मणिपुरी या मैतेई भाषा
मणिपुरी भाषा मणिपुरी लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। इसे मैतेई के नाम से भी जाना जाता है, और यह मणिपुर की आधिकारिक भाषा (राजभाषा) है। मणिपुरी चीन-तिब्बती भाषा परिवार से संबंधित है। विश्व में इस भाषा को बोलनेवालों की संख्या 33 लाख है और इनमें से 16 लाख मणिपुरी है।
भाषा | मणिपुरी |
लिपि | मीतै लिपि (मीतै मयेक) |
भाषा दिवस | 20 अगस्त (1992 से) |
बोली क्षेत्र | मणिपुर, असम, त्रिपुरा और बंगाल |
वक्ता | 33 लाख |
भाषा परिवार | तिब्बती-बर्मी < चीनी-तिब्बती |
आधिकारिक भाषा | मणिपुर |
महत्वपूर्ण तथ्य:
- मणिपुरी या मैतै भाषा भारत के मणिपुर प्रान्त एवं निचले असम के लोगों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है।
- मणिपुरी भाषा, मैतै लोगों की मातृभाषा है।
- मणिपुरी भाषा, मैतै मायेक लिपि में तथा पूर्वी नागरी लिपि में लिखी जाती है।
- यह भारत के संविधान में 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है।
उत्पत्ति और विकास
मणिपुरी भाषा का अस्तित्व 9वीं से शुरू होता है, जब वर्तमान मणिपुर में मैतेई साम्राज्य की स्थापना हुई थी। मैतेई लोगों की एक समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत है, और उनकी भाषा समय के साथ संस्कृत, बंगाली और अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं और संस्कृतियों के तत्वों को शामिल करने के लिए विकसित हुई है।
मणिपुरी भाषा की मैतेई मयेक लिपि 15वीं शताब्दी में प्रकाश में आई। इस लिपि का आज भी उपयोग किया जाता है और इसे मैतेई लोगों की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
भारत में उत्तर-पूर्व के सात राज्यों असम, मणिपुर, नागालैण्ड, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय में मूल रूप से तीन भाषा-परिवार मिलते हैं- भारत ईरानी, चीनी-तिब्बती (साइनो-तिब्बती) तथा आस्ट्रिक। मणिपुर की भाषा साइनो-तिब्बती परिवार के उप-कुल तिब्बती-बर्मी के अन्तर्गत आती है।
मणिपुरी या मैतेई भाषा का बोली क्षेत्र:
विश्व में इस भाषा को बोलनेवालों की संख्या 33 लाख है और इनमें से 16 लाख मणिपुरी तथा मणिपुरी मुस्लिम है। सम्पर्क भाषा के रूप में 7 लाख मणिपुर के नागा और कुकी जनजातियाँ बोलते है। बाकी के 5 लाख भारत के अन्य राज्यों-असम, त्रिपुरा और बंगाल में बोली जाती है। 4 लाख म्यान्मार के मण्डले, यांगुन तथा कलेम्यो में और एक लाख बंगलादेश के ढाका और सिल्हट में बोली जाती है।
मणिपुरी या मैतेई भाषा की लिपि
मणिपुरी की लिपि को मीतै मयेक (मीतै लिपि) कहा जाता है। अब तक उन्नतीस भाषाएँ तथा बोलियाँ और अलग-अलग उन्नतीस मातृभाषाएँ उपलब्ध है। मणिपुरी भाषा ही इस राज्य की संपर्क भाषा है। (पढ़ें- भाषा और लिपि में अंतर)
मैतै लिपि में 15 व्यंजन और 3 स्वर लिखने के चिह्न उपलब्ध हैं। इनके अलावा अन्य भारतीय लिपियों से लिये गये 9 अतिरिक्त चिह्न भी उपलब्ध हैं। हर अक्षर का नाम शरीर के किसी भाग पर रखा गया है। मसलन प्रथम अक्षर ‘क’ की ध्वनि रखता है और उसका नाम ‘कोक’ (अर्थात ‘सिर’) है। दूसरे अक्षर का नाम ‘साम’ (यानि ‘बाल’) और तीसरे का नाम ‘लाइ’ (यानि ‘माथा’) है।
इसके अतिरिक्त मैतै में 8 विशेष वर्ण हैं जो अक्षर (syllables) के अन्त में लगाए जाते हैं स्वरविहीन व्यंजन हैं (प् त् क् म् न् ङ् ल्) । इस प्रकार अक्षरान्त (सिलैबल ब्रेक) को देखना आसान हो जाता है।
मैतेई लिपि की कुछ विशिष्टताएँ
- स्वतंत्र स्वरों में केवल अ, इ, उ के लिए अलग संकेत हैं। बाकी स्वतंत्र स्वरों को ‘अ’ के ऊपर मात्रा लगाकर लिखते हैं, जैसे ‘ए’ लिखने के लिए ‘अ’ के ऊपर ‘ए की मात्रा’ लगा दिया जाता है।
- छ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण के लिए संकेत नहीं हैं। अर्थात् मूल मणिपुरी शब्दों के लिए इनका उपयोग नहीं होता। उदाहरण के लिए ‘मणिपुर’ को मणिपुरी लिपि में ‘मनिपुर’ लिखा जाता है। यूनिकोड 6 में विस्तारित करने के बाद ये वर्ण अब यूनिकोड में उपलब्ध हैं। भारतीय भाषाओं (जैसे संस्कृत) के शब्दों को लिखने के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है।
- संयुक्त होने पर वर्णों के रूप नहीं बदलते, जैसे अधिकांश भारतीय लिपियों में होता है।
- वे स्वरविहीन व्यंजन जो अक्षर (सिलैबल) के अन्त में नहीं हैं, उनके तथा उनके बाद वाले व्यंजन के नीचे एक रेखा लगा दी जाती है जो उनके संयुक्ताक्षर होने का संकेत करती है।
- सिलैबिल के अन्त में आने वाले वर्ण (लोनसुम), एक प्रकार से सिलैबिल के अन्त का भी संकेत करते हैं। ये वर्ण मूल वर्णों से कुछ भिन्नता लाकर बनाए गए हैं।
- यह नहीं कहा जा सकता कि यह लिपि, किस लिपि से उद्भूत (निकली) है।
मणिपुरी साहित्य
मणिपुरी भाषा (मेइतेइ) का साहित्य समृद्ध है और मणिपुरी साहित्य का लिखित अस्तित्व 8 वीं शताब्दी से ही प्राप्त होता है। 1973 से आज तक 31 मणिपुरी साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मणिपुरी साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला, संस्कृति झलकती है। कहानी, उपन्यास, काव्य, प्रवास वर्णन, नाटक आदि सभी विधाओं में मणिपुरी साहित्य ने अपनी पहचान बनाई है। मखोनमनी मोंड्साबा, जोड़ छी सनसम, क्षेत्री वीर, एम्नव किशोर सिंह आदि मणिपुरी के प्रसिद्ध लेखक हैं।
मणिपुरी साहित्य की यात्रा 1924 में फाल्गुनी सिंह द्वारा मैतै तथा बिष्णुप्रिया मणिपुरी भाषा की द्बिभाषिक सामयिकी “जागरन” के प्रकाशन के रूप में आरम्भ हुआ। इसी समय और भी कई द्बिभाषिक पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें “मेखली”(1933), “मणिपुरी” (1938), क्षत्रियज्योति (1944) इत्यदि अन्यतम हैं।
मणिपुरी में कुछ प्रसिद्ध साहित्य:
- कनाक केथक (शौर कविता) – अध्यापक रनजित सिंह
- कुमपागा (यारि) – अंजन सिंह
- चिकारी बागेय (कविता) – अध्यापक रनजित सिंह
- छेयाठइगिर यादु (कविता)- शुभाशिस समीर
- ज्बीर मेरिक (कविता) – राधाकान्त सिंह
- तौर निंसिङे (कविता) – सुखमय सिंह
- थाम्पाल (कविता) – अध्यापक रनजित सिंह
- निङसिङ निरले (जीवनचरित) – अध्यापक रनजित सिंह
- नियति (कविता) – अध्यापक रनजित सिंह
- नुया करे चिनुरि मेयेक (कविता) – शुभाशिस समीर
- बाहानार परान (शौर कविता) – अध्यापक रनजित सिंह
- भानुबिल कृषकप्रजा आन्दोलन बारोह बिष्णुप्रिया मनिपुरी समाज (गवेषना) – अध्यापक रनजित सिंह
- रसमानजुरी (एला) – राधाकान्त सिंह
- सेनातम्बीर आमुनिगत्त सेम्पाकहान पड़िल अदिन (कविता)- शुभाशिस समीर
अंत में, मणिपुरी भाषा भारतीय राज्य मणिपुर में मैतेई लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण भाषा है। इसका एक लंबा इतिहास और एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है, और यह मैतेई लोगों की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हाल के दिनों में चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, भाषा को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए मेइती लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहे।