हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets) किसे कहते हैं?
हिन्दी भाषा में वर्णों के व्यवस्थित समूह को हिन्दी वर्णमाला कहते हैं। हिंदी Varnamala में शामिल कुल वर्णों की संख्या 52 हैं। हिन्दी व्याकरण में पहले स्वर वर्ण तथा बाद में व्यंजन वर्ण आते हैं।
अ (a) | आ (aa) | इ (i) | ई (ee) | उ (u) | ऊ (oo) |
ऋ (ri) | ए (e) | ऐ (ai) | ओ (o) | औ (au) | अं (an) |
अः (ah) | क (ka) | ख (kha) | ग (ga) | घ (gha) | ङ (nga) |
च (cha) | छ (chha) | ज (ja) | झ (jha) | ञ (nya) | ट (ta) |
ठ (tha) | ड (da) | ढ (dha) | ण (na) | त (ta) | थ (tha) |
द (da) | ध (dha) | न (na) | प (pa) | फ (pha) | ब (ba) |
भ (bha) | म (ma) | य (ya) | र (ra) | ल (la) | व (va) |
श (sha) | ष (sha) | स (sa) | ह (ha) | क्ष (ksha) | त्र (tra) |
ज्ञ (gya) | श्र (sra) | ड़ (ḍa) | ढ़ (ḍha) | – | – |
वर्ण क्या हैं? हिंदी भाषा की सबसे छोटी लिखित इकाई वर्ण कहलाती है। या देवनागरी लिपि में भाषा की सबसे छोटी इकाई को ही वर्ण कहते हैं। दूसरे शब्दों में ‘स्वर एवं व्यंजन के सम्मिलित रूप को ही वर्ण कहा जाता है।’
वर्णमाला क्या है? परिभाषा
वर्णमाला (Alphabets) किसी भाषा के वर्णों की व्यवस्थित समूह होता है। जैसे- हिन्दी वर्णमाला, इसका उपयोग देवनागरी लिपि को पढ़ने, लिखने और हिन्दी भाषा को सीखने के लिए किया जाता है।
हिंदी वर्णमाला में वर्णों या अक्षरों की संख्या
हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल 52 वर्ण होते हैं- 11 स्वर, 2 आयोगवाह (अं, अः), 33 व्यंजन (क् से ह् तक), 2 उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़, ढ़), 4 संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र)। भिन्न-भिन्न प्रकार से Hindi Varnamala में वर्णों की संख्या निम्न है-
- मूल या मुख्य वर्ण – 44 (11 स्वर, 33 व्यंजन) – “अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।
- उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण – 45 (10 स्वर, 35 व्यंजन) – “ऋ, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।
- लेखन के आधार पर वर्ण – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
- मानक वर्ण – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
- कुल वर्ण – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
इस प्रकार मूल वर्णों की संख्या चवालीस (44) है। जबकि उच्चारण के आधार पर कुल 45 वर्ण होते हैं, जिनमें दस (10) स्वर, तैतीस (33) व्यंजन और दो (2) द्विगुण व्यंजन (ड़, ढ़) शामिल हैं। वहीं, कुल वर्ण या मानक वर्ण या लेखन के आधार पर Hindi Varnamala में 52 वर्ण होते हैं, जिसमें ग्यारह (11) स्वर, दो (2) आयोगवाह, तैतीस (33) व्यंजन, दो (2) द्विगुण व्यंजन और चार (4) संयुक्त व्यंजन शामिल होते हैं।
भारत सरकार के अनुसार मान्यता प्राप्त मानक हिंदी वर्णमाला में भी 52 वर्ण होते हैं।
यदि आपको हिंदी वर्णमाला चार्ट PDF प्रारूप में चाहिए, तो आप इसे यहाँ Download सकते हैं (Download Hindi varnamala pdf chart)। इस चार्ट में देवनागरी लिपि में हिंदी वर्णमाला को स्पष्ट और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया गया है। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो मेरा संपर्क विवरण Contact us पृष्ठ पर मिल जाएगा। किसी भी प्रश्न या समस्या के लिए मुझसे संपर्क करने में संकोच न करें।
हिंदी वर्णमाला का विभाजन (Hindi Varnamala Ka Vibhajan)
हिन्दी वर्णमाला (Hindi Alphabet) के वर्णों को हिंदी व्याकरण में तीन (3) भागों में विभाजित किया गया है। जो निम्नलिखित प्रकार से हैं-
आगे Hindi varnamala के ‘स्वर’, ‘व्यंजन’ और ‘आयोगवाह’ के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है-
स्वर वर्ण
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से या बिना रुकावट के या बिना अवरोध के किया जाये और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे ‘स्वर वर्ण‘ कहलाते है। हिन्दी वर्णमाला में स्वर संख्या में कुल 11 हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। पहले स्वरों की संख्या 13 थी, क्यूंकि आयोगवाह “अं और अः” को भी स्वरों में ही गिना जाता था।
स्वर और उनकी मात्राएं:
- अ
- आ ( ा )
- इ ( ि )
- ई ( ी )
- उ ( ु )
- ऊ ( ू )
- ऋ ( ृ )
- ए ( े )
- ऐ ( ैै )
- ओ ( ो )
- औ ( ौ )
स्वरों का वर्गीकरण
Hindi की Varnmala में स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है-
- मात्रा / कालमान / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
- व्युत्पत्ति / स्रोत / बुनावट के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
- प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
1. मात्रा / कालमान / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
मात्रा का अर्थ ‘उच्चारण करने में लगने वाले समय’ से होता है। हिन्दी वर्णमाला में मात्रा या कालमान या उच्चारण आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं- ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर, और प्लुत स्वर।
- ह्रस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
ह्रस्व स्वर (Hrasva Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 1 होती है। ह्रस्व स्वर हिन्दी में चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। ह्रस्व स्वर को छोटी स्वर या एकमात्रिक स्वर या लघु स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर (Deergh Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 2 होती है। दीर्घ स्वर हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर को बड़ा स्वर या द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
प्लुत स्वर (Plut Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने, पुकारने या चिंता-मनन करने में किया जाता है। जैसे – आऽऽ, ओ३म्, राऽऽम आदि। इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं होती है। किन्तु कुछ भाषाविद इनकी संख्या 8 निर्धारित करते हैं।
प्लुत स्वर मूलरूप से संस्कृत के स्वर स्वर हैं। ये हिंदी के स्वर नहीं हैं। ये हिंदी में केवल त्रिमात्रिक के रूप में प्रयोग होते हैं। इसलिए हम इन्हें हिंदी में भी मान्यता देते हैं।
यह त्रिमात्रिक स्वर है, क्योंकि इसमें तीन मात्राएँ होती हैं। इसलिए प्लुत स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना तथा दीर्घ स्वर से ज्यादा समय लगता है।
पहिचान– जिनमें ३ चिन्ह आता है वे संस्कृत शब्द; तथा जिनमें ऽ का प्रयोग हो वे हिंदी शब्द होते हैं।
2. व्युत्पत्ति / स्रोत / बुनावट के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
इनकी कुल संख्या 11 है। हिन्दी वर्णमाला में व्युत्पत्ति या स्रोत या बुनावट के आधार पर स्वरों को दो भागों में विभाजित किया जाता है- १. मूल स्वर, २. संधि स्वर। संधि स्वर को पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है- १. दीर्घ या सजातीय या सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर।
- मूल स्वर
- संधि स्वर
मूल स्वर (शांत स्वर या स्थिर स्वर)
मूल स्वर ऐसे स्वरों को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति की कोई जानकारी नहीं होती हैं। मूल स्वरों को ही शांत स्वर या स्थिर स्वर भी कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है- अ, इ, उ, ऋ।
संधि स्वर
इनकी कुल संख्या 7 है। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है- १. दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर।
- दीर्घ या सजातीय या सवर्ण या समान स्वर
- संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर
दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर
जब दो सजातीय या समान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो नया स्वर बनाता है उसे दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 3 है- आ, ई, ऊ।
संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर
जब दो विजातीय या भिन्न या असमान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो नया स्वर बनाता है उसे संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है- ए, ऐ, ओ, औ।
3. प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार
हिन्दी की वर्णमाला में प्रयत्न के आधार पर अर्थात जीभ के स्पर्श से उच्चारित होने वाले स्वर को तीन भागों में बाँटते हैं- १. अग्र स्वर, २. मध्य स्वर, ३. पश्च स्वर।
- अग्र स्वर
- मध्य स्वर
- पश्च स्वर
अग्र स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग काम करता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है। ये स्वर निम्न हैं – इ, ई, ए, ऐ।
मध्य स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग काम करता है उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 1 है। ये स्वर निम्न है – अ।
पश्च स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग काम करता है उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 5 है। ये स्वर निम्न है – आ, उ, ऊ, ओ, औ।
आगत स्वर
आगत स्वर अरबी-फारसी के प्रभाव से आए हैं। हिन्दी की वर्णमाला में इनकी संख्या केवल और केवल एक (1) है। आगत स्वर का उच्चारण आ तथा ओ के बीच में होता है। ये स्वर है – ऑ ( ॉ )। शब्दों में इसका प्रयोग जैसे- डॉक्टर, डॉलर आदि।
व्यंजन वर्ण
जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे वर्ण ‘व्यंजन वर्ण‘ कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन की कुल संख्या 39 हैं – क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; श्र ड़ ढ़।
- स्पर्शीय या वर्गीय व्यंजन : संख्या में 25 होते हैं-
- क ख ग घ ङ (क वर्ग)
- च छ ज झ ञ (च वर्ग)
- ट ठ ड ढ ण (ट वर्ग)
- त थ द ध न (त वर्ग)
- प फ ब भ म (प वर्ग)।
- अन्तःस्थ व्यंजन : संख्या में चार होते हैं- य र ल व।
- उष्म या संघर्षी व्यंजन : भी संख्या में चार होते हैं- श ष स ह।
- संयुक्त व्यंजन : भी संख्या में चार होते हैं- क्ष त्र ज्ञ श्र।
- उत्क्षिप्त व्यंजन : संख्या में दो होते हैं- ड़ ढ़।
व्यंजन शब्द “वि + अंजन” (यण संधि) से मिलकर बना है। यहाँ वि का अर्थ ‘सा’ और अंजन का अर्थ ‘जुड़ना’। अर्थात साथ में जुड़ना; जैसे – क् + अ = क। अर्थात स्वर की सहायता से जिन वर्णों का उच्चारण किया गया, वह वर्ण व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन वर्ण के मूल एवं मुख्य तीन भेद हैं – स्पर्श, अंतःस्थ, ऊष्म।
(अवश्य पढ़ें: वर्ण विच्छेद)
व्यंजन के भेद
Hindi Varnamala में व्यंजन के तीन मूल एवं मुख्य भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
- अन्तःस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन
1. स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
इन वर्णों के उच्चारण करते समय मुख के किसी ना किसी भाग का स्पर्श अवश्य होता है। हिन्दी वर्णमाला में इसलिए इन्हें स्पर्शीय व्यंजन कहते हैं। स्पर्श होने वाले व्यंजन वर्णों को जब पांच भागों या वर्गों में बाँटा जाता है, तब यह वर्गीय व्यंजन के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दी वर्णमाला में मूल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की संख्या 16 है। कुल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की संख्या 25 है।
वर्गीय व्यंजन
स्पर्शी व्यंजन वर्णों को उच्चारण के आधार पर 5 भागों में वर्गीकृत किया गया है, इन्हीं पाँच वर्गों को संयुक्त रूप में ‘वर्गीय व्यंजन’ कहते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार से हैं-
- क वर्ग: क ख ग घ ड़ (उच्चारण स्थान – कंठ)
- च वर्ग: च छ ज झ ञ (उच्चारण स्थान – तालू)
- ट वर्ग: ट ठ ड ढ ण (उच्चारण स्थान – मूर्धा)
- त वर्ग: त थ द ध न (उच्चारण स्थान – दन्त)
- प वर्ग: प फ ब भ म (उच्चारण स्थान – ओष्ठय्)
2. अन्तःस्थ व्यंजन
जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण करनें में वायु का अवरोध कम हो, उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनकी कुल संख्या 4 है।
अन्तस्थ निम्न चार हैं – य, र, ल, व
अर्द्ध स्वर या संघर्षहीन
इन ध्वनियों के उच्चारण में उच्चारण अवयवों में कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता तथा श्वासवायु अनवरोधित रहती है। हिन्दी वर्णमाला में (य, व)अर्धस्वर हैं।
लुंठित/प्रकंपित व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला में केवल ‘र्‘ लुंठित प्रकंपित व्यंजन है। कंपन के साथ उच्चारण करते समय जीव्हा की स्थिति गोल बनती है, इसलिए इसे लुंठित प्रकंपित व्यंजन कहते है। जैसे – राजा ।
पार्श्विक व्यंजन
हिन्दी की वर्णमाला में केवल ‘ल‘ व्यंजन पार्श्विक है। उच्चारण करते समय जीभ के दोनों तरफ से वायु का निष्कासन होता है, इसलिए इसे पार्श्विक व्यंजन कहते हैं। जैसे – लालू, कालू आदि।
3. उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन
जिन वर्णों का उच्चारण अत्यधिक संघर्ष के साथ ज्यादा ऊष्मा का प्रयोग हो तब वह व्यंजन उष्म या संघर्षी व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन वर्णों की संख्या 4 चार है।
उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन निम्न चार हैं – श, ष, स, ह।
काकल्य व्यंजन या काकलीय व्यंजन
हिन्दी की वर्णमाला में केवल ‘ह‘ व्यंजन काकल्य है। काकलीय व्यंजन या काकल्य व्यंजन (Glottal consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिनका उच्चारण प्रमुख रूप से कण्ठद्वार के प्रयोग द्वारा किया जाता है।
व्यंजन वर्णों के अन्य रूप
द्विगुण व्यंजन / उत्क्षिप्त व्यंजन / ताड़नजात व्यंजन / फेका हुआ व्यंजन
जो व्यंजन वर्ण दो गुणों से मिलकर बना हो उसे द्विगुण व्यंजन कहते हैं। द्विगुण व्यंजन कब और कहाँ प्रयोग होते हैं, इस आधार पर इनके नाम उत्क्षिप्त या ताड़नजात हैं।
द्विगुण व्यंजन को जीव्हा के स्पर्श से मुँह बाहर तेजी से फेंक देते हैं, इसलिए इसको फेंका हुआ व्यंजन भी कहते हैं।
हिन्दी की वर्णमाला में इनकी केवल और केवल कुल संख्या 2 है – ड़, ढ़।
इनका प्रयोग या यह हमेशा किसी भी शब्दों के बीच में या अंत में आते हैं। यह कभी भी आरम्भ में नहीं आते हैं। जैसे – पढ़ना, लड़ना, घड़ा, चढ़ाना, आदि।
यदि ड़, ढ़, किसी भी आधे या कोई भी आधे वर्णों के साथ जुड़कर किसी भी शब्दों के बीच में आये तब उनमें नुक्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैसे –
मंडल या मण्डल, पंडित या पण्डित
द्विगुण व्यंजन का प्रयोग कभी भी अंग्रेजी शब्दों के साथ नहीं होता है। जैसे – रोड़, रीड़, इत्यादि।
नुक़्ता
ड़, ढ़, के नीचे जो बिंदु है उसे नुक्ता कहते हैं। नुक्ता का अर्थ आधा “न्” होता है, जिसका प्रयोग शब्दों पर जोर देनें के लिए होता है। किन्तु अनुस्वार में प्रयुक्त आधे “न्” का प्रयोग शब्दों पर जोर देनें के लिए कभी नहीं होता है।
हिन्दी वर्णमाला में मूल रूप से ‘नुक़्ता‘ अरबी, फारसी के प्रभाव से आये हैं। नुक़्ते ऐसे व्यंजनों को बनाने के लिए प्रयोग होते हैं जो पहले से मूल लिपि में न हों, जैसे कि ‘ढ़’ मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न ही यह संस्कृत में पाया जाता है।
आगत व्यंजन
हिन्दी में अंग्रेजी तथा उर्दू के प्रभाव से आए हुए व्यंजन वर्णों का शुद्ध उच्चारण करने के लिए व्यंजन वर्ण के नीचे एक बिन्दु लगाया जाता है, जिसे नुक़्ता कहते हैं। नुक्ता लगे हुए व्यंजन वर्णों को ही आगत व्यंजन कहते हैं। इनकी मूल संख्या 5 तथा कुल संख्या 6 है।
मूल संख्या 5 = क़ ख़ ग़ ज़ फ़
कुल संख्या 6 =अ, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ (अ वर्ण नुक़्ता सहित टाइप नहीं हुआ)
नोट– चार या पांच या उससे ज्यादा वर्ण वाले शब्दों में यदि दो से अधिक बार आगत व्यंजन का प्रयोग हो तो दूसरे वर्ण पर नुक़्ता का प्रयोग करते हैं।
द्वित्व व्यंजन
जब किसी भी शब्द में एक ही व्यंजन दो बार आये किन्तु पहले वाला आधा हो और दूसरे वाला उसी का आधे से ज्यादा हो, तब उस वर्ण को द्वित्व व्यंजन कहते हैं।
द्वित्व व्यंजन में अधिकतर तीन अक्षर निर्मित शब्द ही आते हैं। जैसे – पत्ता, बच्चा, कुत्ता, बिल्ली, दिल्ली, रसगुल्ला, इत्यादि।
सयुंक्त व्यंजन
वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन चार को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-
- क्ष = क्+ष
- त्र = त्+र
- ज्ञ = ज्+ञ
- श्र = श्+र
कुछ लोग क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं, अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता है, परंतु वर्तमान में इन्हें हिन्दी वर्णमाला में गिना जाता है।
आयोगवाह
अयोगवाह हमेशा स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है, क्यूंकि यह स्वयं में अयोग्य है; सिर्फ साथ चलने में सहयोगी है। हिन्दी वर्णमाला में इसके दो रूप होते हैं – अनुस्वार और विसर्ग।
- अनुस्वार
- विसर्ग
अनुस्वार (ां)
अनुस्वार हमेशा स्वर के बाद आता है। व्यंजन वर्ण के बाद या व्यंजन वर्ण के साथ अनुस्वार और विसर्ग का प्रयोग कभी नहीं होता है; क्यूंकि व्यंजन वर्णों में पहले से ही स्वर वर्ण जुड़े होते हैं। जैसे – कंगा, रंगून, तंदूर।
अनुस्वार की संख्या 1 है – अं। इसमें ऊपर लगी हुई बिंदु का अर्थ आधा “न्” होता है।
विसर्ग (ाः)
विसर्ग हमेशा स्वर के बाद आता है। विसर्ग का उच्चारण करते समय “ह / हकार” की ध्वनि आती है। इनकी भी संख्या एक है- अः।
विसर्ग प्रयुक्त सभी शब्द संस्कृत अर्थात तत्सम शब्द माने जाते हैं – जैसे स्वतः, अतः, प्रातः, दुःख, इत्यादि।
अनुस्वार और विसर्ग लेखन की दृष्टि से स्वर और उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं। इन दोनों का योग ना ही स्वर के साथ होता है और नाही व्यंजन के साथ, इसीलिए इन्हें ‘आयोग’ कहते हैं, फिर ये एक अलग अर्थ का वहन करते हैं, इसीलिए “आयोगवाह” कहलाते हैं।
अनुनासिक
हिन्दी वर्णमाला में अनुनासिक वर्ण दो प्रकार के होते हैं –
- चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )
- चन्द्रबिन्दु ( ाँ )
चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )
चंद्र अंग्रेजी के स्वर चिन्ह हैं। क्यूंकि इनका प्रयोग अंग्रेजी के शब्दानुसार किया जाता है।
चंद्र/स्वनिम चिन्ह के प्रयोग के निम्न नियम हैं –
यह अंग्रेजी के मूल शब्दों के साथ प्रयोग में आता है; परिवर्तित शब्दों के साथ कभी भी प्रयोग नहीं होता है। जैसे – पोलिस (मूल शब्द) , पुलिस (परिवर्तित शब्द)
जब अंग्रेजी वर्ण O के पहले और बाद में कोई अन्य अंग्रेजी का वर्ण अवश्य हो परन्तु O कभी ना हो; तब अधिकतर चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ ) का प्रयोग करते हैं।
जैसे – डॉक्टर, हॉट, बॉल, कॉफी, कॉपी आदि।
चन्द्रबिन्दु ( ाँ )
चन्द्रबिन्दु के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।
जब उच्चारण शुद्ध नासिक हो, वहाँ पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करें, जैसे वहाँ, जहाँ, हाँ, काइयाँ, इन्साँ, साँप, आदि।
चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिंदु का प्रयोग
जहाँ पर ऊपर की ओर आने वाली मात्राएँ (ि ी े ै ो ौ) आएँ, वहाँ पर चन्द्रबिन्दु के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग करें। जैसे भाइयों, कहीं, मैं, में, नहीं, भौं-भौं, आदि।
इस नियम के अनुसार कहीँ, केँचुआ, सैँकड़ा, आदि शब्द ग़लत हैं।
अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर
अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग के कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे – हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
पंचमाक्षर
वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग के पांचवें वर्णों के समूह को ‘पंचमाक्षर या पञ्चमाक्षर‘ कहते हैं। देवनागरी में पंचमाक्षर की कुल संख्या 5 है – ङ, ञ, ण, न, म।
पंचमाक्षर से निर्मित शब्द जिन्हें अनुस्वार के स्थान पर प्रयोग किया गया है – गङ्गा – गंगा, दिनाङ्क – दिनांक, पञ्चम – पंचम, चञ्चल – चंचल, कण्ठ – कंठ, कन्धा – कंधा, कम्पन – कंपन आदि।
अनुस्वार को पंचमाक्षर में बदलने के नियम:
- यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- वाड्.मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रूप में नहीं लिखे जाते हैं।
- पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दुबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे – प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि के प्रसंन, अंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
- जिन शब्दों में अनुस्वार के बाद य, र, ल, व, ह आये तो वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है। जैसे – अन्य, कन्हैया आदि।
- यदि य , र .ल .व – (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह – (ऊष्म व्यंजन) से पहले आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही प्रयोग किया जाता है चूँकि ये व्यंजन किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं। जैसे – संशय, संयम आदि।
पंचम वर्णों के स्थान पर अनुस्वार:
अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् – ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है। अनुस्वार के चिह्न के प्रयोग के बाद आने वाला वर्ण क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे –
- गड्.गा – गंगा
- चञ़्चल – चंचल
- झण्डा – झंडा
- गन्दा – गंदा
- कम्पन – कंपन
वर्णमाला के वर्णों का उच्चारण स्थान
पंचमाक्षर के उच्चारण स्थान
पञ्चमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) के संयुक्त रूप से उच्चारण स्थान नासिक्य होता है। परन्तु अलग अलग पञ्चमाक्षरों का उच्चारण स्थान उपरोक्त सूची के अनुसार होता है।
हिन्दी वर्णमाला अंग्रेजी में (Hindi Varnamala in English)
आगे दी गई तालिका में हिन्दी वर्णमाला के प्रत्येक वर्ण की अंग्रेजी (English), प्रत्येक वर्ण से बनने वाला एक संबंधित हिन्दी शब्द, और उस हिन्दी शब्द का चित्र (Picture) दिया गया है:
हिंदी वर्णमाला | अंग्रेजी (English) में वर्णमाला | संबंधित शब्द | चित्र |
---|---|---|---|
अ | A | अनार | |
आ | AA | आम | |
इ | I | इमली | |
ई | EE | ईख | |
उ | U | उल्लू | |
ऊ | OO | ऊन | |
ऋ | RI | ऋषि | |
ए | E | एडी | |
ऐ | AI | ऐनक | |
ओ | O | ओखली | |
औ | OU | औरत | |
अं | AN | अंगूर | |
अः | AH | × | × |
क | KA | कबूतर | |
ख | KHA | खरगोश | |
ग | GA | गमला | |
घ | GHA | घडी | |
ङ | NGA | × | × |
च | CHA | चम्मच | |
छ | CHHA | छाता | |
ज | JA | जग | |
झ | JHA | झंडा | |
ञ | NYA | × | × |
ट | TA | टमाटर | |
ठ | THA | ठठेरा | |
ड | DA | डमरू | |
ढ | DHA | ढक्कन | |
ण | NA | × | × |
त | TA | तरबूज़ | |
थ | THA | थरमस | |
द | DA | दवा | |
ध | DHA | धनुष | |
न | NA | नल | |
प | PA | पतंग | |
फ | PHA, FA | फल | |
ब | BA | बकरी | |
भ | BHA | भालू | |
म | MA | मछली | |
य | YA | यज्ञ | |
र | RA | रस्सी | |
ल | LA | लड़की | |
व | VA | वरगद | |
श | SHA | शलगम | |
ष | SHA | षटकोण | |
स | SA | सपेरा | |
ह | HA | हल | |
क्ष | KSHA | क्षत्रिय | |
त्र | TRA | त्रिशूल | |
ज्ञ | GYA | ज्ञानी |
Learn: Hindi Varnamala in English
हिंदी वर्णमाला लिखना कैसे सीखें?
आपने अब तक सीखा कि हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabet) क्या होती है? अब अभ्यास का समय है! आइए, जानते हैं कि को हिंदी वर्णमाला लिखना कैसे सीखा जाए। इसके लिए हमने कुछ स्वर और व्यंजन की Worksheet तैयार की हैं।
Download: Hindi varnamala Worksheet
बच्चों को हिंदी वर्णमाला कैसे सिखाएं?
हिंदी वर्णमाला सीखना बच्चों के लिए हिंदी भाषा की नींव है। इसे सीखनें के लिए आप रचनात्मक तरीकों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि-
- आसान अक्षरों से शुरुआत करें: सरल अक्षरों जैसे अ, आ, इ से शुरुआत करें। इन अक्षरों से शुरू होने वाले शब्दों और वस्तुओं को दिखाकर बच्चों को अक्षरों की ध्वनियाँ सिखाएं। जैसे, ‘अ’ से अनार, ‘आ’ से आम, और ‘इ’ से इमली।
- गीत, कविताएँ और खेल: बच्चों को वर्णमाला सिखाने के लिए गाने, कविताएँ और खेल का उपयोग करें। YouTube पर कई हिंदी वर्णमाला के गाने और कविताएँ उपलब्ध हैं, जो बच्चों को अक्षरों और उनकी ध्वनियों से परिचित कराने का एक बेहतरीन तरीका है।
- अभ्यास कराएं: बच्चों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें कागज और पेंसिल देकर अक्षरों को लिखने का अभ्यास करवाएं। इससे न केवल उनका लेखन कौशल बेहतर होगा बल्कि वे अक्षरों को जल्दी पहचानने भी लगेंगे।
इन तरीकों से आप बच्चों के लिए Hindi varnamala वहुत ही आसानी से समझा सकते हैं।
पढ़ें सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण (Hindi Grammar):
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