अव्यय ऐसे शब्द होते हैं जो वाक्यों में जैसे के तैसे ही प्रयोग होते हैं, इन पर लिंग, वचन, पुरुष, कारक, संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे: जब, तब, कब, कहाँ, क्यों, कैसे, किसने, उधर, ऊपर, इधर, अरे, तथा, और, किन्तु, परंतु, लेकिन, क्योंकि, केवल, यहाँ, वहाँ आदि शब्द अव्यय हैं। इस लेख में Avyay in Hindi की परिभाषा भेद और उनके उदाहरण एवं पहचान के बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे।
अव्यय किसे कहते हैं?
अव्यय : जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है, उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते है। जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि आदि शब्द अव्यय हैं।
हिन्दी व्याकरण में विकार के आधार पर शब्दों को दो भागों में बांटा गया है- विकारी और अविकारी। विकारी शब्दों में- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि आते हैं, जबकि अविकारी शब्दों के अंतर्गत क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चय बोधक और विस्मयादिबोधक आदि आते हैं। अविकारी शब्दों को ही अव्यय कहा जाता है।
अव्यय का शाब्दिक अर्थ है- “अ + व्यय“, अर्थात ‘जो व्यय न हों‘ उन शब्दों को अव्यय कहते हैं। जैसे- उधर, जब, तब, किन्तु, वहाँ आदि शब्द अविकारी या अव्यय होते हैं।
अव्यय की परिभाषा: Avyay Ki Paribhasha
किसी भी भाषा के वे शब्द अव्यय कहलाते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता है। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं।
अव्यय के उदाहरण: Avyay Ke Udaharan
हिन्दी के अव्यय शब्द: जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।
संस्कृत के अव्यय: अद्य (आज), ह्यः (बीता हुआ कल), श्वः (आने वाला कल), परश्वः (परसों), अत्र (यहां), तत्र (वहां), कुत्र (कहां), सर्वत्र (सब जगह), यथा (जैसे), तथा (तैसे), कथम् (कैसे) सदा (हमेशा), कदा (कब), यदा (जब), तदा (तब), अधुना (अब), कदापि (कभी भी), पुनः (फिर), च (और), न (नहीं), वा (या), अथवा (या), अपि (भी), तु (लेकिन (तो)), शीघ्रम् (जल्दी), शनैः (धीरे), धिक् (धिक्कार), विना (बिना), सह (साथ), कुतः (कहाँ से), नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण हो), किम् (कहा) आदि।
अव्यय शब्दों के वाक्य प्रयोग के उदाहरण इस प्रकार हैं-
- अभी वह इधर आ रहा है।
- इधर किसी अच्छे रेस्टोरेंट में जाना अच्छा विचार है।
- अभी वह इधर क्यों आया?
- जब वह समुंदर के किनारे खड़ा था, तब वह अच्छा लग रहा था।
- अभी इधर ही थोड़ा वक्त बिता लें।
- ठीक है, आपका सुझाव अच्छा था।
- अरे!, वहाँ कौन आ रहा है?
- हम अब बाजार जा रहे हैं।
- गिलास यहाँ रखा है।
- सीमा प्रतिदिन पढ़ती है।
- मजदूर बहुत थक गया हूँ।
- रोहन अपना काम कर रहा है।
अव्यय के भेद: Avyay Ke Bhed
हिन्दी व्याकरण में अव्यय के भेद पांच प्रकार होते हैं-
1. क्रिया विशेषण अव्यय
जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का पता चलता है उन्हें क्रिया विशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे– वह धीरे-धीरे चलता है। इस वाक्य में चलता क्रिया है और धीरे-धीरे उसकी विशेषता।
क्रिया विशेषण अव्यय के भेद
क्रिया-विशेषण अव्यय के चार प्रकार के भेद है:
- स्थानवाचक क्रियाविशेषण
- कालवाचक क्रियाविशेषण
- परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
- रीतिवाचक क्रियाविशेषण
स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के व्यापार-स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, सामने, नीचे, ऊपर, आगे, भीतर, बाहर आदि।
उदाहरण– कनिका यहाँ चल रही है। इस वाक्य में “यहाँ” चल क्रिया के व्यापार-स्थान का बोध करा रही है।
कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने का समय बतलाते हैं, उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं।
जैसे– परसों, पहले, पीछे, कभी, अब तक, अभी-अभी, बार-बार।
परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के परिमाण अथवा निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं।
जैसे– बहुत, अधिक,अधिकाधिक पूर्णतया, सर्वथा, कुछ, थोड़ा, काफ़ी, केवल, यथेष्ट, इतना, उतना, कितना, थोड़ा-थोड़ा, तिल-तिल, एक-एक करके, आदि।
रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
जो शब्द किसी क्रिया की रीति का बोध कराए, वह रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहलाते है।
जैसे– वधु पक्ष द्वारा “सुविवाह” की रीति को तोड़ने की एवज में वर पक्ष ने वधु पक्ष से नुकसान लिया। इसमें सुविवाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण का बोध करा रहा है।
इसी प्रकार “धीरे-धीरे, खूबसूरती से, तेजी से, अच्छे से” आदि रीतिवाचक क्रियाविशेषण शब्दों के उदाहरण हैं।
विस्तार से पढ़ें: क्रिया विशेषण किसे कहते हैं?
2. संबंधबोधक अव्यय
वे शब्द जो संज्ञा/सर्वनाम का अन्य संज्ञा/सर्वनाम के साथ संबंध का बोध कराते है उसे संबंधबोधक अव्यय कहते है। ये संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होते है। इसके साथ किसी-न-किसी परसर्ग (प्रत्यय) का भी प्रयोग होता है।
जैसे:- के पास, के ऊपर, से दूर, के कारण, के लिए, की ओर, की जगह, के अनुसार, के आगे, के साथ, के सामने आदि।
संबंधबोधक अव्यय के उदाहरण :
- विद्यालय के सामने बगीचा है। (‘विद्यालय’ का ‘बगीचा’ के साथ संबंध – ‘के सामने’ )
- यहाँ से पूरब की ओर तालाब है।
- मै कार्यालय से दूर पहुँच चुका था।
संबंधबोधक अव्यय के भेद
संबंधबोधक अव्यय के 12 भेद इस प्रकार हैं:
- स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द स्थान का बोध कराते हैं उन्हें स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर बाहर, भीतर, ऊपर, नीचे, बीच, आगे, पीछे, सामने, निकट आते हैं वहाँ पर स्थानवाचक संबंधबोधक होते है। जैसे- मेरे घर के सामने बगीचा है।
- दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द दिशा का बोध कराते है उन्हें दिशा वाचक संबंधबोधक अव्यय कहते है। जहाँ पर निकट, समीप, ओर, सामने, तरफ, प्रति आते हैं वहाँ पर दिशावाचक संबंधबोधक होता है। जैसे – परिवार की तरफ देखो कि कितने भले हैं।
- कालवाचक संबंधबोधक अव्यय- जिन अव्यय से समय का पता चलता है उसे कालवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर पहले, बाद, आगे, पीछे, पश्चात, उपरांत आते हैं वहाँ पर कालवाचक संबंधबोधक होता है। जैसे – राम के बाद कोई अवतार नहीं हुआ।
- साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द किसी साधन का बोध कराते है उन्हें साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर निमित्त, द्वारा, जरिये, सहा, माध्यम, मार्फत आते है वहाँ पर साधनवाचक संबंधबोधक होता है। जैसे – वह मित्र के सहारे ही पास हो जाता है।
- कारणवाचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द किसी कारण का बोध कराते हैं उन्हें कारणवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर कारण, हेतु, वास्ते, निमित्त, खातिर आते है वहाँ पर कारणवाचक संबंधबोधक होता है।
- सीमावाचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द सीमा का बोध कराते हैं उन्हें सीमावाचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर तक, पर्यन्त, भर, मात्र आते है वहाँ पर सीमावाचक संबंधबोधक होता है। जैसे – समुद्र पर्यन्त यह पृथ्वी तुम्हारी है।
- विरोधसूचक संबंधबोधक अव्यय- जो अव्यय शब्द प्रतिकूलता या विरोध का बोध कराते हैं उन्हें विरोधसूचक अव्यय संबंधबोधक कहते हैं। जहाँ पर उल्टे, विरुद्ध, प्रतिकूल, विपरीत आते हैं वहाँ पर विरोधसूचक संबंधबोधक होता है। जैसे – आतंकवादी कानून के विरुद्ध लड़ते हैं।
- समतासूचक संबंधबोधक- जो अव्यय शब्द समानता का बोध कराते हैं उन्हें समतासूचक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर अनुसार, सामान्य, तुल्य, तरह, सदृश, समान, जैसा, वैसा आते हैं वहाँ पर समतावाचक संबंधबोधक होता है। जैसे – मानसी के समान मीरा भी सुंदर है।
- हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय- जहाँ पर रहित, अथवा, सिवा, अतिरिक्त आते है वहाँ पर हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय होता है।
- सहचरसूचक संबंधबोधक अव्यय- जहाँ पर समेत , संग , साथ आते हैं वहाँ पर सहचरसूचक संबंधबोधक अव्यय होता है।
- विषयवाचक संबंधबोधक अव्यय- जहाँ पर विषय, बाबत, लेख आते हैं वहाँ पर विषयवाचक संबंधबोधक अव्यय होता है।
- संग्रहवाचक संबंधबोधक अव्यय- जहाँ पर समेत, भर, तक आते हैं वहाँ पर संग्रवाचक संबंधबोधक अव्यय होता है।
विस्तार से पढ़ें: संबंध बोधक किसे कहते हैं?
3. समुच्चय बोधक अव्यय
दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले संयोजक शब्द को समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण के लिए-
- राम ने खाना खाया और सो गया।
- उसने बहुत समझाया लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी।
- अगर तुम बुलाते तो मैं जरुर आता।
अतः जहाँ पर “तब , और , वरना , किन्तु , परन्तु , इसीलिए , बल्कि , ताकि , क्योंकि , या , अथवा , एवं , तथा , अन्यथा” आदि शब्द जुड़ते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक होता है। इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है।
समुच्चय बोधक अव्यय के भेद
समुच्चय बोधक अव्यय के दो (2) भेद होते हैं-
- (A) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
- (B) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
(A) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जो पद या अव्यय मुख्य वाक्यों को जोड़ते हैं उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर और , तो आते हैं वहाँ पर समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
- सुनन्दा खड़ी थी और अलका बैठी थी।
- ऋतेश गायेगा तो ऋतु तबला बजाएगी।
समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के भेद
समानाधिकरण समुच्चयबोधक को भी आगे 6 भागों में बांटा जा सकता है-
- संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- परिणामदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
इनसे दो या अधिक वाक्यों को आपस में जोड़ा जाता है। जिन शब्दों से शब्द, वाक्य और वाक्यांश परस्पर जुड़ते हैं उसे संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “भी , व ,और , तथा , एवं” आते हैं वहाँ पर संयोजक समुच्चयबोधक अव्यय होते हैं। जैसे –
- राम और सीता पाठशाला जा रहे हैं।
- रवि , गोविन्द और दास एक ही कक्षा में पढ़ते हैं।
विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से शब्दों , वाक्यों , वाक्यांशों और उपवाक्यों में परस्पर विभाजन प्रकट करते हैं उन्हें विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “ताकि , या-या , चाहे-चाहे , क्या-क्या , न-न , न कि , नहीं तो , परन्तु , तो , या , चाहे , अथवा , अन्यथा , वा , मगर” आते हैं वहाँ पर विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे –
- राम तो आया , परन्तु श्याम नहीं।
- तुम चलोगे तो मैं चलूँगा।
विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन अव्यय शब्दों से विकल्प का पता चलता है उसे विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “या , अथवा , अन्यथा , कि” आते हैं वहाँ पर विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
- तुम काम कर सकते हो या पढाई।
- मैं जाउँगा अथवा कैलाश जाएगा।
विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से दो वाक्यों में से पहले की सीमा को सूचित किया जाता है उसे विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “वरन , पर , परन्तु , किन्तु , मगर , बल्कि , लेकिन” आते हैं वहाँ पर विरोधवाचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता। जैसे-
- श्याम ने उसे रोका था पर वह नहीं रुका।
- सोहन पाठशाला गया था लेकिन पहुँचा नहीं था।
परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जो शब्द परस्पर दो उपवाक्यों को जोडकर परिणाम देशाते हैं उन्हें परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “इसीलिए , सो , इस कारण , अत: , अतएव , फलत: , परिणाम स्वरूप , इसलिए , फलस्वरूप , अन्यथा” आते हैं वहाँ पर परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जैसे-
- मैं अंग्रेजी में दुर्बल हूँ , अत: आप मेरी सहायता करें।
- अब रात होने लगी है इसलिए दोनों अपनी -अपनी जगह से उठे।
वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन अव्यय शब्दों से अपने द्वारा जुड़ने वाले और एक को त्यागने का पता चले उसे वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “अथवा , या , न” आते हैं वहाँ पर वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे –
- तुमने अथवा उसने ने गेंद मारी है।
- न तुमने , न तुम्हारे भाई ने मेरी सहायता की।
(B) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से किसी वाक्य के प्रधान से आश्रित उपवाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। व्यधिकरण समुच्चयबोधक के 4 भेद होते हैं-
- कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- उद्देश्यसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- स्वरूपसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से प्रारम्भ होने वाले वाक्य पहले वाक्य का समर्थन करते हैं उसे करणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर “क्योंकि , जोकि , इसलिए कि , इस कारण, इस लिए, चूँकि, ताकि, कि” आते हैं वहाँ पर कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे –
- तुम पर कोई भरोसा नहीं करता क्योंकि तुम झूठ बोलते हो।
- वह मुझे पसंद है इसलिए कि वह सुंदर है।
संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से पूर्ण वाक्य की घटना से उत्तर वाक्य की घटना का संकेत मिले उसे संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “यदि , तो , तथापि , जा , यद्पि , परन्तु” आते हैं वहाँ पर संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
- कुछ बनना है तो स्कूल जाओ।
- अगर उसे काम नहीं होगा तथापि वह आ जाएगा।
उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से दो उपवाक्यों को जोडकर उनका उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “ताकि, कि, जो, इसलिए कि, जिससे” आते हैं वहाँ पर उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होता है। जैसे-
- वह मेरे पास आया था ताकि सहायता मांग सके।
- श्रेष्ठ कार्य करो जिससे माँ-बाप गर्व कर सकें।
स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
जिन शब्दों से मुख्य उपवाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है उसे स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर “जैसे , यानी , कि , अथार्त , मानो” आते हैं वहाँ पर स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
- वह इस तरह डर रहा है जैसे उसने ही चोरी की हो।
- श्री शुकदेव मुनि बोले कि, महाराज अब आगे की कथा सुनाएँ।
विस्तार से पढ़ें: समुच्चय बोधक किसे कहते हैं?
4. विस्मयादिबोधक अव्यय
जिन वाक्यों में आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त होँ, उन्हें विस्मय बोधक वाक्य कहते है, और इन भावों को व्यक्त करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें विस्मयादि बोधक अव्यय कहते हैं। इन वाक्यों में सामान्यतः विस्मयादिबोधक चिह्न (!) का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण के लिए-
- अरे! पीछे हो जाओ , गिर जाओगे।
- हाय ! वह भी मार गया।
- हाय ! अब मैं क्या करूं।
अतः “हाय ! , बाप रे बाप ! , हे राम ! , ओह ! , उफ़ ! , त्राहि – त्राहि ! , आह ! , हा !, छि: ! , थू-थू , धिक्कार ! , हट ! , धिक् ! , धत ! , चुप !, अच्छा ! , ठीक ! , हाँ ! , जी हाँ ! , बहुत अच्छा ! , जी !, अरे ! , क्या ! , ओह ! , सच ! , हैं ! , ऐ ! , ओहो ! , वाह ! , हो ! , अजी ! , ओ ! , रे ! , री ! , अरे ! , अरी ! , हैलो ! , ऐ! ” इत्यादि शब्दों का प्रयोग विस्मयादिबोधक अव्यय के रूप में होता है।
विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद
विस्मयादिबोधक अव्यय के 11 भेद इस प्रकार हैं:
- शोकबोधक अव्यय- जहाँ पर हाय ! , बाप रे बाप ! , हे राम ! , ओह ! , उफ़ ! , त्राहि – त्राहि ! , आह ! , हा ! आते हैं वहाँ पर शोकबोधक होता है। जैसे : हे राम ! बहुत बुरा हुआ।
- तिरस्कारबोधक अव्यय- जहाँ पर छि: ! , थू-थू , धिक्कार ! , हट ! , धिक् ! , धत ! , चुप ! आते हैं वहाँ पर तिरस्कारबोधक होता है। जैसे : धिक्कार ! है तुम पे।
- स्वीकृतिबोधक अव्यय- जहाँ पर अच्छा ! , ठीक ! , हाँ ! , जी हाँ ! , बहुत अच्छा ! , जी ! आते हैं वहाँ पर स्वीकृतिबोधक होता है। जैसे : हाँ ! मैं कल पहुँच जाउँगा।
- विस्मयादिबोधक अव्यय- जहाँ पर अरे ! , क्या ! , ओह ! , सच ! , हैं ! , ऐ ! , ओहो ! , वाह ! आते हैं वहाँ पर विस्मयबोधक होता है। जैसे : ओह ! ये कौन है ?
- संबोधनबोधक अव्यय- जहाँ पर हो ! , अजी ! , ओ ! , रे ! , री ! , अरे ! , अरी ! , हैलो ! , ऐ! आते है वहाँ पर संबोधनबोधक होता है। जैसे : हैलो ! कोई है ?
- हर्ष बोधक अव्यय- जहाँ पर वाह -वाह ! , धन्य ! , अति सुन्दर ! , अहा ! , शाबाश ! , ओह ! आते हैं वहाँ पर हर्षबोधक होता है। जैसे : अहा ! मजा आ गया।
- भयबोधक अव्यय- जहाँ पर बाप रे बाप ! , ओह ! , हाय ! , उई माँ ! , त्राहि – त्राहि आते हैं वहाँ पर भयबोधक होता है। जैसे : हाय ! मुझे चोट लग गयी।
- आशिर्वादबोधक अव्यय- जहाँ पर दीर्घायु हो ! , जीते रहो ! आते हैं वहाँ पर आशीर्वादबोधक होता है। जैसे : जीते रहो ! पुत्र तुम्हें कामयाबी मिले।
- अनुमोदनबोधक अव्यय- जहाँ पर हाँ , हाँ ! , बहुत अच्छा ! , अवश्य ! आते है वहाँ पर अनुमोदनबोधक होता है। जैसे : हाँ , हाँ ! तुम्हारा पक्ष ठीक है।
- विदासबोधक अव्यय- जहाँ पर अच्छा ! , अच्छा जी ! , टा -टा ! आते है वहाँ पर विदासबोधक होता है। जैसे : अच्छा ! अब हम चलते हैं।
- विवशताबोधक अव्यय- जहाँ पर काश ! , कदाचित् ! , हे भगवान ! आते हैं वहाँ पर विवशताबोधक होता है। जैसे : काश ! मेरी माँ मेरे साथ होती।
विस्तार से पढ़ें: विस्मयादिबोधक किसे कहते हैं?
5. निपात अव्यय
किसी भी बात पर अतिरिक्त भार देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उसे निपात अव्यय कहते है। जैसे- भी , तो , तक , केवल , ही , मात्र आदि निपात अव्यय शब्द हैं।
उदाहरण के लिए-
- तुम्हें आज रात रुकना ही पड़ेगा।
- तुमने तो हद कर दी।
- कल मै भी आपके साथ चलूँगा।
निपात अव्यय के भेद
निपात अव्यय के नौ भेद या वर्ग हैं:
- स्वीकृतिबोधक (स्वीकार्य) निपात अव्यय – हा,जी,जी हाँ।
- नकारबोधक निपात अव्यय – जी नहीं,नहीं।
- निषेधबोधक निपात अव्यय – मत।
- प्रश्नबोधक निपात अव्यय – क्या।
- विस्मयबोधक निपात अव्यय – क्या,काश।
- तुलनाबोधक निपात अव्यय – सा।
- अवधारणाबोधक निपात अव्यय – ठीक,करीब,लगभग,तकरीबन।
- आदरबोधक निपात अव्यय – जी।
- बल प्रदायकबोधक निपात अव्यय – तो,ही,भी,तक,भर,सिर्फ,केवल।
विस्तार से पढ़िए: निपात या अवधारक किसे कहते हैं?
अव्यय को कैसे पहचाने?
अव्यय की पहचान के लिए जरूरी है कि आपको पता होना चाहिए कि अव्यय कहते किसे हैं, अव्यय उन शब्दों को कहते हैं जिन पर लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अतः दिए हुए वाक्य में से आप अव्यय को छाँटकर ऐसे शब्दों को लिखें जिन पर लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि का कोई प्रभाव ना पड़ता हो।
जैसे यदि किसी वाक्य में जब, तब, अभी, उधर, इधर, यहाँ, वहाँ, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य आदि जैसे शब्दों का प्रयोग है तो उन्हें पहचान कर आप उत्तर दे सकते हैं।
संस्कृत के अव्यय अर्थ सहित इस प्रकार हैं-
संस्कृत के अव्यय | उनका अर्थ |
---|---|
अद्य | आज |
ह्यः | बीता हुआ कल |
श्वः | आने वाला कल |
परश्वः | परसों |
अत्र | यहां |
तत्र | वहां |
कुत्र | कहां |
सर्वत्र | सब जगह |
यथा | जैसे |
तथा | तैसे |
कथम् | कैसे |
सदा | हमेशा |
कदा | कब |
यदा | जब |
तदा | तब |
अधुना | अब |
कदापि | कभी भी |
पुनः | फिर |
च | और |
न | नहीं |
वा | या |
अथवा | या |
अपि | भी |
तु | लेकिन, तो |
शीघ्रम् | जल्दी |
शनैः | धीरे |
धिक् | धिक्कार |
विना | बिना |
सह | साथ |
कुतः | कहाँ से |
नमः | नमस्कार |
स्वस्ति | कल्याण हो |
किम् | कहा |
पढ़ें विस्तार से: संस्कृत में अव्यय प्रकरण
FAQs: अव्यय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
अव्यय क्या होता है?
वे शब्द जिनके वाक्य में प्रयोग होने पर लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन शब्दों को अव्यय कहते हैं। अव्यय सदैव अपरिवर्तित, अविकारी होते हैं। जैसे, “जब, अभी, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु” आदि शब्दों को अव्यय कहा जाता है।
अव्यय के कुल कितने भेद या प्रकार हैं?
अव्यय शब्दों के पांच भेद या प्रकार होते हैं-
1. क्रिया विशेषण अव्यय
2. संबंधबोधक अव्यय
3. समुच्चयबोधक अव्यय
4. विस्मयादिबोधक अव्यय
5. निपात अव्यय
हिन्दी के प्रमुख अव्यय शब्द लिखिए?
हिन्दी के प्रमुख अव्यय शब्द- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात आदि हैं।
उदाहरण सहित अव्यय की परिभाषा लिखो।
वे शब्द जिसमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि की उपस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता, उन शब्दों को अव्यय कहा जाता हैं। अव्यय अपरिवर्तित, अविकारी होते हैं। जबकि हिंदी व्याकरण में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि शब्दों के रूप बदलते रहते हैं।
- वह धीरे-धीरे गाना गा रही है।
- तुम उधर जाओ?
- राम बाजार कब गया था?
- मोहन और गीता बाजार जा रहें हैं।
- बच्चे नीचे गेंद खेल रहे हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में “धीरे-धीरे, उधर, उधर, और, नीचे” आदि अव्यय के उदाहरण हैं।
क्रिया-विशेषण अव्यय के कितने भेद हैं?
क्रिया-विशेषण अव्यय शब्दों के चार भेद या प्रकार होते हैं-
1. कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
संबंधबोधक अव्यय क्या है?
वे शब्द जो संज्ञा/सर्वनाम का अन्य संज्ञा/सर्वनाम के साथ संबंध का बोध कराते है उसे संबंधबोधक अव्यय कहते है। ये संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त (use) होते है। इसके साथ किसी-न-किसी परसर्ग (प्रत्यय – post-position) का भी प्रयोग होता है।
संस्कृत अव्यय के 10 शब्द लिखो?
द्य (आज), ह्यः (बीता हुआ कल), श्वः (आने वाला कल), परश्वः (परसों), अत्र (यहां), तत्र (वहां), कुत्र (कहां), सर्वत्र (सब जगह), यथा (जैसे), तथा (तैसे), कथम् (कैसे) सदा (हमेशा) आदि।
पढ़ें सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण (Hindi Grammar)
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