हिन्दी की बोलियां
हिन्दी विशाल भू-भाग की भाषा होने के कारण इसकी अनेक बोलियाँ अलग-अलग क्षेत्रों में प्रयुक्त होती हैं। जिनमें से अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि प्रमुख हैं। जिन्हें लेखन और बोली के आधार पर 4 भागों एवं उनकी 18 बोलियों (उपभाषा) को प्रमुख माना गया है।
1. पश्चिमी हिन्दी की बोलियां
हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुंदेली, कन्नौजी और राजस्थानी आदि पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोलियां हैं। राजस्थानी की प्रमुख बोलियों में मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी और मेवाती आतीं हैं। पश्चिमी हिन्दी का प्रदेश पंजाबी और राजस्थानी पूर्व से आरम्भ होकर पूर्व में बधेली और अवधी तक फैला हुआ है।
2. पूर्वी हिन्दी की बोलियां
अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगही और मैथिली आदि पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियां हैं। पूर्वी हिन्दी का विकास अर्धमागधी प्राकृत से हुआ है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार क्षेत्र की भाषा है।
3. उत्तरी हिन्दी की बोलियां (पहाड़ी हिन्दी)
गढ़वाली और कुमाऊँनी आदि पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियां हैं। उत्तरी हिन्दी की बोलियों को पहाड़ी हिन्दी भी कहा जाता है। पहाड़ी का विकास ‘खस प्राकृत’ से माना जाता है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने इसे ‘मध्य पहाड़ी‘ नाम से सम्बोधित किया है। पहाड़ी हिन्दी कुमाऊँ और गढ़वाल प्रदेश की भाषा है।
4. दक्षिणी हिन्दी की बोली
दक्खिनी, इस क्षेत्र में हिन्दी की एक यही बोली मिलती है। दक्खिनी के अन्य नाम हिन्दी, हिन्दवी, दकनी, दखनी, देहलवी, हिन्दुस्तानी, ज़बाने हिन्दुस्तानी, दक्खिनी हिन्दी, दक्खिनी उर्दू, मुसलमानी आदि। दक्खिनी हिन्दी मूलत: हिन्दी का ही एक रूप है।
हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में इन सभी बोलियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन बोलियों और उपभाषाओं में से कुछ में उच्चकोटि का साहित्य रचा गया है।
- ‘मैथिली’ में कोकिला विद्यापति की अमर काव्य कृति ‘पदावली’ रची गई,
- ‘अवधी’ में हिन्दी में सर्वश्रेष्ठ काव्यग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ की रचना तुलसीदास ने तथा पद्मावत की रचना मुसलमान कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने की।
- अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
- ब्रजभाषा तो मध्यकाल की सर्वप्रमुख काव्य-भाषा रही है।
- कृष्ण काव्य का विशाल साहित्य मुख्यतः ब्रजभाषा में ही है।
इस भाषा में सूरदास, नन्ददास रसखान, रहीम, केशव, बिहारी, मतिराम, भूषण, पद्माकर जैसे श्रेष्ठ कवि हुए। सूरदास का ‘सूरसागर’ ब्रजभाषा की अमर काव्यकृति है।
- राजस्थान में हिन्दी में मीराबाई ने श्रेष्ठ काव्य की रचना की।
- खड़ी बोली के प्रथम प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो थे।
आज यही खडी बोली देश की राष्ट्रभाषा और भारतीय गणराज्य की राजभाषा है।
- ‘कामायनी‘ खड़ी बोली का प्रसिद्ध काव्य है।
हिन्दी में अतुकान्त महाकाव्य लिखने का श्रेय सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ को है। गद्य-साहित्य के विविध रूपों में हिन्दी खड़ी बोली ने बहुत विकास किया है। हिन्दी भाषा के विविध रूपों में आजकल ‘खड़ी बोली’ ही सबसे अधिक प्रचलित है, जिसक विकास पश्चिमी हिन्दी से हुआ है।
इन बोलियों के अलावा भी आज हिन्दी के राष्ट्रीय स्तर पर अनेक रूप विकसित हो गए हैं, जैसे- बम्बइया हिन्दी, कलकतिया हिन्दी, हैदराबादी हिन्दी आदि। ये रूप वहाँ की मातृभाषा तथा हिन्दी के संयोग से विकसित हुए हैं। आज दिल्ली की हिन्दी भी अपना स्वरूप अलग बना चुकी है।
हिन्दी की उपभाषाएं एवं बोलियाँ
हिन्दी की उपभाषाएं एवं बोलियाँ निम्नलिखित हैं:-
A. पश्चिमी खण्ड की हिन्दी की बोलियाँ
पश्चिमी हिन्दी– पश्चिमी हिन्दी की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है। पश्चिमी हिन्दी का प्रदेश पंजाबी और राजस्थानी पूर्व से आरम्भ होकर पूर्व में बधेली और अवधी तक फैला हुआ है। इसकी उत्तरी सीमा पहाड़ी और दक्षिणी सीमा मराठी मानी जाती है। पश्चिमी हिन्दी की दो प्रकार – आकार बहुला तथा उकार बहुला बोलियाँ भी हैं।
आकार बहुला
उकार बहुला, राजस्थानी
B. उत्तरी खण्ड की हिन्दी की बोलियाँ
पहाड़ी हिन्दी– पहाड़ी का विकास ‘खस प्राकृत’ से माना जाता है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने इसे ‘मध्य पहाड़ी’ नाम से सम्बोधित किया है।
C. पूर्वी खण्ड की हिन्दी की बोलियाँ
पूर्वी हिन्दी– पूर्वी हिन्दी का विकास अर्धमागधी प्राकृत से हुआ है। पश्चिमी हिन्दी और भोजपुरी के बीच के क्षेत्र को पूर्वी हिन्दी का क्षेत्र माना जाता है।
बिहारी हिन्दी– बिहारी हिन्दी का विकास मागधी प्राकृत से हुआ है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार क्षेत्र की भाषा है। कृतिपय विद्वान् बिहारी हिन्दी का सम्बन्ध बंगला से भी जोड़ते हैं। इसकी अपनी बोलियाँ तथा उप-बोलियाँ हैं।
D. दक्षिणी खंड की हिन्दी
दक्षिणी हिन्दी– दक्खिनी-13-14वीं शताब्दी में जब दिल्ली के सुलतानों (मुहम्मद तुगलक) ने उत्तरी भारत के लोगों को दक्षिणी (दौलताबाद) में बसाया था तब उन लोगों के साथ उनकी भाषा भी दक्षिण में गई थी। उसी भाषा से विकसित होने वाली भाषा को दक्खिनी कहा जाता हैं।
संक्षेप में सभी बोलियों का वर्णन निम्नलिखित है:-
पश्चिमी हिन्दी (हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुंदेली और राजस्थानी) की बोलियाँ
पश्चिमी हिन्दी की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है। पश्चिमी हिन्दी का प्रदेश पंजाबी और राजस्थानी पूर्व से आरम्भ होकर पूर्व में बधेली और अवधी तक फैला हुआ है। इसकी उत्तरी सीमा पहाड़ी और दक्षिणी सीमा मराठी मानी जाती है। साहित्य जगत् में पश्चिमी हिन्दी की प्रधानता रही है। हिन्दी का ब्रजभाषा साहित्य इसके साहित्य की विपुलता का प्रमाण है। पश्चिमी हिन्दी की दो प्रकार की-आकार बहुला तथा उकार बहुला-बोलियाँ भी हैं।
1. हरियाणवी
यह हिन्दी भाषा दिल्ली, करनाल, रोहतक, हिसार, पटियाला, नामा, जींद, पूर्वी हिसार आदि प्रदेशों में बोली जाती है। इस पर पंजाबी और राजस्थानी का पर्याप्त प्रभाव है। ग्रियर्सन ने इसे बाँगरू कहा है। इस प्रदेश में अहीरों अथवा जाटों की प्रधानता है, अत: इसे ‘जाटू‘ भाषा भी कहा जाता है। हरियाणी में परिनिष्ठित साहित्य का अभाव है।
2. खड़ी बोली
इसे कौरवी बोली भी कहा जाता है। खड़ी बोली का तात्पर्य है ‘स्टैंडर्ड भाषा‘। इस अर्थ में सभी भाषाओं की अपनी खड़ी बोली हो सकती है। किन्तु हिन्दी में खड़ी बोली मेरठ, सहारनपुर, देहरादून, रामपुर, मुजफ्फर नगर, बुलंदशहर आदि प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषा को कहा जाता है। इसे कौरवी, नागरी आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। ग्रियर्सन ने इसे देशी हिन्दुस्तानी कहा है।
3. ब्रजभाषा
ब्रजभाषा का विकास शौरसेनी से हुआ है। ब्रजभाषा पश्चिमीहिन्दी की अत्यन्त समृद्ध एवं सरस भाषा है। साहित्य-जगत् में आधुनिक काल से पूर्वब्रजभाषा का ही बोलबाला था।
यह मथुरा, वृन्दावन, आगरा, भरतपुर, धौलपुर, करौली,पश्चिमी ग्वालियर, अलीगढ़, मैनपुरी, बदायूँ, बरेली आदि प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषा है। पश्चिमी हिन्दी का वास्तविक प्रतिनिधित्व ब्रजभाषा ही करती है। ब्रजभाषा की लम्बीसाहित्य परम्परा रही है।
सूर, नन्ददास, बिहारी, धनानन्द, सेनापति, देव, भारतेन्दु, रत्नाकरआदि ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि हैं।
4. बुंदेली
बुंदेलखण्ड की भाषा को बुंदेली अथवा बुंदेलखण्डी कहा जाता है। चम्बल और यमुना नदियों तथा जबलपुर, रीवां और विन्ध्य पर्वत के बीच के प्रदेश को बुंदेलखण्ड कहा जाता है। इसमें मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश, दोनों राज्यों के प्रदेश सम्मिलित हैं। बांदा, झाँसी, हमीरपुर, ग्वालियर, बालाघाट, ओरछा, दतिया, सागर, होशंगाबाद, आदि जिले इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।
5. कन्नौजी
यह कन्नौज प्रदेश की भाषा है। इसका क्षेत्र अत्यन्त सीमित है। यह कानपुर, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, हरदोई आदि प्रदेशों में बोली जाती है। पश्चिम में यह ब्रज की सीमाओं का स्पर्श करती है, अतः ब्रज और कन्नौजी में भेद करना कठिन हो जाता है। तथापि ब्रज और कन्नौजी में कतिपय संरचनागत भेद पाये जाते हैं, जैसे ब्रज की ऐ तथा औ ध्वनियों को कन्नौजी में संयुक्त स्वर अइ तथा अउ रूप में बोला जाता है, जैसे- कौन > कउन।
6. मारवाड़ी
यह राजस्थानी हिन्दी की प्रमुख बोली है। मारवाड़ी का प्राचीन नाम ‘मरुभाषा‘ है। आठवीं सदी के ग्रंथ ‘कुवलयमाला‘ में भारत की 18 देश-भाषाओं में मरुदेश की भाषा का भी उल्लेख है। अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आइने-अकबरी‘ में भारत की प्रमुख भाषाओं में मारवाड़ी को भी गिनाया है। मारवाड़ी सदा से राजस्थानी की साहित्यिक भाषा रही है।
7. ढूंढाड़ी
भूतपूर्व जयपुर रियासत के शेखावाटी क्षेत्र को छोड़कर समस्त जयपुर रियासत क्षेत्र में ढूंढाड़ी बोली जाती है। इस पर गुजराती और मारवाड़ी का प्रभाव समान रूप से मिलता है। साहित्यिक भाषा में ब्रजभाषा की भी कुछ विशेषताएँ देखने को मिलती हैं।
8. मेवाती (मेवाड़ी)
कहीं-कहीं इसे मेवाड़ी भी बोला जाता है। मेवाती दक्षिणी-पूर्व मेवाड़ के भाग को छोड़कर समस्त मेवाड़ और उसके आस-पास के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। मेवाड़ी का शुद्ध रूप मेवाड़ के गाँवों में देखने को मिलता है। शहरों में इस पर हिन्दी, उर्दू का असर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी वजह से इसका मिठास जाता रहा है और यह अटपटी सी लगने लगी है।
9. मालवी
मालवी समस्त मालवा की भाषा है। दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी से जुड़ा मध्य प्रदेश का क्षेत्र मालवा कहा जाता है। मालवा में प्रतापगढ़, रतलाम, इन्दौर, भोपाल, नीमच, ग्वालियर, उज्जैन, झालावाड़, पूर्वी चित्तौड़ आदि प्रदेश सम्मिलित हैं। बुन्देली और मारवाड़ी के मध्य की बोली होने के कारण यह इन दोनों से प्रभावित है।
राजस्थानी हिन्दी
राजस्थानी हिन्दी सम्पूर्ण राजस्थान में, सिंध के कुछ प्रदेश में और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में बोली जाती है। वर्तमान में इसे आधुनिक देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। अतः यह एक हिन्दी का ही बदला हुआ उत्कृष्टतम् रूप है। डॉ ग्रियर्सन ने राजस्थानी की पाँच उपभाषाएँ बताई- पश्चिमी, मध्यपूर्वी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी के दो भेद(मालवी, नीमाडी)।
- पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)
- मध्य-पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी और हाड़ौती)
- उत्तरी-पूर्वी राजस्थानी (अहीरवाटी)
- दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी (मालवी)
- दक्षिणी राजस्थानी (नीमाडी)
पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)– ग्रियर्सन द्वारा बताई गई पाँच उपभाषाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण पश्चिमी उपभाषा है, जिसे साधारणतया ‘मारवाड़ी’ कहा जाता है। यह अपने अलग-अलग रूपों में मारवाड़, मेवाड़, पूर्वी सिंध, जैसलमेर, बीकानेर, दक्षिण पंजाब और पुरानी जयपुर स्टेट के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से के शेखावाटी क्षेत्र में बोली जाती है। बाकी सभी उपभाषाओं के क्षेत्रफलों का योग करने पर भी अकेली मारवाड़ी का क्षेत्रफल उन सबसे अधिक है।
मध्य-पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी और हाड़ौती)– दूसरी, मध्य-पूर्वी उपभाषा दो मुख्य नामों से जानी जाती है- जयपुरी और हाड़ौती। इनके भी कई भेद हैं। जयपुरी बोली को इनका आदर्श माना जा सकता है। यद्यपि जयपुरी पूर्वी राजस्थान में बोली जाती है परन्तु फिर भी इसका गुजराती से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। मारवाड़ी में इसका पश्चिम स्थित सिंधी से अधिक सम्बन्ध है।
उत्तरी-पूर्वी राजस्थानी (अहीरवाटी)– उत्तरी-पूर्वी राजस्थानी में अलवर, भरतपुर और गुडगाँव की मेवाती तथा दिल्ली के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम के अहीर प्रदेश की ‘अहीरवाटी’ शामिल है। राजस्थानी के इस रूप में मध्य समूह की शुद्धतम प्रतिनिधि पश्चिमी हिन्दी से अधिक साम्य है। कुछ लोगों की तो यहाँ तक मान्यता है कि उत्तर-पूर्वी राजस्थानी कहलाने वाली उपभाषाएँ राजस्थानी की उपभाषाएँ न होकर हिन्दी की उपभाषाएँ कहने योग्य हैं। वास्तविकता यह है कि यह इन दोनों के बीच का एक समूह है। इसका विवेचन विशेष अहमियत नहीं रखता, फिर भी इसे राजस्थानी में रखना उचित है।
दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी (मालवी)– दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी की मुख्य उपभाषा ‘मालवी’ है। यह मालवा एवं उसके आसपास के प्रदेशों में बोली जाती है। इसके पूर्व में बुन्देली और पश्चिम में गुजराती है। असलियत में यह इन दोनों के बीच की बोली है। इसीलिए इस पर राजस्थानी की छाप उतनी नहीं दिखाई पडती जितनी कि जयपुरी पर दिखाई पड़ती है।
दक्षिणी राजस्थानी (नीमाडी)– दक्षिणी पूर्वी राजस्थानी की दूसरी बोली ‘नीमाडी’ है। उद्गम की दृष्टि से यह मालवी का ही एक रूप है। परन्तु यह एक ऐसे पर्वतीय प्रदेश की कई जातियों के मुँह से बोली जाती है जो कि मालवी के बाकी हिस्से से अलग सा पडता है। नीमाडी पर पड़ोस की ‘भीली’ और ‘खानदेशी’ का यहाँ तक असर पड़ा है कि वह एक अलग बोली बन जाती है। जिसकी अपनी निजी विशेषताएँ हैं।
डॉ. ग्रियर्सन ने ‘भीली‘ और ‘खानदेशी‘ को राजस्थानी से अलग माना है, परन्तु डॉ. सुनीति कुमार चाटुज्य ने व्याकरण की दृष्टि से भीली को राजस्थानी के अधीन रखना उचित माना है।
प्रो. नरोत्तम स्वामी राजस्थानी की निम्नलिखित मात्र चार बोलियाँ ही मानते हैं-
- पश्चिमी राजस्थानी या मारवाड़ी– उदयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और शेखावाटी क्षेत्र।
- पूर्वी राजस्थानी या ढूंढाड़ी– जयपुर और हाडौती इलाका
- उत्तरी राजस्थानी– मेवाती और अहीरी बोलियाँ।
- दक्षिणी राजस्थानी या मालवी– मालवा और नीमाड़ की बोलियाँ।
डॉ. मोतीलाल मेनारिया ने राजस्थान की पाँच बोलियों का जिक्र किया है, जिनमें परस्पर विशेष अन्तर नहीं हैं। मात्र अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाने की वजह से इनके अलग-अलग नाम पड़ गए हैं। ये पाँच बोलियाँ- मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी, मेवाती और वागडी हैं।
पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी और मैथिली) की बोलियाँ
पूर्वी हिन्दी का विकास अर्धमागधी प्राकृत से हुआ है। पश्चिमी हिन्दी और भोजपुरी के बीच के क्षेत्र को पूर्वी हिन्दी का क्षेत्र माना जाता है। पूर्वी हिन्दी के चारों ओर नेपाली, कन्नौजी, बुन्देली, भोजपुरी और मराठी बोली जाती है। अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी आदि पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ हैं।
1. अवधी
पूर्वी हिन्दी की बोलियों में अवधी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्य की दृष्टि से ब्रज के पश्चात् अवधी ही समृद्ध रही है। अवधी को पूर्वी अथवा कौसली भी कहा जाता है। यह लखनऊ, इलाहाबाद, उन्नाव, सीतापुर, बहराइच, फैजाबाद, फतेहपुर, जौनपर, बाराबाँकी आदि प्रदेशों में बोली जाती है।
2. बघेली
बधेल खण्ड की बोली को बधेली कहा जाता है। बधेल खण्ड का केन्द्र रीवाँ (मध्य प्रदेश) है। बधेली मुख्यतः जबलपुर, मांडला, हमीरपुर, मिर्जापुर, बांदा, दमोह आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। कतिपय विद्वान् इसे स्वतंत्र बोली न मानकर इसे केवल अवधी की दक्षिणी शाखा मानने के पक्ष में है।
3. छत्तीसगढ़ी
मध्य प्रदेश के रायपुर, बिलासपुर, सारंगगढ़, खैरागढ़, बालाघाट, नंदगाँव आदि क्षेत्रों की बोली को छत्तीसगढ़ी कहा जाता है। इस बोली में साहित्य का अभाव है। इस बोली की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें ध्वनियों के महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है, जैसे-जन > झन, दौड़ > धौड़ आदि।
4. भोजपुरी
भोजपुरी हिन्दी उत्तर प्रदेश के बनारस, गाजीपुर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़ आदि तथा बिहार के चम्पारन, राँची आदि प्रदेशों में बोली जाती है। “भोजपुरी” शब्द का निर्माण बिहार का प्राचीन जिला भोजपुर के आधार पर पड़ा। जहाँ के राजा “राजा भोज” ने इस जिले का नामकरण किया था। भाषाई परिवार के स्तर पर भोजपुरी एक आर्य भाषा है। भोजपुरी प्राचीन समय मे कैथी लिपि मे लिखी जाती थी।
यह विश्व में भारत के अलावा नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, लुप्तप्राय भाषा गुयाना और त्रिनिदाद और टोबैगो आदि देशों में बोली जाती है।
5. मैथिली
मगध के ऊपरी भाग की बोली को मैथिली कहा जाता है। मैथिली भारत के बिहार और झारखंड राज्यों और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है।
दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, शिवहर, भागलपुर, मधेपुरा, अररिया, सुपौल, वैशाली, सहरसा, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर आदि मैथिली बोली के क्षेत्र है।
नेपाल के आठ जिलों धनुषा,सिरहा,सुनसरी, सरलाही, सप्तरी, मोहतरी,मोरंग और रौतहट में भी यह बोली जाती है।
6. मगही
मगध प्रदेश की बोली को मगही कहा जाता है। मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। इसका निकट का संबंध भोजपुरी और मैथिली भाषा से है और अक्सर ये भाषाएँ एक ही साथ बिहारी भाषा के रूप में रख दी जाती हैं। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है।
यह बिहार के गया, पटना, राजगीर, नालंदा, जहानाबाद, अरवल, नवादा, शेखपुरा, लखीसराय, जमुई और औरंगाबाद के इलाकों में मुख्य रूप से बोली जाती है।
उत्तरी हिन्दी (गढ़वाली, कुमाऊँनी) की बोलियाँ
उत्तरी हिन्दी की बोलियों को पहाड़ी हिन्दी भी कहा जाता है। पहाड़ी का विकास ‘खस प्राकृत’ से माना जाता है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने इसे ‘मध्य पहाड़ी‘ नाम से सम्बोधित किया है। पहाड़ी हिन्दी कुमाऊँ और गढ़वाल प्रदेश की भाषा है।
1. गढ़वाली
गढ़वाल प्रदेश की बोली को गढ़वाली कहा जाता है। इस क्षेत्र में गढ़वाल, टिहरी, चमोली आदि जिले आते हैं। गढ़वाली में लोकगीत-साहित्य का प्राचुर्य है। गढ़वाली पर ब्रज और राजस्थानी का प्रभाव भी माना जाता है।
2. कुमाऊँनी
यह कुमाऊं प्रदेश की बोली है, जिसे प्राचीन काल में कुर्माचल प्रदेश कहा जाता था। कुमाउनी को दरद, राजस्थानी, खड़ी बोली, किरात, भोट आदि बोलियों से प्रभावित माना जाता है। इसकी 12 उपबोलियाँ मानी जाती हैं, जिसमें से ‘खस’ प्रमुख उपबोली है।
दक्षिणी हिन्दी (दक्खिनी) बोली
दक्खिनी, इस क्षेत्र में हिन्दी की एक यही बोली मिलती है। दक्खिनी के अन्य नाम हिन्दी, हिन्दवी, दकनी, दखनी, देहलवी, हिन्दुस्तानी, ज़बाने हिन्दुस्तानी, दक्खिनी हिन्दी, दक्खिनी उर्दू, मुसलमानी आदि। दक्खिनी हिन्दी मूलत: हिन्दी का ही एक रूप है।
ख्वाजा बंदानबाज, गैसूदराय, मुहम्मद कुली, कुतुबशाह आदि इस भाषा के प्रमुख साहित्यकार हैं।
दक्खिनी बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- दक्खिनी और खड़ी बोली में बहुत साम्य है। मिट्टा, सुक्का, किच्चड़ आदि द्वित्व व्यंजन युक्त शब्द दक्खिनी में पाये जाते हैं।
- दक्खिनी में ‘न्द’, ‘म्ब’ आदि के स्थान पर क्रमशः ‘न’, ‘म्म’ आदि बोला जाता है, जैसे चान्दनी > चाननी, गुम्बज > गुम्मज आदि।।
- कारक परसर्गों में कर्म में ‘कू’, करण में ‘सू’ सम्बन्ध में ‘क्या’ केरा, अधिकरण में ‘मने’ ‘पो’ आदि अतिरिक्त परसर्ग पाये जाते हैं।
उर्दू भी हिन्दी की एक शैली ही है, बहुत सशक्त एवं सजीव शैली। ऐसी स्थिति में ‘दक्खिनी हिन्दी’ हिन्दी ही है। किसी भी दक्खिनी गद्य-लेखक या कवि ने उसके लिए ‘उर्दू’ शब्द का प्रयोग नहीं किया है।
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. हिन्दी भाषा की कुल कितनी बोलियाँ हैं?
हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्रों की 4 उपभाषाएं एवं लगभग 18 प्रमुख बोलियां है- (i) पश्चिमी हिन्दी (हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुंदेली और राजस्थानी), (ii) पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी और मैथिली), (iii)उत्तरी हिन्दी (गढ़वाली, कुमाऊँनी), और (iv) दक्षिणी हिन्दी (दक्खिनी)।
2. हिंदी की प्रमुख बोलियां कौन सी है उनकी विशेषताएं क्षेत्र विस्तार से लिखिए?
हिंदी की प्रमुख बोलियां और क्षेत्र विस्तार- (i) पश्चिमी हिन्दी (हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुंदेली और राजस्थानी), (ii) पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी और मैथिली), (iii)उत्तरी हिन्दी (गढ़वाली, कुमाऊँनी), और (iv) दक्षिणी हिन्दी (दक्खिनी)।
3. पूर्वी हिंदी की कितनी बोलियां हैं?
पूर्वी हिंदी में तीन प्रमुख बोलियाँ हैं- अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। जार्ज ग्रियर्सन मूल रूप से इनमें दो ही बोलियों- अवधी और छत्तीसगढ़ी को मानने के पक्ष में थे।
4. बोली कितने प्रकार के होते हैं?
हिन्दी बोली के कुल 18 प्रकार हैं। यदि हिन्दी की बोली के प्रकार प्रयोग के आधार पर पूछे जाए तो 19 बोलियाँ होती है। क्योंकि एक अतिरिक्त नेपाली हिन्दी जुड़ जाती है।
5. हिंदी की भाषा कितनी होती है?
भारत के संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है- हिंदी, बंगाली, असमिया, बोडो, डोंगरी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, उर्दू, सिंधी, संथाली, संस्कृति, पंजाबी, ओरिया, नेपाली, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, कश्मीरी, कन्नड, कोंकड़ी। जो देश के लगभग 90% लोग बोलते हैं। अंग्रेजी को अतिरिक्त भाषा के रूप में शामिल किया गया है। इन भाषाओं को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध कर राजभाषा की संज्ञा दी गई है।
6. भारत में कितनी भाषाएं बोली जाती हैं?
भारत में लगभग 58 भाषाएं स्कूलों में पढ़ायी जाती है। भारत के संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है।
7. खड़ी बोली का दूसरा नाम और खड़ी बोली के जनक कौन हैं?
खड़ी बोली को कौरवी, नागरी आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। ग्रियर्सन ने इसे ‘देशी हिन्दुस्तानी‘ कहा है। भारतेंदु खड़ी बोली के जनक माने जाते हैं।