धातु रूप | तिड्न्त प्रकरण | संस्कृत धातु रुप प्रकरण
संस्कृत व्याकरण में क्रिया के मूल-रूप (तिड्न्त) को धातु (Verb) कहते हैं। धातुएँ ही संस्कृत भाषा में शब्दों के निर्माण अहम भूमिका निभाती हैं। धातुओं के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि मिलकर तथा सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द जैसे – संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि बनते हैं।
दूसरे शब्दों में- संस्कृत का लगभग हर शब्द धातुओं के रूप में अलग किया जा सकता है। जैसे- कृ, भू, मन्, स्था, अन्, गम्, ज्ञा, युज्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख Dhatu Roop हैं। ‘धातु’ शब्द स्वयं ही ‘धा‘ धातु में में ‘तिन्’ प्रत्यय जुड़कर बना है। इस प्रकार संस्कृत में ऐसी लगभग 3356 धातुएं हैं।
धातु रूप के उदाहरण (Examples of Dhatu Roop in Sanskrit)
कुछ प्रमुख Dhatu Roop के उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
- अस् (अस्ति) धातु रूप
- भू (भव्) धातु रूप
- गम् धातु रूप
- पठ् धातु रूप
- दृश् धातु रूप
- पिव् धातु रूप
- पत् धातु रूप
- दा (ददाति) धातु रूप
- कृ (करना) धातु रूप
- लिख् धातु रूप
- मिल् धातु रूप
- नाम धातु रूप
- वद् धातु रूप
- धाव् धातु रूप
- हन् धातु रूप
- हँस् धातु रूप
- खाद् धातु रूप
- रक्ष् धातु रूप
धातु-रूप का अध्ययन
हमारे संस्कृत के पाठ्यक्रम में अधिकतर परस्मैपद धातु रूप की 6 लकारों का अध्ययन किया जाता है- लट् लकार, लृट् लकार, लोट् लकार, लङ्ग् लकार, विधिलिङ्ग् लकार और लिट् लकार। संस्कृत व्याकरण में धातु रूप के अंतर्गत लट्, लङ्ग् लकार का प्रयोग तथा संज्ञा एवं सर्वनाम शब्द रूप के अनुरूप क्रिया के प्रथम, मध्यम एवं उत्तम पुरुषों का प्रयोग होता है।
संस्कृत में क्रिया (Verb in Sanskrit)
संस्कृत क्रिया or Sanskrit Verbs तीन व्यक्तियों में संयुग्मित होती है (जैसा कि अंग्रेजी में होता है।): पहला, दूसरा और तीसरा व्यक्ति। क्रियाओं के भी तीन संख्यात्मक रूप होते हैं: एकवचन, द्विवचन और बहुवचन। कोई भी क्रिया जो केवल दो वस्तुओं को संदर्भित करती है, उसमें से द्विवचन होता है।
तिड्न्त प्रकरण (धातु रूप)
धातु किसे कहते हैं? क्रिया वाचक प्रकृति को ही धातु (तिड्न्त ) कहते है। जैसे : भू, स्था, गम् , हस् आदि। संस्कृत में धातुओं की दस लकारे होती है।
संस्कृत की लकारे
संस्कृत में धातुओं (Dhatu in Sanskrit) की दस लकारे होती है। जो निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- लट् लकार (Present Tense)
- लोट् लकार (Imperative Mood)
- लङ्ग् लकार (Past Tense)
- विधिलिङ्ग् लकार (Potential Mood)
- लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic)
- लृट् लकार (Second Future Tense)
- लृङ्ग् लकार (Conditional Mood)
- आशीर्लिन्ग लकार (Benedictive Mood)
- लिट् लकार (Past Perfect Tense)
- लुङ्ग् लकार (Perfect Tense)
धातु रूप के तीन पुरुष होते है –
- प्रथम पुरुष (Third Person)
- मध्यम पुरुष (Second Person)
- उत्तम पुरुष (First Person)
उत्तम पुरुष में अस्मद् शब्द रूप उत्तम पुरुष में आते हैं। मध्यम पुरुष में युस्मद् शब्द रूप मध्यम पुरुष में आते हैं। जबकि प्रथम पुरुष में अन्य सभी रूप प्रथम पुरुष में आते हैं। अर्थात अस्मद् और युस्मद् रूपों को छोड़कर जो धातु रूप होते हैं उन्हें प्रथम पुरुष में रखा जाता है।
प्रत्येक पुरुष के तीन वचन होते हैं –
- एकवचन (Singular Number)
- द्विवचन (Dual Number)
- वहुवचन (Plural Number)
सभी विभक्तियों (धातु रूपों) को दो भागों में बांटा गया है-
- परस्मैपद
- आत्मेनपद
परस्मैपद के 9 रूप आत्मेनपद के 9 रूप मिलाकर प्रत्येक लकार में 18 रूप होते हैं। कुल 10 लकारें होती है। इस प्रकार कुल एक धातु की (10 *18) 180 विभक्तियाँ(धातु रूप) होती हैं।
Dhatu Roop Trick
धातु रूप लिखने की trick नीचे दी गई है। इस table से आप सभी प्रकार के धातु रूप आसानी से बना सकते हैं। हमारे पाठ्यक्रम में अधिकतर परस्मैपद धातु रूप की 6 लकारों का अध्ययन किया जाता है- लट् लकार, लृट् लकार, लोट् लकार, लङ्ग् लकार, विधिलिङ्ग् लकार और लिट् लकार।
परस्मैपद पद की सभी लकारों की धातु रूप सरंचना
1. लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ति | तस् (त:) | अन्ति |
मध्यम पुरुष | सि | थस् (थ:) | थ |
उत्तम पुरुष | मि | वस् (व:) | मस् (म:) |
2. लोट् लकार (अनुज्ञा, Imperative Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यम पुरुष | हि | तम् | त |
उत्तम पुरुष | आनि | आव | आम |
3. लङ्ग् लकार (भूतकाल, Past Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
4. विधिलिङ्ग् लकार (चाहिए के अर्थ में, Potential Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | यात् | याताम् | युस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यातम् | यात |
उत्तम पुरुष | याम् | याव | याम |
5. लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस् |
मध्यम पुरुष | तासि | तास्थस् | तास्थ |
उत्तम पुरुष | तास्मि | तास्वस् | तास्मस् |
6. लृट् लकार (भविष्यत्, Second Future Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यति | स्यतस् (स्यत:) | स्यन्ति |
मध्यम पुरुष | स्यसि | स्यथस् (स्यथ:) | स्यथ |
उत्तम पुरुष | स्यामि | स्याव: | स्याम: |
7. लृङ्ग् लकार (हेतुहेतुमद्भूत, Conditional Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यत् | स्यताम् | स्यन् |
मध्यम पुरुष | स्यस् | स्यतम् | स्यत् |
उत्तम पुरुष | स्यम | स्याव | स्याम |
8. आशीर्लिन्ग लकार (आशीर्वाद देना, Benedictive Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | यात् | यास्ताम् | यासुस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यास्तम् | यास्त |
उत्तम पुरुष | यासम् | यास्व | यास्म |
9. लिट् लकार (Past Perfect Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
1०. लुङ्ग् लकार (Perfect Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | द् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
आत्मेनपद पद की सभी लकारों की धातु रूप सरंचना
1. लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ते | आते | अन्ते |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
2. लोट् लकार (अनुज्ञा, Imperative Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ताम् | आताम् | अन्ताम् |
मध्यम पुरुष | स्व | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ऐ | आवहै | आमहै |
3. लङ्ग् लकार (भूतकाल, Past Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त | ताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | इ | वहि | महि |
4. विधिलिङ्ग् लकार (चाहिए के अर्थ में, Potential Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ईत | ईयाताम् | ईरन् |
मध्यम पुरुष | ईथास् | ईयाथाम् | ईध्वम् |
उत्तम पुरुष | ईय | ईवहि | ईमहि |
5. लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस |
मध्यम पुरुष | तासे | तासाथे | ताध्वे |
उत्तम पुरुष | ताहे | तास्वहे | तास्महे |
6. लृट् लकार (भविष्यत्, Second Future Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यते | स्येते | स्यन्ते |
मध्यम पुरुष | स्यसे | स्येथे | स्यध्वे |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहे | स्यामहे |
7. लृङ्ग् लकार (हेतुहेतुमद्भूत , Conditional Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यत | स्येताम् | स्यन्त |
मध्यम पुरुष | स्यथास् | स्येथाम् | स्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहि | स्यामहि |
8. आशीर्लिन्ग लकार (आशीर्वाद देना, Benedictive Mood) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | सीष्ट | सियास्ताम् | सीरन् |
मध्यम पुरुष | सीष्टास् | सीयस्थाम् | सीध्वम् |
उत्तम पुरुष | सीय | सीवहि | सीमहि |
9. लिट् लकार (Past Perfect Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ए | आते | इरे |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
10. लुङ्ग् लकार (Perfect Tense) की Dhatu Roop सरंचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त | आताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ए | वहि | महि |
धातुओं का वर्गीकरण (भेद) – धातु-विभाग
संस्कृत की सभी धातुओं को 10 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक भाग का नाम “गण (Conjugation) है।
Dhatu Roop List:
- भ्वादिगण
- अदादिगण
- ह्वादिगण (जुहोत्यादि)
- दिवादिगण
- स्वादिगण
- तुदादिगण
- तनादिगण
- रूधादिगण
- क्रयादिगण
- चुरादिगण
1. भ्वादिगण (प्रथम गण – First Conjugation)
लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् – इन चार लकारों में भ्वादिगी धातु के उत्तर में ‘अ’ होता है। ‘अ’ अंतिम वर्ण मे सदा युक्त होता है। लट्, लोट्, लङ्ग्, विधिलिङ्ग् लकार में निम्न धातुओं में भ्वादिगणीय परिवर्तन होते हैं –
दृश् – पश्य, शद् – शीय, घ्रा – जिघ्र, इष् – इच्छ, दाण – यच्छ, ऋ – ऋच्छ, सद् – सीद्, गम् – गच्छ, ध्मा – धम्,
स्था – तिष्ठ, सृ – धौ, पा – पिव्, यम – यच्छ, म्ना – मन आदि।
भ्वादिगण की प्रमुख धातुएँ
- भू-भव् (होना, to be)
- गम्-गच्छ (जाना, to go)
- पठ् धातु (पढना, to read)
- दृश् (देखना, to see)
- पा-पिव् (पीना, to drink)
- जि (जीतना, to win)
- घ्रा-जिघ्र (सूँघना, to smell)
- पत् (गिरना, to fall)
- वस् (रहना/निवास करना, to dwell)
- वद् (बोलना, to speak)
- स्था-तिष्ठ (ठहरना/प्रतीक्षा करना, to stay / to wait)
- जि-जय् (जीतना, to conquer)
- क्रम्-क्राम् (चलना, to pace)
- सद्-सीद् (दु:ख पाना, to be sad)
- ष्ठिव्-ष्ठीव् (थूकना, to spit)
- दाण-यच्छ (देना, to give)
- लभ् (प्राप्त करना, to obtain)
- वृत् (वर्तमान रहना, to be / to exist)
- सेव् (सेवा करना, to nurse/ to worship)
- स्वनज् (आलिङ्गन् करना, to embrace)
- धाव् (उभयपदी) (दौडना /साफ़ करना, to run / to clean)
- गुह् (उभयपदी) (छिपाना, to hide)
2. अदादिगण (द्वितीय गण – Second Conjugation)
अदादिगण में गण चिह्न कुछ भी नहीं रहता है। धातु का अत्यंक्षर विभक्ति से मिल जाता है। जैसे –
- अद् + ति = अत्ति।
लट् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को, लोट् लकार के प्रथम पुरुष के एकवचन को और उत्तम पुरुष के तीनों वचनों को तथा लङ्ग् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को छोड़कर शेष विभक्तियों में ‘अस्‘ धातु के अकार का लोप हो जाता है। जैसे –
- अस्ति ⇒ स्त: ⇒ सन्ति
विधिलिंग की सभी विभक्तियों में अकार का लोप हो जाता है। जैसे-
- स्यात् ⇒ स्याताम् ⇒ स्यु:
‘अस्‘ धातु के लोट् लकार के मध्यमपुरुष एकवचन में एधि, हन् धातु के लोट् मध्यमपुरुष एकवचन में जहि और शास् धातु के लोट् मध्यमपुरुष एकवचन में शाधि रूप हो जाते है।
‘अस्‘ धातु लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् को छोड़कर अन्य लकारों में ‘भू’ हो जाता है और ‘भू’ धातु की ही तरह ‘अस्‘ धातु रूप होते है।
‘हन्‘ धातु के लट्, लोट् और लङ्ग् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन में ‘घ्नन्तु’ हो जाता है। जैसे –
- हन् + लट् + अन्ति = घ्नन्ति
- हन् + लोट् + अन्तु = घ्नन्तु
- हन् + लङ्ग् + अन् = अघ्नम्
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ए, आवहै, द्, स्, और अम् विभक्तियों में अदादिगणीय धातुओं के अन्त्य स्वर और आधा लघु स्वर का गुण होता है।
अदादिगण की प्रमुख धातुएं
- अद् (भोजन करना, to eat)
- अस् (होना, to be)
- हन् (मारना, to kill)
- विद् (जानना, to know)
- या (जाना, to go)
- रुद् (रोना, to weep)
- जागृ (जागना, to wake)
- इ (आना, to come)
- आस् (वैठना, to sit / stay)
- शी (सोना, to sleep)
- द्विष् (द्वेष करना, to hate) उभयपदी
- ब्रू (बोलना, to speak) उभयपदी
- दुह् (दूहना, to milk) उभयपदी
3. ह्वादिगण (जुहोत्यादि) (तृतीय गण – Third Conjugation)
- ह्वादिगण में चिन्ह नहीं लगता। इसमें धातुओं के पहले अक्षर का द्वित्व हो जाता है। द्वित्व होने पर प्रथमाक्षर में यदि दीर्घ स्वर रहे तो वह ह्रस्व हो जाता है और वर्ग का दूसरा वर्ण अपने वर्ग के प्रथम वर्ण में बदल जायेगा। चौथा वर्ण तीसरे वर्ण में बदल जायेगा। इसी तरह क-वर्ग, च-वर्ग में और हकार, च-वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जायेगा।
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – इन चारों में ह्वादिगणीय धातु अभ्यस्त होते है और लिट् में अभ्यस्त धातु के पूर्व भाग के जो सब कार्य निर्दिष्ट हुए हैं, वे सब ही होते हैं।
- ति, सि, मि, अति, तु, आव, आम, ऐ, आवहै, द्, स्, अम् – इनमें ह्वादिगणीय धातु के अन्त्य स्वर उपधा लघु स्वर का गुण हो जाता है।
- सबल (Strong) विभक्तियों में धातु के अंतिम स्वर का गुण होता है।
- लट् और लोट् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन (Third Person Plural) (अन्ति और अन्तु) विभक्ति के नकार का लोप हो जाता है।
- ‘भी’ धातु के रूप दुर्बल (Weak) विभक्तियों में विकल्प से ह्रस्व भी होते हैं। जैसे – विभित: और विभीत: दोनों।
- लङ्ग् लकार के प्रथम पुरुष वहुवचन (Third Person Plural) में ‘अन्‘ के स्थान पर ‘उस्‘ होता है और धातु के अन्तिम स्वर का गुण हो जाता है।
ह्वादिगण की प्रमुख धातुएं
4. दिवादिगण (चतुर्थ गण – Fourth Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – इनमे दिवादिगणीय धातुओं के उत्तर “य” होता है। यही “य” इस गण का चिन्ह है।
- दिव्, सिव्, और ष्ठिव् धातुओं के इलावा इकार का दीर्घ हो जाता है। जैसे- दिव्यति-सीव्यति-ष्ठीव्यति इत्यादि।
दिवादिगण की प्रमुख धातुएं
- दिव् (क्रीडा करना, to play)
- सिव् (सीना, to sew)
- नृत् (नाचना, to dance)
- नश् (नाश होना, to perish, to be lost)
- जन् (उत्पन्न होना, to be born, to grow)
- शम् (शान्त होना, to be calm, to stop)
- सो (नाश करना, to destroy)
- विद् (रहना, to exist) – उभयपदी
5. स्वादिगण (पञ्चम् गण – Fifth Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – इनमें स्वादिगणीय धातु के आगे ‘नु’ का आगम होता है। यही ‘नु’ गणचिन्ह होता है।
- ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, द्, स्, अम् – इन कई एक सबल विभक्तियों में ‘नु’ के उकार का गुण ‘नो’ हो जाता है।
- यदि ‘नु’ का ‘उ’ दूसरे अक्षर से संयुक्त ना हो तो लोट लकार के मध्यम पुरुष एकवचन की विभक्ति ‘हि’ का लोप हो जाता है, परन्तु संयुक्त अक्षर होने पर ऐसा नहीं होता है। जैसे –
- सुनु + हि = सुनु (‘हि’ का लोप )
- आप्नु + हि = आप्नुहि
- उत्तम पुरुष के द्विवचन और वहुवचन में ‘व’ और ‘म’ दूर रहने से ‘नु’ के उकार का लोप भी होता है। जैसे –
- सुनु + व: = सुन्व: / सुनव:
- सुनु + म: = सुन्म: / सुनुम:
स्वादिगण की प्रमुख धातुएं
6. तुदादिगण (षष्ठं गण – Sixth Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – में धातुओं के साथ ‘अ’ जोड़ दिया जाता है।
- भ्वादिगण और तुदादिगण दोनों का गण चिन्ह ‘अ’ होता है। इन दोनों में भेद इतना ही है कि भ्वादिगण में धातु के अंतिम स्वर और उपधा लघु स्वर का गुण होता है।
- तुदादिगण में गुण नहीं होता है। जैसे –
- तुद् + अ = तुदति (तोदति गलत है )
- मुच्, सिच्, क्रत्, विद्, लिप्, और लुप् धातुओं के उपधा में ‘न्’ जोड दिया जाता है। जैसे –
- मुच् + अ + ति = मुञ्चति
- सिच् +अ + ति = सिञ्चति
तुदादिगण की प्रमुख धातुएं
- तुद् (पीडा देना, to oppress)
- स्पृश (छूना, to touch)
- इष् (इच्छा करना, to wish)
- प्रच्छ् (पूछना, to ask)
- मृ (मरना , to die)
- मुच् (छोडना, to leave) उभयपदी
7. तनादिगण (सप्तम् गण – Seventh Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – इनमें धातुओं के आगे ‘उ’ आता है और ‘उ’ अन्त्य वर्ण में मिल जाता है।
- ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, त्, स्, और अम् – इनके परे ‘उ’ के स्थान में ‘औ’ हो जाता है।
- सबल विभक्तियों में उकार का गुण हो जाता है और निर्बल में ऐसा नहीं होता है।
- लोट् लकार के मध्यम पुरुष के एकवचन में ‘हि’ विभक्ति का लोप हो जाया करता है।
तनादिगण की प्रमुख धातुएं
8. रूधादिगण (अष्टं गण – Eighth Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – इनमें धातुओं के अन्त्य स्वर के परे एक ‘न’ का आगम हो जाता है।
- ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ऐ, आवहै, आमहै, द्, स्, और अम् – इन धातुओं में ‘नकार‘ के परे ‘अकार‘ का लोप हो जाता है।
रुधाधिगण की प्रमुख धातुएं
- भुज् (भोजन करना, to eat)
- रक्ष् (रक्षा करना, to protect)
- छिद्र (काटना, to cut) – उभयपदी
- भिद् (काटना, to break down, to separate) – उभयपदी
9. क्रयादिगण (नवम् गण – Ninth Conjugation)
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – में ‘ना’ की आवृति होती है।
- ति, सि, मि, तु, त्, स् के भिन्न रहने पर ‘ना’ के स्थान पर ‘नी’ हो जाता है।
- लोट् लकार के मध्यम पुरुष एकवचन में यति व्यञ्जनान्त धातु हो तो ‘ना’ के स्थान पर ‘आन’ होता है और ‘हि’ का लोप हो जाता है ।
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – चारो लकारों में क्रयादिगणीय धातु का अंत स्थित दीर्घ ऊकार का उकार हो जाता है ।
- लट्, लोट्, लङ्ग्, और विधिलिङ्ग् – चारो लकारों में ग्रह और ज्ञा के स्थान पर जा हो जाता है।
क्रयादिगण की प्रमुख धातुएं
10. चुरादिगण (दशम् गण – Tenth Conjugation)
- इस गण के धातु के अंत में ‘णिच्’ (इ) जोडा जाता है और धातु के अन्तिम स्वर एवं उपधा अकार की व्रध्दि होती है।
- यदि उपधा में कोई ह्रस्व स्वर रहता है तो उसका गुण हो जाता है।
- परन्तु ‘कथ्’ गण, प्रथ, रच्, स्प्रह आदि में उपधा आकार की वृध्दि नहीं होती।
- उपर्युक्त धातुओं के अंत में अकार होता है- जिसका लोप कर दिया जाता है।
- इस गण के सभी धातु इकारान्त हो जाता है।
ia m Dhanush Raj from Uttarakhand i like this
Very nice sir
Very informative and useful
बहुचमिचीनं !!!!
अति उत्तमम् प्रयासं कृत: |
व्याकरणम् अति सरलं कृत : !
अति उत्तमम्
भाषाणां संवर्धनाय उत्तमम् प्रयासं कृतः।