कोंकणी भाषा (Konkani Bhasha)
कोंकणी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जो मुख्य रूप से भारत के पश्चिमी तट पर कोंकणी लोगों द्वारा बोली जाती है। यह भारतीय राज्य गोवा में आधिकारिक भाषा है, और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में भी बोली जाती है। कोंकणी का एक समृद्ध इतिहास है, जिसकी जड़ें प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत तक जाती हैं। कोंकणी भाषा की कई बोलियाँ हैं, जिनमें सबसे अधिक बोली जाने वाली गोवा कोंकणी और मंगलोरियन कोंकणी हैं।
लिपि | देवनागरी (प्रमुख), कन्नड, मलयालम और रोमन |
बोली क्षेत्र | गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल |
वक्ता | 25 लाख |
भाषा परिवार | भारतीय आर्य भाषा |
आधिकारिक भाषा | गोवा |
महत्वपूर्ण तथ्य:
- कोंकणी गोवा, महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग, कर्नाटक के उत्तरी भाग, केरल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है।
- भाषायी तौर पर यह ‘आर्य’ भाषा परिवार से संबंधित है और मराठी से इसका काफी निकट का संबंध है।
- राजनैतिक तौर पर इस भाषा को अपनी पहचान के लिये मराठी भाषा से काफी संघर्ष करना पड़ा है।
- भारतीय संविधान के तहत कोंकणी को आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त है।
- 1987 में गोवा में कोंकणी को मराठी के बराबर राजभाषा का दर्जा दिया गया किन्तु लिपि पर असहमति के कारण आजतक इस पर अमल नहीं किया जा सका।
- कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे – देवनागरी, कन्नड, मलयालम और रोमन।
- गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद देवनागरी लिपि में कोंकणी को वहाँ की राजभाषा घोषित किया गया है।
कोंकणी भाषा की उत्पत्ति व विकास:
कोंकणी भाषा की उत्पत्ति का ज्ञान प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत से लगाया जा सकता है। कोंकणी संस्कृत और अन्य प्राकृत भाषाओं के मिश्रण से विकसित हुई, जो प्राचीन भारत में बोली जाने वाली सामान्य भाषाएँ थीं। भाषा समय के साथ पुर्तगाली, मराठी, कन्नड़ और हिंदी सहित कई अन्य भाषाओं से प्रभावित हुई है।
भारत के पश्चिमी तट स्थित कोंकण प्रदेश में प्रचलित बोलियों को सामान्यत: कोंकणी कहते है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के परिणामस्वरूव इस प्रदेश में बोली जानेवाली भाषा के तीन रूप हैं-
- मराठीभाषी क्षेत्र से संलग्न मालवण-रत्नगिरि क्षेत्र की भाषा;
- मंगलूर से संलग्न दक्षिण कोंकणी क्षेत्र की भाषा जिसका कन्नड़ से संपर्क है तथा
- मध्य कोंकण अथवा गोमांतक (गोवा) कारवार में प्रचलित भाषा।
गोवावाला प्रदेश अनेक शती तक पुर्तगाल के अधीन था। वहाँ पुर्तगालियों ने जोर जबर्दस्ती के बल पर लोगें से धर्मपरिवर्तन कराया और उनके मूल सांस्कृतिक रूप को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया। इन सब के बावजूद लोगों ने अपनी मातृभाषा का परित्याग नहीं किया। उल्टे अपने धर्मोपदेश के निमित्त ईसाई पादरियों ने वहाँ की बोली में अपने गंथ रचे। धर्मांतरित हुए नए ईसाई प्राय: अशिक्षित लोग थे। उन्हें ईसाई धर्म का तत्व समझाने के लिये पुर्तगाली पादरियों ने कोंकणी का आश्रय लिया।
प्राचीन काल में गोवा से साष्टी तक के भूभाग में जो बोली बोली जाती थी उसे ही लोग विशुद्ध कोंकणी मानते थे और उसे गोमांतकी नाम से पुकारते थे तथापि सोलहवीं शती तक उसके लिये कोई विशिष्ट नाम रूढ़ नहीं था। पुर्तगालियों को जैसा समझ में आया, वैसा ही नाम उसे दिया और पुकारा। 1553 ई. के जेसुइट पादरियों के आलेखों में उसे कानारी नाम दिया गया है। 17वीं शती में पादरी स्टीफेंस ने दौत्रीन क्रिश्तां नामक पुस्तक लिखी। उसमें उनका कहना था कि उसे उन्होंने कानारी में लिखा है और गोमांतकी बोली का जो व्याकरण उन्होंने तैयार किया उसे उन्होंने ‘कानारी भाषा का व्याकरण’ नाम दिया। इस कानारी शब्द का संबंध कन्नड़ से तनिक भी नहीं है। वरन् समझा जाता है कि समुद्र के किनारे की भाषा होने के कारण ही उसे कानारी कहा गया।
टॉम पीरिश नामक यात्री ने अपनी पुस्तक ‘सूम ऑरिएंताल’ में, जो 1515 ई. में लिखी गई थी, गोवा की बोली का नाम कोंकोनी दिया है। 1658 में जेसुइट पादरी मिगलेद आल्मैद ने भी गोमंतकी के लिये ‘कोंकणी’ शब्द का प्रयोग किया है। अब यह शब्द प्राय: पूरे कोंकण प्रदेश की भाषा के लिये प्रयुक्त होता है। कुछ लोग इसे मराठी की उपभाषा मानते हैं तो कुछ कन्नड़ की। कुछ अन्य भाषावैज्ञानिक इसे आर्यवंश से उद्भूत स्वतंत्र समृद्ध भाषा बताते है।
कोंकणी भाषा का बोली क्षेत्र:
कोंकणी मुख्य रूप से भारत के पश्चिमी तट पर कोंकणी लोगों द्वारा बोली जाती है। यह भारतीय राज्य गोवा में आधिकारिक भाषा है, और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में भी बोली जाती है। कोंकणी बोली जाने वाली कुछ प्रमुख जगहें निम्नलिखित हैं:
- गोवा: कोंकणी गोवा की आधिकारिक भाषा है, और राज्य में अधिकांश आबादी द्वारा व्यापक रूप से बोली जाती है।
- मुंबई: कोंकणी भी मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है।
- मैंगलोर: कोंकणी व्यापक रूप से कर्नाटक के मैंगलोर क्षेत्र में बोली जाती है, जहां इसे मंगलोरियन कोंकणी के नाम से जाना जाता है।
- उडुपी: कोंकणी कर्नाटक के उडुपी क्षेत्र में भी बोली जाती है, जहां इसे उडुपी कोंकणी के नाम से जाना जाता है।
- केरल: कोंकणी केरल के उत्तरी भागों में अल्पसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाती है, जहाँ इसे कोकणी या कनारी के नाम से जाना जाता है।
भारत की नवीनतम जनगणना के अनुसार, लगभग 25 लाख लोग कोंकणी को अपनी पहली भाषा के रूप में बोलते हैं। हालाँकि, कोंकणी बोलने वालों की वास्तविक संख्या अधिक होने की संभावना है, क्योंकि कई लोग कोंकणी को दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में भी बोल सकते हैं।
कोंकणी भाषा की लिपि
कोंकणी कई लिपियों में लिखी जाती है, जिनमें देवनागरी, कन्नड़ और रोमन शामिल हैं। लिपि का चयन अक्सर क्षेत्र और कोंकणी भाषी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होता है।
- देवनागरी लिपि: गोवा और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में कोंकणी के लिए देवनागरी सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली लिपि है। यह संस्कृत लिखने के लिए उपयोग की जाने वाली लिपि है, और इसका उपयोग अन्य भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी और नेपाली को लिखने के लिए भी किया जाता है।
- कन्नड़ लिपि: कन्नड़ लिपि का उपयोग कर्नाटक के कुछ हिस्सों में कोंकणी लिखने के लिए किया जाता है, जहाँ इसे मंगलोरियन कोंकणी के नाम से जाना जाता है।
- रोमन लिपि: रोमन लिपि का उपयोग गोवा और अन्य क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में कोंकणी लिखने के लिए किया जाता है, जहाँ इसका उपयोग अक्सर धार्मिक ग्रंथों और गीतों के साथ-साथ आकस्मिक संचार और कंप्यूटर-आधारित संचार के लिए किया जाता है।
कोंकणी भाषा की वर्णमाला:
कोंकणी की शब्द संरचना
कोंकणी भाषा की शब्द संरचना अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं के समान है। कोंकणी शब्द आमतौर पर जड़ों और प्रत्यय नामक छोटी इकाइयों से निर्मित होते हैं।
- जड़ें: जड़ें कोंकणी शब्दों के मूल निर्माण खंड हैं, और आमतौर पर एक या एक से अधिक शब्दांश होते हैं। वे अक्सर शब्द का मूल अर्थ रखते हैं।
- प्रत्यय (Affixes): प्रत्यय वे तत्त्व हैं जो मूल में जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। कोंकणी में दो प्रकार के प्रत्यय हैं: उपसर्ग और प्रत्यय। उपसर्ग जड़ के आरंभ में जोड़े जाते हैं, जबकि प्रत्यय अंत में जोड़े जाते हैं।
कोंकणी भी विभक्ति का उपयोग करती है, जो तनाव, मनोदशा या अन्य व्याकरणिक संबंधों को इंगित करने के लिए शब्द के रूप को बदलने की प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए, कोंकणी क्रिया “टू गो” को वर्तमान काल (जैसे “मैं जाता हूं”), भूत काल (जैसे “मैं गया”), या भविष्य काल (जैसे “मैं जाऊंगा”) दिखाने के लिए विभक्त किया जा सकता है।
कुछ सरल कोंकणी शब्दों के उदाहरण:
- Hello (हाय): हाय
- Thank you (धन्यवाद): धन्यवाद
- How are you? (तुजंयांना कसेत): तुजंयांना कसेत
- Good morning (शुभप्रभात): शुभप्रभात
- Yes (होय): होय
- No (नाही): नाही
- Food (खाणे): खाणे
- Water (पाणी): पाणी
- House (घर): घर
- Friend (मित्र): मित्र
कोंकणी में प्रयोग होने वाले प्रश्नवाचक शब्द:
- What (कथं): क्या
- Who (कोण): कौन
- Where (कधी): कहाँ
- When (कबत): कब
- Why (कारण): क्यूँ
- How (कथंच): कैसे
- Which (कोणतें): कौन सा
- Whose (कुणचें): किसका
- How many (कतंचे): कितने
- How much (कितेंवर): कितना
कोंकणी में प्रयोग होने वाले नकारात्मक शब्द और पद:
- No (नाही) – नहीं
- Not (नाही) – नहीं
- Don’t (मत) – मत करो
- Cannot (करत नकोस) – नहीं कर सकते
- Nothing (काहींनहीं) – कुछ नहीं
- Never (कधीहीं) – कभी नहीं
- Without (वगळे) – बिना
- Stop (थांब) – रुको
- Avoid (वगळा) – तरह से हटायें
- Refuse (नाकारणे) – इनकार करें
कुछ सामान्य वाक्य कोंकणी भाषा में:
- How are you? (तुजे कथं आहेत?): तुम कैसे हो?
- I love you (मी तुजला प्रेम करतो): मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- Thank you (धन्यवाद): धन्यवाद
- Sorry (माफ करणे): माफी माँगना
- Yes (होय): हाँ
- No (नाही): नहीं
- How much is this? (हे कितेंवर आहे?): यह कितने में है?
- Can you help me? (तुजे मला मदत करू शकता?): तुम मुझे मदत कर सकते हो?
- I don’t understand (मी समजत नाही): मैं समझ नहीं पाता
कोंकणी साहित्य
सत्रहवीं शती से पूर्व इस भाषा का कोई लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस भाषा के साहित्यिक प्रयोग का श्रेय ईसाई मिशनरियों को है। पादरी स्टिफेस की पुस्तक दौत्रीन क्रिश्तां इस भाषा की प्रथम पुस्तक है जो 1622 ई. में लिखी गई थी। उसके बाद 1640 ई. में उन्होंने पुर्तगाली भाषा में इसका व्याकरण ‘आर्ति द लिंग्व कानारी’ नाम से लिखा। इससे पूर्व 1563 ई. के आसपास किसी स्थानीय धर्मांतरित निवासी द्वारा इस भाषा का कोश तैयार हुआ और ईसाई धर्म के अनेक ग्रंथ लिखे गए। पुर्तगाली शासन के परिणामस्वरूप साहित्य निर्माण की गति अत्यंत मंद रही किंतु अब इस भाषा ने एक समृद्ध साहित्य की भाषा का रूप धारण कर लिया है। लोककथा, लोकगीत, लोकनाट्य तो संगृहित हुए ही हैं, आधुनिक नाटक (सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक) और एकांकी की रचना भी हुई है। अन्य विधाओं में भी रचनाएँ की जाने लगी है।
अंत में, कोंकणी एक समृद्ध और जीवंत भाषा है जो मुख्य रूप से भारतीय राज्यों गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में लाखों लोगों द्वारा बोली जाती है। इसकी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, जिसकी जड़ें प्राचीन काल में देखी जा सकती हैं। यह देवनागरी, रोमन और कन्नड़ लिपियों सहित कई लिपियों में लिखी जा सकती है, जो इसे बोलने वाले समुदायों की विविधता को दर्शाता है। व्यापक रूप से बोली जाने के बावजूद, कोंकणी को वर्षों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से एक आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता के संबंध में। फिर भी, कोंकणी भाषी समुदाय लचीला बना हुआ है और संगीत, नृत्य और साहित्य के माध्यम से भाषा और इसकी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है। कुल मिलाकर, कोंकणी एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान भाषा है, और इसके संरक्षण और संवर्धन से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि इसकी अनूठी सांस्कृतिक विरासत और भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता में योगदान को पहचाना और मनाया जाए।