डोगरी भाषा – लिपि, वर्णमाला, साहित्य और इतिहास, in Hindi

Dogri Bhasha - A official language of India
Dogri Bhasha

डोगरी भाषा (Dogri Bhasha)

डोगरी एक इंडो-आर्यन भाषा है। जो मुख्य रूप से भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर, साथ ही हिमाचल प्रदेश और पंजाब के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। यह भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। डोगरी भाषा लगभग 25 लाख लोगों द्वारा बोली जाती है। इस भाषा को पहली बार 19वीं शताब्दी में लिखा गया था, और तब से, डोगरी में कथा, कविता और गैर-कथा के कई कार्यों के साथ भाषा में रुचि का पुनरुत्थान हुआ है। डोगरी की अपनी लिपि है, जो संस्कृत और हिंदी भाषा के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि के समान है। इस भाषा की कई बोलियाँ हैं, जिनमें जम्मू बोली सबसे व्यापक रूप से बोली जाती है और लिखित डोगरी के लिए मानक है।

लिपिटाकरी या टक्करी लिपि
बोली क्षेत्रजम्मू और कश्मीर, हिमाचल के कांगड़ा और उत्तरी पंजाब
वक्ता25 लाख
भाषा परिवारभारतीय आर्य भाषा परिवार

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • डोगरी भारत के जम्मू ,हिमाचल के कांगड़ा और उत्तरी पंजाब के कुछ प्रान्त में बोली जाने वाली एक भाषा है।
  • वर्ष 2003 में इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है।
  • डोगरी के बोलने वाले डोगरे कहलाते हैं तथा डोगरी के भाषाई क्षेत्र को सामान्यतः “डुग्गर” कहा जाता है।

डोगरी की विशेषता:

पश्चिमी पहाड़ी बोलियों के परिवार में, मध्यवर्ती पहाड़ी पट्टी की जनभाषाओं में, डोगरी, चंबयाली, मडवाली, मंडयाली, बिलासपुरी, बागडी आदि उल्लेखनीय हैं। डोगरी इस विशाल परिवार में कई कारणों से विशिष्ट जनभाषा है:-

  • इसकी पहली विशेषता यह है कि दूसरी बोलियों की अपेक्षा इसके बोलनेवालों की संख्या विशेष रूप से अधिक है।
  • दूसरी यह कि इस परिवार में केवल डोगरी ही साहित्यिक रूप से गतिशील और सम्पन्न है।
  • डोगरी की तीसरी विशिष्टता यह भी है कि एक समय यह भाषा कश्मीर रियासत तथा चंबा राज्य में राजकीय प्रशासन के अंदरूनी व्यवहार का माध्यम रह चुकी है।

डोगरी भाषा की उत्पत्ति और विकास:

ऐसा माना जाता है कि यह पहाड़ी भाषा परिवार से विकसित हुई है, जो भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्र में बोली जाने वाली इंडो-आर्यन भाषाओं का एक समूह है। डोगरी भारत के जम्मू क्षेत्र में बोली जाने वाली पहाड़ी भाषा से विकसित हुई है, और समय के साथ, इसने अपनी विशिष्ट विशेषताओं को विकसित किया है, जिसमें इसकी अपनी लिपि, व्याकरण, शब्दावली और उच्चारण शामिल हैं। डोगरी पर संस्कृत, फारसी और पंजाबी सहित कई अन्य भाषाओं का प्रभाव पड़ा है।

डोगरी भाषा का बोली क्षेत्र:

डोगरी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ पंजाब के कुछ हिस्सों में बोली जाती है।

  • जम्मू और कश्मीर में, डोगरी भाषा व्यापक रूप से जम्मू, उधमपुर, रियासी और कठुआ जिलों में बोली जाती है।
  • हिमाचल प्रदेश में, भाषा कांगड़ा, हमीरपुर और बिलासपुर जिलों के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। पंजाब में, गुरदासपुर और होशियारपुर जिलों के कुछ हिस्सों में भाषा बोली जाती है।
  • डोगरी भारत के अन्य हिस्सों और दुनिया भर में रहने वाले डोगरा समुदाय के सदस्यों द्वारा भी बोली जाती है, जिसमें दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों के साथ-साथ यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देश शामिल हैं।

रियासत जम्मू कश्मीर की शरतकालीन राजधानी जम्मू नाम का ऐतिहासिक नगर, डोगरी की साहित्यिक साधना का प्रमुख केंद्र है, जहाँ डोगरी के साहित्यिकों का प्रतिनिधि संगठन “डोगरी संस्था” के नाम से, इस भाषा के साहित्यिक योगक्षेम के लिये गत लगभग 60 वर्षो से प्रयत्नशील है।

  • “डोगरी पंजाबी की उपबोली है” यह भ्रामक धारणा डॉ॰ ग्रियर्सन के भाषाई सर्वेक्षण के प्रशंसनीय कार्य में डोगरी के पंजाबी की उपबोली के रूप में उल्लेख से फैली।
  • जॉन बीम्ज ने भारतीय भाषा विज्ञान की रूपरेखा संबंधी अपनी पुस्तक (प्रकाशित 1866 ई॰) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि डोगरी ना तो कश्मीरी की अंगभूत बोली है, ना पंजाबी की। उन्होंने इसे भारतीय-जर्मन परिवार की आर्य शाखा की प्रमुख 11 भाषाओं में गिना है।
  • डॉ॰ सिद्धेश्वर वर्मा ने भी डोगरी की गणना भारत की प्रमुख सात सीमांत भाषाओं में की है।

डोगरी भाषा की लिपि

डोगरी की अपनी एक लिपि है जिसे “टाकरी या टक्करी लिपि” कहते हैं। यह लिपि काफी पुरानी है। गुरमुखी लिपि का प्रादुर्भाव इसी से माना जाता है।

  • कुल्लू तथा चंबा के कुछ प्राचीन ताम्रपट्टों से ज्ञात होता है कि इस लिपि का प्रारंभिक रूप में विकास 10 वीं- 11वीं शताब्दी में हो गया था।
  • टाकरी वर्ग के अंतर्गत आने वाली कई लिपियाँ इस विस्तृत प्रदेश में प्रचलित हैं जैसे, लंडे, किश्तवाड़ी, चंबयाली, मंडयाली, सिरमौरी और कुल्लूई आदि।
  • डॉ॰ ग्रियर्सन शारदा को और टाकरी को सहोदरा मानते हैं। श्री व्हूलर का मत है कि टाकरी शारदा की आत्मजा है।
  • कश्मीर नरेश महाराज रणवीर सिंह ने, आज से लगभग एक सौ वर्ष पूर्व, अपने राज्यकाल में, डोगरी लिपि में, नागरी के अनुरूप, सुधार करने का प्रयत्न किया था। मात्रा, चिह्नों के प्रयोग को अपनाया गया।
  • पहली बार नई टाकरी लिपि में डोगरी भाषा के ग्रंथों के मुद्रण की समुचित व्यवस्था के लिये जम्मू में शासन की ओर से रणवीर प्रेस की स्थापना की गई।
  • पुरानी डोगरी वर्णमाला का यह संशोधित रूप जनव्यवहार में लोकप्रिय न हो सका।
  • डोगरी के लिये नागरी लिपि डोगरी की नव साहित्यिक चेतना के साथ ही साथ टाकरी का स्थान देवनागरी लिपि ने ले लिया।

टाकरी लिपि आज भी डुग्गर के देहाती समाज में बहीखातों में प्रयुक्त होती है। इसका एक विकसित रूप भी है जिसमें कई ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है। अब वर्तमान में अधिकतर कार्यों के लिए देवनागरी ही प्रयोग में ली जाती है।

डोगरी भाषा की वर्णमाला:

Swar Dogri Varnamala - Dogri Alphabet
Vowels Dogri Alphabet
Vyanjan Dogri Varnamala - Dogri Alphabet
Consonants Dogri Alphabet
Dogri Sankhyayen - Dogri Numbers - Ank
Dogri Numbers

डोगरी साहित्य

जनभाषाओं में साहित्यसर्जन का प्रारंभ प्राय: मौखिक परंपरा के रूप में ही होता है। डोगरी में लोकसाहित्य की यह थाती काफी समृद्ध है। डोगरी संस्था के अनुशासन में उत्साही साहित्यिकों ने इस समय तक से 500 से अधिक लोकगीत इकट्ठे किए हैं। इन गीतों में भाव तथा संगीत दोनों दृष्टियों से अभिनंदनीय कलात्मकता तथा विविधता है। डोगरों के सामाजिक जीवन की बहुरंगी प्रतिक्रया इनमें अत्यंत सजीव होकर व्यक्त हुई है। डोगरी संस्था की त्रैमासिक पत्रिका (नई चेतना) के प्रत्येक अंक में पाँच-पाँच लाकगीत छपते रहे हैं। संस्था ने ही विवाह संबंधी गीतों के एक संग्रह ‘खारे मिट्ठे अत्थरूं‘ नाम से प्रकाशित किया है। डॉ॰ कर्ण सिंह द्वारा संपादित एक डोगरी लोकगीत संग्रह (अंग्रेजी हिंदी अनुवाद तथा गीतों की मौलिक स्वरलिपि सहित) शैडो ऐंड सनलाइट नाम से ऐशिया पाब्लिशिंग हाउस बंबई द्वारा प्रकाशित किया गया है।

रियासत की कल्चरल अकैडमी भी इन लोकगीतों का संग्रह करने में योग दे रही है। इसी तरह डोगरी लोककथाओं के संग्रह के लिये भी प्रयत्न हुए हैं। इस समय तक तीन संग्रह छप चुके हैं:

  1. डोगरी लोककत्था (संपा॰ श्री बंशीलाल)
  2. इक हा राजा (संपा॰ रामनाथ शास्त्री)
  3. नमियाँ पौंगरा (संपा॰ अनंतराम शासी)

कथा उपन्यास

डोगरी साहित्यजीवन का उषाकाल यद्यपि काव्य की अरुणिमा लेकर प्रकट हुआ तथापि उसके स्थिर विकास के लिये जो गद्यसाधना अपेक्षित थी, वह अनुकूल परिस्थिति में प्रत्यक्ष होने लगी। जैसे पद्य के क्षेत्र में नवोन्मेप हरिदत्त की साधना से हुआ, उसी तरह गद्य के क्षेत्र में कथालेखक के रूप में भगवत प्रसाद साठे अग्रणी हैं।

इस समय तक डोगरी में ये प्रमुख कहानीसंग्रह प्रकाशित हुए है:

  1. कुड़ में दा लाहमा (समधियों का उलाहना) श्री भगवतप्रसाद साठे
  2. सूई तागा कुमारी ललिता महता
  3. कीलें दियाँ लीकरां (कोयले की रेखाएँ) श्री नरेंद्र खजूरिया
  4. खीरला मानु (अंतिम मानव) श्री मदन मोहन शर्मा
  5. काले हथ (काले हाथ) श्री वेद राही
  6. चाननी (चांदनी) श्री मदनमोहन
  7. पैरें दे नशान (पाँव के निशान) श्री रामकुमार अबरोल
  8. रोचक कहानियाँ (बच्चों के लिये) श्री नरेंद्र खजूरिया
  9. फुल बनीगे ंोर (फूल बन गए अंगोर) श्री रामकुमार अबरोल
  10. उच्चियाँ धारां (ऊँची पर्वतमालाएँ) श्री धर्मचंद्र प्रशांत
  11. इक्की कहानियाँ (टैगोर की इक्कीस कहानियों का डोगरी रूपांतर – श्री वेद राही)

उपन्यास

  1. शान्ते (सामाजिक) श्री नरेंद्र खजूरिया
  2. धारां ते धूड़ां (पर्वतमालाएँ और धुंध) श्री मदनमोहन शर्मा
  3. हाड़ बेड़ी दे पत्तप (सामाजिक) श्री वेद राही
  4. रूकमणी (सामाजिक) श्री धर्मचंद्र प्रशांत
  5. वादियाँ वीराने (मूल उर्दू से स्वयं लेखक श्री ठाकुर पुंछी द्वारा डोगरी में रूपांतरित)

नाटक

डुग्गर में रंगमंच की परंपरा केवल फ़ रामायणफ़ के वार्षिक प्रदर्शन तक ही सीमित थी। इस नव सांस्कृतिक चेतना ने रंगमंच के लोकप्रिय साधन का भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया। इसके लिये नई परिस्थिति की अपेक्षाओं के अनुकूल नए नाटक लिखे गए-

  1. नयाँ ग्राँ (नया गाँव) ले॰ रामनाथ शास्त्री, दीनु भाई और रा॰ कु॰ अवरोल (लगभग 50 बार खेला गया)
  2. सरपंच (ऐतिहासिक नाटक) ले॰ दीनू भाई पंत
  3. अस भाग जगाने आले आं ले॰ नरेंद्र खजूरिया
  4. देव का जन्म (पौराणिक) श्री ध॰ च॰ प्रशांत
  5. देहरी (सामाजिक) श्री रा॰कु॰ अबरोल
  6. धारें दे अत्थरूं (, ) श्री वेद राही

निबंध तथा गद्यानुवाद

  1. त्रिवेणी (साहित्यिक निबंध) श्रीमती शक्ति शर्मा एम॰ए॰, श्री श्यामलाल बी॰ए॰
  2. बाल भागवत (अनुवाद) श्रीमती शक्ति शर्मा एम॰ए॰, श्री श्यामलाल बी॰ए॰
  3. पंचतंत्र (संक्षिप्तानुवाद) श्री अनंतराम शास्त्री
  4. गीता (अनुवाद) श्री गौरीशंकर
  5. दुर्गा सप्तशती (मूल सहित, डोगरी अनुवाद) स्व॰ श्री कृपाराम शास्त्री

व्याकरण कोश

  1. डीगरी कहावत कोश श्री तारा स्मैलपुरी
  2. डोगरी भाषा और व्याकरण श्री बंसीलाल गुप्त (अप्रकाशित)

लोकसाहित्य

  1. डोगरी लोक कत्थां (तबी प्रकाशन, नई दिल्ली) संपा॰ श्री बंशीलाल गुप्त एम॰ए॰
  2. इक हा राजा (लोककथाएँ) डोगरी संस्था, जम्मू, संपा॰ रामनाथ शास्त्री
  3. खारे मिट्ठे अत्थरूं (लोकगीत) संपा॰ सुशीला सलाथिया
  4. Sunshine and Shadow (लोकगीत) डॉ॰ कर्णसिंह
  5. नमियाँ पौंगराँ (धर्मस्थानों की कथाएँ) डोगरी मंउल, जम्मू
  6. अमर बलिदान (लोक काव्यात्मक गाथा का गद्यरूप)

पत्र-पत्रिकाएँ

  1. नई चेतना (त्रैमासिक) केवल चार अंक प्रकाशित हुए।
  2. रेखा (द्विमासिक) चार अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

फुटकल रचनाएँ

  1. जगदियाँ जोताँ (उूर्द) डोगरी कवियों का परिचय
  2. डोगरी भाषा (16 पृष्ठों की पुस्तिका) ठा॰ रघुनाथ सिंह
  3. ई॰ 1857(प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष संबंधी कविताएँ)
  4. अलमस्त की चार काव्य पुस्तिकाएँ
  5. सपोलिया की चार काव्यपुस्तिकाएँ
  6. जम्मू प्रांत के तीन कालेजों की पत्रिकाओं (तवी, त्रिकुरा तथा द्विगर्त) के डोगरी विभाग
  7. शिक्षा विभाग द्वारा प्राइमरी कक्षाओं के लिये प्रकाशित चार डोगरी रीडर- श्री रामनाथ शास्त्री

कुल मिलाकर, डोगरी भाषा बोलने वाले लोगों की सांस्कृतिक विरासत का एक समृद्ध और जीवंत हिस्सा है, और इसका एक लंबा इतिहास और परंपरा है जो भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ी भाषा परिवार तक फैली हुई है। भाषा की अपनी अनूठी लिपि, व्याकरण, शब्दावली और उच्चारण है, और यह संस्कृत, फारसी और पंजाबी समेत कई अन्य भाषाओं से प्रभावित है।