राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है- “राज-काज की भाषा।” अर्थात जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह ‘राजभाषा‘ कहलाती है। राजाओं-नवाबों के जमाने में इसे ‘दरबारी भाषा‘ कहा जाता था। राजभाषा सरकारी कामकाज चलाने की आवश्यकता की उपज होती है। राजभाषा का एक निश्चित मानक स्वरूप होता है जिसके साथ छेड़छाड़ या प्रयोग नहीं किया जा सकता। राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जबकि राष्ट्रभाषा नहीं।

भारतीय संविधान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए हिन्दी के अतिरिक्त 21 अन्य भाषाएं राजभाषा स्वीकार की गई हैं। राज्यों की विधानसभाएं बहुमत के आधार पर किसी एक भाषा को अथवा चाहें तो एक से अधिक भाषाओं को अपने राज्य की राजभाषा घोषित कर सकती हैं।
भारतीय संविधान में वर्तमान में 22 आधिकारिक भाषाओं का उल्लेख है- असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली और गुजराती।
भारत में केंद्र सरकार की राजभाषा के रूप में ‘हिन्दी‘ और ‘अंग्रेजी‘ को स्वीकार किया गया है। राज्य सरकारों की अपनी-अपनी राज्यभाषाएँ (राजभाषा) हैं।
हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 ई० को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है।
राजभाषा देश को अपने प्रशासनिक लक्ष्यों के द्वारा राजनीतिक-आर्थिक इकाई में जोड़ने का काम करती है। अर्थात् राजभाषा की प्राथमिक शर्त राजनीतिक प्रशासनिक एकता कायम करना है।
राजभाषा का प्रयोग-क्षेत्र सीमित होता है, यथा – वर्तमान समय में भारत सरकार के कार्यालयों एवं कुछ राज्यों हिन्दी क्षेत्र के राज्यों में राज-काज हिन्दी में होता है। अन्य राज्य सरकारें अपनी-अपनी भाषा में कार्य करती हैं, हिन्दी में नहीं- महाराष्ट्र मराठी में, पंजाब पंजाबी में, गुजरात गुजराती में आदि।
राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है स्वभाषा या परभाषा। जैसे, मुगल शासक अकबर के समय से लेकर मैकाले के काल तक फारसी राजभाषा तथा मैकाले के काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजी राजभाषा थी जो कि विदेशी भाषा थी। जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया जो कि स्वभाषा है।