दोहा किसे कहते हैं? (What is Couplet in Hindi?)
Dohe In Hindi : दोहा मात्रिक छंद होता है, मात्रिक छंद के दो भेदों में से यह ‘अर्द्ध सम मात्रिक छंंद‘ है। दोहे में चार चरण होते हैं। इसके विषम (odd) चरणों- प्रथम और तृतीय चरण में 13, 13 मात्राएं होती है। और सम (even) चरणों- दूसरे और अंतिम चरण में 11, 11 मात्राएं होती है। इसमें 24, 24 मात्रा की दो पंक्तियां होती है। एक हिन्दी दोहे में कुल मात्राओं की संख्या 48 होती है।
नोट: संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण गुरु होता है(जैसे- अग्र का अ, वक्र का व, कब्ब का क)। पढ़ें छंद।
हिन्दी दोहे मीनिंग सहित
हिन्दी में दोहे (Dohe in Hindi) उनकी व्याख्या अर्थ एवं भावार्थ और शिक्षा सहित आगे दिए जा रहें हैं-
कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिन्दी में (Dohe by Kabir in Hindi)
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय।
अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में समझाते हैं कि यदि हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों, तो सबसे पहले किसके चरण स्पर्श करना चाहिए? उनका उत्तर है कि गुरु की महिमा भगवान से भी बढ़कर है, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान तक पहुंचने का मार्ग दिखाया है। इसलिए पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
अर्थ: कबीर दास जी बताते हैं कि मनुष्य का मोह और धन के प्रति लालसा कभी समाप्त नहीं होती। व्यक्ति का शरीर तो नष्ट हो जाता है, लेकिन उसकी इच्छाएँ और ईर्ष्या मरती नहीं हैं।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब्ब॥
अर्थ: कबीर दास जी हमें यह सिखाते हैं कि हमारे पास समय बहुत ही सीमित है, इसलिए जो कार्य हम कल के लिए टाल रहे हैं, उसे आज ही कर लेना चाहिए और जो आज के लिए सोचा है, उसे तुरंत करना चाहिए। क्योंकि पल भर में प्रलय आ सकता है, तब काम पूरा करने का अवसर नहीं मिलेगा। इस संदेश के माध्यम से वे समय के महत्व को समझाते हैं।
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय॥
अर्थ: लोग केवल दुःख के समय ही भगवान को याद करते हैं, जबकि सुख में उन्हें भूल जाते हैं। यदि सुख के समय भी भगवान को स्मरण किया जाता, तो दुःख का अनुभव ही नहीं होता।
कबीर जी के मीठी वाणी दोहे
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोए।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जो सुनने वाले के मन को भाए। ऐसी भाषा न केवल दूसरों को सुख देती है, बल्कि बोलने वाले को भी गहन आनंद का अनुभव कराती है।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ: जो व्यक्ति मधुर वाणी का प्रयोग करता है, वह समझता है कि वाणी एक अनमोल रत्न है। इसलिए, उसे चाहिए कि वह अपने शब्दों को हृदय रूपी तराजू में तौलकर ही मुख से बाहर निकाले।
जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय,
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हम जिस प्रकार का भोजन करते हैं, उसी के अनुसार हमारा मन बनता है, और जिस प्रकार का पानी हम पीते हैं, उसी के अनुसार हमारी वाणी भी होती है।
पढ़ें: कबीरदास का जीवन परिचय।
कबीर की साखी
पीछे लागा जाई था, लोक वेद के साथि।
आगैं थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया साथि॥
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि पहले मैं जीवन में सांसारिक माया और मोह में व्यस्त था। लेकिन जब मुझे इनसे विरक्ति मिली, तब मुझे सद्गुरु के दर्शन हुए। सद्गुरु के मार्गदर्शन से मुझे ज्ञान का दीपक मिला, जिससे मुझे परमात्मा की महत्ता का ज्ञान हुआ। यह सब गुरु की कृपा से ही संभव हुआ।
कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरष्या आइ।
अंतरि भीगी आत्मां, हरी भई बनराइ॥
भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में प्रेम के महत्व को व्यक्त करते हैं, कि उनके जीवन में प्रेम बादल के रूप में बरस गया। इस वर्षा से उन्हें अपनी आत्मा का ज्ञान हुआ। जो आत्मा उनके अंतस्थल में सोई हुई थी, वह जाग उठी। इस प्रकार, उनके जीवन में एक नई ताजगी आ गई और सब कुछ हरा-भरा हो गया।
मूवां पीछे जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लौह सब, पारस कोणें काम॥
भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि मृत्यु के बाद परमात्मा की प्राप्ति कोई महत्व नहीं रखती। यदि हमें जीवित रहते ही भगवत प्राप्ति हो जाए, तो जीवन सफल हो जाएगा। इसलिए, हमें चाहिए कि इस जीवन में ही परमात्मा की प्राप्ति का प्रयास करें। जब तक लोहा पारस को नहीं प्राप्त करता, तब तक वह लोहा ही रहता है; पारस से स्पर्श करने के बाद ही वह सोना बन जाता है।
जो रोऊँ तो बल घटै, हँसौं तो राम रिसाइ।
मनहि मांहि बिसूरणां, ज्यूँ घुंण काठहि खाइ॥
भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि उनकी आत्मा की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे न तो हँस सकते हैं, क्योंकि इससे प्रभु नाराज़ होंगे, और न ही रो सकते हैं, क्योंकि रोने से उनकी शक्ति कम हो जाएगी। इस प्रकार, वे अपने परमात्मा रूपी प्रेमी को याद करते हुए घुटते रहते हैं। जिस प्रकार लकड़ी के भीतर का कीड़ा उसे धीरे-धीरे खा जाता है, उसी प्रकार वे अपने परमात्मा को याद करके घुटते रहते हैं।
संत कबीर के चेतावनी दोहे
उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं।
एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥
शिक्षा: कबीर दास जी कहते हैं- हे मानव! लोग अक्सर सफेद वस्त्र पहनते हैं और अपने चेहरे को सुंदर बनाने के लिए पान-सुपारी का सेवन करते हैं। लेकिन बिना प्रभु के भजन के, इस बाहरी सजावट का कोई मूल्य नहीं है। केवल हरि का स्मरण करने से ही मुक्ति प्राप्त होगी।
मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग।
तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग।
शिक्षा: कबीर दास जी कहते हैं- बगुले का शरीर भले ही उज्जवल हो, लेकिन उसका मन कपट से भरा होता है। इसके मुकाबले, कौआ बेहतर है, क्योंकि उसका तन और मन एक समान है और वह किसी को छलता नहीं है। इस दोहे के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि बाहरी सुंदरता से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक सत्यता और ईमानदारी है।
साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
शिक्षा: कबीर दास जी कहते हैं- हे प्रभु, मुझे अधिक धन और संपत्ति की आवश्यकता नहीं है। मुझे केवल इतना चाहिए कि मेरे परिवार का भरण-पोषण अच्छे से हो सके। मैं भी भूखा न रहूं और मेरे घर से कोई भी भूखा न जाए।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय॥
शिक्षा: कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते-सोते और दिन में खाने-पीने में समय बर्बाद कर दिया। इस प्रकार, जो अनमोल जीवन आपको मिला है, उसे आप तुच्छ चीज़ों में बदल रहे हैं।
और अधिक पढ़ें: कबीर दास के दोहे।
पाखंड पर कबीर के दोहे
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार॥
संदेश: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि यदि पत्थर की पूजा करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है, तो मैं पहाड़ की पूजा करूंगा। लेकिन इससे अच्छा है कि अपने घर में चक्की रखूँ, जिससे सारा संसार आटा पीसकर खाता है। इसका तात्पर्य है कि वास्तविकता और उपयोगिता का महत्व है, और केवल बाहरी पूजा से कुछ नहीं होता।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥
संदेश: कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में मोती की माला फेरता है, लेकिन उसके मन का भाव नहीं बदलता और उसकी मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर ऐसे व्यक्ति को सलाह देते हैं कि हाथ की इस माला को फेरने के बजाय, उसे अपने मन के मोतियों को बदलना या फेरना चाहिए।
तुलसी दास के दोहे (Dohe by Tulsi in Hindi)
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार॥
अर्थ: तुलसीदास जी समझाते हैं कि, हे मनुष्य, यदि तुम अपने जीवन में आंतरिक और बाह्य शांति प्राप्त करना चाहते हो, तो अपने मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर भगवान राम का नाम सुमिरन करो। राम-नाम का जाप करने से मन को शांति मिलती है और जीवन में संतुलन बना रहता है।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास॥
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान राम का नाम एक कल्पवृक्ष की तरह है, जो सभी इच्छाओं को पूरा करता है और मोक्ष का मार्ग दिखाता है। उनके नाम का स्मरण करने से एक साधारण और अज्ञानी व्यक्ति भी शुद्ध और पवित्र हो जाता है, जैसे कि तुलसीदास स्वयं राम-नाम के स्मरण से पवित्र तुलसी के समान हो गए।
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।
अर्थ: गोस्वामी जी यह बताते हैं कि सुंदर रूप देखकर न केवल मूर्ख, बल्कि चतुर व्यक्ति भी धोखा खा सकते हैं। जैसे सुंदर मोर का रूप आकर्षक होता है, उसका वचन अमृत के समान लगता है, लेकिन उसका भोजन तो साँप है। इस प्रकार, बाहरी सुंदरता के पीछे छिपे वास्तविकता को समझना बहुत जरूरी है।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।
अर्थ: यह कहा जाता है कि असली शूरवीर वही होते हैं, जो युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन वे खुद को इस परिभाषा में नहीं बांधते। दूसरी ओर, कायर लोग जब शत्रु को युद्ध के मैदान में देखते हैं, तब वे केवल अपने साहस का बखान करते हैं और अपनी वीरता का ढिंढोरा पीटते हैं। असली साहस युद्ध के समय ही प्रकट होता है।
पढ़ें: तुलसीदास का जीवन परिचय।
तुलसीदास का मीठे वचन पर दोहा
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।
अर्थ: तुलसीदास जी समझाते हैं कि मीठे वचन चारों ओर सुख का संचार करते हैं। ये वचन किसी को भी अपने वश में करने का एक शक्तिशाली मंत्र होते हैं। इसलिए मानव को चाहिए कि वह कठोर और कड़वे वचनों को छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करे, जिससे संबंधों में मधुरता और आनंद बढ़े।
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।
अर्थ: जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हित को ध्यान में रखते हुए शरण में आए हुए लोगों का त्याग कर देते हैं, वे वास्तव में निम्न और पापी होते हैं। ऐसे लोगों का दर्शन भी उचित नहीं होता, क्योंकि वे निस्वार्थता और करुणा से दूर होते हैं।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण।
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा दया को अपने साथ रखना चाहिए, क्योंकि दया धर्म का मूल है। इसके विपरीत, अहंकार सभी पापों की जड़ होता है। इसलिए, दया का अभ्यास करना और अहंकार को त्यागना आवश्यक है।
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी बताते हैं कि समय बहुत ही शक्तिशाली होता है, और वही व्यक्ति को छोटा या बड़ा बना देता है। जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय बुरा हुआ, तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर सके। यह दर्शाता है कि समय की अनिश्चितता के कारण किसी भी व्यक्ति की स्थिति बदल सकती है।
रामायण के दोहे
राजिव नयन धरे धनु सायक।
भगत बिपति भंजन सुखदायक॥
अर्थ: रामायण के इस दोहे में हम भगवान राम की महिमा का गुणगान करते हैं, जो अपने भक्तों की कठिनाइयों को दूर करते हैं और उनके जीवन को खुशियों से भर देते हैं।
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज्य नहिं काहुहिं ब्यापा॥
अर्थ: रामायण का यह दोहा बताता है कि राम के राज में किसी भी प्रकार का दुख नहीं होता, और सभी लोग खुशी-खुशी रहते हैं।
रामकथा सुंदर करतारी।
संसय बिहग उड़वन्हि हारी॥
अर्थ: रामायण का यह दोहा रामकथा की शक्ति और सुंदरता को उजागर करता है, जो सभी संदेहों को समाप्त करता है और मन में सरलता तथा शांति लाता है।
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होहि तात तुम्ह पाहीं॥
अर्थ: रामायण का यह दोहा भगवान की शक्ति का गुणगान करता है। भगवान की कृपा से, इस दुनिया में सब कुछ संभव है।
राम सुमिर सुमिर सुखु होई।
दुख लहहिं दरिद्रता लोई॥
अर्थ: रामायण का यह दोहा बताता है कि भगवान राम को निरंतर याद करने से आनंद की प्राप्ति होती है और लोगों के दुख एवं गरीबी दूर हो जाते हैं।
रहीम दास के दोहे (Dohe by Rahim in Hindi)
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय॥
अर्थ: रहीम यह बताते हैं कि प्रेम का संबंध बहुत ही नाजुक होता है, जिसे जोर से झटका देकर तोड़ना ठीक नहीं होता। अगर यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाए, तो उसे फिर से जोड़ना मुश्किल होता है। और यदि किसी तरह जोड़ भी दिया जाए, तो उसमें एक गाँठ अवश्य पड़ जाती है, जो संबंध को पहले जैसा नहीं रहने देती।
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।
अर्थ: यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।
अर्थ: रहीम यह समझाते हैं कि जिस प्रकार खीरे का कड़वापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटकर उस पर नमक लगाकर घिसा जाता है, वैसे ही कड़वे वचन बोलने वाले व्यक्ति के लिए यही उचित सजा है। कटु वचन बोलने वालों को उनकी कठोरता का एहसास कराने के लिए उन्हें सही ढंग से सुधारना चाहिए।
पढ़ें: रहीमदास का जीवन परिचय।
Class-wise Dohe in Hindi with Hindi Meaning
आगे Hindi में Class-wise दोहे उनकी Hindi Meaning सहित दिए जा रहें हैं-
कक्षा 6 के दोहे – Class 6 Dohe in Hindi
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर॥
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि माला फेरते-फेरते समय तो बीत जाता है, लेकिन मन का भ्रम मिट नहीं पाता। इसलिए उनका मानना है कि माला फेरने के बजाय, हमें अपने मन को सही दिशा में लाने का प्रयास करना चाहिए। अपने विचारों में सात्विकता को समाहित करके ही हम समाज में सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
भावार्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना या समाप्त करना उचित नहीं है। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो उसे फिर से जोड़ना कठिन हो जाता है। और यदि जुड़ भी जाए, तो टूटे हुए धागों के बीच में गांठ पड़ जाती है।
कक्षा 7 के दोहे – Class 7 Dohe in Hindi
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।
रहीम कहते हैं कि जब हमारे पास धन और संपत्ति होती है, तो हमारे चारों ओर बहुत से मित्र और रिश्तेदार हो जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति संकट के समय हमारी सहायता करता है, वही सच्चा मित्र होता है। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि असली मित्रता धन और संपत्ति से नहीं, बल्कि कठिनाइयों में साथ देने से सिद्ध होती है।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह॥
व्याख्या: रहीम कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए जाल को जल में डाला जाता है, तो जल अपने मोह को छोड़कर शीघ्रता से जाल से बह जाता है। इसके विपरीत, मछलियाँ जल से अपने प्रेम को समाप्त नहीं कर पातीं। जब वे जल से अलग हो जाती हैं, तो वे तड़प-तड़प कर मर जाती हैं। यह संदेश प्रेम और संबंधों की जटिलता को दर्शाता है, यह बताते हुए कि एकतरफा प्रेम हमेशा दुख और पीड़ा का कारण बनता है।
कक्षा 8 के दोहे – Class 8 Dohe in Hindi
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-संचहि सुजान॥
संदेश: रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते और सरोवर स्वयं पानी नहीं पीते, ठीक उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति धन का संचय अपने लिए नहीं, बल्कि परोपकार के लिए करते हैं।
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
व्याख्या: रहीम कवि कवि कहते हैं कि पानी बहुत महत्वपूर्ण है बिना पानी के सब कुछ व्यर्थ है। मोती का पानी उतर जाए अर्थात उसकी चमक चली जाए तो उसका मूल्य कुछ भी नहीं रह जाता। इसी तरह मनुष्य को भी अपना सम्मान अर्थात पानी बनाए रखना चाहिए। लज्जा के अर्थ में भी पानी शब्द का प्रयोग होता है। इसके बिना जीवन व्यर्थ है। तीसरे उदाहरण में कवि कहते हैं कि यदि चून अर्थात् चूने में पानी ना डाला जाए तो वह किसी काम का नहीं होता। चून का एक अर्थ आटा भी होता है। आटे में भी पानी डालने पर ही गूंदकर रोटियां बनती हैं। इस दोहे पानी के तीन अर्थ लिए गए हैं -आभा या चमक। दूसरा अर्थ है सम्मान और तीसरा अर्थ है साधारण जल। अर्थात एक ही शब्द में दो से अधिक अर्थ चिपके हों तो वहां श्लेष अलंकार होता है, श्लेष शब्द का अर्थ होता है चिपकना।
कक्षा 9 के दोहे – Class 9 Dohe in Hindi
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
संदेश: रहीम ने यह संदेश दिया है कि प्रेम और संबंधों को संभालकर रखना आवश्यक है, क्योंकि एक बार टूटने के बाद उन्हें फिर से स्थापित करना मुश्किल होता है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपाकर रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी और को पता चलता है, तो लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं। कोई भी व्यक्ति आपके दर्द को साझा नहीं कर सकता, अर्थात कोई भी आपके दर्द को कम नहीं कर सकता। इस संदेश से यह स्पष्ट होता है कि अपनी भावनाओं को समझने और संभालने की जिम्मेदारी हमें स्वयं लेनी चाहिए।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य करना चाहिए, क्योंकि जब एक काम पूरा होता है, तो उससे कई अन्य काम अपने आप पूरे हो जाते हैं। यदि आप एक साथ कई लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, तो कुछ भी हासिल नहीं होगा, क्योंकि आप सभी कार्यों में अपना शत-प्रतिशत नहीं दे सकते। यह स्थिति उस पौधे के समान है, जिसमें फूल और फल तभी आते हैं जब उसकी जड़ में उसे तृप्त करने जितना पानी डाला जाता है। अर्थात, जब पौधे को पर्याप्त पानी मिलेगा, तभी उसमें फल और फूल खिलेंगे। इस संदेश से यह स्पष्ट होता है कि ध्यान केंद्रित करना और पूर्णता से कार्य करना ही सफलता की कुंजी है।
कक्षा 10 के दोहे – Class 10 Dohe in Hindi
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था, तो वे चित्रकूट में रहने गए थे। वे यह भी बताते हैं कि चित्रकूट बहुत घना और अंधेरा वन था, जो रहने के लिए उपयुक्त नहीं था। लेकिन रहीम कहते हैं कि ऐसी जगह पर वही व्यक्ति रहता है, जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। इसका अभिप्राय यह है कि विपत्ति के समय, व्यक्ति किसी भी कठिन काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि संकट के समय में लोग साहस और धैर्य से कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं।
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
व्याख्या: रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हों, लेकिन उनके अर्थ बहुत गहरे और विचारशील होते हैं। जैसे कोई नट अपने करतबों के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार लेता है, जिससे वह छोटा लगने लगता है। इस उदाहरण से उनका तात्पर्य है कि किसी के आकार को देखकर उसकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि आंतरिक मूल्य और क्षमता को बाहरी रूप-रंग से नहीं आंका जाना चाहिए।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला थोड़ा सा पानी ही धन्य है, क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। वहीं, सागर का जल, जो अत्यधिक मात्रा में है, व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पाता। इसका तात्पर्य यह है कि बड़े होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता यदि आप किसी की सहायता नहीं कर सकते। यह संदेश हमें सिखाता है कि वास्तविक मूल्य उस प्रभाव में है, जो हम दूसरों के जीवन में डालते हैं, न कि हमारे पास मौजूद संसाधनों की मात्रा में।
कक्षा 11 के दोहे – Class 11 Dohe in Hindi
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत की ध्वनि से प्रभावित होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है, अर्थात अपने शरीर को सौंप देता है, उसी तरह कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना धन और अन्य संसाधन उन्हें दे देते हैं। लेकिन रहीम यह भी कहते हैं कि कुछ लोग पशु से भी बदतर होते हैं, जो दूसरों से बहुत कुछ ले लेते हैं, लेकिन बदले में कुछ भी नहीं देते। इसका तात्पर्य यह है कि जब कोई व्यक्ति आपको कुछ देता है, तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ प्रदान करें। यह संदेश हमें आपसी रिश्तों और सहयोग की महत्ता का एहसास कराता है।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि जब कोई बात एक बार बिगड़ जाती है, तो लाख कोशिशों के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह स्थिति उस उदाहरण के समान है, जिसमें दूध एक बार फट जाने पर, उसे मथने से मक्खन नहीं निकलता। इसका तात्पर्य यह है कि हमें किसी भी कार्य को करने से पहले कई बार सोचना चाहिए, क्योंकि एक बार कोई बात बिगड़ जाए, तो उसे सुलझाना बहुत कठिन हो जाता है। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि निर्णय लेने में विवेक और सावधानी जरूरी है, ताकि भविष्य में पछतावा न हो।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़ी चीज़ को देखकर छोटी चीज़ की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अर्थात, बड़ी चीज़ के होने पर छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज़ की आवश्यकता होती है, वहाँ बड़ी चीज़ बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है, वहाँ तलवार का कोई उपयोग नहीं होता। इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हर एक चीज़ का अपनी-अपनी जगह पर महत्त्व होता है। यह संदेश हमें सिखाता है कि हर वस्तु और व्यक्ति का मूल्य है, और हमें उनके योगदान को पहचानना चाहिए।
कक्षा 12 के दोहे – Class 12 Dohe in Hindi
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
व्याख्या: रहीम जी कहते हैं कि जब आपके पास धन नहीं होता, तो विपत्ति के समय कोई भी आपकी सहायता नहीं करता। यह स्थिति उस उदाहरण के समान है, जिसमें यदि तालाब सूख जाता है, तो कमल को सूर्य जैसा प्रतापी भी नहीं बचा पाता। इसका तात्पर्य यह है कि धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है, क्योंकि मुश्किल समय में कोई भी किसी का साथ नहीं देता। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि आर्थिक स्थिति का महत्व है, और हमें अपनी सुरक्षा के लिए धन का संचित करना चाहिए।
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
व्याख्या: इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पहले अर्थ में, पानी का मतलब विनम्रता से है, और रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होनी चाहिए। दूसरे अर्थ में, पानी का संबंध आभा, तेज या चमक से है, क्योंकि इसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं होता। तीसरे अर्थ में, पानी को जल के रूप में दर्शाया गया है, जिसे आटे (चून) से जोड़ा गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता, और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं होता, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है।