पहाड़ी हिन्दी – Pahadi Hindi
पहाड़ी का विकास ‘खस प्राकृत‘ से माना जाता है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने इसे ‘मध्य पहाड़ी‘ नाम से सम्बोधित किया है। पहाड़ी हिन्दी कुमाऊँ और गढ़वाल प्रदेश की भाषा है। प्राचीन समय में यहाँ अनार्य जातियाँ रहती थीं। बाद में यहाँ वैदिक संस्कृति के केन्द्र स्थापित होने लगे। इसके पश्चात् क्रमशः खस और राजपूत जातियों का इस देश पर आधिपत्य हुआ। इस भाषा में साहित्यिक परम्परा के अभाव को देखते हुए डॉ. बाहरी ने इसे उपभाषा मानने में भी संकोच किया है।

पहाड़ी हिन्दी की बोलियाँ
- कुमाउनी
- गढ़वाली
कुमाउनी – Kumaoni
यह कुमाऊं प्रदेश की बोली है, जिसे प्राचीन काल में कुर्माचल प्रदेश कहा जाता था। कुमाउनी को दरद, राजस्थानी, खड़ी बोली, किरात, भोट आदि बोलियों से प्रभावित माना जाता है। इसकी 12 उपबोलियाँ मानी जाती हैं, जिसमें से ‘खस’ प्रमुख उपबोली है।
कुमांऊँनी की बोलियाँ
कुमांऊँनी भाषा यानि बोली, कुमांऊँ क्षेत्र में विभिन्न रुपांतरणों में बोली जाती है जैसे –
- पिथौरागढ़ में उत्तर पूर्वी कुमांऊँनी
- अल्मोड़ा और उत्तरी नैनीताल में मध्य कुमांऊँनी
- पश्चिमी अल्मोड़ा और नैनीताल में पश्चिमी कुमांऊँनी
- दक्षिण पूर्वी नैनीताल में दक्षिण पूर्वी कुमांऊँनी
कुमांऊँ क्षेत्र में लगभगग २० प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं – जोहारी, अस्कोटि, सिराली, खसपरजिया, फल्दकोटि, पछाइ, सोरयाली, चुगरख्यैली, मझ कुमारिया, दानपुरिया, कमईया, गंगोला, रौचभैसि।
गढ़वाली – Garhwali
गढ़वाल प्रदेश की बोली को गढ़वाली कहा जाता है। इस क्षेत्र में गढ़वाल, टिहरी, चमोली आदि जिले आते हैं। गढ़वाली में लोकगीत-साहित्य का प्राचुर्य है। गढ़वाली पर ब्रज और राजस्थानी का प्रभाव भी माना जाता है।
गढ़वाली की बोलियाँ
गढ़वळि भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ प्रचलित हैं यह गढ़वाल के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न पाई जाती है।
- जौनसारी, जौनसार बावर तथा आसपास के क्षेत्रों के निवासियों द्वारा बोली जाती है।
- सलाणी, टिहरी के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
- श्रीनगरिया, गढ़वळि का परिनिष्ठित रूप है।
- मार्छी, मर्छा (एक पहाड़ी जाति) लोगों द्वारा बोली जाती है।
- राठी, पौड़ी क्षेत्र के राठ क्षेत्र में बोली जाती है।
- जधी, उत्तरकाशी के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
- चौंदकोटी, पौड़ी में बोली जाती है।