नेपाली भाषा (Nepali Bhasha)
नेपाली भाषा नेपाल की आधिकारिक भाषा है और भारत और भूटान के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है। यह एक इंडो-आर्यन भाषा है। नेपाली भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और इसकी एक समृद्ध साहित्यिक विरासत है, जिसमें लोक गीत, महाकाव्य, कविताएं और आधुनिक साहित्य शामिल हैं। नेपाली भाषा संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित है और इसमें तिब्बती, बंगाली और अंग्रेजी के कई शब्द शामिल हैं।
नेपाल के अतिरिक्त यह भाषा भारत, भूटान, तिब्बत, म्यांमार में बोली जाती है। भारत में नेपाली भाषा सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों (आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय) तथा उत्तराखण्ड के अनेक भारतीय लोगों की मातृभाषा है। 1.7 करोड़ से अधिक मातृभाषी वक्ताओं और वैश्विक स्तर पर लगभग 12 करोड़ वक्ताओं के साथ, नेपाली दुनिया में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
भाषा का नाम | नेपाली |
लिपि | देवनागरी लिपि |
भाषा दिवस | 20 अगस्त (नेपाली भाषा मान्यता दिवस, 1992 से) |
बोली क्षेत्र | नेपाल, भारत (सिक्किम, पश्चिम बंगाल, आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा उत्तराखण्ड), भूटान, तिब्बत, म्यांमार |
वक्ता | लगभग 12 करोड़, 1.7 करोड़ (मातृभाषी) |
भाषा परिवार | भारतीय आर्य भाषा परिवार (इंडो-आर्यन भाषा) |
आधिकारिक भाषा | नेपाल तथा भारत |
महत्वपूर्ण तथ्य:
- नेपाली, नेपाल की राष्ट्रभाषा है और भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में से एक है।
- इसे ‘खस कुरा‘, ‘खस भाषा‘ या ‘गोर्खा खस भाषा‘ भी कहते हैं तथा कुछ सन्दर्भों में ‘गोर्खाली‘ एवं ‘पर्बतिया‘ भी।
- नेपाली भाषानेपाल की राष्ट्रीय भाषा हैं। यह भाषा नेपाल की लगभग 45% लोगों की मातृभाषा भी है।
- नेपाली भाषा नेपाल के अतिरिक्त भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा उत्तराखण्ड के अनेक भारतीय लोगों की मातृभाषा है। भूटान, तिब्बत और म्यानमार के भी अनेक लोग यह भाषा बोलते हैं।
नेपाली भाषा की उत्पत्ति और विकास:
नेपाली भाषा की उत्पत्ति पहली सहस्राब्दी (1 से 1000 ईस्वी) के उत्तरार्ध में देखी जा सकती है, जब विभिन्न इंडो-आर्यन बोलियाँ उस क्षेत्र में बोली जाती थीं जो अब आधुनिक नेपाल है। समय के साथ, ये बोलियाँ अलग-अलग भाषाओं में विकसित हुईं, और नेपाली अपने आप में एक अलग भाषा के रूप में उभरी।
17वीं सदी के अंत और 18वीं सदी की शुरुआत में, नेपाली भाषा ने अपने आधुनिक रूप लेना शुरू किया, जो हिंदू धर्म की आधिकारिक भाषा संस्कृत और काठमांडू घाटी के स्वदेशी नेवार समुदाय की भाषा, नेवारी भाषा से प्रभावित थी। इस समय के दौरान, नेपाली प्रशासन की भाषा बन गई और शाह वंश के दरबार में आधिकारिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने लगी, जिसने 17वीं शताब्दी के अंत से 19वीं शताब्दी के मध्य तक नेपाल पर शासन किया।
तिब्बती, बंगाली और अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं की विशेषताओं को लेते हुए, नेपाली ने अगली कई शताब्दियों में विकसित होती रही। आज, नेपाली दक्षिण एशिया की प्रमुख भाषाओं में से एक है, और नेपाल की आधिकारिक भाषा है।
नेपाली भाषा का बोली क्षेत्र:
नेपाली नेपाल के कई क्षेत्रों के साथ-साथ भारत, तिब्बत, म्यांमार और भूटान के कुछ हिस्सों में बोली जाती है।
- नेपाल में, नेपाली देश के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में प्रमुख भाषा है, और पूरे देश में व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है। यह देश में कई अलग-अलग भाषाओं के बोलने वालों के लिए लोकभाषा भी है।
- भारत में, नेपाली सिक्किम, पश्चिम बंगाल, आसाम, मणिपुर, उत्तराखण्ड, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के कुछ हिस्सों में समुदायों द्वारा बोली जाती है।
- भूटान में, नेपाली आबादी के एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक द्वारा बोली जाती है, विशेष रूप से देश के दक्षिणी क्षेत्रों में।
- इसके अतिरिक्त, नेपाली आप्रवासन के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों सहित दुनिया भर के देशों में नेपाली भाषी समुदाय हैं।
नेपाली भाषा दिवस (मान्यता दिवस)
नेपाल में नेपाली भाषा दिवस अवकाश:
नेपाली भाषा मान्यता दिवस, जिसे राष्ट्रीय नेपाली भाषा दिवस के रूप में भी जाना जाता है, नेपाल में प्रतिवर्ष बैशाख 11 (आमतौर पर अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत में) में मनाया जाने वाला एक सार्वजनिक अवकाश है। यह दिन नेपाली भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक विरासत की मान्यता और उत्सव को समर्पित है।
नेपाली भाषा मान्यता दिवस को पहली बार 2063 विक्रम संवत (2006 ईस्वी) में सार्वजनिक अवकाश के रूप में नेपाली सरकार द्वारा घोषित किया गया था। इस दिन उत्सव मनाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, और स्कूल और विश्वविद्यालय भाषा और इसके साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
भारत में नेपाली भाषा आंदोलन और नेपाली भाषा मान्यता दिवस:
नेपाली भाषा आंदोलन भारत गणराज्य में एक राजनीतिक आंदोलन था, जिसने नेपाली भाषा को भारत में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाई। 20 अगस्त 1992 को, लोकसभा ने भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में नेपाली भाषा को जोड़ने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। 2017 में एक अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग 40 मिलियन नेपाली भाषी भारतीय हैं।
वार्षिक रूप से, भारतीय गोरखा 20 अगस्त को नेपाली भाषा मान्यता दिवस मनाते हैं। महत्वपूर्ण नेपाली भाषी आबादी वाले स्थानों में पूरे भारत में परेड, साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके यह दिन मनाया जाता है। उसी दिन को मैतेई भाषा दिवस (उर्फ मणिपुरी भाषा दिवस) के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि नेपाली और मैतेई भाषा (मणिपुरी भाषा) दोनों को एक ही समय में “आधिकारिक भाषा” का दर्जा मिला था।
नेपाली भाषा की लिपि
नेपाली भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी एक अबुगिदा लिपि है, जिसका उपयोग भारत में हिंदी, मराठी और संस्कृत सहित कई भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता है। इसमें कुल 52 वर्ण होते हैं, और इसमें 13 स्वर, 39 व्यंजन शामिल हैं। विस्तार से पढ़ें- देवनागरी लिपि।
नेपाली भाषा की वर्णमाला
नेपाली वर्णमाला (अर्थात देवनागरी लिपि या हिन्दी वर्णमाला) में निम्नलिखित वर्ण होते हैं:-
स्वर (Vowels):
- अ (a)
- आ (ā)
- इ (i)
- ई (ī)
- उ (u)
- ऊ (ū)
- ऋ (ri)
- ए (e)
- ऐ (ai)
- ओ (o)
- औ (au)
- अं (an)
- अः (ah)
व्यंजन (Consonants):
- क (ka)
- ख (kha)
- ग (ga)
- घ (gha)
- ङ (nga)
- च (ca)
- छ (cha)
- ज (ja)
- झ (jha)
- ञ (ña)
- ट (ṭa)
- ठ (ṭha)
- ड (ḍa)
- ढ (ḍha)
- ण (ṇa)
- त (ta)
- थ (tha)
- द (da)
- ध (dha)
- न (na)
- प (pa)
- फ (pha)
- ब (ba)
- भ (bha)
- म (ma)
- य (ya)
- र (ra)
- ल (la)
- व (va)
- श (sha)
- ष (ṣa)
- स (sa)
- ह (ha)
- क्ष (ksha)
- त्र (tra)
- ज्ञ (gya)
ये 49 (13 +36) वर्ण हैं, इनके अतिरिक्त तीन वर्ण “श्र (sr), ड़ (ḍ), ढ़ (ḍh)” मानक देवनागरी वर्णमाला में और गिने जाते हैं। इस प्रकार देवनागरी में कुल 52 वर्ण हो जाते हैं।
नेपाली भाषा की शब्द संरचना और वाक्य:
- तपाईंको नाम के हो ? – आपका नाम क्या है ? – What is your name ?
- तिम्रो नाम के हो? – तुम्हारा नाम क्या है ? – What is your name ?
- मेरो नाम राम हो। – मेरा नाम राम है। – My name is Ram.
- तपाईंको घर कहाँ हो? – आपका घर कहां है? – Where is your house?
- तिम्रो घर कहाँ हो? – तुम्हारा घर कहां है? – where is your house
- खाना खाने ठाउँ कहाँ छ? – खाने खाने की जगह कहाँ है? – Where is the place to eat?
- शौचालय कहाँ छ? – शौचालय कहाँ है? – Where is the toilet?
नेपाली साहित्य
नेपाली साहित्य (गद्य तथा पद्य) दोनों ही का आरम्भ अठारहवीं शती के मध्य से माना जाता है। प्रथम कवि के रूप में “उदयानंद अर्ज्याल” का और प्रथम गद्य लेखक के रूप में जोसमनी परम्परा के प्रसिद्ध सन्त “शशिधर” (जन्म 1804 वि॰, वैराग्याम्बर ग्रन्थ के प्रणेता) का नाम लिया जाता है।
भानुभक्त आचार्य (जन्म 1871 वि॰) नेपाली के तुलसीदास माने जाते हैं। इनकी रामायण अध्यात्मरामायण का अनुवाद है। इनके पूर्व इन्दिरस, विद्यारण्य केसरी, वसन्तशर्मा, यदुनाथ पोखरेल, पतंजलि गजुरेल आदि कवि हो चुके थे। नेपाली भाषा को शक्ति एवं आत्मबोध भानुभक्त द्वारा ही मिला।
भानुभक्त के पश्चात् पहले खेवे के सशक्त कवियों में मोतीराम भट्ट का नाम अमर है। ये नेपाली के भारतेन्दु कहे जा सकते हैं। इनकी लेखनी के माध्यम से बंगला और हिंदी का प्रभाव नेपाली साहित्य पर पड़ा और नेपाली भाषा और साहित्य दोनों ही में व्यापकता का समावेश हुआ। भानुभक्त ने अपनी रामायण की रचना में वर्णिक शब्दों का प्रयोग किया और यह परम्परा नेपाल में इतनी पुष्ट हुई कि श्री माधव प्रसाद घिमिरे जैसे स्वच्छन्दतावादी (रोमांटिक) कवि भी अपनी उत्कृष्टतम कविताएँ वर्णिक छन्द में ही लिख डालते हैं।
भानुभक्त की नेपाली भाषा का स्वल्प परिचय उनकी रामायण के एक निम्नांकित छन्द से मिल सकता है-
अत्रीका आश्रममा बसि रघुपतिले प्रेमले दिन् बिताई।
दोस्रा दिन्मा सवेरै उठिकन बनमा जान मन्सुब्चिताई ॥
अत्रीजीका नजिक्मा गइकन अब ता जान्छु बिदा म पाऊँ।
रास्ता यो जाति होला भनिकन कहन्या एक् अगूवा म पाउँ ॥
द्वितीय महायुद्ध के बाद भारत के स्वातंत्र्य आंदोलन के प्रभाव से नेपाली साहित्य में भी आधुनिकता का समावेश हुआ। किंतु राणाशाही समाप्त होने पर ही नेपाली साहित्य में सच्ची आधुनिकता का प्रवेश हुआ।
राणाशाही का अंत होने के पूर्व उससे लोहा लेने वाले और उसके बाद नई चेतना का प्रतिनिधित्व करनेवाले साहित्यकारों में लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा तथा मास्टर हृदय चंद्र सिंह प्रधान के अतिरिक्त नेपाली साहित्य के भीष्मपितामह कवि शिरोमणि लेखनाथ पौडेल, पंडितराज सोमनाथ सिग्द्याल और पंडित धरणीधर कोइराला के अतिरिक्त बालकृष्ण “सम”, भवानी भिक्षु, सिद्धिचरण श्रेष्ठ, “केदारमान” व्यथित, भीमनिधि तिवारी, माधव प्रसाद धिमिरे, प्रेमराजेश्वरी थापा, विजयबहादुर मल्ल, ऋषभदेव शास्त्री आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
बालकृष्ण सम के सम्बन्ध में वर्ल्डमार्क इंसाइक्लोपीडिया ऑव नेशंस (हार्पर ऐंड ब्रदर्स, न्यूयार्क) में सम को नेपाली का “शेक्सपियर” कहा गया है। सर्वश्रेष्ठ नेपाली नाटककार होने के साथ साथ इन्होंने “चीसो चुलो” (ठंढा चूल्हा) महाकाव्य की भी रचना की है।
सिद्धिचरण श्रेष्ठ की कविता में सर्वप्रथम स्वच्छंदतावादी काव्य का समारम्भ हुआ है। “ओखलढुंगा” शीर्षक इनकी कविता अमर है।
वर्तमान साहित्यकारों में भवानी भिक्षु बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न स्त्रष्टा हैं। आपने काव्य में अस्तित्ववाद और समाजवाद के स्वर मुखर हैं। “मुहुचा” शीर्षक कविता इसका प्रमाण है। आप अत्यंत उच्चकोटि के कहानीकार भी है। ऐन्द्रिकता से परे आध्यात्मिक स्तर पर मानव प्रेम का उदात्त स्वरूप क्या हो सकता है, इसे जानने के लिए इनकी प्रसिद्ध कहानी “मैआं साहब” और “त्यो फेरि फर्कला”, पठनीय हैं।
महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा ने माइकेल मधुसूदन दत्त के “मेघनाथ वध” महाकाव्य के ढँग के सुलोचना महाकाव्य की रचना कुछ ही दिनों में कर डाली थी। आपको महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायनने “पन्त-प्रसाद-निराला”का समुच्चरूप से संबोधन किया है। महाकवि देवकोटा रचित मुनामदन खण्डकाव्य नेपाली जनों के मन-मन में बसा है। आपकी बिलक्षण प्रतिभाको लेकर बिभिन्न कहाँनियाँ प्रचलित है।
इसमें सन्देह नहीं कि राणा शाही के दिनों में उससे संघर्ष करने वाले कवि, कहानीकार और उपन्यासकार प्राय: अन्योक्ति का सहारा लेते थे और कभी आशा और घोर निराशाजनक परिस्थितियों के प्रभाव से उनके काव्य में छायावाद, प्रतीक और कभी कभी नैराश्यवाद की छाया पड़ती रहती थी। फिर भी नियतिवाद और घोर निराशावाद से नेपाली काव्य सदा ही मुक्त रहा।
वास्तव में हिमवत खंड (नेपाल) ही प्रकृति के हाथों मिट्टी पत्थर द्वारा लिखा हुआ एक महाकाव्य है। इसके उर्वर लेक (पहाड़ ऊपर खेत), खोला (नद) हरीयो जंगल, जुनीली रात, आदि स्थायी आहलाद एवं मुक्ति के शाश्वत साधन हैं।
भारत के ही समान नेपाल भी कभी प्रमुखत: कृषिकार्य प्रधान देश है। नेपाल में गर्मी तथा जाड़ों की रात में आकाश बहुत ही आकर्षक रहता है। दिन में सदा ही यहाँ सूर्य की महिमा बिखरी रहती है। यही कारण है कि नेपाल के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर चंद्र और उनके नीचे सूर्य की छाप अंकित हैं।
कुल मिला कर नेपाल के जड़ चेतन वातावरण में एक निश्चलता, निश्छलता, संगीत, संतोष और आह्लाद की सुवासित गंध व्याप्त रहती है। यही कारण है कि वहाँ की कला और साहित्य में आशा, आस्था, प्रेम की त्यागमयी अनुभूति और पुरुषार्थ तथा जीवन के प्रति आह्लाद और संगीत की ध्वनि मुखरित है। यद्यपि काव्य ही नहीं, नाटक, उपन्यास, कहानी, समीक्षा और निबन्ध आदि सभी विधाओं में नेपाली साहित्य पर्याप्त मात्रा में सम्पन्न है, तथापि यह कहना अत्युक्ति न होगी कि नेपाली में आज भी कविताएँ सर्वाधिक है।
नेपाली साहित्य में भी नाटकों का आरम्भ संस्कृत के नाटकों के अनुवाद से हुआ। उन दिनों अनुवादक और लेखक ही प्राय: अभिनेता और प्रबंधक भी होते थे। उस समय के नाटककारों में आशुकवि शंभु प्रसाद तथा केसर शमशेर और जीवेश्वर रिमाल, उस्ताद झुपकलाल मिश्र तथा वीरेंद्र केसरी अर्ज्याल के नाम प्रमुख हैं। इसके बाद पौराणिक कथानकों के आधार पर मौलिक नाटकों की रचना में लेखनाथ और उनके पश्चात बालकृष्ण सम और भीमनिधि तिवारी का नाम उल्लेखनीय है। लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा कृत सावित्री सत्यवान, सरदार रुद्रराज पांडेय का “प्रेम”, हृदय चन्द्र सिंह प्रधान का “छेउ लागेर” (एकांकी संग्रह), श्यामदास वैष्णव का “चेतना” “पसल”, “फुटेको बांध” आदि बहुत प्रसिध्द नाटक हैं।
नेपाली साहित्य में सर्वप्रथम मौलिक उपन्यास “सुमती” (विष्णुचरण का लिखा) सन् 1934 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद पंडित रुद्रराज पाण्डेय के तीन मौलिक उपन्यास “रूपमती” “प्रायश्चित्” और “चंपाकली” प्रकाशित हुए। हृदयसिंह प्रधान ने उपन्यास के क्षेत्र में जीवन की गहन समस्याओं की स्थापना की और उनके प्रसिद्ध उपन्यास “स्वास्नी मान्छे” में आधुनिक उपन्यास के सभी लक्षण पाए जाते हैं।
काव्य के बाद नेपाली साहित्य में परिमाण की दृष्टि से कहानी का ही स्थान है। कृष्ण बममल्ल से आरँभ हो नेपाली कहानी साहित्य सम और भवानी भिक्षु तथा भीमनिधि तिवारी, हृदय चंद्र सिंह प्रधान और विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला, विजयबहादुर मल्ल “गोठाले” की लेखनी द्वारा उत्फुल्ल यौवन की स्थिति में पहुँच गया। कृष्ण वममल्ल की कहानियों में गहरी मार्मिकता एवं संवेदनशीलता पाई जाती है। विजयबहादुर मल्ल ने नारीजीवन का मनोवैज्ञानिक चित्रण उपस्थित किया है और हृदय चंद्र सिंह प्रधान ने सामाजिक वैषम्य के भीतर करुणा तथा वेदना की झाँकी प्रस्तुत की है। नेपाली का कथासाहित्य आश्वस्त एवं ऊर्ध्वमुखी है।
निबंध तथा समीक्षा के क्षेत्र में भी बहुत प्रगति है। प्रथम खेमे के निबन्धकारों में पारसमणि प्रधान, रुद्रराज पाण्डेय, सूर्यविक्रम ज्ञवाली, बाबुराम आचार्य, लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा तथा बालकृष्ण सम के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। दूसरे खेमे के निबन्धकारों में बालचंद्र शर्मा, शंकर लामिछाने, राजेश्वर देवकोटा, निरंजन भट्ट, राई, ढुंडिराज भण्डारी, धर्मरत्न यमि, बालकृष्ण पोखरेल आदि के नाम विशिष्ट हैं।
यात्रा विवरण प्रस्तुत करने में रामराज पैाडेल और शुद्ध आत्मपरक ललित निबंध लेखकों में रामराज पंत तथा प्रिंसेप शाह का नाम उल्लेखनीय है।
समीक्षात्मक निबंध लिखनेवाले प्रथम व्यक्ति रामकृष्ण शर्मा हैं। समीक्षा संबंधी प्रथम सम्यक ग्रन्थ समालोचना को सिद्धांत (1946 ई॰) लिखने का श्रेय प्रो॰ यदुनाथ खनाल को है। हृदय चंद्र सिंह प्रधान ने “साहित्य: एक दृष्टिकोण” के ही नेपाली नाळक आदि स्फुट पुस्तकें लिखकर समीक्षा के मार्ग को अधिक प्रशस्त किया। रत्नध्वज जोशी, माधव लाल कर्माचार्य, तथा तारानाथ शर्मा (सर्मा) तथा ईश्वर बराल समीक्षक हैं जिनमें ईश्वर बराल का नाम सर्वोपरि है।
नेपाली साहित्य की आधुनिकतम काव्यधारा सशक्त है। इस समय के प्रसिद्ध तरुण कवियों में भीमदर्शन रोका, एम॰बी॰वि॰ शाह, श्यामदास वैष्णव, धर्मराज थापा, पोषण प्रसाद पांडेय, वासुशशी, जनार्दनसम, जगतबहादुर बुढाथोकी, नीरविक्रमप्यासी, भूपीशेरचन, तुलसीदिवस, कालीप्रसाद रिसाल, प्रेमा शाह आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
पिछले दशक में नेपाली डायास्पोरिक साहित्य की वजह से सोच और ‘आपसी परिवर्तन’ के नए तरीके विकसित किया है। कुछ लेखकों और उपन्यासों, जैसे होमनाथ सुवेदी की ‘यमपुरी की यात्रा’, पंचम अधिकारी की ‘पथिक प्रवासन’, पहचान के नए मॉडल के रोशन दृष्टि प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, नेपाली एक व्यापक रूप से बोली जाने वाली इंडो-आर्यन भाषा है और नेपाल की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भाषा की एक समृद्ध साहित्यिक विरासत है और यह संस्कृत, तिब्बती, बंगाली और अंग्रेजी से काफी प्रभावित है। नेपाली देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और पूरे नेपाल के साथ-साथ भारत और भूटान के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है। नेपाली भाषा मान्यता दिवस, जिसे राष्ट्रीय नेपाली भाषा दिवस के रूप में भी जाना जाता है, नेपाली भाषा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को पहचानने और मनाने के लिए नेपाल में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक सार्वजनिक अवकाश है। नेपाली भाषा का विकास और निरंतर उपयोग दक्षिण एशिया की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और विरासत का प्रमाण है।