भू आदि।
- ई, अ, नि, से अन्त होने वाले शब्द; जैसे– अनी, तंत्री, तरी, लक्ष्मी, चमू, तनु, वधु, श्रेणी आदि।
- विद्युत, निशा, वल्ली, वीणा, दिग्, नदी, हली वाची शब्द सदैव स्त्रीलिंग होते हैं।
- इति प्रत्यान्त शब्द, जैसे– पद्मनी, फलिनि आदि।
- कवप्-प्रत्यान्त शब्द; यथा– विद्या, शैय्या, हत्या आदि।
- ‘आप’ प्रत्यान्त शब्द, जैसे– शिवा, परीक्षा, प्रशंसा आदि।
- विंशति से शतम् तक संख्यावाची शब्द; जैसे– विंशति, त्रिंशति, चत्वारिंशत आदि।
- क्रिय् प्रत्यान्त शब्द; यथा– आपद, शरद आदि।
इन्द्र, वरुण, शर्व, भव, मृङ्हिम, अरण्य, यवन एवं मातुल आदि शब्दों के आगे आनी जोड़ देने से स्त्रीलिंग बन जाते हैं। यथा– इन्द्राणी, रुद्राणो, भवानी, शर्वाणी, हिमानी, यवनानी, मातुलानी आदि।
3. नपुंसक लिंग शब्द
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें पुल्लिंग और स्त्रीलिंग में नहीं रखा जा सकता, ऐसे शब्द नपुंसकलिंग के अंतर्गत आते हैं। जैसे-
- त्व् ल्युट् प्रत्यान्त शब्द नपुंसक लिंग शब्द होते हैं, यथा-गुरुत्वन्, महत्वम्, गमनम्, आननम्, दानम्, पतिम्, सौन्दर्य, माधुर्यम् आदि।
- क्रिया विशेषण वाची शब्द भी नपुंसक लिंग में प्रयुक्त होते हैं। यथा– सः यथा-शक्ति पठति। सः सुन्दरम् वदति।
- अस्, उस्, इस्, अन् अन्त वाले शब्द प्रायः नपुंसक लिंग होते हैं। यथा– पर्व, हवि, कपु, चर्म, अहं आदि।
- संख्यावाची शब्द पूर्वक रात्रान्त शब्द, यथा– द्विरात्रम् इत्यादि।
- भाववाच्य में त्व,क्त, अण्, ष्यज्, प्रत्यान्त शब्द, यथा– लघुत्वं, कृतम् पाण्डित्यम्, लघवम् आदि।
Gantantr kaub ling hai
“होता/होती” लगाकर अधिकांश शब्दों के लिङ जान सकते हैं। इसलिए –
– गणतंत्र होता है। जबकि
– गणतंत्र होती है। – ये वाक्य सही नहीं लग रहा है।
इसलिए गणतंत्र पुल्लिंग शब्द है।
वृक्ष, मार्ग , देवालय ये पुलिंग है तो स: वृक्ष: सही है
स: मार्ग:
स: देवालय:
स वृक्षः, तत् देवालयम् , तत् मार्गम्