अधिगम या सीखने की प्रक्रिया के सोपान या अंग

सीखने की प्रक्रिया एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बालक जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। इसे अधिगम भी कहा जाता है। सीखने की इस प्रक्रिया के कुछ अंग या सोपान भी होते हैं, जिनके बारे में इस लेख में चर्चा की गई है।

अधिगम प्रक्रिया के सोपान या अंग

अधिगम एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बालक जन्म के उपरांत ही अधिगम प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। अधिगम का अर्थ होता है- सीखना। आगे अधिगम या सीखने की प्रक्रिया के सोपान या अंग दिए गए हैं –

सीखने की प्रक्रिया के सोपान या अंग (Steps or organs of Learning Process)

1. उन्मुखता (Orientation)

उन्मुखता का अर्थ सीखने की समस्या को देखने से है। व्यक्ति किसी समस्या को जिस तरह देखता है, उसी से यह निश्चित होता है कि सीखने में वह क्या दिशा ग्रहण करेगा? अतः सीखने से पहले सीखने वाले को सीखने के लक्ष्य से अपने सम्बन्ध (Connections), बाधाओं (Barrier) तथा बाधाओं को पार करने के लिये आवश्यक कारकों का ज्ञान होना चाहिये। इससे सीखने की प्रक्रिया में सीखने वाले की शक्ति व्यर्थ नहीं नष्ट होगी और उसका पूर्ण उपयोग हो सकेगा।

चित्र में यह दिखलाया गया है कि सीखने वाला (Learner) लक्ष्य (Goal) की ओर उन्मुख है। उसके तथा लक्ष्य में काल्पनिक सम्बन्ध है जिसके बीच में बाधाएँ आयी हुई हैं। ये बाधाएँ लक्ष्य की दृष्टि से नकारात्मक हैं और “” के चिह्न से दिखलायी गयी हैं क्योंकि उनसे लक्ष्य की गति में बाधा पड़ती है। सीखने वाला बाधाएँ लक्ष्य के सम्बन्ध के ज्ञान से शिक्षक शिक्षार्थी (Learner) को उचित निर्देशन दे सकता है।

2. खोज (Expolaration)

सीखने की परिस्थिति सम्बन्धी खोज में शिक्षार्थी बाधाओं और लक्ष्य सम्बन्धी कारकों की जाँच करता है और कौशल प्राप्त करने के लिये सभी ज्ञान विधियों को प्रयोग करता है। उन्मुखता स्थापित हो जाने पर खोज का कार्य शिक्षार्थी पर ही छोड़ दिया जाना चाहिये। अध्यापकों को केवल उसका उत्साह बढ़ाना चाहिये और आवश्यक होने पर निर्देश देना चाहिये।

3. विस्तार (Flaboration)

खोज के द्वारा शिक्षार्थी सीखने की समस्या को सुलझाने के कुछ सम्भावित उपाय निश्चित कर लेता है और अब कल्पना में उनका प्रयोग करता है। यह विस्तार की प्रक्रिया है। इसमें वह समस्या के प्रत्यक्ष का विस्तार करता है, उनको सुलझाने की विधियों का परिष्कार करता है और अपने तथा समस्या के सम्बन्ध का मूल्यांकन करता है। शिक्षक शिक्षार्थी को सम्भावित उपायों के गुण-दोषों के मूल्यांकन में सहायता दे सकता है।

4. निश्चितता (Articulation)

खोज और विस्तार के बाद लक्ष्य प्राप्ति के उपाय स्पष्ट रूप से निश्चित किये जा सकते हैं। सीखने वाले के सम्मुख लक्ष्य के मार्ग की बाधाओं को प्राप्त करने के विषय में अनेक संकेत (clues) आते हैं। अब वह इन संकेतों की परीक्षा करता है। कुछ संकेत मिथ्या (False clues) सिद्ध होते हैं और उनके परिणाम सन्तोषजनक नहीं होते, जबकि अन्य संकेत बाधाओं को पार करने में सहायता देते हैं तथा लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता देते हैं तथा सन्तोषजनक सिद्ध होते हैं। यहाँ शिक्षक शिक्षार्थी को यह समझाने में सहायक सिद्ध हो सकता है कि संकेत मिथ्या या सही क्यों होते हैं?

5. सरलीकरण (Simplification)

सरलीकरण का अर्थ अनावश्यक और व्यर्थ के संकेतों की ओर ध्यान हटा लेने से है। यहाँ शिक्षक सरलीकरण के उपाय बता सकता है।

6. स्वतः चालनीकरण (Automatization)

सरलीकरण और अभ्यास से लक्ष्य प्राप्ति के लिये आवश्यक कौशल विधियाँ और सूझ-बूझ स्वत: चालित-सी हो जाती हैं। अतः समस्या को सुलझाने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता और आगे उत्पत्ति के लिये शक्ति बच जाती है। स्वत: चालनीकरण में अधिक समय लगने के कारण उसे केवल ऐसी ही क्रियाओं में प्रयोग किया जाना चाहिये, जिनका अन्य प्रकार के सीखने में संक्रमण हो सके।

7. पुनर्उन्मुखता (Reorientation)

पुनर्उन्मुखता का तात्पर्य समस्या को सुलझाने के बाद नये सामान्यीकरण बनाने से है। इससे शिक्षक अब उसी प्रकार की समस्याएँ सुलझाने के लिये शिक्षार्थी के सम्मुख रख सकता है। इससे सीखने से प्राप्त कौशल और भी दृढ़ हो जाता है।

8. अभिप्रेरणा (Motivation)

मनुष्य का प्रत्येक कार्य जिसे वह करना चाहता है किसी न किसी अभिप्रेरणा से संचालित होता है। व्यक्ति की बहुत-सी आवश्यकताएँ होती हैं। ऐसी आवश्यकताएँ जिनकी सन्तुष्टि नहीं हो पाती है वह उनकी सन्तुष्टि करने के लिये प्रयत्न करता है। इनकी पूर्ति के लिये उसमें प्रेरक (Motive) उत्पन्न हो जाता है तथा व्यक्ति अत्यधिक क्रियाशील हो जाता है। अभिप्रेरणा ही उसे उद्देश्य की ओर ले जाती है तथा व्यक्ति उस प्रयोजन से प्रेरित होकर क्रिया करने को बाध्य हो जाता है।

मेलटन (Melton) के अनुसार, “अभिप्रेरणा सीखने की अनिवार्य दशा है।” अभिप्रेरणा एक प्रकार का राजमार्ग है, जो सीखने वाले को उसके उद्देश्य तक पहुँचाता है।

9. उद्देश्य (Goal)

प्रत्येक प्राणी अपनी आवश्यकता के अनुसार सीखने की कोशिश करता है, बिना किसी उद्देश्य को सामने रखे वह सीखने की कोशिश नहीं कर सकता है।  किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति का उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया होता है और यह उस प्रक्रिया का अंग होता है। मानव उस क्रिया को सीखना नहीं चाहता, जो उसकी आवश्यकता  तथा उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती है।

10. बाधा (Barrier)

उद्देश्य की प्राप्ति करने के लिये बाधा उपस्थित न होने पर व्यक्ति को नया अनुभव प्राप्त नहीं होता है। बाधा के आ जाने पर व्यक्ति अनेक प्रकार के सम्भावित व्यवहार करता है। वह प्रयत्न एवं भूल, सूझ अथवा तर्क के द्वारा उपर्युक्त व्यवहार की खोज निकालता है।

11. संगठन (Integration)

सीखना उचित सफल अनुक्रियाओं का चुनाव एवं संगठन है। प्रत्येक प्रकार की सीखने की क्रिया में प्रगति के साथ ही मानसिक संगठन भी होता रहता है। अधिगम की क्रिया के विभिन्न अंगों का संगठन नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से जोड़ने के लिये किया जाता है। इससे नवीन अनुक्रिया उसके ज्ञान का एक अंग बन जाती है।

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