पालि भाषा (प्रथम प्राकृत)
पालि भाषा (500 ई.पू. से 1 ई. तक): ‘पालि’ का अर्थ ‘बुद्ध वचन‘ (पा रक्खतीति बुद्धवचनं इति पालि) होने से यह शब्द केवल मूल त्रिपिटक ग्रन्थों के लिए प्रयुक्त हुआ। पालि में ही त्रिपिटक ग्रन्थों की रचना हुई । त्रिपिटकों की संख्या तीन है- (1) सुत्त पिटक (2) विनय पिटक एवं (3) अभिधम्म पिटक।
बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से सम्राट अशोक के पुत्र कुमार महेन्द्र त्रिपिटकों के साथ लंका गए। वहाँ लंका नरेश ‘वट्टगामनी’ (ई. पू. 291) के संरक्षण में थेरवाद का त्रिपिटक (बुद्ध के उपदेशों का संग्रह) लिपिबद्ध हुआ। ‘पालि’ भारत की प्रथम ‘देश भाषा’ है।
सुत्त पिटक
‘सुत्त पिटक’ साधारण बातचीत के ढंग पर दिये गये बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है। इस पिटक के अन्तर्गत पाँच निकाय आते हैं जो निम्न हैं-(1) दीर्घ निकाय, (2) कज्झिम निकाय, (3) संयुक्त निकाय, (4) अंगुत्तर निकाय और (5) खुद्दक निकाय ।
खुद्दक निकाय: खुद्दक निकाय में पन्द्रह ग्रन्थ हैं-(1) खुद्दक पाठ, (2) धम्म पद, (3) उदान, (4) इतिवुत्तक, (5) सुत्तनिपात, (6) विमानवत्थु, (7) पेतवत्थु, (8) थेरगाथा, (9) थेरीगाथा, (10) जातक, (11) निद्देस, (12) पटिसम्भिदामग्ग, (13) अपदान, (14) बुद्धदवंस एवं (15) चरियापिटक।
विनय पिटक
‘विनय पिटक’ में बुद्ध की उन शिक्षाओं का संकलन है जो उन्होंने समय समय पर संघ-संचालन को नियमित करने के लिए दी थी। ‘विनय-पिटक’ में निम्नलिखित ग्रंथ हैं-(1) महावग्ग, (2) चुल्लवग्ग, (3) पाचित्तिय, (4) पाराजिक, (5) परिवार।
अभिधम्म-पिटक
‘अभिधम्म-पिटक’ में चित्त, चैतसिक आदि धर्मों का विशद् विश्लेषण किया गया है। ‘सुत्तपिटक’ के उपदिष्ट सिद्धान्तों के आधार पर ही वस्तुतः ‘अभिधम्म पिटक’ का विकास हुआ है। ‘अभिधम्म पिटक’ में सात ग्रन्थ हैं-(1) धम्म संगणी, (2) विभंग, (3) धातुकथा, (4) पुग्गल पञ्चत्ति, (5) कथावत्थु, (6) यमक, (7) पट्टान।
‘पाली‘ में त्रिपिटक साहित्य के अलावा ‘अट्ठकथा साहित्य, ‘मिलिन्दपबुहो’, ‘दीपवंश‘, ‘महावंश‘ आदि ग्रन्थ भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन ग्रन्थों के अनुशीलन से पता चलता है कि पालि का प्रचार न केवल उत्तरी भारत में था अपितु बर्मा, लंका, तिब्बत, चीन आदि देशों तक विस्तारित था।
अट्ठकथा-साहित्य के प्रणेता आचार्य बुद्धघोष बतलाये जाते हैं, जिनका समय ईसा की पाँचवीं शताब्दी निश्चित है। बुद्धघोष कृत ‘विसुद्धि मग्ग‘ (विशुद्धमार्ग) को बौद्ध सिद्धान्तों का कोश भी कहा जाता है।
पालि भाषा के व्याकरण ग्रन्थ
पालि भाषा के तीन व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध हैं जो निम्नलिखित हैं-
- कच्चान व्याकरण,
- मोग्गलान व्याकरण,
- सद्देनीति।
कच्चान व्याकरण
‘कच्चान व्याकरण‘ को ‘कच्चान गन्ध‘ या ‘सुसन्धिकप्प‘ भी कहा जाता है। ‘कच्चान व्याकरण’ में चार कप्प (सन्धि कप्प, नाम कप्प, आख्यात कप्प तथा किब्बिधानकप्प), 23 परिच्छेद तथा 675 सूत्र है।
मोग्लान व्याकरण
‘मोग्लान व्याकरण‘ के रचयिता मोग्गलान है। इन्होंने ही इस पर वृत्ति और पंचिका लिखी है। मोगलान श्रीलंका के अनुराधपुर के थूपाराम बिहार में रहते थे तथा वे अपने समय के संघराज थे। ‘मोग्गलान व्याकरण’, पालि व्याकरण में पूर्णता तथा गम्भीरता में सर्वश्रेष्ठ व्याकरण है। इस व्याकरण में 817 सूत्र हैं।
सद्दनीति व्याकरण
‘सद्दनीति व्याकरण’ (1154 ई.) के रचयिता बर्मी भिक्षु अग्गवंश थे, ‘अग्गपण्डित तृतीय’ भी कहलाते थे। ‘सद्दनीति व्याकरण’ तीन (पदमाला, धातुमाला और सूत्तमाला) 27 अध्याय तथा 1391 सूत्रों में निबद्ध है।
‘पालि’ शब्द की व्युत्पत्ति
विभिन्न विद्वानों द्वारा ‘पालि’ शब्द की व्युत्पत्ति निम्नलिखित ढंग से बताई गई है –
विद्वान् | व्युत्पत्ति |
---|---|
आचार्य विधुशेखर | पन्ति > पत्ति > पट्टि > पल्लि > पालि |
मैक्स वालेसर | पाटलि पुत्र या पाऽलि। |
भिक्ष जगदीश कश्यप | परियाय > पलियाय > पालियाय > पालि । |
भण्डारकर व वाकर नागल | प्राकृत > पाकट > पाअड > पाउल > पालि |
भिक्षु सिद्धार्थ | पाठ > पाळ> पाळि > पालि |
कोसाम्बी | पाल् > पालि । |
उदयनारायण तिवारी | पा + णिज् + लि = पालि। |
पालि भाषा का प्रदेश
पालि भाषा के प्रदेश को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा वर्णित पालि भाषा का प्रदेश निम्नांकित है-
विद्वान | पालि भाषा प्रदेश |
---|---|
श्रीलंकाई बौद्ध तथा चाइल्डर्स | मगध |
वेस्टरगार्ड तथा स्टेनकोनो | उज्जयिनी या विन्ध्य प्रदेश |
ग्रियर्सन व राहुल | मगध |
ओलडेन वर्ग | कलिंग |
रीज डेविड्स | कोसल |
सुनीतिकुमार चटर्जी | मध्यदेश की बोली |
देवेन्द्रनाथ शर्मा | मथुरा के आसपास का भू भाग |
उदयनारायण तिवारी | मध्यदेश की बोली |
सर्वसम्मति से विद्वानों ने पालि भाषा का प्रदेश, मध्य प्रदेश की बोली को स्वीकार किया है।
पालि की वर्ण संघटना या ध्वनियाँ
पालि के प्रसिद्ध वैयाकरण कच्चायन के अनुसार पालि में 41 ध्वनियाँ होती है तथा मोग्गलान के अनुसार पालि में कुल 43 ध्वनियाँ होती है। कच्चायन के अनुसार पालि में 8 स्वर तथा 33 व्यंजन होते हैं तथा मोग्गलान के अनुसार 10 स्वर तथा 33 व्यंजन होते हैं।
वर्णों का वर्गीकरण
पालि में वर्णों का वर्गीकरण निम्न ढंग से किया जा सकता है-
स्वर –
- ह्रस्व-अ, इ, उ, एँ, ओं
- दीर्घ-आ, ई, ऊ, ए, ओ
व्यंजन-
- क वर्ग – क, ख, ग, घ, ङ
- च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ
- ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण ।
- त वर्ग – त, थ, द, ध, न ।
- प वर्ग – प, फ, ब, भ, म ।
- य, र, ल, व, स, ह, ळ, अं।
पालि भाषा की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ
- अनुस्वार (अं) पालि में स्वतन्त्र ध्वनि है जिसे पालि वैयाकरण में निग्गहीत नाम से अभिहित किया है। (बिन्दु निग्गहीत)।
- टर्नर के अनुसार पालि में वैदिकी की भाँति ही संगीतात्मक एवं बलात्मक, दोनों स्वराघात थी।
- ग्रियर्सन तथा भोलानाथ तिवारी पालि में बलात्मक स्वराघात मानते हैं। जबकि जूल ब्लाक किसी भी स्वराघात को नहीं स्वीकार करते हैं।
- पालि में तीन लिंग, तीन वाच्य तथा दो वचन (एक वचन और बहुवचन) का प्रयोग मिलता है। पालि में द्विवचन नहीं होता है।
- पालि हलन्त रहित, छह कारक, आठ लकार (चार काल, चार भाव) तथा आठगण युक्त भाषा है।