अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी बोली व भाषा – पूर्वी हिन्दी

पूर्वी हिन्दी – Purvi Hindi

पूर्वी हिन्दी का विकास अर्धमागधी प्राकृत से हुआ है। पश्चिमी हिन्दी और भोजपुरी के बीच के क्षेत्र को पूर्वी हिन्दी का क्षेत्र माना जाता है। पूर्वी हिन्दी के चारों ओर नेपाली, कन्नौजी, बुन्देली, भोजपुरी और मराठी बोली जाती है। अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी आदि पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ हैं।

Avadhi, Bagheli, Chhattisgarhi - Purvi Hindi Ki Boliyan
Purvi Hindi Ki Boliyan

पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ (Purvi Hindi Ki Boliyan)

अवधी

पूर्वी हिन्दी की बोलियों में अवधी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्य की दृष्टि से ब्रज के पश्चात् अवधी ही समृद्ध रही है। अवधी को पूर्वी अथवा कौसली भी कहा जाता है।

अवधी बोली क्षेत्र

यह लखनऊ, इलाहाबाद, उन्नाव, सीतापुर, बहराइच, फैजाबाद, फतेहपुर, जौनपर, बाराबाँकी आदि प्रदेशों में बोली जाती है।

अवधी के कवि

अवधी में पर्याप्त मात्रा में साहित्य सृजन हुआ है। तुलसी, जायसी, मंझन, उसमान आदि इसके प्रतिनिधि कवि हैं।

अवधी की विशेषताएँ

  • अवधी में ऐ तथा औ का उच्चारण क्रमशः अइ तथा अउ होता है। जैसे- औरत > अउरत, पैसा > पइसा, औषध > अउषध आदि।
  • अवधी में ण का उच्चारण न होता है तथा श, ष, स के स्थान पर अधिकांशतः स का प्रयोग होता है, जैसे-गुण > गुन, विश्वामित्र > बिस्वामित्र आदि।
  • ल तथा ड्र का उच्चारण अधिकाँशत: र होता है, जैसे-गल > गर, फल > फर, जला ) जरा, तोड़ना > तोरना आदि।
  • अवधी में अधिकांश शब्द वाकारान्त होते हैं, जैसे-जगदीसवा, घोड़वा आदि।
  • मानक हिन्दी में भूतकाल के प्रत्ययों में जहाँ ‘या’ का प्रयोग होता है, वहाँ अवधी में ‘वा’ तथा ‘इस’ का प्रयोग होता है, और भविष्यत काल के प्रत्यय रूप में जहाँ ‘ग’ का प्रयोग होता है, वहाँ अवधी में ब तथा ‘ह’ का प्रयोग होता है, जैसे-गया > गवा, पाया > पाइस, कहूँगा > कहबूं, चलेगा > चलिहै, चलब आदि।
  • कारक रचना की दृष्टि से विभिन्न कारकों में जहाँ अवधी के अपने परसर्ग हैं, वहीं कर्ता कारक के चिन्ह ‘ने’ का विलोपन पाया जाता है, जैसे-उसने गाया > उ गाइस।।

बघेली

बधेल खण्ड की बोली को बधेली कहा जाता है। बधेल खण्ड का केन्द्र रीवाँ (मध्य प्रदेश) है। बधेली मुख्यतः जबलपुर, मांडला, हमीरपुर, मिर्जापुर, बांदा, दमोह आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। कतिपय विद्वान् इसे स्वतंत्र बोली न मानकर इसे केवल अवधी की दक्षिणी शाखा मानने के पक्ष में है।

बधेली भाषा क्षेत्र

बधेली मुख्यतः जबलपुर, मांडला, हमीरपुर, मिर्जापुर, बांदा, दमोह आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।

 बधेली की प्रमुख विशेषताएँ

  • अवधी का ‘व’ बधेली में ब हो जाता है, जैसे-आवा > आबा।
  • विशेषणों में ‘हा’ प्रत्यय का प्रयोग अधिक होता है, जैसे-अधिकहा।
  • बधेली में अधिकांशतः आदिवासियों की शब्दावली प्रयुक्त होती है।

छत्तीसगढ़ी

मध्य प्रदेश के रायपुर, बिलासपुर, सारंगगढ़, खैरागढ़, बालाघाट, नंदगाँव आदि क्षेत्रों की बोली को छत्तीसगढ़ी कहा जाता है। इस बोली में साहित्य का अभाव है। इस बोली की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें ध्वनियों के महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है, जैसे-जन > झन, दौड़ > धौड़ आदि।