भारोपीय भाषा परिवार की भारतीय शाखा को भारतीय आर्यभाषा परिवार कहते हैं। भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भाषा परिवार विश्व एवं भारत का सबसे बड़ा भाषा परिवार है। भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रश, प्राचीन फ्रांसीसी, अवेस्ता , ग्रीक, लैटिन, अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली, इतालवी, फ़ारसी, हिंदी, बंग्ला , गुजराती, मराठी इत्यादि भाषाएं आती हैं।
भारतीय आर्यभाषा परिवार की कई भाषाएं उत्तर भारत में बोली जातीं हैं। भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएं विश्व की लगभग आधी आबादी (45%) द्वारा बोली जातीं हैं। जबकि भारत में इस भाषा परिवार की भाषाएं लगभग 80% आबादी द्वारा बोली जातीं हैं।
भारतीय आर्य भाषा परिवार
विश्व के भाषा परिवारों में यह भाषा परिवार संसार का एक अत्यंत विशाल भाषा परिवार है। इसका प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है। इसी से हिन्दी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं का विकास हुआ।
वैदिक संस्कृत से आधुनिक युग की भारतीय संस्कृत तक आने में इसे निम्न चार चरणों में होकर गुजरना पड़ा-
- वैदिक संस्कृत (1500 ई.पूर्व से 800 ई.पू. तक): जिसमें चार वेदों की रचना हुई।
- लौकिक संस्कृत (800 ई.पू. से 500 ई.पू. तक): जिसमें रामायण, महाभारत आदि महाकाव्य लिखे गए।
- पालि और प्राकृत (500 ई.पू. से 500 ई. तक): यह लौकिक संस्कृत का परिवर्तित रूप था। इसमें बौद्ध साहित्य की रचना हुई।
- अपभ्रंश (500 से 1000 ई. तक – प्राकृत परिवर्तित रूप): देश में उस समय अपभ्रंश के शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री आदि कई रूप प्रचलित थे।
इस विकास क्रम से स्पष्ट है कि द्रविड़ परिवार की तमिल, तेलुगु, मलयालम तथा कन्नड़ को छोड़कर भारत की सभी भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है।
भारोपीय या भारत-यूरोपीय भाषा परिवार का वर्गीकरण:
प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं:
- संस्कृत
- पाली
- प्राकृत
- अपभ्रश
- प्राचीन फ्रांसीसी
- अवेस्ता
- ग्रीक
- लैटिन
आधुनिक भारोपीय भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं:
- अंग्रेजी
- रूसी
- जर्मन
- स्पेनी
- फ्रांसीसी
- पुर्तगाली
- इतालवी
- फ़ारसी
- हिंदी
- बंग्ला
- गुजराती
- मराठी
आधुनिक भारतीय आर्य-भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है, जिसका प्रचलन एवं प्रयोग 500 से 1000 ई. के बीच हुआ करता था। देश में उस समय अपभ्रंश के शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री आदि कई रूप प्रचलित थे। इन्हीं से विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओं की धारा निकली है। अपभ्रंश पालि-प्राकृत से और पालि-प्राकृत वैदिक संस्कृत से विकसित है।
आर्य परिवार की आधुनिक भारतीय भाषाओं में हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी, सिंधी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, उडिया और असमिया प्रमुख हैं। संस्कृति से विकसित होने के कारण इन भाषाओं में न केवल संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, बल्कि व्याकरण के कई रूप भी इनमें लगभग समान हैं। यही कारण है कि भारतीय आर्य-परिवार की इन भाषाओं को परस्पर समझने या सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती।
मुगलकाल में हिन्दी भाषा पर प्रभाव डालने वाली दो प्रमुख भाषाएँ अरबी और फारसी थीं। जिन्होंने विशेषतः उर्दू के माध्यम से हिन्दी के शब्द भण्डार को अत्यधिक प्रभावित किया। इसी प्रकार आजकल हिन्दी के शब्द भण्डार तथा वाक्य रचना को गहराई से प्रभावित करने वाली दूसरी भाषा है अंग्रेजी। अंग्रेजी का प्रभाव मुख्यत: ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में अधिक महत्त्वपूर्ण है।
इंडो-आर्यन भाषा (आर्य भाषा/भारोपीय भाषा)
पहले ही बताया जा चुका है कि इंडो-आर्यन भाषा परिवार दुनिया के सबसे बड़े भाषा परिवारों में से एक है और इसमें दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली कई भाषाएँ शामिल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 1,000 से अधिक इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं, जिनमें से हर साल इनमें कुछ एक की वृद्धि होती जाती हैं।
सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली इंडो-आर्यन भाषाओं में से कुछ में हिंदी, बंगाली, पंजाबी, मराठी, उर्दू और गुजराती शामिल हैं। इनमें से कई भाषाओं की एक लंबी साहित्यिक परंपरा है और इनका उपयोग लिखित संचार के साथ-साथ शिक्षा, मीडिया और वाणिज्य के लिए किया जाता है।
भारत में, संविधान 22 अनुसूचित भाषाओं को मान्यता देता है, जिनमें से कई इंडो-आर्यन हैं, जैसे कि हिंदी, बंगाली, पंजाबी, मराठी, उर्दू और गुजराती। भारत सरकार शिक्षा, मीडिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के उपयोग सहित इन भाषाओं के उपयोग को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है।
कुल मिलाकर, इंडो-आर्यन भाषा परिवार दक्षिण एशियाई संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसकी विविध भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।