सरदार पूर्णसिंह (Puran Singh) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। पूर्ण सिंह का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
Puran Singh Biography / Puran Singh Jeevan Parichay / Puran Singh Jivan Parichay / सरदार पूर्ण सिंह :
नाम | पूर्ण सिंह |
जन्म | 1881 ई. |
जन्मस्थान | एबटाबाद, पाकिस्तान |
मृत्यु | 1931 ई. |
पिता | सरदार करतार सिंह भागर |
प्रमुख रचनाएँ | सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन, कन्यादान, पवित्रता आदि, सभी निबंध हैं। |
भाषा | उर्दू के प्रचलित शब्दों के साथ-साथ संस्कृत की तत्सम शब्दावली का भी प्रयोग, हिन्दी भाषा |
शैली | भावात्मक शैली की प्रमुखता |
साहित्य में स्थान | हिन्दी निबन्धकारों में महत्वपूर्ण स्थान |
सरदार पूर्णसिंह का जीवन-परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। अथवा सरदार पूर्णसिंह की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएं बताइए।
अध्यापक पूर्णसिंह द्विवेदी युगीन निबन्धकारों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। भावात्मक निबन्धों के रचनाकार के रूप में पूर्णसिंह जी हिन्दी में अद्वितीय माने जा सकते हैं। आपकी भाषा में लाक्षणिकता का जैसा प्रयोग है, वैसा बहुत कम निबन्धकारों में दिखाई पड़ता है। पूर्णसिंह जी ने हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी एवं अंग्रेजी भाषा में भी लिखा है। हिन्दी में आपके लिखे हुए छ: निबन्ध उपलब्ध है, इन्हीं निबन्धों के कारण सरदार पूर्णसिंह हिन्दी लेखकों में अमर हो गए।
सरदार पूर्णसिंह का ‘जीवन-परिचय’
सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 1881 ई. में एबटाबाद जिले में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। मैट्रिक तक की शिक्षा रावलपिण्डी में पाने के बाद आपने इण्टर की परीक्षा लाहौर से उत्तीर्ण की और रसायन शास्त्र की शिक्षा पाने के लिए 1900 ई. में एक विशेष छात्रवृत्ति पाकर जापान चले गए। वहां तीन वर्ष तक ‘इम्पीरियल यूनीवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की।
जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर अपने संन्यास ले लिया तथा उन्हीं के साथ भारत लौट आए। स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।
इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ ‘अध्यापक‘ शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जडांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।
सरदार पूर्णसिंह की ‘कृतियां’
सरदार पूर्णसिंह के कुल छ: निबन्ध हिन्दी में उपलब्ध होते हैं:
- सच्ची वीरता
- आचरण की सभ्यता
- मजदूरी और प्रेम
- अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन
- कन्यादान
- पवित्रता
इन्हीं निबन्धों के बल पर इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। अध्यात्म और विज्ञान इनकी जीवन दृष्टि की प्रमुख विशेषता है। निबन्ध रचना के लिए इन्होंने प्रमुख रूप से नैतिक विषयों को चुना है। इनके निबन्ध मुख्यतः भावात्मक कोटि में आते हैं जिनमें विचारों के सूत्र भी भरे पड़े हैं।
भाषागत विशेषताएं
उर्दू शब्दों का प्रयोग
आपने अपने निबन्धों की भाषा में प्रायः उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया है। ये शब्द आपकी भाषा के सहज अंग बनकर आए हैं। इनके व्यवहार से भाषा में एक विशिष्ट प्रकार की सहजता का संचार हुआ है। आपके युग में उर्दू-फारसी का अधिक प्रचलन था। अतः आपने भी युगानुरूप एकरूपता बनाए रखने के लिए इस प्रकार की भाषा का व्यवहार किया है। ऐसी मिली-जुली भाषा का प्रयोग आपके गद्य में स्थान-स्थान पर प्राप्त होता है। इस प्रकार की भाषा का एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है: “जब पैगम्बर मुहम्मद ने ब्राह्मण को चीरा और उसके मौन आचरण को नंगा किया, तब सारे मुसलमानों को आश्चर्य हुआ कि काफिर में मोमिन किस प्रकार गुप्त था।”
संस्कृत-बहुल शब्दावली का प्रयोग
अध्यापक पूर्णसिंह की भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का भी प्रयोग हुआ है। इस प्रकार की भाषा का व्यवहार प्रायः भाषा को प्रवाहमय और अर्थपूर्ण बनाने के लिए किया गया है। इस प्रकार के गद्य में गम्भीरता और सरसता का अपर्व समन्वय हैं। ऐसी भाषा में विलय दोष नहीं आ सका है। जैसे – “कौन कह सकता है कि जीवन की पवित्रता और अपवित्रता के प्रतिद्वन्द्वी भाव से संसार के आचरणों में एक अद्भुत पवित्रता का विकास नहीं होता।”
शैलीगत विशेषताएं
भावात्मक शैली
सरदार पूर्णसिंह ने भावात्मक निबन्ध लिखे हैं अतः इन निबन्धों में भावात्मक शैली की प्रमुखता है। यहां शब्दों में काव्यात्मकता का संचार हुआ है तथा वे भाव-विभोर होकर अपनी बात कहते हैं। इस शैली में व्यक्त विचार भी भावों से लिपटे हुए हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत है- “मौन रूपी व्याख्यान की महत्ता इतनी बलवती, इतनी अर्थवती और इतनी प्रभावती होती है कि उसके सामने क्या मातृभाषा, क्या साहित्यभाषा और क्या अन्य देश की भाषा सब तुच्छ प्रतीत होती है।”
लाक्षणिक शैली
अध्यापक पूर्णसिंह के गद्य का लाक्षणिक रूप अद्वितीय है। उनकी भाषा जैसी लाक्षणिकता अन्यत्र देखने को नहीं मिल सकती। आपसे पूर्व के निबन्धकारों में ऐसे प्रयोग दिखाई नहीं देते। इस प्रकार की शैली से भाषा में सहजता, प्रवाहमयता, रोचकता, रमणीयता, अर्थगत विलक्षणता और अभिव्यंजना का मौलिक एवं अनुपम दर्शन होता है। एक-एक वाक्य-विचार को मुर्तिमान-सा कर देता है। यथा : “आचरण के नेत्र के एक अश्रु से जगत भर के नेत्र भीग जाते हैं। आचरण नेत्र के आनन्द नृत्य से उन्मदिष्णु होकर वृक्षों और पर्वतों तक के हृदय नृत्य करने लगते हैं।”
चित्रात्मक शैली
इस प्रकार की शैली में चित्रोपमता का सा आनन्द दिखाई देता है। निबन्धकार का अभिप्रेत अर्थ मूर्तिमान हो उठता है। यह शैली उनके सभी निबन्धों में दृष्टिगोचर होती है। ‘आचरण की सभ्यता’ निबन्ध का यह अंश इस शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है- “तारागणों को देखते-देखते भारतवर्ष अब समुद्र में गिरा कि गिरा, एक कदम और धड़ाम से नीचे।”
हास्य-व्यंग्य शैली
अध्यापक पूर्णसिंह की शैली में जहां-तहां हास्य और व्यंग्य के भी दर्शन हो जाते हैं। इस प्रकार की शैली में निबन्धकार का धार्मिक आडम्बर आदि के प्रति आक्रोश प्रबल रहा है। कभी वह हास्य रस के द्वारा गम्भीर विषय को सहज और संवेद्य बना देता है। हास्य रस का यह उद्धरण देखने योग्य है- “परंतु अंग्रेजी भाषा का व्याख्यान चाहे वह कारलाइल का लिखा हुआ क्यों न हो-बनारस के पण्डितों के लिए रामलीला ही है।”
अध्यापक पूर्णसिंह का ‘हिन्दी साहित्य में स्थान’
अध्यापक पूर्णसिंह ने केवल छ: निबन्ध लिखकर हिन्दी निबन्धकारों में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। उनका जीवन अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय था तथा उनकी विचारधारा में गांधीवाद। साम्यवाद का अद्भुत तालमेल था। अपने निबन्धों के माध्यम से उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण किया।
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