चौपाई मात्रिक छंद है, मात्रिक छंद के 3 भेद होते हैं- सममात्रिक छंद, अर्धमात्रिक छंद और विषममात्रिक छंद। Chaupai “सममात्रिक छंद” है। इसमें प्रायः चार चरण होते हैं। इस पोस्ट में चौपाई की परिभाषा (Chaupai ki Paribhasha in Hindi), चौपाई छंद के उदाहरण (Chaupai Chhand ka Udaharan in Hindi) मात्रा सहित विस्तार से हिन्दी में जानेंगे।
चौपाई छंद की परिभाषा
यह एक सम मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु हो सकते हैं। अंत में गुरु वर्ण होने से छंद में रोचकता आती है।
- चौपाई के अंत मे जगण और तगण नही आते हैं।
- तुक पहले चरण की दूसरे और तीसरे चरण के चौथे से मिलती है।
- यति हर एक चरण के अन्त में होती है।
- चरण के आखिर में गुरु स्वर या लघु स्वर नहीं होते है लेकिन दो गुरु स्वर और दो लघु स्वर हो सकते हैं।
चौपाई छंद के उदाहरण मात्रा सहित
Chaupai के उदाहरण मात्रा और अर्थ सहित नीचे दिए गए हैं:-
चौपाई छंद का 1 उदाहरण
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एहि बिधि राम सबहि समुझावा।
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गुरु पद पदुम हरषि सिरु नावा॥
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गनपति गौरि गिरीसु मनाई।
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चले असीस पाइ रघुराई॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त सभी चरणों मे 16 मात्राएं है अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:- इस प्रकार श्री रामजी ने सबको समझाया और हर्षित होकर गुरुजी के चरणकमलों में सिर नवाया। फिर गणेशजी, पार्वतीजी और कैलासपति महादेवजी को मनाकर तथा आशीर्वाद पाकर श्री रघुनाथजी चले।
चौपाई छंद के 2 सरल उदाहरण (Easy Examples of Chaupai)
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। (।।ऽ ।। ।। ।।। ।ऽऽ)
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥ (।।। ।ऽ। ।।। ।।ऽऽ)
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। (।।। ऽ।।। ऽ।। ऽऽ)
समन सकल भव रुज परिवारू॥ (।।। ।।। ।। ।। ।।ऽऽ)
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुंदर स्वाद, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह संजीवनी बूटी का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है।
चौपाई छंद के 3 उदाहरण
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बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:- वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है।
चौपाई छंद के 4 उदाहरण
नित नूतन मंगल पुर माहीं।
निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं।।
बड़े भोर भूपतिमनि जागे।
जाचक गुनगन गावन लागे।।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– जनकपुर में नित्य नए मंगल हो रहे हैं। दिन और रात पल के समान बीत जाते हैं। बड़े सबेरे राजाओं के मुकुटमणि दशरथ जागे। याचक उनके गुणसमूह का गान करने लगे।
चौपाई छंद के 5 उदाहरण
सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी।
संभ्रम चलि आईं सब रानी॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी।
आनँद मगन सकल पुरबासी॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए।
चौपाई छंद के 6 उदाहरण
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाले हैं। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करते हैं।
चौपाई छंद के 7 उदाहरण
एहि विधि गर्भसहित सब नारी।
भई ह्रदय हर्षित सुख भारी।।
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए।
सकल लोक सुख सम्पति छाए।।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:- इस प्रकार सब स्त्रियाँ गर्भवती हुईं। वे हृदय में बहुत हर्षित हुईं। उन्हें बड़ा सुख मिला। जिस दिन से हरि (लीला से ही) गर्भ में आए, सब लोकों में सुख और संपत्ति छा गई।
चौपाई छंद के 8 उदाहरण
सुनि बोले गुर अति सुखु पाई।
पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई॥
जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– सब समाचार सुनकर और अत्यंत सुख पाकर गुरु बोले – पुण्यात्मा पुरुष के लिए पृथ्वी सुखों से छाई हुई है। जैसे नदियाँ समुद्र में जाती हैं, यद्यपि समुद्र को नदी की कामना नहीं होती।
चौपाई छंद के 9 उदाहरण
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिॅहु लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बलधामा।
अंजनी पुत्र पवन सुतनामा॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– सागर में जल का असीम भंडार होता है। उसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। सागर से यहां भंडार भाव भी समझा जा सकता है। ज्ञान बहुत प्रकार का होता है, जब यह विज्ञान बन जाता है तो उसे विशेषज्ञ कहा जाता है। हनुमान जी ज्ञान रूपी गुणों के भंडार हैं। राम का काम कोई कर सकता है तो केवल हनुमान जी। समुद्र लांघ सकते हैं तो केवल हनुमान जी। माता सीता का पता लगा सकते हैं तो हनुमान जी। कालनेमि के मन का भेद जान कर उसे मौत के घाट उतार सकते हैं तो हनुमान जी।
चौपाई छंद के 10 उदाहरण
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।
चौपाई छंद के 11 उदाहरण
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का नाम उदार है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपा करते हैं।
चौपाई छंद के 12 उदाहरण
अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।
चौपाई छंद के 13 उदाहरण
पर हित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥
निर्नय सकल पुरान बेद कर।
कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– तुलसीदास जी कहते हैं, हे भाई! दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान इस संसार में कोई नीचता (पाप) नहीं है। सारे वेदों और पुराणों का यह सार मैंने तुमसे कहा है इस बात को ज्ञानी लोग भली-भांति जानते हैं।
चौपाई छंद के 14 उदाहरण
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना।
अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की सही परख (परीक्षा) विपत्ति के समय ही होती है। वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यन्त दीन- ऐसे भी पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है। शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना ही स्त्री का एकमात्र धर्म है।
चौपाई छंद के 15 उदाहरण
ह्रदय बिचारति बारहिं बारा,
कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे,
निशाचर सुभट महाबल भारे।।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त प्रत्येक चरण मे 16 मात्राएं है, अतः यहाँ पर चौपाई छंद है।
अर्थ:– जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा। मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं और राक्षस योद्धा तो महा बलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं।
FAQs
1. चौपाई किसे कहते हैं?
चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
2. चौपाई के उदाहरण लिखो?
उदाहरण 1.
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
उदाहरण 2.
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥
3. रामायण में कुल कितनी चौपाईं हैं?
रामचरितमानस में चौपाई की संख्या “9388” है।
4. हनुमान चालीसा में कितनी चौपाई हैं?
‘चालीसा’ शब्द से अभिप्राय ‘चालीस’ (40) का है क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं, परिचय के 2 दोहों को छोड़कर-
श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि।
वर्नौ रघुवर विमल जशु जो दायक फल चारि॥1॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥2॥
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