भाषा परिवार
परिभाषा: जिस प्रकार मनुष्यों का परिवार होता है, उसी प्रकार भाषाओं का भी परिवार होता है। ऐसी भाषाओं का समूह, जिनका जन्म किसी एक मूल भाषा से हुआ हो, ‘भाषा परिवार‘ कहलाता है। एक ही मूल भाषा से जन्म लेने के कारण इनमें कई समानताएँ होती हैं। जैसे- भारोपीय, द्रविड, तिब्बत-बर्मी और आग्नेय आदि।
भाषा परिवार से आशय एवं उसका अर्थ:
किसी एक भाषा-परिवार की भाषाओं का जन्म किसी एक मूल भाषा से हुआ माना जाता है। समय के साथ-साथ एक भाषा बोलने वाली कई जातियाँ विश्व के अलग-अलग भागों या देशों में जाकर बस गईं। जिससे उनकी भाषाओं में कहीं अधिक, कहीं कम परिवर्तन आता चला गया और नई भाषाएँ बनती चली गईं। ऐसी भाषाएँ जो एक ही वंश या मूल भाषा से निकलकर विकसित हुई हैं, एक भाषा-परिवार का निर्माण करती हैं। फिर उनके उप-परिवार बनते चले जाते हैं।
दुनियाँ के प्रमुख भाषा परिवार
विश्व की भाषाओं को 12 मुख्य भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है। ये परिवार हैं-
- भारोपीय
- द्रविड़
- चीनी
- सैमेटिक
- टैमेटिक
- आग्नेय
- यूराल, अल्टाइक
- बाँटू
- अमेरिका (रेड इंडियन)
- काकेशस
- सूडानी
- बुशमैन
भारत के भाषा परिवार और उनकी संख्या
भारत में संसार के चार भाषा परिवारों- भारोपीय, द्रविड, तिब्बत-बर्मी और आग्नेय की अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। हिन्दी तथा उत्तर भारत की अधिकांश भाषाएँ (गुजराती, सिंधी, कश्मीरी; उड़िया, असमिया, उर्दू, मराठी, पंजाबी, बांग्ला आदि) आर्य परिवार की भाषाएँ मानी जाती हैं। इनका मूल स्रोत संस्कत है। ग्रीक, ईरानी, अंग्रेजी, जर्मन, रूसी आदि अनेक भाषाएँ भी उसी मूल भाषा से विकसित हुई हैं। जिससे संस्कृत विकसित हुई है।
उत्तर भारत की अधिकांश भाषाओं और अंग्रेजी, जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, फारसी, ग्रीक आदि भाषाओं को भारत-यूरोपीय भाषा परिवार की वे भाषाएँ जो भारत में बोली जाती हैं, भारतीय आर्य भाषाएँ कही जाती हैं। भारत में एक दुसरा भाषा परिवार द्रविड़ कुल का है, जिसकी मुख्य भाषाएँ तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ हैं। इन चारों भाषाओं में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अत: ये भी भारत की अन्य भाषाओं से दूर नहीं हैं।
वस्तुतः हजारों साल तक साथ-साथ रहने और विकसित होने के कारण हमारी भाषाओं में ध्वनि, शब्द और व्याकरणिक व्यवस्थाओं में अनेक समानताएँ विकसित हो गई हैं। इसी कारण ‘बहुभाषी देश’ होते हुए भी अनेक देशी-विदेशी भाषा वैज्ञानिकों ने भारत को ‘एक भाषिक क्षेत्र’ कहा है। तात्पर्य यह है कि अनेक भाषाएँ होने पर भी यहाँ भाषिक और सांस्कृतिक एकता पाई जाती है और यही अनेकता में एकता हमारी भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता है।
इस प्रकार निष्कर्ष (Conclusion) यह निकलता है कि भारत में प्रमुख भाषा परिवारों की संख्या पाँच “5” ही है।
भारत में बोली जाने वाली भाषाओं के भाषा परिवार निम्न हैं:
- भारोपीय भाषा परिवार
- द्रविड भाषा परिवार
- तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार
- आग्नेय भाषा परिवार
- आर्य भाषा परिवार
1. भारोपीय भाषा परिवार
यह विश्व एवं भारत का सबसे बड़ा भाषा परिवार है। भारोपीय परिवार के अंतर्गत संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रश, प्राचीन फ्रांसीसी, अवेस्ता , ग्रीक, लैटिन, अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली, इतालवी, फ़ारसी, हिंदी, बंग्ला , गुजराती, मराठी इत्यादि भाषाएं आती हैं। भारोपीय भाषा परिवार की भारतीय शाखा को “भारतीय आर्य भाषा परिवार” कहते हैं। भारत में इस भाषा परिवार की कई भाषाएं उत्तर भारत में बोली जातीं हैं।
भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएं विश्व की लगभग आधी आबादी (45%) द्वारा बोली जातीं हैं। जबकि भारत में इस भाषा परिवार की भाषाएं लगभग 80% आबादी द्वारा बोली जातीं हैं।
2. द्रविड भाषा परिवार
भारत में एक दूसरा सबसे बड़ा भाषा परिवार द्रविड़ कुल का है, जिसकी मुख्य भाषाएँ तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ हैं। इन चारों भाषाओं में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अत: ये भी भारत की अन्य भाषाओं से दूर नहीं हैं।
दक्षिणी भारत और श्रीलंका में द्रविड़ी समूह की लगभग 26 भाषाएँ बोली जाती हैं। ये अन्त-अश्लिष्ट-योगात्मक भाषाएँ हैं। द्रविड भाषा परिवार के भी सबसे अधिक वक्ता भारत में ही हैं।
3. तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार
भारत में पाए जाने वाले इस भाषा परिवार को “तिब्बत-चीनी” भाषा परिवार भी कहते हैं। इसके अंतर्गत बोदिक (तिब्बती भाषा), बर्मी, शाई(ताई), करेन, काचिन, मन्दारिन, आदि आती हैं। इस परिवार कुछ भाषाएं भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, नेपाल, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, भूटान, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम आदि क्षेत्रों में बोली जाती हैं।
4. आग्नेय भाषा परिवार
इस भाषा परिवार को आस्ट्रिक भाषा परिवार और निषाद भाषा परिवार भी कहते हैं। इस भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं संताली, मुंडारी, हो, सवेरा, खड़िया, कोर्क, भूमिज, गदवा, पलौंक, वा, ख़ासी, मोनख्मे, निकोबारी आदि हैं।
वर्तमान समय में राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम और उत्तरप्रदेश के पहाड़ी इलाकों में मुंडा, सांथाल, कोल, हो , शबर, खासी, मानख्मेर कुंकू, भूमिज आदि अनेक आदिम जातियाँ फैली हुई हैं। जिसकी हिंदी भाषा, बोली और शब्दावली का तलदेश की बोली से सीधा संपर्क रहा।
5. आर्य भाषा परिवार
हिन्दी तथा उत्तर भारत की अधिकांश भाषाएँ (गुजराती, सिंधी, कश्मीरी; उड़िया, असमिया, उर्दू, मराठी, पंजाबी, बांग्ला आदि) आर्य परिवार की भाषाएँ मानी जाती हैं। इनका मूल स्रोत संस्कत है। ग्रीक, ईरानी, अंग्रेजी, जर्मन, रूसी आदि अनेक भाषाएँ भी उसी मूल भाषा से विकसित हुई हैं। जिससे संस्कृत विकसित हुई है।
(देखे –भारतीय आर्य भाषा क्या है? एवं भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण)