जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान – कबीरदास का दोहा

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥ - जानिए अर्थ एवं भावार्थ, व्याख्या और सार, संदेश एवं शिक्षा।

Jati Na Puchho Sadhu Ki Puchh Lijiye Gyan - Kabir Ke Dohe

कबीरदास का दोहा: जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान

जाती न पूछो साधु की – प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं, सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठा हुआ माना जाता है। साधू से यह कभी नहीं पूछा जाता की वह किस जाति का है उसका ज्ञान ही, उसका सम्मान करने के लिए पर्याप्त है। जिस प्रकार एक तलवार का मोल का आंकलन उसकी धार के आधार पर किया जाता है ना की उसके म्यान के आधार पर।

व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने जाति, धर्म, या बाहरी पहचान को छोड़कर व्यक्ति के असली गुण और ज्ञान को समझने की बात कही है। कबीर जी कहते हैं कि किसी साधु, संत, या ज्ञानी व्यक्ति की जाति, धर्म, या बाहरी पहचान को जानने के बजाय उसके ज्ञान, विचार और सच्चाई को देखना चाहिए। जैसे तलवार का मूल्य उसकी धार, उपयोगिता और ताकत में है, न कि उसे ढकने वाले म्यान (म्यान = तलवार का खोल) में। तलवार का असली मूल्य उसकी धार और गुणवत्ता में होता है, जबकि म्यान तो केवल एक बाहरी आवरण है। इसी प्रकार, एक व्यक्ति का असली मूल्य उसकी समझ, ज्ञान, और उसके विचारों में है, न कि उसकी जाति, धर्म, या बाहरी पहचान में।

संदेश एवं सार: कबीर जी यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके बाहरी स्वरूप या जाति से नहीं करना चाहिए। अगर हम किसी से कुछ सीखना चाहते हैं या सच्चाई को समझना चाहते हैं, तो हमें उसके ज्ञान और गुणों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यही व्यक्ति का असली मोल है।

कबीर के दोहे:

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